सोमवार, 2 मई 2011

ओसामा -बिन-लादेन को आतंकी बनाने में जिनका हाथ था,उन्ही ने उसे मार दिया!

 ओसामा-बिन-लादेन के मारे जाने पर तीन बातें प्रमुखतः से उभरकर सामने आ रहीं हैं .एक-अमेरिका ने ९/११ का बदला लेकर दुनिया में पुनः अपनी साख {दुनिया के थानेदार की}बनाई.दो-पाकिस्तान के झूंठ-दर-झूंठ का पर्दाफाश हो रहा है.तीन -भारत की जनता शर्मिंदगी महसूस कर रही है कि भारत को निरंतर निशाना बनाते रहने वाले इंसानियत के दुश्मन आज भी पाकिस्तान में गुलछर्रे उड़ा रहे हैं ,भारत की एक अरब २७ करोड़ आबादी -५ करोड़ सैन्य बल और दुनिया  की ६ वीं अर्थ-व्यवस्था के अलमबरदार-हमभारत के महान कर्णधार , अमेरिका कि सफलता पर उसी तरह खुश हैं जिस तरह गीदड़ों द्वारा बूढ़े शेर का शिकार किये जाने पर वाराह्सिगे उछलने लगते हैं. १९७१ कि शानदार विजय के अलावा हमारे एतिहासिक खाते में गुलामी और पराजय का  ही सर्वत्र उल्लेख है.हम पतन कि पराकाष्ठा के इतने निकट हैं कि हमें मालूम है कि मुंबई हमलों का सूत्रधार या संसद पर हमला करने वालों का प्रेरणा स्त्रोत कौन है?किन्तु हम उनको पकड़ने,सजा देने के बजाय मानव अधिकार कार्यकर्ताओं या देश के मजूरों और किसानो पर जुल्म करने वालों को सहन कर रहे हैं.  दुनिया  में कुछ  लोग और  भारत में खास लोग एक शख्स 'ओसामा-बिन-लादेन के मारे जाने से खुशियाँ मना रहे हैं!   में दावे से नहीं कह सकता कि इस जश्न को मनाये जाने कि स्वतःस्फूर्त जागतिक चेतना है या अमेरिकी प्रचार तंत्र से प्रभावित क्षणिक हर्षोन्माद है! क्या ये मान लिया जाये कि ओसामा-बिन-लादेन ही दुनिया के तमाम फसादों और दुर्जेय इस्लामिक आतंकवाद का जनक था?क्या उससे से पहले दुनिया में जो दो बड़े महायुद्ध हुए उसमें ओसामा या उसके जैसे किसी धार्मिक कट्टरवादी का हाथ था?क्या ओसामा -बिन -लादेन के मारे जाने से आतंकवाद की वैश्विक चुनौती ख़त्म हो जायेगी?क्या महात्मा गाँधी,इंदिरा गाँधी,राजीव गाँधी,ललित माकन,दीनदयाल उपद्ध्याय,गणेश शंकर विद्ध्यार्थी और अजित सरकार  इत्यादि की हत्याओं में ओसामा का हाथ था?
 यदि नहीं तो जिनका हाथ था उन कुविचारों  और पशुवृत्ति से ओसामा का क्या लेना-देना?
                         अभी अमेरिका बड़ा शोर मचा रहा है कि उसने आतंकवाद के खिलाफ महा-संग्राम  को  आख़िरी पायदान तक पहुंचा दिया है!वह एक साजिश के तहत सारी दुनिया को उल्लू बना रहा है.जो लोग ओसामा के मारे जाने पर ओबामा और अमेरिका को बधाई दे रहे हैं,उन्हें अपनी स्मरण शक्ति पर भरोसा रखना चाहिए.दुनिया के तमाम सच्चे शांतीकामी,अंतर्राष्ट्रीयतावादी,प्रजातन्त्रवादी और सहिष्णुतावादी कभी नहीं भूलेंगे कि ओसामा तो अमेरिका द्वारा उत्पन्न किया गया वह भस्मासुर था जिसने बन्दूक और बारूद का सफ़र अफगानिस्तान से शुरू किया था.
         जिन लोगो को लादेन और सी आई ये का इतिहास नहीं मालूम सिर्फ वे ही धोखा खा सकते हैं.
