भारत में राजनीति को कुआँर कि कुतिया समझ कर सरे राह लतियाने वालों में दिग्भ्रमित विपक्ष और टी आर पी रोग से पीड़ित -प्रिंट,श्रव्य,दृश्य और बतरस मीडिया का नाम पहले आता है.भारत को बर्बाद करने में जुटी पाकिस्तान कि खुफिया एजेंसी आई एस आई,उसके द्वारा प्रेरित -पोषित घृणित आतंकवादियों,अलगाववादियों,नक्सलवादियों,पूंजीवादी -सामंती शोषण कि ताकतों,एनजीओ और स्वनामधन्य तथाकथित सच्चाई -ईमानदारी के ठेकेदार अन्नाओं,योग गुरुओं का नाम उसके बाद आता है.वर्तमान सत्तारूढ़ यूपीए सरकार और कांग्रेस को सत्ता च्युत करने का न तो अभी वक्तआया है और न किसी राजनैतिक ,सामाजिक जन आन्दोलन के प्रहारों की नितांत आवश्यकता ही अपेक्षित है,कांग्रेस को सत्ता विमुख करने में कांग्रेसी खुद सक्षम हैं.यकीन न हो तो जिन राज्यों में उसकी सरकारें अतीत में सत्ताच्युत हुई वहाँ का और जब -जब केंद्र में सत्ता से बाहर हुई वहाँ के राजनैतिक सफरनामों पर गौर फरमाकर देख लीजिये. कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकांशतः काग्रेस जन खुद ही कांग्रेस के सत्ताच्युत होते रहने के लिए जिम्मेदार रहे हैं.अब यदि वर्तमान दौर मैं विश्व बैंक और आई एम् ऍफ़ निर्देशित नेता और नीतियां इसी तरह जबरियां देश पर लादी जाती रहीं कि गाँव में २६ रुपया रोज और शहर में ३२ रुपया रोज कमाने वाला अब गरीब नहीं कहलायेगा तो इस सरकार को २०१४ को होने जा रहे लोक सभा चुनाव में पराजय का मुंह क्यों नहीं देखना चाहिए?
मेरा आशय ये है कि जब सरकार और सतारूढ़ पार्टी में विराजे लोग हाराकिरी पर उतारू हैं तो क्यों खामखाँ लोग बाग़ राजनीति को गन्दा और अपवित्र सिद्द करने पर तुले हैं?जो निपट निरीह अनाडी और व्यक्तिवादी -आदर्शवादी समूहों ,गुटों और व्यक्तियों के रोजमर्रा के आदतन सरकार विरोधी अरण्यरोदन हैं वे तो वैसे भी इस देश के मजबूत प्रजातांत्रिक ढांचे में मौसमी पखेरुओं या कीट पतंगों कि तरह जन्मते -मरते रहेंगे,किन्तु विराट जनसमर्थन वाले , केडर आधारित ,नीतियों -कार्यक्रमों औरघोषणा पत्रों वाले राष्ट्रव्यापी जनाधार वालेविपक्षी राजनैतिक दलों को यह शोभा नहीं देता कि सिर्फ भंवर में फंसी मछली को आहार बना लिया जाए या रणभूमि में रक्तरंजित धरा में धसे कर्ण के रथ को देखकर विजय श्री का उद्घोष किया जाए.
