नव-युग के तरुणी -तरुण ,शिक्षित-सभ्य-जहीन।
सिस्टम के पुर्जे बने, हो गए महज़ मशीन।।
अधुनातन साइंस का, भौतिक महाप्रयाण।
नवयुग के नव मनुज का, हो न सका निर्माण।।
उन्नत-प्रगत-प्रौद्दोगिकी, शासक जन विद्द्वान।
शोषित -पीड़ित दमित का,कर न सके कल्याण।।
भ्रष्ट स्वार्थी तंत्र में, जिन के जुड़े हैं तार।
उन्हें नहीं पहचानता,युवा वर्ग लाचार।।
क्या संस्कृति क्या सभ्यता,क्या राष्ट्राभिमान।
जन-संघर्षों की तपिश ,जाने वही महान।।
क्या विप्लव क्या क्रांति,क्या भारत निर्माण।
ये सम्भव यदि फूंक दें, युवा शक्ति में प्राण।।
देश -समाज के हेतु ही,बने तीज त्यौहार।
निर्धन जन भूंखे मरें ,महंगाई की मार।।
भील मनाएं भगोरिया, बेलेन्टायन रोम।
भारत में मदनोत्सव,प्रेम दिवस ! हरिओम।।
पूंजी के संसार में,पसर चुका शैतान।
चोर-मुनाफाखोर अब , बन गए सब धनवान।।
धरती के धन धान्य का,करें दवंग उपभोग।
संसाधन सृजन करें, मेहनतकश वे लोग।।
मेहनत से क्या भागना,मेहनत तो है योग।
जो वंदा मेहनत करे ,दूर हटें सब रोग।।
सृष्टि सकल भयातुर,जल-थल-नभ के जीव।
भय ने जग मरघट किया,दुनिया बड़ी अजीव।।
श्रीराम तिवारी
सिस्टम के पुर्जे बने, हो गए महज़ मशीन।।
अधुनातन साइंस का, भौतिक महाप्रयाण।
नवयुग के नव मनुज का, हो न सका निर्माण।।
उन्नत-प्रगत-प्रौद्दोगिकी, शासक जन विद्द्वान।
शोषित -पीड़ित दमित का,कर न सके कल्याण।।
भ्रष्ट स्वार्थी तंत्र में, जिन के जुड़े हैं तार।
उन्हें नहीं पहचानता,युवा वर्ग लाचार।।
क्या संस्कृति क्या सभ्यता,क्या राष्ट्राभिमान।
जन-संघर्षों की तपिश ,जाने वही महान।।
क्या विप्लव क्या क्रांति,क्या भारत निर्माण।
ये सम्भव यदि फूंक दें, युवा शक्ति में प्राण।।
देश -समाज के हेतु ही,बने तीज त्यौहार।
निर्धन जन भूंखे मरें ,महंगाई की मार।।
भील मनाएं भगोरिया, बेलेन्टायन रोम।
भारत में मदनोत्सव,प्रेम दिवस ! हरिओम।।
पूंजी के संसार में,पसर चुका शैतान।
चोर-मुनाफाखोर अब , बन गए सब धनवान।।
धरती के धन धान्य का,करें दवंग उपभोग।
संसाधन सृजन करें, मेहनतकश वे लोग।।
मेहनत से क्या भागना,मेहनत तो है योग।
जो वंदा मेहनत करे ,दूर हटें सब रोग।।
सृष्टि सकल भयातुर,जल-थल-नभ के जीव।
भय ने जग मरघट किया,दुनिया बड़ी अजीव।।
श्रीराम तिवारी
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