ऐंसे गैर-जिम्मेदार  लोग ही लादेन कि मौत का जश्न मना सकते हैं.क्योंकि उन्हें नहीं मालूम कि लादेन कि बन्दूक की गोलियां जब तक सोवियत संघ पर बरसती रहीं;तब तक वो फ्रीडम फायटर कहलाया,लेकिन जब उसने अमेरिका की हाँ में हाँ मिलाने से इनकार कर अपना स्वतंत्र वर्चश्व कायम करना चाहा तो उसे विश्व का मोस्ट वांटेड आतंकवादी करार दिया.मेरा आशय यह कदापि नहीं कि लादेन का रास्ता सही था?वो तो शारीरिक रूप से विकलांग था.किन्तु जेहाद की उसकी परिभाषा में इंसानियत से ऊपर उसका जूनून था.ऐंसे लोगों का जो अंजाम होता है सो उसका भी होना ही था और हुआ भी.सवाल ये है की जब अमेरिका ने जैसें चाहा वैंसा ही क्यों होना चाहिए?
         दूसरा बड़ा सवाल ये है कि १४ साल बाद क्या वास्तव में  एक मई -२०११ कि रात को अमेरिकी फौजों ने लादेन को ही मारा है?कहीं उसकी कहानी भी सद्दाम हुसेन जैसी तो नहीं?
गाहे-बगाहे वैडियो कांफ्रेंसिंग  के जरिये लादेन को अल-ज़जीरा और मीडिया के अन्य केन्द्रों ने टीवी पर दिखाया जरुर था किन्तु उन सारे वीडिओ पर कभी कोई विश्वशनीयता कि छाप नहीं लग पाई.
          दुनिया के अधिकांस लोगों कि राय बन चुकी है कि जब जार्ज वुश ने अमेरिकी और नाटो फौजों के द्वारा अफगानिस्तान पर बर्बर हमला किया था तब ही ओसामा मारा जा सकता था किन्तु अमेरिका ने एक खास रणनीति के तहत पूरे १४ साल तक ओसामा नामक आतंकवादी जिन्न को जिन्दा रखा ,ऐंसा क्यों?सी आई ये और पेंटागन का जबाब हो सकता है कि लादेन को जिन्दा रखना इसलिए जरुरी था कि वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ विश्व विरादरी का अनवरत समर्थन प्राप्त करने के लिए ओसामा का हौआ  बहुत जरुरी था.यदि पहले हो हल्ले में ही ओसामा को मार दिया जाता तो सारे सभ्य संसार को सन्देश जाता कि आतंकवाद का विषधर ख़त्म हो चूका है और तब पूरी दुनिया में अमेरिका को इस मुद्दे पर कि उसकी फौजें -अफगानिस्तान,ईराक,मध्य-पूर्व,पकिस्तान,दियागोगार्सिया,कोरिया और जापान में क्या करने के लिए तैनात हैं?
       चूँकि अब अमेरिकी फौजें बेदम हो चुकी हैं ,अफगानिस्तान,ईराक और जापान ने वापिस जाने का दवाव बना रखा है और अब लादेन का अमरत्व भी असहनीय हो चूका था अतेव पाकिस्तान कि खुफिया एजेंसी आई एस आई को ब्लैक मेल करते हुए कि अब ज्यदा गड़बड़ करोगे  तो भारत को भिड़ा देंगे अतः खेरियत चाहते हो तो ओसामा कि सुरक्षा हटाओ ,उसे ख़त्म करने को आ रही अमरीकी फौजों को उसका ठिकाना बताओ.
       ओसामा कैसें मारा?किसने मारा?कब मारा? इन सवालों पर आगामी कुछ दिनों तक नाटकीय ढंग से मीडिया का कवरेज दिखाई व सुनाई देगा.यह सवाल भी किया जाना चाहए कि obamaदुनिया को  सबसे ज्यादा खतरा किस्से है?सबसे खतरनाक  कौन है? ओबामा या ओसामा?
  ओसामा याने धर्मान्धता -कट्टरता -जिहाद और उसका वैचारिक आतंक,अतः ओसामा के मारे जाने से दुनिया में अमन और शांति के श्वेत कपोत उड़ने नहीं  जा रहे हैं.वैचारिक आतंकवाद को ख़त्म करने में ओसामा  की मौत से कोई सहायता नहीं मिलेगी. . ओबामा याने अमेरिकी और दुनिया भर में फैले उसके अनुचरों -पूंजीपतियों,ठगों,लुटेरों,हथियारों के सौदागरों,पूँजी के लुटेरों कि जमात.यह अमेरिका ही है जो  दुनिया भर में सबसे ज्यादा हथियार बेचा करता है ,उसके हथियार न केवल धार्मिक जेहादियों तक बल्कि भारत जैसे गरीब मुल्क में अलगाववादियों नक्सालवादियोंऔर मुबई में तीन-तीन बार खुनी होली खेलने बाले पाकिस्तानी आतंकवादियों तक बिला नागा पहुँचते रहते हैं .
