बुधवार, 11 मई 2016

मल्टीनेशनल के घोर समर्थक मोदी जी और जेटली जी पतंजलि का साथ देंगे क्या ?

लगभग ७-८ साल पहले जब पतंजलि ओषधि में मानव हड्डी पाई गई थी ,तबसे मैंने स्वामी रामदेव के खिलाफ खूब लिखा था। वह सिलसिला  अब  भी ज़ारी है। विगत  लोक सभा चुनावों के ठीक पहले स्वामी रामदेव का नेता नुमा  स्वांग रामलीला मैदान पर सबने देखा। रामदेव का अण्णा जैसा ही  धरना आंदोलन -ड्रामा और स्त्रीवेश में मैदान छोड़कर भागना उनके समर्थकों को भी पसंद नहीं आया। कालेधन और भृष्टाचार के खिुलाफ रामदेव लगातार १० साल से भाषणबाजी करते  रहे हैं। लेकिन जबसे एनडीए सरकार बनी और मोदी जी का राजतिलक हुआ है ,रामदेव जी कालेधन और भृष्टाचार के सवाल पर मुँह में दही जमाये बैठे हैं। ऐंसा आभासित होता है कि बाबा रामदेव को यह बृह्म ज्ञान हो गया है कि उनका योगबल रुपी  बृह्मबाण मोदी जी के काम आकर बेअसर हो चुका है। रामदेव के तरकश में अब पतंजलि संसथान का तीर ही शेष बचा है। इसलिए आजकल वे  पतंजलि के विज्ञापन  में जुट गए हैं। पतंजलि उत्पादों के विस्तार में भी  बाबा  जी जान से जुटे हैं। शायद उन्हें इल्हाम हो चुका है कि केवल  शारीरिक कौशल या कसरत से अपनी महिमा को अक्षुण नहीं रखा जा सकता ! देश की आवाम को सस्ते और  वैश्विक उत्पाद भी उपलब्ध कराने  होंगे।


हालाँकि मुझे उनके उत्पादों या उनके 'योग' से कोई लगाव नहीं है। जो योगासन रामदेव सिखाते हैं वे बचपन में हमारे गाँव के प्रायमरी स्कूल में सिखाए जाते थे। और जाहिर है कि  इस विषय  में हमारे गाँव के तत्कालीन युवा स्वामी रामदेव से ज्यादा आसन और पैंतरे जानते थे। चूँकि  मैंने स्वयं खेतों में नंगे पैर हल हाँका  है। नीलामी के जंगलों में लकड़ी  भी काटी  है। और  पढाई के दौर में सड़कों के लिए खन्तियां  भी खोदी हैं। पत्थर भी तोड़े हैं ।स्वामी  रामदेव  ने यह सब किया होगा इसमें संदेह है।  अब से ५०-६० साल पहले प्रायः हर गाँव -कस्बे में एक अदद अखाडा जरूर हुआ करता था। अब भी गाँवों कस्बों में कहीं-कहीं उनके चिन्ह बाकी हैं। जहाँ तक पतंजलि उत्पादों के सेवन और खरीदने का प्रश्न है तो मुझे पतंजलि के किसी उत्पाद में कोई रूचि नहीं। दरसल  मुझे उनके उत्पादों की जरुरत ही नहीं। वैसे भी हमने अपनी जरूरतों को सीमित कर रखा है। डाबर, हो या वैद्द्यनाथ या पतंजलि - आयुर्वेदिक ,हौम्योपैथिक दवाइयों पर मुझे कोई भरोसा नहीं। लेकिन जिन  मल्टीनेशनल कम्पनियों  के खिलाफ संघर्ष करते हुए  मेरी जिंदगी गुजर गयी ,यदि उन्हें  कोई वास्तव में  चुनौती दे रहा है  ,तो मेरा राष्ट्रीय  कर्तव्य है कि  मैं स्वामी रामदेव और पतंजलि का साथ दूँ !

चूँकि  मल्टीनेशनल कम्पनियों ने भारत का बाजार कैप्चर कर  रखा है और  पतंजलि उत्पाद मल्टीनेशनल  कम्पनियों के उत्पादों को चुनौती दे रहे हैं।  इसलिए  न चाहते हुए भी  मैं अब  बाबा के इस वैश्विक व्यापार का समर्थन करता हूँ।  बशर्ते स्वामी रामदेव और उनका पतंजलि संसथान अपने उत्पादों की मानक गुणवत्ता का नियमन करे। यदि स्वामी रामदेव और उनका पतंजलि योग संसथान भारतीय संविधान के दायरे में काम करे , यदि वे  कर्मचारियों,मजदूरों के वेतन ,भत्ते ,पीएफ ,चिकित्सा सुविधा और तद्नुरूप अवकाश के प्रावधानों का पालन करें  ,यदि स्वामी रामदेव और पतंजलि  किसी पूंजीवादी पार्टी को सत्ता में बिठाने का टूल्स न बने और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का आदर करें तो मल्टीनेशनल कम्पनीज बनाम पतंजलि की प्रतिस्पर्धा में मैं स्वामी रामदेव और पतंजलि का ही साथ दूंगा !  जिन्हे मालूम है कि स्वामी रामदेव और उनका पतंजलि अब एमएनसीज  के निशाने पर हैं।  जो भी  सच्चे क्रांतिकारी और वतनपरस्त हैं  वे भी रामदेव  और पतंजलि का साथ देंगे क्या ?जो भी  इस विमर्श में पतंजलि के खिलाफ होगा वो मल्टीनेशनल कम्पनियों का समर्थक माना जाएगा !  मल्टीनेशनल के हाथों लुटने से  बेहतर है बाबा रामदेव के हाथों लूट जाना। क्योंकि बाबा जो कमाएगा वह साथ नहीं ले जाएगा.। सब यहीं धरा रह जायेगा और देश के कम आयेगा !

 यह कबीले गौर हैं कि पतंजलि बनाम मल्टीनेशनल की प्रतिस्पर्धा में  मोदी सरकार का रुख कैसा रहेगा ? क्योंकि  मोदी जी और  जेटली जी  तो मल्टीनेशनल के  घोषित खासम खास हैं। वे पतंजलि का साथ कैसे देंगे ?  यदि वे स्वामी रामदेव का साथ देंगे तो मल्टीनेशनल कम्पनियों द्वारा  सत्ता से उखड दिए जाएंगे। और यदि स्वामी रामदेव का साथ नहीं देते तो बाबा के वोट बैंक से महरूम होना पडेगा !  उनके लिए इधर कुआँ  -उधर खाई है !

\श्रीराम तिवारी

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