बुधवार, 24 मई 2017

बहिनजी और उनकी सोशल इंजीनियरिंग !

भारतीय समाजों में जातीयता की गांठें बहुत मजबूत हैं, ये तो सर्वविदित है !किन्तु शोषण के लिए खुद शोषित लोग ही जिम्मेदार हैं यह मुझे अभी यूपी चुनाव में बहिन मायावती की हार के बाद समझ में आया। हालांकि हार का तगड़ा झटका तो सपा और मुलायम परिवार को लगना चाहिए था,किन्तु वे  सबके सब मजे में हैं। शिवपाल यादव पर ,अखिलेश पर ,मुलायम सिंह पर ,उनके घराने पर और यादव घराने की बहु बेटियों पर योगी ठाकुर की महती अनुकम्पा है। पूरा का पूरा समाजवादी कुनवा मय बगुलाभगत आजम खां के सकुशल है। केवल कुछ चंद अवैध बूचड़खाने,कुछ लौंडे -लफंगे और सौ पचास भॄस्ट अधिकारी ही योगी जी के निशाने पर हैं। लेकिन योगी सरकार पर झूंठे आरोप लगाकर बहिन मायावती जी ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। यदि वे चाहतीं तो कुछ दिन बाकायदा महारानी एलिजाबेथ की तरह  अपना जातीय कुनबा और आर्थिक साम्राज्य बरकरार रख सकतीं थीं !किन्तु 'भीमसेना' और उसके नेता एक नए नेता चंद्रशेखर की प्रसिद्धि और  बढ़त से चिढ़कर उन्होंने अलीगढ़ ,सहारनपुर सहित पूरे यूपी में  बैमनस्यतापूर्ण  हिंसक तांडव मचाने की जुगत की है! इसमें उनके नव धनाढ्य अरबपति भाई आनंदकुमार कुछ जायदा ही अनुरक्त पाए गए हैं। राजनैतिक पंडित चमत्कृत हैं कि बहिनजी किस वजह से अपने राजनैतिक पराभव का खुद इंतजाम कर रहीं हैं ?सहारनपुर में आनंदकुमार के इशारे  पर एक निर्दोष राजपूत को मार दिया गया। पहले तो लोगों को लगा कि यह नवोदित दलित नेता चंद्रशेखर की 'भीमसेना' के युवा दलित दवंगों की भीड़ का काम है !किन्तु जब बहिनजी ने एक पत्रकार वार्ता में 'भीमसेना' को भाजपा और संघ का ही छाया संघठन बता दिया और चंद्रशेखर को संघ का एजेंट बता दिया तो सब को सब समझ में आ गया कि माजरा क्या है ? याने कि अब खिसयानी  बिल्ली खम्भा नोचे !

चूँकि चंद्रशेखर और उसकी भीमसेना वाले अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखना चाहते हैं और बहिनजी के नेतृत्व और आर्थिक साम्राज्य को इससे खतरा है !इसलिए अभी-अभी बहिनजी उवाच -भीमसेना तो संघ [rss]]की उपज है। बहिनजी की जय हो ! भाई आनंदकुमार की जय हो ! नोटों की मालाओं पर बलिहारी जाने वाली बहिनजी को शायद अपने कालेधन की चिंता ने ही पगला दिया है। स्वर्गीय काशीराम  देख रहे होंगे - स्वर्ग से या नर्क में जहाँ भी हों - कि कैसी सामाजिक क्रांति हो रही है। उनके सिखाये पढ़ाये लोग कैसी हिंसात्मक क्रांति के लिए लोकतंत्र को तार-तार करने पर आमादा हैं। ब्राह्मणवाद ,मनुवाद तो जुमले हैं असल चीज है जातिगत मक्कारी और व्यक्तिगत मुफ्तखोरी !सहांरनपुर की  हिंसक घटनाओ से बखूबी समझा जा सकता है कि भारत में कोई जातीय परिवर्तन सम्भव नहीं। आर्थिक या राजनैतिक क्रांति भले हो जाए किन्तु सांस्कृतिक सामाजिक क्रांति कभी सफल नहीं होगी ! यूपी की जनता ने बहिनजी और मुलायम परिवार को हराकर अच्छा ही  किया है।  मोदी जी ने भी योगी आदित्यनाथ को  मुख्यमंत्री बनाकर कुछ अनर्थ नहीं किया !

