बुधवार, 17 मई 2017

विपक्ष को यदि जिन्दा रहना है तो ...........!

 यदि कभी यह सवाल उठे कि वर्तमान उद्दाम सरमाएदारी और भूमंडलीकरण के दौर में ,अतीत की पुनर्नवा सभ्यताओं के द्व्न्दात्मक दौर में, संगठित मज़दूर वर्ग के बजाय भारत में स्वतः स्फूर्त किसान आंदोलन ही ज्यादा आक्रामक क्यों हैं ? इस सवाल के जबाब की पड़ताल बहुत लाजमी है। आज जबकि यूरोप, अमेरिका, भारत जैसे देशों का मजदूर वर्ग संघर्षों के बियावान में खामोश है तब दुनिया के अधिकांश राष्ट्रों में किसान आंदोलन जगने लगे हैं। भारत में किसान संघर्ष की ज्वाला हालाँकि सत्तापक्ष ने ही भड़काई है ,किन्तु किसानों का चरम असंतोष पूर्व से ही अपेक्षित था। यदि आइंदा किसानों का शोषण,दमन,उत्पीड़न [मध्यप्रदेश के मंदसौर ,रतलाम, नीमच की तरह]इसी तरह जारी रहा और विपक्ष पर राजनीति से प्रेरित  सीबीआई ,ईडी और आयकर विभाग के हमले जारी रहे, तो मौजूदा एनडीए सरकारें अच्छे दिन होने के बावजूद, जनता द्वारा सत्ता से बेदखल की जा सकती है !परन्तु इसके लिए एकजुट विपक्ष का मैदान में डटे रहना अनिवार्य है । इसके अलावा गैर भाजपाई विपक्ष की व्यापक एकता और दलीय परिमार्जन भी अनिवार्य है। बहरहाल मोदीजी को कांग्रेस की खामियों का फायदा मिलने से,यूपी उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत ,मिलने और गोवा,मणिपुर में अल्पमत भाजपा द्वारा अनैतिक रूप में बहुमत सावित करने की हरकत से विपक्ष पहले ही पस्त हो चुका था। किन्तु अब सीबीआई ,आयकर ,ईडी के छापों से सभी विपक्षी दल हतप्रभ हैं। विपक्ष को यदि जिन्दा रहना है और देशमें लोकतंत्र जिन्दा रखना है तो सम्पूर्ण विपक्ष को अपने पूर्वाग्रह त्यागकर एकजुट होना ही होगा। विपक्ष के जो नेता आज भय या लोभ से दल बदल कर भाजपा में जा रहे हैं, वे आइंदा भले ही जयचंद मीरजाफर की लिस्ट में शुमार हों ,किन्तु अभी तो वे भारतीय राजनीति को और ज्यादा भ्रस्ट किये जा रहे हैं ! मोदी जी भले ही लाख कहें कि 'न खाऊंगा न खाने दूंगा' किन्तु दुनिया जानती है कि गैरभाजपा शासित राज्यों में गठबंधन बनाने और राज्य सभा में बहुमत हासिल करने के लिए उनके आज्ञाकरी अध्यक्ष अमित शाह और उनकी टीम ने हर भ्रस्ट विपक्षी को खरीदने की कोशिश की है ,वशर्ते कोई बिकाऊ हो !क्या यही शुचिता है ?क्या यही 'पार्टी विथ डिफरेंट' है ?क्या यही चाल ,चरित्र और चेहरा है ?वेशक कांग्रेस का शासन भ्रस्ट रहा है ,किन्तु मोदी शासन महाभ्रस्ट सावित हुआ है।

