सोमवार, 5 सितंबर 2011

दूसरों पर एक अंगुली उठाओगे तो चार तुम्हारी ओर मुड़ जाएँगी...

    केंद्र  की वर्तमान कांग्रेस नीति  यु पी ऐ सरकार  को लगातार चौतरफा हमलों ने इस कदर चकरघिन्नी बना दिया है कि 'कोर समन्वय'या ग्रुप आफ मिनिस्टर्स  'जो कि विशाल भारत  के नीति नियामक होने चाहिए ,वे अपनी प्रभुसत्ता का प्रयोग अदने से सामाजिक कार्यकर्ताओं  की नादानियों  के बहाने ;उन्हें दबोचने में  कर रहे हैं. अन्ना हजारे को संसदीय परम्परा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का ज्ञान नहीं है,वे लगातार सांसदों,मंत्रियों और राजनीतिज्ञों को भृष्ट एवं झूंठा बता रहे हैं;जो कि न तो प्रमाणित है और न ही मर्यादित है.उनके तथाकथित भृष्टाचार विरोध की लड़ाई में सिर्फ एक ही सच है कि उद्देश्य सही है किन्तु साधनों कि शुचिता संदेहास्पद है.देश को बुरी तरह लूटने वाले दलाल पूंजीपतियों की आकूत मुनाफाखोरी ,प्रशाशनिक मशीनरी को खरीदकर जेब में रखने की दुर्दमनीय क्षमता पर अन्ना एंड कम्पनी को या तो ज्ञान ही नहीं या वे उनके हाथों बिक चुके हैं. देश में जो लोग -नेता आफिसर,कर्मचारी और जन प्रतिनिधि ईमानदार हैं,जिनके कारण देश न केवल सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न है बल्कि दुनिया में एक सम्मान की स्थिति में आ गया है  ऐंसे देशभक्त लोगों को वर्तमान व्यक्तिवादी नकारात्मक आंदोलनों से कोई उम्मीद नहीं है.वे जानते हैं की देश में बढ़ती आबादी,प्रतिस्पर्धात्मक बाजारीकरण,पूंजीवादी मुनाफा आधारित अर्थ व्यवस्था और उस पर नियंत्रण रखने वाला सरमायादार  वर्ग ही न केवल भृष्टाचार,न केवल असमानता, न केवल शोषण,बल्कि महंगाई,वेरोजगारी  को परवान चढाने के लिए जिम्मेदार है.इनके खिलाफ अन्ना हजारे,अरविन्द केजरीवाल,शशिभूषण,प्रशांत भूषन,संतोष हेगड़े,किरण वेदी और बाबा रामदेव जैसे स्वयम्भू जन नायक एक शब्द नहीं बोलते क्यों?
                                विविधताओं और अतीत के भग्नावेशों से भरे पड़े देश की एक अरब ३० करोड़ जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भारत को आरम्भ से ही पडोसी मुल्कों के दुश्चक्रों का शिकार होना पड़ा है.ऐंसे माहोल में भी भारत की महानतम प्रजातांत्रिक व्यवस्था को दुनिया में ईर्ष्या  की नज़र से देखा जाता है.माना की चीन ने भारत से वेहतर विकाश ,विनियोजन,सामाजिक-आर्थिक समानता पर आधारित धर्म निरपेक्ष समाज को बराबरी के अधिकारों और सामाजिक सुरक्षा के सरोकारों से लबालब किया है किन्तु भारत में भारी भृष्टाचार ,भारी असमानता के वावजूद लोगों को अधिकार है कि विना पढ़े लिखे लोग या सरकारी धन से ही एन जी ओ चलाने वाले लोग अपनी व्यक्तिगत सनक या श्वान्तः सुखाय के लिए मनमोहन सिंह जैसे देश के एक सर्वश्रेष्ठ ईमानदार प्रधान मंत्री को कभी जंतरमंतर ,कभी रामलीला मैदान,कभी प्रेस और मीडिया की खुराक के रूप में  गाली  दे सकते हैं .क्या थेन आन मन चौक पर यह मुमकिन है?नहीं!चीन में या अमेरिका में निठल्ले लोगों को समाज में कोई सम्मान नहीं.जबकि भारत में ऐयाश बाबाओं,एन जी ओ कर्ताओं,धार्मिक मठाधीशो  को जनता पागलों की तरह भगवान् या अवतार मान बैठती है.
