भारत संचार निगम में एक लाख कर्मचारियों,अधिकारीयों, को वी आर एस देने तथा अन्य आर्थिक सुविधाओं में कटौती को लेकर १० अक्तूबर को हड़ताल होगी.जे ऐ सी का फैसला.सभी जिलों में लागु किये जाने की सम्भावना है. श्रीराम तिवारी- आल इंडिया आर्गेनिजिंग सेक्रेटरी -बी एस एन एल ई यु ,नयी दिल्ली
बुधवार, 28 सितंबर 2011
गुरुवार, 22 सितंबर 2011
नरेंद्र भाई दिल्ली अभी दूर है ..
भारत में राजनीति को कुआँर कि कुतिया समझ कर सरे राह लतियाने वालों में दिग्भ्रमित विपक्ष और टी आर पी रोग से पीड़ित -प्रिंट,श्रव्य,दृश्य और बतरस मीडिया का नाम पहले आता है.भारत को बर्बाद करने में जुटी पाकिस्तान कि खुफिया एजेंसी आई एस आई,उसके द्वारा प्रेरित -पोषित घृणित आतंकवादियों,अलगाववादियों,नक्सलवादियों,पूंजीवादी -सामंती शोषण कि ताकतों,एनजीओ और स्वनामधन्य तथाकथित सच्चाई -ईमानदारी के ठेकेदार अन्नाओं,योग गुरुओं का नाम उसके बाद आता है.वर्तमान सत्तारूढ़ यूपीए सरकार और कांग्रेस को सत्ता च्युत करने का न तो अभी वक्तआया है और न किसी राजनैतिक ,सामाजिक जन आन्दोलन के प्रहारों की नितांत आवश्यकता ही अपेक्षित है,कांग्रेस को सत्ता विमुख करने में कांग्रेसी खुद सक्षम हैं.यकीन न हो तो जिन राज्यों में उसकी सरकारें अतीत में सत्ताच्युत हुई वहाँ का और जब -जब केंद्र में सत्ता से बाहर हुई वहाँ के राजनैतिक सफरनामों पर गौर फरमाकर देख लीजिये. कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकांशतः काग्रेस जन खुद ही कांग्रेस के सत्ताच्युत होते रहने के लिए जिम्मेदार रहे हैं.अब यदि वर्तमान दौर मैं विश्व बैंक और आई एम् ऍफ़ निर्देशित नेता और नीतियां इसी तरह जबरियां देश पर लादी जाती रहीं कि गाँव में २६ रुपया रोज और शहर में ३२ रुपया रोज कमाने वाला अब गरीब नहीं कहलायेगा तो इस सरकार को २०१४ को होने जा रहे लोक सभा चुनाव में पराजय का मुंह क्यों नहीं देखना चाहिए?
मेरा आशय ये है कि जब सरकार और सतारूढ़ पार्टी में विराजे लोग हाराकिरी पर उतारू हैं तो क्यों खामखाँ लोग बाग़ राजनीति को गन्दा और अपवित्र सिद्द करने पर तुले हैं?जो निपट निरीह अनाडी और व्यक्तिवादी -आदर्शवादी समूहों ,गुटों और व्यक्तियों के रोजमर्रा के आदतन सरकार विरोधी अरण्यरोदन हैं वे तो वैसे भी इस देश के मजबूत प्रजातांत्रिक ढांचे में मौसमी पखेरुओं या कीट पतंगों कि तरह जन्मते -मरते रहेंगे,किन्तु विराट जनसमर्थन वाले , केडर आधारित ,नीतियों -कार्यक्रमों औरघोषणा पत्रों वाले राष्ट्रव्यापी जनाधार वालेविपक्षी राजनैतिक दलों को यह शोभा नहीं देता कि सिर्फ भंवर में फंसी मछली को आहार बना लिया जाए या रणभूमि में रक्तरंजित धरा में धसे कर्ण के रथ को देखकर विजय श्री का उद्घोष किया जाए.
प्रतिगामी आर्थिक नीतियों और निम्न आय वर्ग की दुर्दशा एक दूसरे के अन्योंनाश्रित हैं ,वर्तमान दौर की असहनीय महंगाई और भृष्टाचार भी पूंजीवादी पतनशील मुनाफा आधारित व्यक्तिनिष्ठ साम्पत्तिक अधिकार की लोलुपता का परिणाम है.इसके बरक्स निरंतर जन लाम-बंदी और जनतांत्रिक जनवादी क्रांति की दरकार है.भारत के संगठित मजदूर,कर्मचारी किसान,केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें और वाम मोर्चा लगातार जी जान से इस सर्वजनाहित्कारी उद्देश्य के लिए संघर्षरत थे,संघर्ष रत हैं और जब तलक सामाजिक,आर्थिक,सांस्कृतिक,राजनैतिक असमानता और अमानवीयता का इति श्री नहीं हो जाता तब तलक उम्मीद है कि वे अविराम संघर्ष जारी रखेंगे. संसदीय प्रजातांत्रिक परम्परा में सिर्फ सरकारें बदल जाने ,इस या उस गठबंधन या पार्टी के सत्ता में आने-जाने से किसी भी पूंजीवादी निजाम में आम जनता को न्याय मिल जायेगा यह कदापि संभव नहीं.नेता और चेहरों को ताश के पत्तों कि तरह फेंटने से देश की तकदीर नहीं बदल जायेगी, विनाशकारी भृष्ट नीतियों को बदलने और जनाभिमुख कल्याणकारी श्रम समर्थक नीतियों को स्थापित किये बिना कोई भी व्यक्ति तो क्या विशाल राजनैतिक पार्टी भी व्यवस्था में बदलाव की उम्मीद न करे.
देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भाजपा में इन दिनों जो चल रहा है वो सिर्फ व्यक्तियों के अहम् का विस्फोट है.आर्थिक ,सामाजिक,वैदेशिक पर्यावरण ,साक्षरता,इत्यादि किसी खास मुद्दे पर सरकार को घेरने और जनांदोलन चलाने के बजाय कोई सद्भावना उपवास पर बैठ जाता है ,कोई रथ यात्रा की हुंकार भरता है और कोई मीडिया के सामने विफर रहा है.प्रधानमंत्री बनने की तमन्ना जिस तरह उछालें मार रही है उससे तो लगता है कि बस वो सत्तासीन होने ही जा रहा है. इन नादानों को यह जानने का सब्र नहीं है कि कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने अभी किसी भी कोण से यह नहीं दर्शाया है कि वो पस्तहिम्मत हो चुकी है.अभी आगामी लोक सभा चुनाव के लिए इतना समय पर्याप्त है कि कांग्रेस अपनी खामियों को दुरुस्त कर लगातार तीसरी बार सत्ता में पहुंचे हालाँकि जब अन्ना एंड कम्पनी राम लीला मैदान में केंद्र सरकार को गरिया रही थी तब कोई सर्वे में बताया गया था कि मनमोहन सरकार की साख घटी है.लेकिन उतनी नहीं घटी कि बस अब सिंहासन खली होने जा रहा है तो ख़ुशी के मारे कोई राजघाट पर नाच उठता है,कोई अपने जन्मदिन पर उपवास का प्रहसन करता है,कोई अपनी धवल कीर्ति को दाव पर लगाने को उद्धृत रहता है.