प्रतिगामी आर्थिक नीतियों और निम्न आय वर्ग की दुर्दशा एक दूसरे के अन्योंनाश्रित हैं ,वर्तमान दौर की असहनीय महंगाई और भृष्टाचार भी पूंजीवादी पतनशील मुनाफा आधारित व्यक्तिनिष्ठ साम्पत्तिक अधिकार की लोलुपता का परिणाम है.इसके बरक्स निरंतर जन लाम-बंदी और जनतांत्रिक जनवादी क्रांति की दरकार है.भारत के संगठित मजदूर,कर्मचारी किसान,केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें और वाम मोर्चा लगातार जी जान से इस सर्वजनाहित्कारी उद्देश्य के लिए संघर्षरत थे,संघर्ष रत हैं और जब तलक सामाजिक,आर्थिक,सांस्कृतिक,राजनैतिक असमानता और अमानवीयता का इति श्री नहीं हो जाता तब तलक उम्मीद है कि वे अविराम संघर्ष जारी रखेंगे. संसदीय प्रजातांत्रिक परम्परा में सिर्फ सरकारें बदल जाने ,इस या उस गठबंधन या पार्टी के सत्ता में आने-जाने से किसी भी पूंजीवादी निजाम में आम जनता को न्याय मिल जायेगा यह कदापि संभव नहीं.नेता और चेहरों को ताश के पत्तों कि तरह फेंटने से देश की तकदीर नहीं बदल जायेगी, विनाशकारी भृष्ट नीतियों को बदलने और जनाभिमुख कल्याणकारी श्रम समर्थक नीतियों को स्थापित किये बिना कोई भी व्यक्ति तो क्या विशाल राजनैतिक पार्टी भी व्यवस्था में बदलाव की उम्मीद न करे.
देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भाजपा में इन दिनों जो चल रहा है वो सिर्फ व्यक्तियों के अहम् का विस्फोट है.आर्थिक ,सामाजिक,वैदेशिक पर्यावरण ,साक्षरता,इत्यादि किसी खास मुद्दे पर सरकार को घेरने और जनांदोलन चलाने के बजाय कोई सद्भावना उपवास पर बैठ जाता है ,कोई रथ यात्रा की हुंकार भरता है और कोई मीडिया के सामने विफर रहा है.प्रधानमंत्री बनने की तमन्ना जिस तरह उछालें मार रही है उससे तो लगता है कि बस वो सत्तासीन होने ही जा रहा है. इन नादानों को यह जानने का सब्र नहीं है कि कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने अभी किसी भी कोण से यह नहीं दर्शाया है कि वो पस्तहिम्मत हो चुकी है.अभी आगामी लोक सभा चुनाव के लिए इतना समय पर्याप्त है कि कांग्रेस अपनी खामियों को दुरुस्त कर लगातार तीसरी बार सत्ता में पहुंचे हालाँकि जब अन्ना एंड कम्पनी राम लीला मैदान में केंद्र सरकार को गरिया रही थी तब कोई सर्वे में बताया गया था कि मनमोहन सरकार की साख घटी है.लेकिन उतनी नहीं घटी कि बस अब सिंहासन खली होने जा रहा है तो ख़ुशी के मारे कोई राजघाट पर नाच उठता है,कोई अपने जन्मदिन पर उपवास का प्रहसन करता है,कोई अपनी धवल कीर्ति को दाव पर लगाने को उद्धृत रहता है.
दरसल भाजपा में जो प्रथम पूज्य की होड़ मची है उसमें उसके सभी घोषित -चर्चित चेहरे कार्तिकेय भले ही हो जाएँ किन्तु गणपति वही वन पायेगा जो धर्मनिरपेक्षता की कसोटी पर खरा नहीं तो कम से कम अटल बिहारी या वक्रतुंड तो होगा ही.भाजपा कि सबसे बड़ी ताकत उसका संघ आधारित काडर है और भाजपा में संघ का दखल ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है.भविष्य में यदि यूपीए कि हार और एनडीए की जीत होती है तो जिस व्यक्ति को संघ का आशीर्वाद होगा वो कभी भी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुँच सकता.भले ही नितीश्कुमार ,शरद यादव,अकाली,शिवसेना नवीन पटनायक ,झामुमो या मायावती संघ के मुरीद हो जाएँ किन्तु भारतीय मूल्यों की वजह से.भारतीय वैविध्य की वजह से,भारतीय प्रजातांत्रिक आकांक्षाओं की वजह से एक्चालुकनुवार्तित्व के प्रसाद पर्यंत वाला व्यक्ति प्रधानमंत्री नहीं बन सकता.नरेंद्र मोदी जी को यदि संघ ने भावी प्रधानमंत्री मान लिया है तो समझो वे आजीवन प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री रहेंगे.