पीएम मोदी परम्परागत खुली पत्रकार वार्ता या टीवी इंटरव्यू से भले ही दूर भागते रहे हों ,किन्तु उनका 'एकालाप' याने भीड़ और मीडिया के समक्ष इकतरफा भाषण, निसंदेह लोकलुभावन हुआ करता है। उनके द्वारा रेडिओ पर संडे को 'मन की बात' निसंदेह हिंदी क्षेत्र में व्यापक करिश्माई असर रखती है। इसी तरह उनके प्रसादपर्यन्त भाजपा अध्यक्ष बने अमित शाह तो माशा अल्लाह इस कदर बोलू हैं कि सवाल करने वाला खुर्राट पत्रकार भी अपना माथा धुनने लगता है। इसी तरह भाजपा के तमाम प्रवक्ता ,मंत्री ,संतरी भी 'बड़े से बड़ा झूंठ' मुस्कारते हुए बोल जाते हैं । जबकि इसके विपरीत कांग्रेस के बड़े नेता अपनी 'सच बात' भी जनता के बीच ठीक से  नहीं रख पा रहे हैं। सोनिया जी ,मनमोहन सिंह जी तो कभी बोलना भी नहीं सीख पाए। राहुल गाँधी न तो विचारक हैं और न अमित शाह जैसे काईंयां ,वे किसी भी विषय पर अधिकार से नहीं बोल पाते। इसी तरह  मल्लिक्कार्जुन खड़गे भी बहुत उबाऊ और अटकेले हैं। कांग्रेस में जिन्हे बोलना आता है ,उनके मुँह सिल  दिए जाते हैं। आनद शर्मा ,गुलाम नबी आज़ाद ,सचिन पायलट ,माकन ,दीक्षित और ज्योतिरादित्य सिंधिया को यदि बोलने की  छूट दी जाए तो जनता को सब समझ आने लगेगा। वर्ना अभी तो सभी कांग्रेसी सोनिया ,राहुल की भृकुटी से आक्रान्त होकर अटक अटक कर बोल रहे हैं।

भारत के अनेक प्रतापी सामाजिक कार्यकर्ता [अण्णा हजारे टाइप ]और स्वामी रामदेवनुमा संत महात्मा वैदिक वाङ्ग्मय प्रणीत धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष की बात करते हैं। वे अबोध जनता को एक खास राजनैतिक पार्टी के पक्ष में जुटाने की निरंतर कोशिश करते रहते हैं। उनके समक्ष देश के नंगे भूंखे किसानों पर दनादन गोलियां चलीं , लेकिन वे सभी जुए में हारे हुए पांडवों की तरह,हस्तिनापुर से बचनबध्द पितामह भीष्म की तरह निपट मौन रहे ! स्वयं ५६ इंची सीने के धारक स्वघोषित महाबली भी किसान हत्या पर मौन रहे !उनसे सवाल किया जाए कि गाय यदि पूज्य है ,अबध्य है, तो किसान क्या हलाल किये जाने का ही हिन्श्र पशु है ? निर्ममता और जघन्यता का इससे बड़ा -जीवंत उदाहरण और क्या हो सकता है ? आप बेधड़क आधुनिक कारपोरेट जगत के उदीयमान नक्षत्र बने रहिये। अम्बानी, अडानी, विजय माल्या ,सुब्रतो राय सहारा का 'सहारा' बने रहिये ,आप बेखौप बड़े पूंजीपतियों को अरबों की सब्सिडी और बेलआउट पैकेज दीजिये ,किन्तु अन्नदाता की ऐसी दुर्गति तो न कीजिये ! योगगुरु स्वामी रामदेव,श्री श्री और तमाम साधु संत महात्मा यदि चाहें तो किसानों की मदद कर सकते हैं !क्योंकि उनके समक्ष न केवल आवारा पूँजी [लक्ष्मी],न केवल 'नीम -हकीम खतरेजान' वाले वेरोजगार,न केवल सनातन मिलाबटिये ,न केवल आधुनिक तकनीकी में दक्ष युवा बल्कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी भी नतमस्तक हैं । सिर्फ किसान और मजदूर को ही बेमौत  मरने क्यों छोड़ दिया गया है ?

भारत में वेशक अभी हिंदुत्ववादियों का बहुमत है। हालाँकि भारत में अभी भी धर्मनिरपेक्ष संविधान और लोकतंत्र की ही व्यवस्था है।लेकिन यदि भारत को हिन्दुत्ववाद के खूंटे से बाँध दिया गया, तो गरीबों पर बड़ी आफत आ जाएगी। क्योंकि हिन्दू धर्म-दर्शन और  विचार के अनुसार गरीबी -अमीरी,सुख- दुःख, शोषण -दमन को मनुष्यमात्र के निजी कर्मफल या 'हरिच्छा' से जोड़ दिया जाएगा ! कहने सुनने को तो हिन्दू और जैन धर्म बहुत बड़े अपरिग्रहवादी हैं। किन्तु उनका पूँजीवाद से बिचित्र नैसर्गिक और अपनत्व का नाता है। जबकि इस्लाम ,ईसाई ,यहूदी और और बुद्ध धर्म-मजहब में अपरिग्रह का नाम भी नहीं है,किन्तु इन मजहबों में मजदूर ,किसान के हितों की खूब परवाह की गई है। ईसाई धर्म में तो अनेक संत हुए जो सुतार -बढ़ई और चरवाहेभी थे। शायद यही वजह है कि इन पाश्चत्य धर्म मजहब में वैज्ञानिक आविष्कारों की गुंजायश बनी रही। जबकि हिन्दू और जैन धर्म में परम्परा से मुनि,ऋषि केवल अपरिग्रह पर बल देते रहे , कुछ तो  राजाओं और चक्रवर्ती सम्राटों के गुरु भी रहे, किन्तु जनता की लूट और शोषण को बंद कराने में कोई दिलचस्पी नहीं रही। कुछ हिन्दू जैन धर्मावलम्बी तो उच्चकोटि के विचारक होते हुए भी अधिसंख्य जनता के दुखों को उनके 'पूरब भव' के कर्म के हवाले करते रहे हैं । यही वजह है कि विदेशी हमलों के वक्त अधिकांस जनता 'अहिंसा परमोधर्म :' या 'प्रभु की इच्छा' 'संघं शरणम गच्छामि 'अथवा 'होहहिं सोइ जो राम रचि राखा' का समवेत गायनकरते हुए सदियों के लिए गुलाम होती चली गयी !मेहनतकशों की एकता ,उनका सही मार्गदर्शन और संघर्ष का माद्दा जिन्दा रहता तो भारत कभी गुलाम नहीं होता !