दरसल भाजपा में जो प्रथम पूज्य की होड़ मची है उसमें उसके सभी घोषित -चर्चित चेहरे कार्तिकेय भले ही हो जाएँ किन्तु गणपति वही वन पायेगा जो धर्मनिरपेक्षता की कसोटी पर खरा नहीं तो कम से कम अटल बिहारी या वक्रतुंड तो होगा ही.भाजपा कि सबसे बड़ी ताकत उसका संघ आधारित काडर है और भाजपा में संघ का दखल ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है.भविष्य में यदि यूपीए कि हार और एनडीए की जीत होती है तो जिस व्यक्ति को संघ का आशीर्वाद होगा वो कभी भी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुँच सकता.भले ही नितीश्कुमार ,शरद यादव,अकाली,शिवसेना नवीन पटनायक ,झामुमो या मायावती संघ के मुरीद हो जाएँ किन्तु भारतीय मूल्यों की वजह से.भारतीय वैविध्य की वजह से,भारतीय प्रजातांत्रिक आकांक्षाओं की वजह से एक्चालुकनुवार्तित्व के प्रसाद पर्यंत वाला व्यक्ति प्रधानमंत्री नहीं बन सकता.नरेंद्र मोदी जी को यदि संघ ने भावी प्रधानमंत्री मान लिया है तो समझो वे आजीवन प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री रहेंगे.
संघ को चाहिए कि नेत्रत्व की दौड़ में हस्तक्षेप न करते हुए भाजपा को स्वतंत्र रूप से प्रजातांत्रिक तौर तरीके से अपने और अपने अलायंस पार्टनर्स की सहमती आधारित सर्व स्वीकार्य नेता ,सामूहिक नेत्रत्व की अवधारणा और न्यूनतम साझा कार्यक्रम आधारित जनोन्मुखी नीतियों तय करने में कोई बाह्य संविधानेतर दवाव स्वीकार नहीं करना चाहिए तभी भाजपा और एन डी ऐ की केंद्र में सरकार और भाजपा का प्रधानमंत्री बन सकता है.लगातार नागपुर में जिस किसी की उठक-बैठक कराओगे उसको देश की १२० करोड़ आवाम अपना नेता कैसे स्वीकार कर सकती है?
सुप्रीम कोर्ट के किसी अंतरिम वर्डिक्स या अमेरका के दो-चार सीनेटरों द्वारा मोदी को संदेह का लाभ मात्र दिए जाने का तात्पर्य भारत का राज सिंहासन सौंपना नहीं है.नरेंद्र मोदी वैसे भी सामूहिक नेत्रत्व,प्रजातांत्रिक कार्य प्रणाली से कोसों दूर हैं.उनकी व्यक्तिवादी हठधर्मिता से भाजपा को कोई फायदा नहीं होने वाला.गुजरात विकाश के ढिंढोरे पीटने वाले और कुछ नहीं तो अन्य भाजपा शाशित राज्यों की जनता और वहाँ के भाजपा नेत्रत्व को तो नीचा दिखा ही रहे हैं.ऐंसे में मोदी जी का समर्थन शिवराजसिंह,रमनसिंह या कर्णाटक,उत्तरांचल के सी एम् क्यों करने चले.इन हालातों में नितीश,नवीन,चौटाला,कुलदीप ठाकरे या बादल को भी मोड़ो जैसे का समर्थन करने में कितनी इन्सल्ट होगी यह अभी मूल्यांकित कर पाना संभव नहीं है.
शरद यादव .पासवान,लालू,मुलायम,मायावती,फारुख,ममता,जयललिता अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि बनाए रखने के लिए भाजपा से यदि सम्बन्ध बनायेंगे तो अटल बिहारी की लाइन का कोई भी दोयम नेता स्वीकार कर लेंगे किन्तु संघ प्रिय व्यक्ति को वे सहज स्वीकारेंगे इस में संदेह है.
एन डी ऐ ही नहीं तीसरे मोर्चे की भी भविष्य में सशशक्त होने की सम्भावना है.क्योंकि सत्तारूढ़ यूपीए का यदि पराभव होगा तो अकेले भाजपा ही ५५० सीटों पर काबिज नहीं होगी.विगत विधान सभा चुनावों में पांच राज्यों में से चार में भाजपा का खता भी नहीं खुला था केवल असम में ५ विधायक जीते जबकि पूर्व में वहाँ १८ विधायक थे.इसी तरह जिन राज्यों में वो गठबंधन में शामिल होकर सत्तारूढ़ है वहाँ भी भेला नहीं कर लिया.खुद नितीश ,नवीन चौटाला और कर्नाटक में भाजपा ही संकट में है.अकेले एम् पी ,छ गा,और गुजरात के भरोसे दिल्ली के सिंहासन पर अपने हिंदुत्व ध्वजाधारी को बिठाने की तमन्ना पालने वालों को निराशा ही हाथ लगेगी.ऐंसे में भाजपा के बड़े नेताओं का कुर्सी संघर्ष कोरी मृग मरीचिका है.जनता के सवालों पर तीसरे मोर्चे और वाम मोर्चे का साथ देकर भाजपा और एन डी ऐ सत्ता में आ सकता है वशर्ते उसके नेता 'संघम शरणम् गच्छामि' का मन्त्र न पढ़ें.
श्रीराम तिवारी
रविवार, 11 सितंबर 2011
वाम मोर्चे की प्रासंगिकता बरकरार है..
विगत अप्रैल-मई -२०११ में सम्पन्न पांच राज्यों के विधान सभा चुनाओं में राजनीतिक पार्टियों को बड़ा विसंगतिपूर्ण जनादेश प्राप्त हुआ है.बंगाल में ३५ साल तक लोकप्रिय रहे , पूंजीवादी संसार को हैरान करने वाले,साम्प्रदायिक कट्टरवादियों को नकेल डालने वाले,,भारत समेत तमाम दुनिया के मेहनत कश सर्वहारा वर्ग को आशान्वित करने वाले 'वाम मोर्चा',को पहली बार विपक्ष में बैठने का जनादेश मिला.उधर कांग्रेस ने केरल में ईसाइयों,मुसलमानों की युति को परवान चढ़ाकर,वाम मोर्चे {माकपा] के अंदरूनी विवाद का फायदा उठाकर २ सीटें ज्यादा लेकर वाम मोर्चे को विपक्ष में बिठाने में सफलता प्राप्त कर ली.बाकि पोंड़ीचेरी असम और तमिलनाडु में क्या हुआ वह सर्वविदित है.इन चुनावों का निष्कर्ष यह है की केंद्र में सत्तारूढ़ यु पी ऐ द्वतीय सरकार को आवाम ने बहरहाल जनादेश जारी रखा और वाम को विपक्ष में बैठने का आदेश दिया.