        यह सभी जानते हैं की भारत में गरीबी,वेरोजगारी अशिक्षा,कुपोषण और रहन सहन के रूप में जो बिकराल खाई है उसकी जड़ में भृष्टाचार ही है, वामपंथ,मार्क्सवादी,जनवादी,बुद्धिजीवी,देशभक्त और दीगर संगठन इस भृष्टाचार रुपी रक्तबीज के खिलाफ दशकों से संघर्ष कर रहे हैं.उनके आंदोलनों में हजारे और रामदेव जैसी नाटकीयता नहीं है इसीलिये पूंजीपतियों का क्रीत दास श्रव्य,छप्य,पाठ्य मीडिया समवेत स्वरों में अन्ना एंड कम्पनी को रामदेव एंड कम्पनी को  क्रांति की मशाल घोषित करता है ,क्योंकि ये आन्दोलन पूंजीवादी व्यवस्था के पक्षधर हैं और केवल आधा दर्जन मंत्रियों और १०० सांसदों को टार्गेट  करते हुए पूंजीवादी विपक्ष[भाजपा ] को अमृतपान  कराने के लिए उद्धत रहते हैं.जबकि वामपंथ और किसान- मजदूर स्पष्ट कहते हैं की सरमायेदारी के चलते न तो भृष्टाचार मिटेगा और न गरीबी और वेरोजगारी ख़त्म होगी. भाजपा को उसके सबसे बुरे दौर में जबकि कर्णाटक के नेताओं की ऐयाशी ,भृष्टाचार गले-गले तक उबलचुकी  हो,पांचजन्य या ओर्गेनिज़र के भूत पूर्व स्वनामधन्य विद्वान् सम्पादक अपनी महिला मित्रों के साथ विदेशों में रंगरेलियां मानने के लिए भोपाल से लेकर स्वित्ज़रलैंड तक कुख्यात हो रहे हों,बेलारी से लेकर सिंगरोली तक और कच्छ से लेकर मुजफ्फरपुर तक हर जगह उसके नेताओं के दिव्य रूपों के दर्शन अन्ना एंड कम्पनी या बाबा रामदेव को नहीं हो रहे .उन्हें सोनिया गाँधी ,मन मोहन सिंह,राहुल गाँधी,दिग्विजय सिंह और कपिल सिब्बल  में खोट नज़र आती है तरुण विजय,प्रमोद महाजन,रेड्डी बंधू,येदुरप्पा,और अनंत कुमार दूध के धुले नज़र आते हैं.इसीलिए अना हजारे और बाबा रामदेव पर देश का पढ़ा लिखा विवेकशील आदमी यकीन नहीं करता .लाख दो लाख लोग इस देश में हमेशा निठल्ले घुमते रहते हैं.उन्हें अन्ना और रामदेव जैसों के नट-लीलाओं में देशभक्ति नज़र आती है ऐंसी बात  नहीं है,दरसल जो लोग कुछ कर नहीं पाते और संघर्ष का व्यक्तिगत माद्दा मृतप्राय जिनका हो चूका होता है ऐंसे नर-नारी इन बाबाओं,एन जी ओ कर्ताओं के चोंचलों में अपने को अभिव्यक्त कर आत्म संतुष्टि पाते हैं.
        मीडिया समझता है की वो जो दिखा रहा है याने सरकार के खिलाफ जो झूंठी तस्वीर  बदतर माहोल बना रहा है वो  शायद जनता {दर्शकों }को रास आ रहा है.प्रथम दृष्टया आम आदमी उसी के खिलाफ होता है जो सत्ता में होता है,किन्तु विभिन्न चेनलों की प्रित्स्पर्धा के परिणामस्वरूप सचाई सामने आ ही जाती है.लोग तब अपने आप को फिर ठगा सा महसूस कर किसी और अन्ना या रामदेव के बाड़े की और चल देते हैं.
      " सरकार झूंठी है,मंत्री झूंठे हैं,सांसद वेइमान हैं 'ये वक्तव्य किसी गांधीवादी का हो ही नहीं सकता..."
   ऐंसा वक्तव्य                        मेरे जैसा  कोई कम-अकल या कोई आम आदमी दे तो माफ़ किया जा सकता है,किन्तु जो लोग महात्मा गाँधी के अवतार वन बैठे हों ,भृष्टाचार को जडमूल से उखाड़ फेंकना चाहते हों,उनके मुखार बिन्द से सम्पूर्ण व्यवस्था की बदहाली के लिए सिर्फ वर्तमान सरकार और खास तौर से ईमानदार प्रधानमंत्री और दर्जनों अच्छे ईमानदार सांसदों [उसमें अकेली कांग्रेस ही नहीं भाजपा और माकपा के भी सांसद हैं}को बाईस पसेरी धान  की तरहएकही तराजू से तौलने की    क्या तुक है? अन्ना हजारे अभी भी असंसदीय भाषा का प्रयोग कर रहे हैं,बाबा रामदेव के तो सौ खून माफ़ हैं क्योंकि वे तो भारतीय संविधान का ककहरा भी नहीं जानते;किन्तु अन्ना टीम में बड़े-बड़े वकील जज और भूतपूर्व आईपीस ,आई टी एस हैं ,वे सभी जानते हैं की भारत की लोकतंत्रात्मक शैली की सबसे बड़ी अच्छाई और विशेषता उसकी संसदीय सर्वोच्चता है.अभिव्यक्ति की जो आज़ादी भारत का संविधान देता है ,पारदर्शता और न्याय की आकांक्षा जो भारतीय संविधान जगाता है वही तो वर्तमान जनांदोलनो का मूलाधार है.उसी पर मठ्ठा डालने वाले अन्ना हजारे ,रामदेव और उनके लग्गू-भग्गू देश के जन नायक कैसे हो सकते हैं?