मायावती को काशीराम ने और काशीराम को पता नहीं किसने सपने में आकर कह दिया कि 'दलित शोषित समाज' के सनातन शोषण का कारण ब्राह्मण हैं। खुद नोटों की माला पहनती हैं !आदानी ,अम्बानी और टाटा बाटा से लेकर एससी /एसटी अफसरों से चंदा और चुनाव में उम्मीदवारों से धन वसूलती हैं। उन्होंने इस सिद्धांत को ब्राह्मणवाद या मनुवाद का नाम देकर देश की राजनीती में बरसों तक खूब मजे लिए हैं। बदकिस्मती से या राजनैतिक जनाधार की चिंता में कुछ प्रगतिशील और वामपंथी साथी भी इसी शब्दावली का प्रयोग करते रहते हैं। हालाँकि अंदर ही अंदर वे दिल से चाहते हैं की देश और दुनिया के तमाम गरीब शोषित वर्ग को शोषण से मुक्ति मिले !किन्तु विगत कुछ दिनों से उन्हें भी स्वर्गस्थ दलित नेताओं की सवारी आने लगी है। यूपी चुनाव के पूर्व देश का प्रगतिशील वर्ग कुछ हद तक अखिलेश और सपा के पक्ष में था। किन्तु जब जनता ने या ''श्रीराम लला'' जाने ईवीएम मशीन ने भाजपा को भरपल्ले से जिता दिया ! किन्तु सत्य कभी निरपेक्ष नहीं होता !जब देखा कि संघ परिवार और भाजपा ने योगी ठाकुर को सीएम बनाया है तो लोगों को लगा कि कमसे कम अब गरीब दलित और गरीब ब्राह्मण एक होकर अन्याय के खिलाफ लड़ सकेंगे। चूँकि एक ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाया गया है ,इसलिए अब कोई ब्राह्मणवाद या मनुवाद  का  काल्पनिक खम्भा नहीं नोचेंगा । किन्तु जब विगत दिनों मेरठ ,अलीगढ़ ,सहारनपुर में दलित भीड़ ने एक झटके में पहले पिछड़ों को धोया। फिर  राजपूतों पर हमला किया तो बेचारे घासाहारी ब्राह्मणों का तो अब भगवान् ही मालिक है। दलित गुंडों ने एक निर्दोष राजपूत की जान लेकर योगी ठाकुर को ही चेलेंज कर डाला ,तो निरीह निहथ्ते वामन बनिया किस खेत की मूलीहैं ! अरे भाई जब भीमसेना ने सत्ता धारी दल के कार्यकर्ता को ही पीट दिया तो अब काहे के निर्बल -शोषित ? आपने तो  सावित कर दिया कि आप शोषित अथवा निर्बल नहीं हैं। ऐंसा आभासित हो रहा है कि आप लोगों को अब आइंदा आरक्षण -वारक्षण की नहीं बल्कि मुफ्त भक्षण की आवश्यकता है। अब बहिनजी और उनकी सोशल इंजीनियरिंग का क्या होगा ?

भारत के टॉप १०० भूतपूर्व सामंतों -पूंजीपतियों -नेताओं और व्यापारिक घरानों की लिस्ट में एक भी ब्राह्मण नहीं !लेकिन दलित वर्ग के दर्जनों लोग इस लिस्ट में होंगे। करूणानिधि,ऐ राजा ,दयानिधिमारन ,मायावती अजीत जोगी और अन्य अनेक नेता अफसर अरबपति  हैं। पिछड़ों में नवोदित अरबपतियों में स्वामी रामदेव ,सुब्रतो राय सहारा , आंध्र कर्नाटका के रेड्डी बंधू ,यूपी के मुलायमसिंह ,बिहार के लालू यादव,महाराष्ट्र के मुण्डे महाजन तो प्रतीक मात्र हैं!एमपी के सीएम शिवराजसिंहजी और राजस्थान सीएम वसुंधरा राजे की तो कोई चर्चा ही नहीं। खुद पिछड़े वर्ग के ज्योतिरादित्य सिंधिया,होल्कर परिवार और बड़ौदा के गायकवाड़ परिवारों को नहीं मालूम की कितना काला सफ़ेद धन कहाँ पर पड़ा हुआ है?लेकिन भीमसेना और बहिनजी को उससे क्या?उन्हें तो किसी महा गुरु घंटाल ने एक मंत्र रटा दिया कि जो कुछ है सो -ब्राह्मणवाद ही है !इससे आगे कुछ नहीं कहना सुनना !क्योंकि भेड़चाल का फ़क़त इतना ही अफसाना है। यदि उन्हें आर्थिक असमानता की नहीं सामाजिक असमानता की फ़िक्र थी,तो राजा मनु [ठाकुर] से लेकर योगी [ठाकुर]तक की महायात्रा में सिर्फ ब्राह्मणवाद का आविष्कार क्यों किया ? यूपी में बहिनजी को जब सत्ता अकेले दलित वर्ग के दम पर नहीं मिली तो सोशल इंजीनियरिंग के बहाने बेचारे गरीब वामनों को खूब फुसलाया। अपना उल्लू सीधा कर लिया। लेकिन वे उसका जबाब नहीं दे सकीं की तिलक तराजू और तलवार का क्या हुआ ? उन्होंने यूपी में जातीय आधार पर आर्थिक सर्वेक्षण क्यों नहीं करवाया ? इस उन्हें पता चल जाता कि  यूपी के ब्राह्मण हों या दक्षिण के ब्राह्मण हों ,अधिकांस को भगवान और गीता रामायण से ही संतोष है। बेचारे वामनों का वह हक भी योगियों [योगी आदित्यनाथ]र स्वामियों [स्वामी रामदेव]ने छीन लिया है ! ब्राह्मण यदि शोषक हैं ,अमीर हैं तो उनकी सूची जारी की जाये। जैसे अलपसंख्यक वर्ग में अजीम प्रेम जी ,दारुवाला ,घोड़ेवाला ,रेशमवाला,टाटा और नुस्ली वाडिया हैं ऐंसे ही धनिक ब्राह्मणों के नाम हों तो बताएं ! वैसे यदि देखा जाये तो अधिकांस वामपंथी वुद्धिजीवी और साहित्य्कार ब्राह्मण ही मिलेंगे। क्योंकि वे स्वयं शोषक नहीं हैं और  वे सम्पूर्ण मानव समाज को शोषण मुक्त देखना चाहते हैं। बहिनजी और भीमसेना को सोचना चाहिए कि हजारों लाखों ब्राह्मण वामपंथी ही क्यों होते हैं ?लाल झंडा हाथों में लेकर इंकलाब जिंदाबाद का नारा क्यों लगाते हैं ? और हिंसा पर उतारू दलित वर्ग को पूंजीपतियों की लूट नहीं दिखती ?