इस सन्दर्भ में सबसे उल्लेखनीय और गौर करने वाली बात ये है कि देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी जो कि कभी अन्ना ,कभी रामदेव,कभी ,कभी मंदिर-मस्जिद के सहारे सत्ता की चिर अभिलाषिनी रही ;वो इन पांच राज्यों के चुनाव में ढेरक्यों हो गई? पहले वाली १८ सीटें घटकर सिर्फ ५ क्यों रहगईं?-तमिलनाडु,केरल,पून्दिचेरी और बंगाल में एक भी सीट क्योंनहींमिली? केरल बंगाल में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा किसेहासिलहै? असम में ४ वाम समर्थित प्रत्याशी जीते हैं .इस वास्तविकता के वावजूद संघ परिवार समर्थक प्रकांड बुद्धिजीवी{तरुण विजय जैसें}बड़े-बड़े आलेख ,बड़े-बड़े इस्तहार कभी प्रिंट मीडिया ,कभी द्रश्य और कभी इलेक्ट्रोनिक -वेब माध्यमों में इस तरह गदगदायमान होकर प्रस्तुत कर रहें हैं मानों कांग्रेस और यु पी ऐ की इस अल्पकालिक विजय से उनका अहिवात अचल होने जा रहा हो.साम्यवाद का सूर्यास्त,वाम की एतिहासिक पराजय,माकपा का खात्मा,कम्युनिस्टों की विचारधारा का अंत..इत्यादि...इत्यादि...इसके उलट हम जानना चाहेंगे कि - ?
अभी विगत सप्ताह ही संसद के मानसूनी सत्र का अंतिम दिन भारतीय स्याह इतिहास के मील का एक शिलालेख क्यों बन चूका है? कुशल राजनीतिज्ञ श्री लाल कृष्ण आडवानी जी को एक बार फिर सिंह गर्जना क्यों करनी पड़ी? एक बार फिर राष्ट्रव्यापी रथ यात्रा कि धमकी क्यों देना पड़ी? ८३ वर्षीय और भारतीय राजनीती के लोह्पुरुष द्वतीय श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी को फग्गन सिंह कुलस्ते और भगोरा जैसे भाजपाई सांसदों को जेल भेजे जाने पर यह क्यों कहना पड़ा कि 'मुझे भी जेल भेजो में भी गुनाहगार हूँ'इस नोट के बदले वोट और जेल के अन्दर अमरसिंह जैसें कुख्यात राजनीतिज्ञों के अन्दर जाने से भाजपा और देश पर कौन सी विपदा आन पड़ी /कि एक वामन को पुनः विराट होने कि तमन्ना जागने लगी है?
वास्तव में जिस महत्वपूर्ण घटना के कारण यु पी ऐ प्रथम सरकार को संसद में विश्वाश मत हासिल करने के लिए वोटों कि दरकार थी ,जिसके कारण अमरसिंह ,कुलस्ते,भगोरा इत्यादि सांसद जेल में हैं ,जिसके कारण आडवानी जी को संसद के विगत सत्रावसान के अंतिम दिन अरण्य रोदन करना पड़ा और कहना पड़ा कि जो भृष्टाचार को उजागर करने में आगे थे उन्हें तो जेल भेज दिया और जो इस सब के लिए जिम्मेदार हैं वे अभी भी क़ानून से परे हैं.यदि मेरे {आडवानी जी के} साथी गुनाहगार हैं तो मैं भी गुनाहगार हूँ,मुझे भी जेल भेज दो.उस घटना कि तारिख है २८ जुलाई -२००८ और समय शाम ४ बजे से मध्य रात्रि तक.स्थान भारतीय संसद ,नई दिल्ली.
दरसल २८ जुलाई २००८ को जब १-२-३ एटमी करार पर यु पि ऐ प्रथम से असहमत होने के कारण वाम ने तत्कालीन केंद्र सरकार से अपना समर्थन वापिस लिया तो मनमोहन सरकार घोर संकट के भंवर में फंस चुकी थी.वह अल्पमत सरकार तत्काल बरखस्त होनी चाहिए थी किन्तु अमेरिकी दूतावास ने आदरणीय आडवानी जी से निवेदन किया कि यदि वे १-२-३ एटमी करार के विरोध में मतदान करेंगे तो अमेरिका में गलत सन्देश जाएगा कि संघ परिवार अमेरिका के खिलाफ है.भाजपा और आडवानी जी के समक्ष दुविधा थी कि एक तरफ तो वे अमेरिका कि नज़र से गिरना नहीं चाहते,दूसरे वे यु पी सरकार को गिराकर वाम को हीरो बनने का मौका भी नहीं देना चाहते थे ,वे यु पी ऐ को सत्ता से वेदखल करने के बदले में स्वयम सत्तासीन होने के मंसूबे बाँधने में जुट गए.भले ही वे १-२-३ एटमी करार को एन डी ऐ के सत्ता में आने पर सुलटा लेते.किन्तु तत्काल तो उन्हें वही सूझा जो उन्होंने २८ जुलाई २००८ को संसद में संपादित किया.
अब रेवतीरमण सिंह,अमरसिंह,या अन्य धुरंधरों ने किसके इशारे पर किस-किस को साधने का क्या-क्या इंतजाम किये ये जिसे नहीं मालूम हो वो बिकिलीक्स के खुलासों का इंतज़ार करे.इतना तो सभीको विदितहै कि अमेरिका के आगे घुटने टेकने कि सूरत में वाम मोर्चे के सभी ६२ सांसदों ने मनमोहन सरकार के विरुद्ध मतदान किया था ,भाजपा के कुछ सांसद जान बूझकर गैर हाज़िर क्यों रहे?इसका जबाब भी भाजपा ने तत्काल शोकाज नोटिश थमाकर दिया था. अशोक अर्गल ,कुलस्ते और भगोरा ने कांग्रेस कि लाबिंग के नोट लेकर बाद में किसके कहने पर मीडिया के सामने नोटों कि गद्दियाँ हवा में लहराई उसका जबाब भी खुद आडवाणी जी ने अभी संसद के मानसून सत्र के अंतिम दिन सिंह गर्जना के साथ दिया कि यदि मेरे साथी दोषी हैं तो मैं भी दोषी हूँ ...या कि मुझे जेल भेज कर दिखाओ...बहरहाल ....आडवानी जी के इस नए स्टैंड से एनडीए सत्ता में आये ,मेरी शुभकामनाएं..मेरा निहतार्थ यह है कि जब वाम ने समर्थन वापिस लिया और अमेरिका ने अपने पसंदीदा प्रधानमंत्री मनमोहन को बचाने {कांग्रेस नहीं} के लिए भारतीय राजनीती में खुलकर राजनीति की; तब भाजपा ने उसे सहारा दिया.परिणाम स्वरूप मनमोहनसिंह सरकार बच गई .न केवल सरकार बच गई बल्कि १-२-३ नाभकीय उर्जा करार भी जैसा अमेरिका चाहता था ;वैसा हो गया.' सिंह आला पर गढ़ गेला' तब कार्पोरेट लाबी ने सम्पूर्ण पूंजीवादी मीडिया के मार्फ़त वाम पंथ को देश विरोधी,विकाश विरोधी,आर्थिक सूधार विरोधी सावित कराने ,भाजपा को अमेरिका प्रणीत उदार आर्थिक सुधारों के भारतीय झंडाबरदार मनमोहन सिंह का उद्धारक बताने की जो कुचेष्टा की उसी का परिणाम था कि जिस वाम पंथ ने नरेगा,आर टी आई ,भूमि सूधार और श्रम सुधारों की निरंतर वकालत की वो वाम पंथ जनता की नजर में आर्थिक विकाश विरोधी प्रचारित किया गया.अमेरिका के प्रभाव में भारतीय स्वछंद मीडिया ने वाम को खलनायक और मनमोहनसिंह को 'सिंह इज किंग' सिद्ध कर दिया.अब जनता ने वाम को ६२ से २५ लोक सभा सीटों में समेत दिया तो इसमें आश्चर्य जनक क्या है?और जब मनमोहन को भाजपा के अनैतिक समर्थन से हीरो बनाओगे तो यूपीए -२ को तो सत्ता में लौटना ही था तब पी एम् इन वेटिंग का औचित्य क्या था?भाजपा यदि इसी तरह पूंजीवादी बाजारीकरण की नीतियों का समर्थन जारी रखेगी तो उसे सत्ता में कौन बिठाएगा?क्योंकि इन्हीं आर्थिक नीतियों का सर्वश्रेष्ठ अमेरिकी पसंद व्यक्ति तो आलरेडी भारत के सत्ता शिखर पर विराजमान है.तभी तो २८ जुलाई -२००८ को संसद में विश्वाश मत [नोट के बदले वोट}हासिल करने के बाद श्री मनमोहन सिंह ने कहा था 'अब में सहज महसूस कर रहा हूँ ,रास्ते के रोढ़े हट गए' अब उस दिन जो लम्हों ने खता की थी उसकी सजा सदियों तक उन सभी को {न केवल अमरसिंह,कुलस्ते,भगोरा} को मिलना ही है जो अभी तक तिहाड़ जाने से बचे हैं.