       उधर अपनी चूकों ,नाकामियों और शिथिलताओं के चलते वर्तमान सरकार को अपने बेहतर और कारगर जन हितेषी कार्यों ,वेहतर परफार्मेंस के प्रदर्शन का अवसर ही नहीं मिल पा रहा है.स्पष्ट बहुमत के आभाव में क्षेत्रीय चोट्टों का समर्थन और फिर उनके किये धरे का खामयाजा भुगतने की बजाय कांग्रेस और यु पि ऐ सरकार ने अपने ही सहयोगियों को तिहाड़ की ओर धकेलकर जो हिम्मत का काम किया उस पर अन्ना और रामदेव मौन क्यों हैं?
   अन्ना और रामदेव के सामने न झुककर भारत की वर्तमान केंद्र सरकार ने न केवल देशभक्तिपूर्ण कार्य किया है अपितु भारतीय संविधान के नीति निर्देशक सिध्धान्तों की रक्षा भी की है.यही  उसका दायित्व भी था.यदि किसी खास व्यक्ति ,समूह ,ग्रुप या झुण्ड ने 'अनशन'कर डाला की हमें  संसद और सरकार पसंद नहीं इसीलिए जब तक उसके अधिकार किसी 'लोकपाल'को नहीं हस्तांतरित किये जाते
हम अनशन पर  मजमा लगायेंगे? भले ही लोगों को 'भारत माता की जय'वन्दे मातरम्' भृष्टाचार ख़तम करो' इत्यादि नारे आशान्वित करते हों किन्तु जिस विधायिका को ,कार्यपालिका को आप स्वयम पाप पंक में धसा हुआ मान बैठे इसी तथाकथित भृष्ट व्यवस्थापिका ,विधायिका और कार्यपालिका के सहयोग बिना कोई भी नया क़ानून ,विधेयक या नीति परिवर्तन संभव नहीं है.  ,यह भी तो स्मरण रखना चाहिए.
      जो लोग सरकार को गालियाँ देते हैं पानी पी पी कर कोसते हैं,विपक्ष को सहलाते हैं अपने वैयक्तिक कीर्तिध्वज को आसमान में देखने की तमन्ना  रखते हैं वे ही लोग देश और सरकार से विशेषाधिकार की उम्मीद क्यों रखते हैं.केजरीवाल ने कम्पुटर लोन लिया ,वपिश नहीं किया,नौकरी के वास्तविक पीरियड की गणना में वे स्टडी लीव घुसेड रहे हैं और अब कहते हैं की हमारे जी पी ऍफ़ में से काट लो हद हो गई अज्ञानता की जिस आदमी को इतना ज्ञान नहीं की लोन की रिकवरी प्रोविडेंट फंड से तब तक संभव नहीं जब तक लोनी स्वयम होकर आवेदन कर जी पी ऍफ़ का पैसा निकालकर लोन मद में वापिश करे .यदि आपने सरकार का पैसा लिया है और आप ६ साल तक खुद ये कार्यवाही करने में अक्षम रहे तो आपसे {केजरीवाल जी] क्यों उम्मीद करें कि आप जनांदोलन के काबिल हैं?भूषन पिता-पुत्र के बारे में अमरसिंह जैसे मुलायम सिंह जैसे लोग ज्यादा जानते हैं,किरण वेदी की वाचालता और ओवर कान्फिडेंस के कारणमीडिया और विद्वत समाज ने कभी गंभीरता से नहीं लिया.  वर्तमान दौर के इन गैर राजनैतिक और गैर जिम्मेदार आन्दोलन कर्ताओं को देश के गैर जिम्मेदार मीडिया का भरपूर समर्थन हासिल है.उनके आकाओं ने केंद्र सरकार को खलनायक .संसद को 'गंवार'लोगों का जमावड़ा और केन्द्रीय मंत्री परिषद् को'झून्ठों'का समूह सावित करने के लिए अन्ना जेसे अनपढ़ और रामदेव जैसे बन्दार्कूंदों  को हीरो बनाने में कोई कसर बाकि नहीं रखी . लोगों को सचाई मालूम है की 'वास्तव में पूरा देश ही इस भृष्टाचार के लिए जिम्मेदार है. कोई दूध का धुला नहीं.