मंगलवार, 17 सितंबर 2013

एक डालर में एक किलो प्याज . . . !सौदा बुरा नहीं है।

          एक डालर में एक किलो प्याज   . . . !सौदा बुरा नहीं है।

   यह केवल संयोग मात्र नहीं है कि डालर के सापेक्ष रुपया सस्ता होता जा रहा है।  दूसरे शब्दों में   कहा जा सकता   है  कि रूपये के सापेक्ष , डालर मेंहगा  होता जा रहा है।   भारत में  प्याज इन  दिनों ६०-७०  रुपया किलो  बिक रही है ,डालर  भी ६०-७०  रुपयों के बीच ही   झूल रहा है। याने एक डालर में  औसत एक  किलो प्याज तो  खरीदी  ही  जा सकती है। कौन कहता है कि  प्याज मंहगी है ? अमेरिका में एक डालर तो अब भिखारी भी स्वीकार नहीं करते। यही  गनीमत है कि  प्याज मिल  रही है और डालर में नहीं रूपये में मिल रही है। यदि यूपीए और एंडीऐ की आर्थिक नीतियाँ एक जैसी हैं तो नरेन्द्र मोदी जी इस समस्या को कैसे हल करेंगे ? राहुल गाँधी की तो कोई स्पष्ट नीति ही नहीं है। उनसे पूँछो  गरीबी दूर कैसे करोगे  ? वे जवाव देंगे -गरीबी एक मानसिक समस्या है ।  यदि पूँछोगे  कि  प्याज महँगी  हो गई है ! वे कहेंगे प्याज खाना छोड़ दो ! शरद पंवार जी का तो 'दर्शन' ही निराला है उनसे तो कोई मंहगाई के बारे में बात ही न करे तो ही गनीमत है ! उनने जिस किसी  भी  चीज के बारे में मुँह  खोला कि  उसके दाम आसमान पर जा पहुँचेंगे।  कांग्रेस,भाजपा दोनों ही वर्तमान आर्थिक नीतियों के प्रवल  समर्थक हैं।  दोनों ही अमेरिकी आशीर्वाद के याचक हैं फिर वे आपस में मोदी वनाम राहुल या एनडीए वनाम यूपीए की नूरा कुस्ती में देश  की जनता को वेबकूफ बनाने  में क्यों जुटे हैं?
             मनमोहन सिंह और यशवंत सिन्हा ही नहीं स्वयम मोदी जी भी  स्पष्ट कर चके हैं कि  पूँजीपति परस्त नीतियाँ ही उनके 'राज्य-संचालन' का माध्यम होंगी।  स्वामी रामदेव जी को अपने ' भारत स्वाभिमान'को  ताक पर रखकर 'मोदी चालीसा' नहीं पढ़ना चाहिए! उन्हें मेरी बात पर यकीन न हो तो जिस-किसी अर्थशाष्त्री  पर यकीन हो उससे जान लें की डॉ मनमोहनसिंह की -अमेरिका और इंग्लेंड प्रणीत - आर्थिक उदारीकरण  -  की  वैश्वीकरण की नीति  से अलग हटकर कोई   प्रथक आर्थिक नीति न तो भाजपा की है ,न एनडीए की है और ना 'नरेद्र मोदी' की है ! याने प्रस्तावित भाजपाई "पी एम् इन वेटिंग"की  भी वही नीति है जो वर्तमान प्रधानमंत्री या वर्तमान यूपीए सरकार की है ! 
                                            ये तो पूँजीवादी  भारतीयों  की दास पृवृत्ति ही है कि  डालर को भगवान् मानकर अमेरिका के सामने "भवति भिक्षाम देहि" का उच्चाटन करते रहते हैं। एम् एन सी ,विश्व बेंक  और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के दकियानुसी  आर्थिक सुझावों और सुधारों के लिए खुख्यात भारतीय 'अर्थ विशेषज्ञों ' की जमात न तो रूपये को बचा पा  रही है और न ही उसकी पूर्ण परिवर्तनीयता के  सापेक्ष अपनी आर्थिक और मौद्रिक नीति को राष्ट्रीय हितों के अनुकूल बना पा रही है।  प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा  केवल सत्ता अभिलाशनी  होकर "नमो-नमो" का जाप  तो कर रही है   किन्तु आर्थिक  विकल्प प्रस्तुत करने में असमर्थ है! संघ परिवार  के पास    मंदिर,हिंदुत्व और  बदनाम बाबाओं को बचाने  का एजेंडा तो अवश्य है! किन्तु रूपये की दुर्दशा  , प्याज  की कालाबाजारी। खाद्द्यान्य की  सट्टा  बाजारी ,पूँजीपतियों  की मुनाफाखोरी  और मेहनतकश जनता के श्रम की   लूट रोकने का कोई 'दर्शन' या एजेंडा नहीं है।  होहि है वही  जो 'संघ' रची राखा। …

                    श्रीराम तिवारी  

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