मेरे इस आलेख की विषय वस्तु के केंद्र में वाम की वह भूमिका है जिसके कारण कांग्रेस नीत यूपीए प्रथम सरकार अल्पमत में आई .वह भूमिका निसंदेह बाद में खुद वाम के लिए कतई शुभ सावित नहीं हुई. लोकसभा में वाम को भारी झटके लगे और विगत विधानसभा चुनावों में बंगाल में पूंजीवादी साम्प्रदायिक और सत्ता परिवर्तन आकांक्षी ताकतों ने वामपंथ को एक तगड़ा झटका दिया है.केरल में तो कोई खास फर्क नहीं आया.वहाँ वोट प्रतिशत और बढ़ा है हालांकि कांग्रेस ने २-३ साम्प्रदायिक दलों को सहलाया तो उसके असर से कांग्रेस को सत्ता मिल गई .किन्तु भाजपा को केरल और बंगाल में खाता भी नहीं खुलने के वावजूद बजाय कांग्रेस और स्वयं भाजपा की रीति-नीति का विश्लेषण करने के सिर्फ वाम पंथ पर निरंतर हमले किये जा रहे है क्यों?
न केवल प्रेस ,मीडिया बल्कि बंगाल में तो घरों में ,दफ्तरों में,खेतों में तृणमूल कांग्रेसी गुंडे बेक़सूर लोगों को ,मजदूरों को,किसानों को जिन्दा जला रहे हैं.उनकी जमीने छीन रहे हैं,महिलाओं का अपहरण ,बलात्कार और चुन-चुनकर वाम समर्थकों को दमन का शिकार बनाया जा रहा है.
यह वाम पंथ की उस हिमाकत का नतीजा है कि मनमोहन सरकार के अमरीका प्रेम और देश में आर्थिक बदहाली के चलते उसका समर्थन वापिस लिया.अब यदि हरिश्चंद्र बनोगे तो भुगतना भी पडेगा.इसमें ये कहना कि वाम तो अब अप्रसांगिक हो गया या वाम का खात्मा हो गया ,ये सब बचकानी बातें हैं.वाम और उसका साम्यवादी दर्शन तब तक ख़त्म नहीं होगा जब तक दुनिया में आर्थिक -सामाजिक और राजनीतिक विषमता विद्यमान है.
श्रीराम तिवारी
मेरे इस आलेख की विषय वस्तु के केंद्र में वाम की वह भूमिका है जिसके कारण कांग्रेस नीत यूपीए प्रथम सरकार अल्पमत में आई .वह भूमिका निसंदेह बाद में खुद वाम के लिए कतई शुभ सावित नहीं हुई. लोकसभा में वाम को भारी झटके लगे और विगत विधानसभा चुनावों में बंगाल में पूंजीवादी साम्प्रदायिक और सत्ता परिवर्तन आकांक्षी ताकतों ने वामपंथ को एक तगड़ा झटका दिया है.केरल में तो कोई खास फर्क नहीं आया.वहाँ वोट प्रतिशत और बढ़ा है हालांकि कांग्रेस ने २-३ साम्प्रदायिक दलों को सहलाया तो उसके असर से कांग्रेस को सत्ता मिल गई .किन्तु भाजपा को केरल और बंगाल में खाता भी नहीं खुलने के वावजूद बजाय कांग्रेस और स्वयं भाजपा की रीति-नीति का विश्लेषण करने के सिर्फ वाम पंथ पर निरंतर हमले किये जा रहे है क्यों?
न केवल प्रेस ,मीडिया बल्कि बंगाल में तो घरों में ,दफ्तरों में,खेतों में तृणमूल कांग्रेसी गुंडे बेक़सूर लोगों को ,मजदूरों को,किसानों को जिन्दा जला रहे हैं.उनकी जमीने छीन रहे हैं,महिलाओं का अपहरण ,बलात्कार और चुन-चुनकर वाम समर्थकों को दमन का शिकार बनाया जा रहा है.
यह वाम पंथ की उस हिमाकत का नतीजा है कि मनमोहन सरकार के अमरीका प्रेम और देश में आर्थिक बदहाली के चलते उसका समर्थन वापिस लिया.अब यदि हरिश्चंद्र बनोगे तो भुगतना भी पडेगा.इसमें ये कहना कि वाम तो अब अप्रसांगिक हो गया या वाम का खात्मा हो गया ,ये सब बचकानी बातें हैं.वाम और उसका साम्यवादी दर्शन तब तक ख़त्म नहीं होगा जब तक दुनिया में आर्थिक -सामाजिक और राजनीतिक विषमता विद्यमान है.
श्रीराम तिवारी
शनिवार, 10 सितंबर 2011
जब तक दुनिया में असमानता रहेगी -वामपंथ तब तक अमर रहेगा.{भाग-१}
भारतीय दार्शनिक परम्परा में कार्य-कारण का सिद्धांत सारे प्रबुद्ध संसार में न केवल प्रसिद्ध है बल्कि उस पर वैज्ञानिक भौतिकवाद की मुहर भी अब से १५० साल पहले तब लग चुकी थी जब जर्मन दार्शनिकों और खास तौर से मेक्समूलर ,कार्ल मार्क्स और एंगेल्स ने इस भारतीय वेदान्त प्रणीत दर्शन को अपने एतिहासिक द्वंदात्मक भौतिकवाद के केंद्र में स्थापित किया था.पृकृति,मानव,समाज और स्थावर-जंगम के मध्य बाह्य -आंतरिक संबंधों को एतिहासिक विकाश क्रम में वैज्ञानिक तार्किकता के आधार पर परिभाषित किये जाने के तदनंतर उक्त भारतीय दर्शन -प्रणीत कार्य कारण के सिद्धांत को 'साम्यवाद'मार्क्सवाद के केंद्र में सबसे ऊँचा मुकाम हासिल है.