संघ को चाहिए कि नेत्रत्व की दौड़ में हस्तक्षेप न करते हुए भाजपा को स्वतंत्र रूप से प्रजातांत्रिक तौर तरीके से अपने और अपने अलायंस पार्टनर्स की सहमती आधारित सर्व स्वीकार्य नेता ,सामूहिक नेत्रत्व की अवधारणा और न्यूनतम साझा कार्यक्रम आधारित जनोन्मुखी नीतियों तय करने में कोई बाह्य संविधानेतर दवाव स्वीकार नहीं करना चाहिए तभी भाजपा और एन डी ऐ की केंद्र में सरकार और भाजपा का प्रधानमंत्री बन सकता है.लगातार नागपुर में जिस किसी की उठक-बैठक कराओगे उसको देश की १२० करोड़ आवाम अपना नेता कैसे स्वीकार कर सकती है?
सुप्रीम कोर्ट के किसी अंतरिम वर्डिक्स या अमेरका के दो-चार सीनेटरों द्वारा मोदी को संदेह का लाभ मात्र दिए जाने का तात्पर्य भारत का राज सिंहासन सौंपना नहीं है.नरेंद्र मोदी वैसे भी सामूहिक नेत्रत्व,प्रजातांत्रिक कार्य प्रणाली से कोसों दूर हैं.उनकी व्यक्तिवादी हठधर्मिता से भाजपा को कोई फायदा नहीं होने वाला.गुजरात विकाश के ढिंढोरे पीटने वाले और कुछ नहीं तो अन्य भाजपा शाशित राज्यों की जनता और वहाँ के भाजपा नेत्रत्व को तो नीचा दिखा ही रहे हैं.ऐंसे में मोदी जी का समर्थन शिवराजसिंह,रमनसिंह या कर्णाटक,उत्तरांचल के सी एम् क्यों करने चले.इन हालातों में नितीश,नवीन,चौटाला,कुलदीप ठाकरे या बादल को भी मोड़ो जैसे का समर्थन करने में कितनी इन्सल्ट होगी यह अभी मूल्यांकित कर पाना संभव नहीं है.
शरद यादव .पासवान,लालू,मुलायम,मायावती,फारुख,ममता,जयललिता अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि बनाए रखने के लिए भाजपा से यदि सम्बन्ध बनायेंगे तो अटल बिहारी की लाइन का कोई भी दोयम नेता स्वीकार कर लेंगे किन्तु संघ प्रिय व्यक्ति को वे सहज स्वीकारेंगे इस में संदेह है.
एन डी ऐ ही नहीं तीसरे मोर्चे की भी भविष्य में सशशक्त होने की सम्भावना है.क्योंकि सत्तारूढ़ यूपीए का यदि पराभव होगा तो अकेले भाजपा ही ५५० सीटों पर काबिज नहीं होगी.विगत विधान सभा चुनावों में पांच राज्यों में से चार में भाजपा का खता भी नहीं खुला था केवल असम में ५ विधायक जीते जबकि पूर्व में वहाँ १८ विधायक थे.इसी तरह जिन राज्यों में वो गठबंधन में शामिल होकर सत्तारूढ़ है वहाँ भी भेला नहीं कर लिया.खुद नितीश ,नवीन चौटाला और कर्नाटक में भाजपा ही संकट में है.अकेले एम् पी ,छ गा,और गुजरात के भरोसे दिल्ली के सिंहासन पर अपने हिंदुत्व ध्वजाधारी को बिठाने की तमन्ना पालने वालों को निराशा ही हाथ लगेगी.ऐंसे में भाजपा के बड़े नेताओं का कुर्सी संघर्ष कोरी मृग मरीचिका है.जनता के सवालों पर तीसरे मोर्चे और वाम मोर्चे का साथ देकर भाजपा और एन डी ऐ सत्ता में आ सकता है वशर्ते उसके नेता 'संघम शरणम् गच्छामि' का मन्त्र न पढ़ें.
श्रीराम तिवारी
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