रविवार, 22 मई 2016

कौन -कौन तर गए ,कुम्भ के नहाए से ,मीन न तरी जाको गंगा में घर है ,,,[संत कबीर ]

लगभग एक माह तक चला उज्जैन सिंहस्थ  मेला -पर्व समाप्त हो चुका है । कुछ अखवार वाले और न्यूज चैनल वाले  जिन्हे मध्यप्रदेश सरकार ने खूब ठूंस -ठूंसकर खिलाया है,इस सिंहस्थ को ऐतिहासिक रूप से सफल बता रहे हैं।  केवल श्रद्धालु स्नानार्थी ही नहीं ,धर्मांध लाभार्थी ही नहीं  ,साधु -संत -महंत ज्ञानी -ध्यानी ही नहीं ,अपितु इस सिंहस्थ पर्व के तमाम प्रत्यक्ष और परोक्ष  'स्टेक होल्डर्स' भी इस सिंहस्थ मेले का गुणगान करते हुए ,अपना-अपना बोरिया विस्तर बांधकर  लौट चुके हैं । भारत के ज्ञात इतिहास में अब तक शायद ही किसी  राजा ने ,किसी सामन्त ने ,किसी राज्य सरकार ने ,किसी मुख्य्मंत्री ने - कुम्भ-सिंहस्थ के निमित्त इस कदर -अविरल आदरभाव,  समर्पण और आर्थिक वित्त पोषण किया हो ! शिवराज जैसा मन-बचन -कर्म सेराजकीय समर्पण शायद ही किसी  शासक ने  कभी  न्यौछावर किया हो !

मध्यप्रदेश के मौजूदा मुख्य्मंत्री शिवराज सिंह चौहान  ने सांस्कृतिक , सामाजिक एवं आध्यात्मिक संगम -सिंहस्थ पर्व की सफलता  के निमित्त जो किया है,उसकी मिशाल भारत में  तो क्या दुनिया में भी नहीं मिलेगी।  बहरहाल उनके इस सकाम भक्तिभाव से 'संघ परिवार'  गदगदायमान है। भगवान महाकाल  और  शिप्रा +नर्मदा मैया भी शिवराज पर अवश्य ही प्रशन्न होंगी ! तमाम मठाधीश ,साधु , संत ,महंत,शंकराचार्य ,महामंडलेश्वर , व्यापारी,ठेकेदार,अधिकारी -सभी शिवराज से खुश हैं । पीएम नरेंद्र मोदी जी भी  मध्यप्रदेश के नैनावा ज्ञान कुम्भ में शिवराज जी की तारीफ कर गए -अर्थात ''मोगेम्बो खुश हुआ ''!भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और इन सबके मुकुट मणि सर  संघ संचालक -महानुभाव मोहनराव भागवत ,एवं संघ गणांनाम्  सर्वश्री अनिल माधव दवे,राम माधव, भैया जी जोशी  इत्यादि  भी सिंहस्थ नहाकर शिवराज से  प्रशन्न भए !  इसमें कोई शक नहीं कि भगवान शिव खुद ही शिवराज के मार्ग की समस्त बाधाओं  को  दूर कर अभय दान  देने को लालायित हो रहे होंगे ! आकाशवाणी होने को है कि  हे तात - तुम्हारी सत्ता की  कुर्सी सुरक्षित रहे । न केवल कुर्सी सुरक्षित रहे बल्कि आगामी   चुनाव में  भी शिवराज को अंदर-बाहर  से कोई चुनौती न रहे ! एवमस्तु !  हालांकि  भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव  कैलाश विजयवर्गीय  भी महाकाल के उद्भट उपासक हैं अतएव उनके उदगार कि ' सिंहस्थ की सफलता किसी एक व्यक्ति या सरकार की बदौलत नहीं है बल्कि यह  तो महाकाल की कृपा से ही सम्भव हुआ है ।  कैलाश जी के अमृत रुपी बचनामृत से भाजपा की  राजनीतिक़  हांडी का आंतरिक तापमान ज्ञातव्य हो रहा है। उनके आशय को रहीम कवि  अपने दोहे में पहले ही समझा गए हैं ,,,