भारतीय उपमहादीप में अनेकानेक यायावर कबीलों के आगमन ,निरंतर आक्रमणों और अधिकांस के यहीं रच-बस जाने के परिणामस्वरूप आर्थिक,सामाजिक,सांस्कृतिक और राजनैतिक स्तर पर जहां एक ओर अपने-अपने कबीलों,गणों,जनपदों,महाकुलों और वंशों ने अपनी निष्ठाएं स्थापित,कीं वहीँ दूसरी ओर एक -दूसरे के संपर्क में आने तथा भौगोलिक-प्राकृतिक कारणों से वेशभूषा,रहन-सहन,विचार-चिंतन और ज्ञान-विज्ञान में भी समय-समय पर उल्लेखनीय समन्वय और तरक्की की है.हजारों सालों की सतत द्वंदात्मकता के परिणाम स्वरूप आज दुनिया में अधिकांस पुरातन समाजों-राष्ट्रों में जो भी -विचार,चिंतन या दर्शन मौजूद हैं उनका मूल जानना उतना ही कठिन है जितना की सदानीरा सरिताओं का मूल जानना.भारतीय और इंडो यूरोपियन तथा भारतीय सेमेटिक और भारतीय मध्य-एशियाई सभ्यताओं के द्वन्द का परिणाम ही वर्तमान भारतीय दर्शन है.यही प्रकारांतर से जर्मन और अन्य पाश्चात्य दर्शनों के वैज्ञानिक रूप से परिष्कृत होने का सशक्त उपादान भी रहा है.इसी से द्वंदात्मक -एतिहासिक -भौतिकवाद या मार्क्सवाद या साम्यवाद का जन्म हुआ है.भारत के कुछ दक्षिणपंथी ,कुछ पूंजीवादी और कुछ कोरे मूढमति एक ओर तो अपने राष्ट्रवाद को अंतर्राष्ट्रीयतावाद का बाप समझते हैं दूसरी ओर लगे हाथ अपनी कूपमंडूकता का प्रदर्शन करते हुए मार्क्सवाद या साम्यवाद को विदेशी विचारधारा, विदेशी सिद्धांत घोषित करने में एडी-चोटी का जोर लगाते रहते हैं.
वेदान्त का स्पष्ट कथन है -
सर्वे भवन्ति सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया.
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, माँ कश्चिद् दुःख भाग्वेत..
अयं निजः परोवेति ,गणना लघुचेतसाम.
उदार चरितानाम तू ,वसुधैव कुटुम्बकम..
भारतीय पुरातन दार्शनिक परम्परा में ऐंसे लाखों प्रमाण हैं जो सावित करते हैं की जिस तरह भारतीय मनीषियों ने 'जीरो' से लेकर धरती के गोल होने या सूर्य से सृष्टि होनेऔर मत्स्य अवतार से कच्छप,वराह,नृसिंह वामन,परशुराम,राम,कृष्ण,बुद्ध और कल्कि का पौराणिक यूटोपिया प्रस्तुत करने में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया वो डार्विन के चिंतन को भी निस्तेज करने में सक्षम है.
अब यदि डार्विन के 'ओरिजन आफ स्पेसीज'या sarvival is the fittest में उस भारतीय चिंतन की झलक विद्यमान है जो कहता कि ;-
यद्द्विभूतिमात्सत्वाम श्रीमदूर्जितमेव वा.
तत्तदेवावगच्छ त्वम् मम तेजोअश्सम्भ्वम..
गीता-अध्याय १०-४१
तो इसमें ओर डार्विन के विशिष्ठ जीवन्तता सिद्धांत में असाम्य कहाँ है? कुछ डार्विन से ,कुछ यूनानियों से,कुछ रोमनों से,कुछ जर्मनों से और बाकि का सब कुछ भारतीय दर्शन से लेकर हीगेल और ओवेन जैसे आदर्श उटोपियेयों ने जो आदर्शवादी साम्यवाद का ढांचा खड़ा किया था उसमें वैज्ञानिक भौतिक वाद ,एतिहासिक द्वंदात्मकता,सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक चेतना के पञ्च महाभूतों का समिश्रण कर, उसमें उच्चतर मानवीय संवेदनाओं का प्रत्यारोपण कर जो अनुपम विचारधारा प्रकट हुई उसका अनुसंधान या सम्पादन भले ही कार्ल मार्क्स और एंगेल्स ने किया हो किन्तु इस दर्शन का सार तत्व वही है जो भारतीय वेदान्त ,बौद्ध,जैन,सिख और सनातन साहित्य की आत्मा है.
जब तक भारत में और दुनिया में वेदान्त,दर्शन का,बौद्ध,जैन,और सनातन दर्शनों का महत्व रहेगा तब तक असमानता के खिलाफ ,शोषण के खिलाफ और दरिद्रनारायण के पक्षधर के रूप में 'मार्क्सवाद'और उसके पैरोकार वामपंथ का अस्तित्व अक्षुण रहेगा.कोई भी विचारधारा सिर्फ विधान सभा चुनाव की हार जीत से जीवित या मृत घोषित कर देने वालों को यह सदैव स्मरण रखना चाहिए.इतिहास उन्हें झूंठा सावित करेगा जो अभी वाम की हार पर उसके अवसान के गीत लिख रहे हैं.उन्हें भी निराश होना पड़ेगा जो पूँजी के आगे नत्मश्तक हैं.
यह दर्शन फ्रांसीसी क्रांति,सोवियत क्रांति,क्यूबाई क्रांति,चीनी क्रांति,वियेतनामी क्रांति,बोलिबियाई और लातिनी अमेरिकी राष्ट्रों समेत तमाम दुनिया {भारत समेत} के स्वधीनता संग्रामों का प्रेरणा स्त्रीत रहा है .इसके दूरगामी सकारात्मक प्रभावों ने सामंतवाद के गर्भ से पूंजीवाद और पूंजीवाद के गर्भ से साम्यवाद के उद्भव की भविष्वाणी भले ही वक्त पर सही सावित न की हो किन्तु यह कहना जल्दबाजी होगी की 'मार्क्सवाद का अब कोई भविष्य नहीं' ३५ साल में एक बार बंगाल में और २ सीट से केरल में माकपा के हारने का मतलब मार्क्सवाद का पराभव नहीं समझ लेना चाहिए.बल्कि वामपंथ और मार्क्सवादियों को भविष्य में बेहतर पारी खेलने के लिए जनता रुपी कोच ने वाम रुपी खिलाडियों को कसौटी पर कसे जाने का फरमान ही जरी किया है.
श्रीराम तिवार्री
गुरुवार, 8 सितंबर 2011
वहशी दरिंदो को ईश्वर सद्बुद्धि दे.