यह सर्वविदित है कि सिर्फ भारत में ही नहीं, एसिया में ही नहीं, बल्कि सारे संसार में एक चीज बहुत कॉमन है कि राजनैतिक विचरधाराओं के रूप में - लोकतंत्र ,समाजवाद और पूंजीवाद का कांसेप्ट उन्होंने यूरोप से ही लिया है । यह दुहराने की भी जरूरत नहीं कि इसकी केंद्रीय जन्मदात्रि ब्रिटिश संसद रही है। उन्होंने ११ वीं सदी के मैग्नाकार्टा से लेकर बीसवीं सदी के दो दो महायुद्धों और उपनिवेशवाद विखंडन तक के दौर से सीखते हुए लोकतंत्र ,समाजवाद और पूंजीवाद के विचारों को दुनिया में समृद्ध किया है। भारत ने  ब्रिटिश हुकूमत से वो सब सीखा जो ब्रिटिश ,फ्रेंच, जर्मन ,अमेरिकन और सारे संसार ने उनसे सीखा है। रेल ,बिजली, टेलीफोन,मोटरकार, स्कूटर, सायकिल,घड़ी,अखवार,टीवी, रेडिओ,कम्प्यूटर मोबाइल इत्यादि की तरह भारत के लोगों ने विभिन्न 'राजनैतिक विचारधारायें'  भी विलायत से ही उधार लीं हैं।  फिर भी मैं यही कहूंगा कि मेरा भारत महान ! भले ही मुझे दो रोटी के लिए आठ घंटे मजूरी करनी पडी हो!

वेशक भारत के पास कहने को अपना खुद का बहुतकुछ है। अजंता, एलोरा, एलिफेंटा ,कोणार्क ,नालंदा और महाबलीपुरम जैसे पुरातन खंडहर अवशेष तथा ताजमहल ,हुमायुंका मकबरा -अकबरका मकबरा जैसे ऐतिहासिक दाग भी यहाँ शिद्द्त से मौजूद हैं !हल्दीघाटी ,पानीपत ,कुरक्षेत्र, तराइन,पलाशी के रणक्षेत्र भी भारत की शर्मनाक पराजय के प्रतीक रूप में अजर अमर हैं। इसके अलावा ज्ञान ,ध्यान,कर्मयोग गीता,रामायण,वेद -पुराण,नाट्यशास्त्र,आयुर्वेद ,कामसूत्र तथा बाइबिल,कुरआन जैसी अनेक वेशकीमतीं साहित्यिक कृतियाँ भी यहाँ मौजूद  हैं। नागा साधुऒं की जमात ,धूतों -अवधूतों ,मलंगों-कापालिकों ,सूफियों ,नटों-मदारियों और चारण -भाटों की तो यह भारत भूमि हमेशा से ही उर्वरभूमि रही है ! इसके अलावा यहाँ और भी अनेक अद्भुत चीजें ऐसी हैं जो दुनिया के लिए किसी उजबक अजूबे से कम नहीं हैं । त्रिपुरा से लेकर हिंद्कुश पर्वत तक -हिमालय पर्यन्त और केरल से लेकर कष्मीर तक जो कुछभी भौगोलिक विस्तार है , वो सब भारत का सांस्कृतिक वैभव ही तो है। खजुराहो,कोणार्क, एलोरा, अजंता और दक्षिण भारत के मंदिर उनमें सर्वाधिक महत्व के हैं।     

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