दरसल भारत को ओसामा से कोई खतरा नहीं था और न ही भारत के किसी खास धरम सम्प्रदाय को उससे खतरा था.भारत को असली खतरा पाकिस्तान की भारत विरोधी लाबी और उसको पालने वाले अमेरिकी निजाम से है.दाउद,हेडली,हाफिज सईद को ओसामा ने नहीं आई एस आई ने पाला था.आई एस आई को कौन पाल रहा है?यह बताना जरुरी नहीं.
      अब भारत के प्रधान मंत्री जी विश्व समुदाय से और विशेष  रूप से पाकिस्तान नामक ढोंगी देश से विनम्र अपील कर रहे हैं कि पाकिस्तान स्थित भारत विरोधी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर नष्ट करने कि कृपा करें!  भारत कि जनता और खास तौर से पाकिस्तान कि अमन पसंद मेहनत कश आवाम कि यह साझा जिम्मेदारी है कि अतीत कि साझा विरासत को सहेजें.उस साम्रज्यवादी कुल्हाड़े का बैंट न बन जाएँ जो अमेरिका को तो यह अधिकार देता है कि वो दुनिया के किसी भी मुल्क में उसकी मुख्य भूमि से सात समंदर पार जाकर अपने चीन्हें -अनचीन्हें  दुश्मन को १२ साल भी ढूँढकर उसके सर में गोली  मारता है और फिर उसकी लाश को पत्थर से बांधकर समुद्र में फेंककर "सुपुर्द-ऐ -आब"करता है. क्या भारत इतना असहाय ,इतना कमजोर और पराधीन है, कि संसद पर हमला करने वालों को,मुंबई पर हमला करने वालों को अमेरिका कि तरह वहशी तरीके से न सही न्याय और क़ानून की बिना पर जेलों में फांसी का इन्तजार कर रहे ,कत्लोगारत के जिम्मेदार अपराधियों को सूली पर चढाने  में भी असमर्थ हो?
      सारी दुनिया जानती है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष प्रजातांत्रिक राष्ट्र है.क्या यह गुनाह है?
      सारी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान ने अपनी संप्रभुता खो दी है.अब वह अमेरिका का सैन्य अड्डा बनने को अभिशप्त है.इन घटनाओं से न केवल भारत अपितु दक्षिण एशिया में अस्थिरता का सिलसिला शुरू हो चूका है.पाकिस्तान में आई एस आई ने जो पाप किये हैं उसी का परिणाम है कि अभी दो दिन पहले अमेरिका ने उसे आतंकी सूची में डालने कि धमकी दी थी.यह धमकी बहुत मार्क थी कि ओसामा को मारने में मदद करो वर्ना हम तुम्हें भी निपटा देंगे.आई एस आई ,पाकिस्तानी फौज के चीफ कियानी साहब और पाकिस्तान कि अमेरिका परस्त लाबी ने अमेरिका के आगे घुटने टेककर खैरात में अरबों रु  के हथियारों का वायदा लेकर उस ओसामा को मरवा दिया जो दुनिया के मुसलमानों को अमेरिकी दादागिरी से जूझना सिखा रहा था.जिसे स्वयम अमेरिका ने तलिवानो कि मदद से सोवियत संघ के खिलाफ अफगानिस्तान में पाला पोषा था. सोवियत पराभव के बाद इन हथियारों का प्रयोग लगातार भारत के खिलाफ होता रहा है
        अल-कायदा हो या पाकिस्तानी आर्मी या भारत को बर्बाद करने के कुचक्रों को रचने वाले आई एस आई ,जैश -ऐ मुहम्मद ,जे के एल ऍफ़ या हिजबुल ये सभी निरंतर भारत पर जो गोलियां चलते हैं या विस्फोट करते हैं,वो सभी असलाह अमेरिकी हैअब तो ओसामा भी नहीं रहा फिर किसके खिलाफ  अमेरिका ने पाकिस्तान के अपावन हाथों में घातक हथियारदिए हैं? भारत को बर्बाद करने  कि साजिशों में शिरकत क्या सिर्फ इसीलिये कि है कि यह उसके भारतीय अनुषंगियों कि इच्छा है?दरसल भारत की समस्या ओसामा नहीं था.हमारी समस्या को हम अच्छी तरह जानते हैं किन्तु हमारा शुतुरमुर्गाना स्वभाव हमें हमारी वास्तविक जनवादी चेतना से दूर करता है.
     यह वक्त है जब हम भी कुछ ऐंसा करें जो भारत के दुश्मनों  को नेस्तनाबूद  नहीं तो कम से कम पस्त तो करे ताकि धार्मिक कट्टरवाद ,साम्प्रदायिकता और अलगाववाद  को कुचला जा सके.
      श्रीराम तिवारी

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