कायरो बुजदिलो नाली के कीड़ो
दिल्ली हाई कोर्ट परिसर में
निर्दोषों का खून बहाने वाले नराधमो-तुम्हारा
कोई धरम कोई मज़हब दर्शन-
कोई दीनो-ईमान नहीं होता...
छुप-छुप कर कभी मुंबई कभी दिल्ली,
कभी मालेगांव कभी गुजरात में ,
आम आदमी का रक्त बहाने वालों का
कोई दीनो ईमान नहीं होता..
आज दिल्ली हाई कोर्ट के परिसर में ,
जिनका रक्त बहा,जिनके अंग-भंग हुए,
जिनके घर का चिराग बुझा ,जिनके
आश्रितों को मुफलिसी लाचारगी का ,
शिकार होना पड़ा उनमें-
हिन्दू -मुस्लिम -सिख सभी थे ,
सेकड़ों घायलों में इन सभी के मर्मान्तक ,
चीत्कार पर अठ्ठास करने वालो,
तुम्हारी मर्दानगी पर कुत्ते भी ,
मूतना पसंद नहीं करेंगे.
तुम नितांत डरपोंक हैवान हो,
खुदा,अल्लाह,इश्वर,वाहे गुरु,
उसका चाहे जो भी नाम रूप आकार हो,
उसका चाहे जो भी नाम रूप आकार हो,
वो भले ही तुम्हे भूल जाएया माफ़ कर दे ,
किन्तु इंसानियत में तुम्हें सिर्फ -धिक्कार है.
धिक्कार है,बारम्बार धिकार है...
मानवता के हत्यारों,बम बारूदसे,
हिंसा रक्तपात और बाद-अमनी से ,
तुम्हें सिर्फ एक चीज हासिल होगी ,
अनंतकाल तक नारकीय वेदना,
अपने किये हुए अक्षम्य अपराध ,
लिए अपना शेष जीवन मानवता ,की सेवा
में समर्पित करो-इसी में तुम्हारा कल्याण है...
इंसानियत के,अमन के,अक्ल के दुश्मनों को ,
इश्वर,अल्लाह,परवरदिगार सद्बुद्धि दे,
अमन-शांति-भाईचारा ज़िन्दवाद....
मानवता के हत्यारों,बम बारूदसे,
हिंसा रक्तपात और बाद-अमनी से ,
तुम्हें सिर्फ एक चीज हासिल होगी ,
अनंतकाल तक नारकीय वेदना,
अपने किये हुए अक्षम्य अपराध ,
लिए अपना शेष जीवन मानवता ,की सेवा
में समर्पित करो-इसी में तुम्हारा कल्याण है...
इंसानियत के,अमन के,अक्ल के दुश्मनों को ,
इश्वर,अल्लाह,परवरदिगार सद्बुद्धि दे,
अमन-शांति-भाईचारा ज़िन्दवाद....
श्रीराम तिवारी
सोमवार, 5 सितंबर 2011
दूसरों पर एक अंगुली उठाओगे तो चार तुम्हारी ओर मुड़ जाएँगी...
केंद्र की वर्तमान कांग्रेस नीति यु पी ऐ सरकार को लगातार चौतरफा हमलों ने इस कदर चकरघिन्नी बना दिया है कि 'कोर समन्वय'या ग्रुप आफ मिनिस्टर्स 'जो कि विशाल भारत के नीति नियामक होने चाहिए ,वे अपनी प्रभुसत्ता का प्रयोग अदने से सामाजिक कार्यकर्ताओं की नादानियों के बहाने ;उन्हें दबोचने में कर रहे हैं. अन्ना हजारे को संसदीय परम्परा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का ज्ञान नहीं है,वे लगातार सांसदों,मंत्रियों और राजनीतिज्ञों को भृष्ट एवं झूंठा बता रहे हैं;जो कि न तो प्रमाणित है और न ही मर्यादित है.उनके तथाकथित भृष्टाचार विरोध की लड़ाई में सिर्फ एक ही सच है कि उद्देश्य सही है किन्तु साधनों कि शुचिता संदेहास्पद है.देश को बुरी तरह लूटने वाले दलाल पूंजीपतियों की आकूत मुनाफाखोरी ,प्रशाशनिक मशीनरी को खरीदकर जेब में रखने की दुर्दमनीय क्षमता पर अन्ना एंड कम्पनी को या तो ज्ञान ही नहीं या वे उनके हाथों बिक चुके हैं. देश में जो लोग -नेता आफिसर,कर्मचारी और जन प्रतिनिधि ईमानदार हैं,जिनके कारण देश न केवल सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न है बल्कि दुनिया में एक सम्मान की स्थिति में आ गया है ऐंसे देशभक्त लोगों को वर्तमान व्यक्तिवादी नकारात्मक आंदोलनों से कोई उम्मीद नहीं है.वे जानते हैं की देश में बढ़ती आबादी,प्रतिस्पर्धात्मक बाजारीकरण,पूंजीवादी मुनाफा आधारित अर्थ व्यवस्था और उस पर नियंत्रण रखने वाला सरमायादार वर्ग ही न केवल भृष्टाचार,न केवल असमानता, न केवल शोषण,बल्कि महंगाई,वेरोजगारी को परवान चढाने के लिए जिम्मेदार है.इनके खिलाफ अन्ना हजारे,अरविन्द केजरीवाल,शशिभूषण,प्रशांत भूषन,संतोष हेगड़े,किरण वेदी और बाबा रामदेव जैसे स्वयम्भू जन नायक एक शब्द नहीं बोलते क्यों?
विविधताओं और अतीत के भग्नावेशों से भरे पड़े देश की एक अरब ३० करोड़ जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भारत को आरम्भ से ही पडोसी मुल्कों के दुश्चक्रों का शिकार होना पड़ा है.ऐंसे माहोल में भी भारत की महानतम प्रजातांत्रिक व्यवस्था को दुनिया में ईर्ष्या की नज़र से देखा जाता है.माना की चीन ने भारत से वेहतर विकाश ,विनियोजन,सामाजिक-आर्थिक समानता पर आधारित धर्म निरपेक्ष समाज को बराबरी के अधिकारों और सामाजिक सुरक्षा के सरोकारों से लबालब किया है किन्तु भारत में भारी भृष्टाचार ,भारी असमानता के वावजूद लोगों को अधिकार है कि विना पढ़े लिखे लोग या सरकारी धन से ही एन जी ओ चलाने वाले लोग अपनी व्यक्तिगत सनक या श्वान्तः सुखाय के लिए मनमोहन सिंह जैसे देश के एक सर्वश्रेष्ठ ईमानदार प्रधान मंत्री को कभी जंतरमंतर ,कभी रामलीला मैदान,कभी प्रेस और मीडिया की खुराक के रूप में गाली दे सकते हैं .क्या थेन आन मन चौक पर यह मुमकिन है?नहीं!चीन में या अमेरिका में निठल्ले लोगों को समाज में कोई सम्मान नहीं.जबकि भारत में ऐयाश बाबाओं,एन जी ओ कर्ताओं,धार्मिक मठाधीशो को जनता पागलों की तरह भगवान् या अवतार मान बैठती है.