अमृत जैसे बचन में ,रहिमन रिस की गाँठ।
 जैसे मिश्री में मिली ,निअर्स बांस की गांठ।।


 खैर यह तो  'मुण्डे -मुण्डे मतरिभिन्ना' वाली कहावत  ही चरितार्थ हुई है ,मुझे तो इस कुम्भ -सिंहस्थ का  अंतिम दृश्य कुछ  यौं जान पड़ता है :-


ख़त्म हुआ जलसा अभी ,संगत उठी जमात।
अब निरीह निर्बल बचे ,तम्बू और कनात।।

इन मजदूरों ने किया ,यह सब बंदोबस्त।
भूंखे-प्यासे  जुटे रहे ,महीनों हालत खस्त। ।

जो बतलाते हैं हमें ,स्वर्ग प्राप्त तरकीब।
 उन  परजीवी धूर्त से ,मेरा  वतन गरीब।।

होटल हो या खेत हो ,फैक्टरी खलिहान।
मुफलिस बच्चों के लिए ,कैसा कुम्भ स्नान। ।

संत कबीर को भी जब कभी इसी तरह के दौर से गुजरना पड़ा होगा तो उन्होंने  निम्नलिखित भजन लिखा मारा !

कौन -कौन तर गए ,कुम्भ के नहाए से ,मीन न तरी जाको गंगा में घर है।
कौन-कौन तर गए भभूति लगाए से ,श्वान ने तरो  जाको घूरे पै  घर है।

कौन -कौन तर गए धूनी  रमाए से ,तिरिया ने तरी जाको  चूल्हे में घर है।
कौन -कौन तर गए ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,तरेंगे वही जिनके ह्रदय में हर है।।



कबीर का यह भजन बचपन में सुना था ,,अब विस्मृत हो चुका  है ,लेकिन कबीर के आशय से पूरी तरह विज्ञ हूँ और उसमें आस्था भी है। यही वजह है कि
६३ साल की उम्र में एक भी कुम्भ नहीं नहाया।  मैं  २८ मई- १९७६ को  ट्रांसफर होकर गाडरवारा से इंदौर  आया था ।  इंदौर आये हुए  पूरे चालीस साल हो गए ! यहाँ से उज्जैन  सिर्फ ५५  किलोमीटर है , और नासिक भी  ज्यादा दूर नहीं है ,किन्तु कभी  कोई कुम्भ -सिंहस्थ स्नान नहीं किए । दरसल इसकी जरूरत ही नहीं समझ पडी ! दोस्तों और सपरिजनों ने  भी बहुत मनाया-फुसलाया   किन्तु दिल है कि मानता नहीं । यद्द्पि मैं कुम्भ मेला , तीर्थटन  नदियों में पर्व स्नान को गलत नहीं मानता। अपितु मानवीय सांस्कृतिक जीवंतता के लिए उपयुक्त साधन  समझता हूँ । किन्तु राज्यसत्ता द्वारा राजकाज छोड़कर केवल  इस तरह के  धार्मिक मेगा इवेंट्स का वित्तपोषण किये जाने का औचित्य मुझे समझ में नहीं आया !  मनुष्य जीवन की शुचिता ,आत्मिक पवित्रता ,कष्ट मुक्ति ,पुण्यलाभ इत्यादि के निमित्त किसी भी व्यक्ति की अहेतुक आध्यात्मिक यात्रा उसका अपना व्यक्तिगत अधिकार है। और उसकी मनोवृत्ति आस्तिक-नास्तिक कुछ भी हो सकती है ,किन्तु  एक गरीब देश या प्रदेश में  केंद्र-राज्य सरकार और शासन-प्रशासन की सम्पूर्ण सामर्थ्य एवं वित्तीय संसाधनों का इस तरह बेजा दुरूपयोग मुझे कतई पसंद नहीं आया  !  श्रीराम तिवारी

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