मंगलवार, 9 अगस्त 2011

सखी पिया नहीं पास...{कविता}

     हरित वसुधरा हो गई,करत दिव्य श्रृंगार!
     तृण संकुल वन प्रांतर,पावस की झंकार!!

     सरिताएं उन्मत्त  भईं,उमड़े पोखर-ताल!
     दमक चमक सौदामिनी,गर्जत मेघ कराल!!

    बून्दनिया  बरसन लगीं,ज्यों अमृत रस धार!
     धरा- गगन सावन निशा,गावें मेघ मल्हार!!

     जलज-पयोनिधि फूट गए,टूटत सब तटबंध!
   ताल   सरोवर  मचल रहे,भंजन को प्रतिबन्ध!! 

    नाचे उपवन मोरनी  , दुति दमकत आकाश!
     झर-झर निर्झरनि बहे,सखी पिया नहीं पास!!

       श्रीराम तिवारी
    

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