यह सभी जानते हैं की भारत में गरीबी,वेरोजगारी अशिक्षा,कुपोषण और रहन सहन के रूप में जो बिकराल खाई है उसकी जड़ में भृष्टाचार ही है, वामपंथ,मार्क्सवादी,जनवादी,बुद्धिजीवी,देशभक्त और दीगर संगठन इस भृष्टाचार रुपी रक्तबीज के खिलाफ दशकों से संघर्ष कर रहे हैं.उनके आंदोलनों में हजारे और रामदेव जैसी नाटकीयता नहीं है इसीलिये पूंजीपतियों का क्रीत दास श्रव्य,छप्य,पाठ्य मीडिया समवेत स्वरों में अन्ना एंड कम्पनी को रामदेव एंड कम्पनी को क्रांति की मशाल घोषित करता है ,क्योंकि ये आन्दोलन पूंजीवादी व्यवस्था के पक्षधर हैं और केवल आधा दर्जन मंत्रियों और १०० सांसदों को टार्गेट करते हुए पूंजीवादी विपक्ष[भाजपा ] को अमृतपान कराने के लिए उद्धत रहते हैं.जबकि वामपंथ और किसान- मजदूर स्पष्ट कहते हैं की सरमायेदारी के चलते न तो भृष्टाचार मिटेगा और न गरीबी और वेरोजगारी ख़त्म होगी. भाजपा को उसके सबसे बुरे दौर में जबकि कर्णाटक के नेताओं की ऐयाशी ,भृष्टाचार गले-गले तक उबलचुकी हो,पांचजन्य या ओर्गेनिज़र के भूत पूर्व स्वनामधन्य विद्वान् सम्पादक अपनी महिला मित्रों के साथ विदेशों में रंगरेलियां मानने के लिए भोपाल से लेकर स्वित्ज़रलैंड तक कुख्यात हो रहे हों,बेलारी से लेकर सिंगरोली तक और कच्छ से लेकर मुजफ्फरपुर तक हर जगह उसके नेताओं के दिव्य रूपों के दर्शन अन्ना एंड कम्पनी या बाबा रामदेव को नहीं हो रहे .उन्हें सोनिया गाँधी ,मन मोहन सिंह,राहुल गाँधी,दिग्विजय सिंह और कपिल सिब्बल में खोट नज़र आती है तरुण विजय,प्रमोद महाजन,रेड्डी बंधू,येदुरप्पा,और अनंत कुमार दूध के धुले नज़र आते हैं.इसीलिए अना हजारे और बाबा रामदेव पर देश का पढ़ा लिखा विवेकशील आदमी यकीन नहीं करता .लाख दो लाख लोग इस देश में हमेशा निठल्ले घुमते रहते हैं.उन्हें अन्ना और रामदेव जैसों के नट-लीलाओं में देशभक्ति नज़र आती है ऐंसी बात नहीं है,दरसल जो लोग कुछ कर नहीं पाते और संघर्ष का व्यक्तिगत माद्दा मृतप्राय जिनका हो चूका होता है ऐंसे नर-नारी इन बाबाओं,एन जी ओ कर्ताओं के चोंचलों में अपने को अभिव्यक्त कर आत्म संतुष्टि पाते हैं.
मीडिया समझता है की वो जो दिखा रहा है याने सरकार के खिलाफ जो झूंठी तस्वीर बदतर माहोल बना रहा है वो शायद जनता {दर्शकों }को रास आ रहा है.प्रथम दृष्टया आम आदमी उसी के खिलाफ होता है जो सत्ता में होता है,किन्तु विभिन्न चेनलों की प्रित्स्पर्धा के परिणामस्वरूप सचाई सामने आ ही जाती है.लोग तब अपने आप को फिर ठगा सा महसूस कर किसी और अन्ना या रामदेव के बाड़े की और चल देते हैं.
" सरकार झूंठी है,मंत्री झूंठे हैं,सांसद वेइमान हैं 'ये वक्तव्य किसी गांधीवादी का हो ही नहीं सकता..."
ऐंसा वक्तव्य मेरे जैसा कोई कम-अकल या कोई आम आदमी दे तो माफ़ किया जा सकता है,किन्तु जो लोग महात्मा गाँधी के अवतार वन बैठे हों ,भृष्टाचार को जडमूल से उखाड़ फेंकना चाहते हों,उनके मुखार बिन्द से सम्पूर्ण व्यवस्था की बदहाली के लिए सिर्फ वर्तमान सरकार और खास तौर से ईमानदार प्रधानमंत्री और दर्जनों अच्छे ईमानदार सांसदों [उसमें अकेली कांग्रेस ही नहीं भाजपा और माकपा के भी सांसद हैं}को बाईस पसेरी धान की तरहएकही तराजू से तौलने की क्या तुक है? अन्ना हजारे अभी भी असंसदीय भाषा का प्रयोग कर रहे हैं,बाबा रामदेव के तो सौ खून माफ़ हैं क्योंकि वे तो भारतीय संविधान का ककहरा भी नहीं जानते;किन्तु अन्ना टीम में बड़े-बड़े वकील जज और भूतपूर्व आईपीस ,आई टी एस हैं ,वे सभी जानते हैं की भारत की लोकतंत्रात्मक शैली की सबसे बड़ी अच्छाई और विशेषता उसकी संसदीय सर्वोच्चता है.अभिव्यक्ति की जो आज़ादी भारत का संविधान देता है ,पारदर्शता और न्याय की आकांक्षा जो भारतीय संविधान जगाता है वही तो वर्तमान जनांदोलनो का मूलाधार है.उसी पर मठ्ठा डालने वाले अन्ना हजारे ,रामदेव और उनके लग्गू-भग्गू देश के जन नायक कैसे हो सकते हैं?
उधर अपनी चूकों ,नाकामियों और शिथिलताओं के चलते वर्तमान सरकार को अपने बेहतर और कारगर जन हितेषी कार्यों ,वेहतर परफार्मेंस के प्रदर्शन का अवसर ही नहीं मिल पा रहा है.स्पष्ट बहुमत के आभाव में क्षेत्रीय चोट्टों का समर्थन और फिर उनके किये धरे का खामयाजा भुगतने की बजाय कांग्रेस और यु पि ऐ सरकार ने अपने ही सहयोगियों को तिहाड़ की ओर धकेलकर जो हिम्मत का काम किया उस पर अन्ना और रामदेव मौन क्यों हैं?
अन्ना और रामदेव के सामने न झुककर भारत की वर्तमान केंद्र सरकार ने न केवल देशभक्तिपूर्ण कार्य किया है अपितु भारतीय संविधान के नीति निर्देशक सिध्धान्तों की रक्षा भी की है.यही उसका दायित्व भी था.यदि किसी खास व्यक्ति ,समूह ,ग्रुप या झुण्ड ने 'अनशन'कर डाला की हमें संसद और सरकार पसंद नहीं इसीलिए जब तक उसके अधिकार किसी 'लोकपाल'को नहीं हस्तांतरित किये जाते
हम अनशन पर मजमा लगायेंगे? भले ही लोगों को 'भारत माता की जय'वन्दे मातरम्' भृष्टाचार ख़तम करो' इत्यादि नारे आशान्वित करते हों किन्तु जिस विधायिका को ,कार्यपालिका को आप स्वयम पाप पंक में धसा हुआ मान बैठे इसी तथाकथित भृष्ट व्यवस्थापिका ,विधायिका और कार्यपालिका के सहयोग बिना कोई भी नया क़ानून ,विधेयक या नीति परिवर्तन संभव नहीं है. ,यह भी तो स्मरण रखना चाहिए.