यूपी विधानसभा चुनाव में वसपा- सपा की करारी हार के बाद सामाजिक क्रांति की जातीयतावादी नकारात्मक  शक्तियां वेरोजगार हो चुकी हैं ! कुख्यात तथाकथित मुल्ला 'मुलायम परिवार'ने तो पिछले दरवाजे से मोदी -योगी युतिसे गुप्त मैत्री गांठ ली है !लेकिन बहिन् जी के राजनेतिक अरमा आंसुओं में बह गये हैं ! इसीलिये पहले तो उन्होंने चुनाव में हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ने की कोशिश की ,किन्तु जब  नही फूट् सका तो भीमसेना के कंधे पर चढ़कर वे यूपी में कपालकुण्डला बनकर रक्तपान पर आमादा हैं। बहिनजी और उनके जातीयतावादी संरक्षण में पले बढे 'नव दवंग' तत्व विगत कुछ वर्षों से यूपी में ठाकुरों पर गुर्राने लगे थे ! अब योगी ठाकुर के गद्दीनशीन होते ही ठाकुरों कोअपनी ठकुराई दिखाने का पुनः इंतजाम किया जा रहा है। इसके मूल में बहिन जी और उनके पालित पोषित वे तत्व हैं जो दो-दो हजार के नोटों से बनी करोड़ों की मालाएं बहिनजी को पहनाते रहे हैं !योगी जी यदि बाकई ईमानदार हैं और यदि वे बाकई यूपी को अपराध मुक्त बनाना चाहते हैं तो गाय ,गोबर बूचड़खाने छोडकर ,लोगों को वेरोजगार बनाने के बजाय उन अधिकारियों ,नेताओं और भूतपूर्व मंत्रियों के वित्तीय साम्राज्य का विच्छेदन करें जो यूपी पर ३० साल से राज कर रहे हैं। इसमें कांग्रेस,सपा ,बसपा और भाजपा सभी के अनैतिक आर्थिक स्वार्थों का उच्छेदन किया जाना चाहिए। अकेले हाथी के बुतों को या बहिनजी के आर्थिक साम्राज्य को टारगेट नहीं किया जाना चाहिए !

बहिनजी के वित्तीय उद्गमों उदित राज और रामदास आठवले के अलावा यह सवाल अब तक किसी और दलित नेता या सवर्ण वुद्धिजीवी कभी नहीं उठाया ,क्यों ? सवाल यह भी है कि जो व्यक्ति या समूह  करोड़ों की मालाएं बहिनजी को पहना सकने में सक्षम है,वह यदि सरकारी अधिकारी हो ,नेता हो ,मंत्री हो तो उसके वित्तीय श्रोत की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए ?

!इसलिये उनके हताश अनुयाई अब धर्मांतरण की धमकी से अलीगढ़ ,आगरा,मुजफ़रपुर ,सहारनपुर ,मथुरा में योगिराज को और गुजरात ,महाराष्ट्र ,दिल्ली में मोदीराज को ही सांप्रदायिक च...ुनौती दे रहे हैं ! लेकिंन जो लोग धर्म परिवर्तन के लिये गंभीर हैं ,वे ज़िस किसी भी धर्म में शामिल होने की सोच रहे हैं ,उन समाजों के अन्दर अपनी आगामी पोजीशन का ठीक से पता कर लें ! क्योंकी जातीय असमानता सभी धर्म मजहब और देशों में है !पाकिस्तान में दलित की आवाज ही नही निकलती !देश विभाजन पर भारत के जो शेख सेयद मुगल पठान उधर गये थे , वे मुहाजीर होकर अभी भी मारे मारे फिर रहे हैं !

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