कोई मिलावट कर रहा है ,कोई रिश्वत देकर ज्यादा लाभ भी उठाना चाहता है कोई रिश्वत देकर अपने कुकर्म या अपराधों को छिपाता है ,कोई भी किसी लाइन में लगना उचित नहीं समझता किन्तु जिसके पास देने को रिश्वत नहीं वो मजबूरी में लाइन में लगता है,जिसके पास धन -रुपया पैसा है वो घर बैठे फोन घुमाकर अपना काम करा लेता है.सरकारी भृष्टाचार के लिए तो फिर भी कानून है,सी सी एस ,ऍफ़ आर एस कंडक्ट रूल्स हैं किन्तु एन जी ओ ,हवाला घोटाला,कार्पोरेट दुरभिसंधियां और कनक-कामिनी-कंचन के सहारे राजनीती की गंगा मैली करने वालों को अन्ना एंड कम्पनी भूल जाती है.नरेंद्र मोदी लोकायुक्त की नियुक्ति में ६ साल लगा देते हैं येदुरप्पा रेड्डी बंधू घूरे के ढेर पर खड़े हैं शिवराजसिंह डम्पर  काण्ड से मुक्ति के लिए कानून में संशोधन करते हैं,देश भर में महिलाओं और दलितों पर अत्याचार होते हैं,किसान आत्म हत्या करते हैं अन्ना और उनके बडबोले बगलगीर मुहं में दही जमाकर बैठे हैं.
         भृष्टाचार के खिलाफ मनमोहनसिंह भी हैं ,कांग्रेस में भी कुछ तो हैं जो सिर्फ पैसे के लिए नहीं बल्कि अपने उत्तरदायित्व के लिए निष्ठावान हैं.जिन लोगों को सिर्फ कांग्रेस  और केंद्र सरकार में साडी बुराइयां नजर आ रहीं हैं वे शीशे के मकानों में रहना छोड़ दें ,वर्ना अभी तो अरविन्द केजरीवाल  और किरण वेदी को ही नोटिस  मिला है यदि लोग इस तरह के गैर जिम्मेदार आचरण और स्वयं भृष्ट होते हुए भी केंद्र सरकार को कोसते रहेंगे तो जनता के असली सवालों-महंगाई,वेरोजगारी,विकाश इत्यादि के मुद्दे नेपथ्य में चले जायेंगे ,इन दिशाहीन आंदोलनो से सिर्फ इतना परिणाम परिलक्षित होगा कि आगामी पीढ़ी को प्रायमरी में पढाई जाने वाली पाठ्य पुस्तकों में गाँधी ,नेहरु तिलक,मौलाना आज़ाद,आंबेडकर  लोकनायक जयप्रकाश नारायण,इंदिरा गाँधी,के साथ किसी अन्ना हजारे या रामदेव का भी जीवन वृतांत   छाप दिया जाए.बाकि देश की हालत के लिए जनता को अपनी वास्तविक राष्ट्रीय चेतना विकसित करनी होगी,वर्तमान आंदलनो को यदि सही दिशा में मोड़कर जन-जागरण के पक्ष में ले जाया जाये और सरकार आगे बढ़कर सहयोग और समन्वय के प्रयाश करे तो इन आंदलनो से देश के पुनर्जागरण में  भारी सकरात्मक क्रन्तिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है..अकेले कोरे गांधीवाद से देश का कल्याण हो सकता होता तो गाँधी जी ही सफल क्यों नहीं हुए?जे पी ,लोहिया  नेहरु,कृपलानी और नम्बूदिरिपाद से बड़ा कोई गांधीवादी नहीं किन्तु वे भी अन्ततोगत्वा मार्क्सवाद के साथ साथ सोसल डेमोक्रेसी को मानने के लिए बाध्य हुए थे.अन्ना और उसके चेले तो सोसल डेमोक्रेसी की  या वेलफेयर स्टेट की परिभाषा भी नहीं जानते .जानते होते तो सरकार या राजनीति को नहीं बल्कि जनता को अपने आप में बदलाव के लिए ,त्याग के लिए आह्वान करते.दूसरों को कोसने मात्र से क्रांतियाँ तो नहीं भ्रांतियां अवश्य  हुईं हैं.
      बुरा जो देखन में चला ,बुरा न मिलिया कोय.
     जो दिल खोजों आपना,     मुझसे बुरा  न कोय..
     
                                         श्रीराम तिवारी

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