जो लोग सरकार को गालियाँ देते हैं पानी पी पी कर कोसते हैं,विपक्ष को सहलाते हैं अपने वैयक्तिक कीर्तिध्वज को आसमान में देखने की तमन्ना रखते हैं वे ही लोग देश और सरकार से विशेषाधिकार की उम्मीद क्यों रखते हैं.केजरीवाल ने कम्पुटर लोन लिया ,वपिश नहीं किया,नौकरी के वास्तविक पीरियड की गणना में वे स्टडी लीव घुसेड रहे हैं और अब कहते हैं की हमारे जी पी ऍफ़ में से काट लो हद हो गई अज्ञानता की जिस आदमी को इतना ज्ञान नहीं की लोन की रिकवरी प्रोविडेंट फंड से तब तक संभव नहीं जब तक लोनी स्वयम होकर आवेदन कर जी पी ऍफ़ का पैसा निकालकर लोन मद में वापिश करे .यदि आपने सरकार का पैसा लिया है और आप ६ साल तक खुद ये कार्यवाही करने में अक्षम रहे तो आपसे {केजरीवाल जी] क्यों उम्मीद करें कि आप जनांदोलन के काबिल हैं?भूषन पिता-पुत्र के बारे में अमरसिंह जैसे मुलायम सिंह जैसे लोग ज्यादा जानते हैं,किरण वेदी की वाचालता और ओवर कान्फिडेंस के कारणमीडिया और विद्वत समाज ने कभी गंभीरता से नहीं लिया. वर्तमान दौर के इन गैर राजनैतिक और गैर जिम्मेदार आन्दोलन कर्ताओं को देश के गैर जिम्मेदार मीडिया का भरपूर समर्थन हासिल है.उनके आकाओं ने केंद्र सरकार को खलनायक .संसद को 'गंवार'लोगों का जमावड़ा और केन्द्रीय मंत्री परिषद् को'झून्ठों'का समूह सावित करने के लिए अन्ना जेसे अनपढ़ और रामदेव जैसे बन्दार्कूंदों को हीरो बनाने में कोई कसर बाकि नहीं रखी . लोगों को सचाई मालूम है की 'वास्तव में पूरा देश ही इस भृष्टाचार के लिए जिम्मेदार है. कोई दूध का धुला नहीं.कोई मिलावट कर रहा है ,कोई रिश्वत देकर ज्यादा लाभ भी उठाना चाहता है कोई रिश्वत देकर अपने कुकर्म या अपराधों को छिपाता है ,कोई भी किसी लाइन में लगना उचित नहीं समझता किन्तु जिसके पास देने को रिश्वत नहीं वो मजबूरी में लाइन में लगता है,जिसके पास धन -रुपया पैसा है वो घर बैठे फोन घुमाकर अपना काम करा लेता है.सरकारी भृष्टाचार के लिए तो फिर भी कानून है,सी सी एस ,ऍफ़ आर एस कंडक्ट रूल्स हैं किन्तु एन जी ओ ,हवाला घोटाला,कार्पोरेट दुरभिसंधियां और कनक-कामिनी-कंचन के सहारे राजनीती की गंगा मैली करने वालों को अन्ना एंड कम्पनी भूल जाती है.नरेंद्र मोदी लोकायुक्त की नियुक्ति में ६ साल लगा देते हैं येदुरप्पा रेड्डी बंधू घूरे के ढेर पर खड़े हैं शिवराजसिंह डम्पर काण्ड से मुक्ति के लिए कानून में संशोधन करते हैं,देश भर में महिलाओं और दलितों पर अत्याचार होते हैं,किसान आत्म हत्या करते हैं अन्ना और उनके बडबोले बगलगीर मुहं में दही जमाकर बैठे हैं.
भृष्टाचार के खिलाफ मनमोहनसिंह भी हैं ,कांग्रेस में भी कुछ तो हैं जो सिर्फ पैसे के लिए नहीं बल्कि अपने उत्तरदायित्व के लिए निष्ठावान हैं.जिन लोगों को सिर्फ कांग्रेस और केंद्र सरकार में साडी बुराइयां नजर आ रहीं हैं वे शीशे के मकानों में रहना छोड़ दें ,वर्ना अभी तो अरविन्द केजरीवाल और किरण वेदी को ही नोटिस मिला है यदि लोग इस तरह के गैर जिम्मेदार आचरण और स्वयं भृष्ट होते हुए भी केंद्र सरकार को कोसते रहेंगे तो जनता के असली सवालों-महंगाई,वेरोजगारी,विकाश इत्यादि के मुद्दे नेपथ्य में चले जायेंगे ,इन दिशाहीन आंदोलनो से सिर्फ इतना परिणाम परिलक्षित होगा कि आगामी पीढ़ी को प्रायमरी में पढाई जाने वाली पाठ्य पुस्तकों में गाँधी ,नेहरु तिलक,मौलाना आज़ाद,आंबेडकर लोकनायक जयप्रकाश नारायण,इंदिरा गाँधी,के साथ किसी अन्ना हजारे या रामदेव का भी जीवन वृतांत छाप दिया जाए.बाकि देश की हालत के लिए जनता को अपनी वास्तविक राष्ट्रीय चेतना विकसित करनी होगी,वर्तमान आंदलनो को यदि सही दिशा में मोड़कर जन-जागरण के पक्ष में ले जाया जाये और सरकार आगे बढ़कर सहयोग और समन्वय के प्रयाश करे तो इन आंदलनो से देश के पुनर्जागरण में भारी सकरात्मक क्रन्तिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है..अकेले कोरे गांधीवाद से देश का कल्याण हो सकता होता तो गाँधी जी ही सफल क्यों नहीं हुए?जे पी ,लोहिया नेहरु,कृपलानी और नम्बूदिरिपाद से बड़ा कोई गांधीवादी नहीं किन्तु वे भी अन्ततोगत्वा मार्क्सवाद के साथ साथ सोसल डेमोक्रेसी को मानने के लिए बाध्य हुए थे.अन्ना और उसके चेले तो सोसल डेमोक्रेसी की या वेलफेयर स्टेट की परिभाषा भी नहीं जानते .जानते होते तो सरकार या राजनीति को नहीं बल्कि जनता को अपने आप में बदलाव के लिए ,त्याग के लिए आह्वान करते.दूसरों को कोसने मात्र से क्रांतियाँ तो नहीं भ्रांतियां अवश्य हुईं हैं.
बुरा जो देखन में चला ,बुरा न मिलिया कोय.
जो दिल खोजों आपना, मुझसे बुरा न कोय..
श्रीराम तिवारी
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