कांग्रेस की जन-विरोधी नीतियों और उस के तत्कालीन नेतत्व के कुशासन ,महंगाई ,भृष्टाचार तथा शीर्ष नेतत्व की जड़ता से आजिज आकर ही मध्यप्रदेश के मतदाताओं ने भाजपा को तथा उस की शिवराज सरकार को दुबारा सत्ता के सिंहासन पर बिठाया है । हालांकि इससे पूर्व २००३ में भी 'संघ परिवार' के तथाकथित राष्ट्रवादी -चाल -चेहरा और चरित्र के नाम पर , कुछ 'राम लला' मंदिर के नाम पर ,कुछ हिंदुत्व के नाम पर , कुछ तत्कालीन स्टार प्रचारक सुश्री उमा भारती की 'ताण्डवी ' वक्तृता शैली के नाम पर , कुछ तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री दिग्विजयसिंह जी की हठधर्मिता और उनको 'मिस्टर बंटाढार ' निरूपित किये जाने के नाम पर - संघ परिवार और भाजपा को मध्यप्रदेश की सत्ता का सुख -सहज ही प्राप्त हो गया था।चूँकि मध्यप्रदेश में तीसरे मोर्चे की हालात दयनीय है ,इसलिए विगत २०१३ के विधान सभा चुनाव में और मई -२०१४ के लोक सभा चुनाव में मध्यप्रदेश की जनता ने यूपीए -२ के खिलाफ अपने आक्रोश को व्यक्त करते हुए भाजपा को ही तरजीह दी है । लेकिन अब इस प्रदेश की जनता अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रही है।
वैसे भी मध्यप्रदेश की जनता को चौतरफा संकट ने घेर रखा है। पहले केंद्र में यूपीए की मनमोहन सरकार ने इसलिए कोई तवज्जो नहीं दी कि मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार थी। कांग्रेस की सोच थी कि जब शिवराज जैसे घोषणावीर सत्ता सुख भोग रहे हैं तो वे उसका खामियाजा भी भुगते।उनकी वेजा घोषणाओं की पूर्ती कांग्रेस या यूपीए क्यों करे ? अब चूँकि संघ के प्रसाद पर्यन्त भाजपा और मोदी जी को राष्ट्रीय स्तर पर महाविजय प्राप्त हुई है, केंद्र में भी भाजपा की ही सरकार है, तो भी मध्यप्रदेश के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। यह जग जाहिर है कि शिवराजसिंह चौहान ने कभी भी श्री नरेंद्र मोदी का दिल से साथ नहीं दिया। वे कभी आडवाणी के खड़ाऊँ उठाऊ बने रहे , कभी खुद भी भारत का प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोते रहे। हालाँकि यह कोई गुनाह नहीं है किन्तु जब इसी वजह से वर्तमान केंद्र सरकार याने एनडीए या यों कहें कि 'नमो सरकार' की ओर से मध्यप्रदेश को न तो रेल बजट में और न ही आम बजट में कोई खास तवज्जो दी गई हो तो फिर शिवराज की योग्यता पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है। सभी को विदित है कि शिवराज द्वारा की गई किसी भी आर्थिक मांग पर मोदी सरकार ने कोई ठोस आश्वाशन नहीं दिया है ।उलटे मोदी सरकार की ओर से मध्यप्रदेश के किसानों की सब्सिडी -बोनस छीने जाने की खबर है । प्रादेशिक इंफ्रास्ट्रक्चर की किसी भी मद के लिए निवेश की किसी प्रकार के सहयोग की सूचना नहीं है ।
इधर मानसून ने भी इस बार देश के अन्य हिस्सों की तरह ही मध्यप्रदेश के किसानों को भी अधमरा कर दिया है। आधी से ज्यादा बोनी या तो पिछड़ गई है या बोनी हुई ही नहीं है। जबकि दूसरी ओरशासन-प्रशासन में विराजे - भृष्ट बाबू-अफसर - ठेकेदार -खनन माफिया,नेता और उनके रिस्तेदार इस बीमारू राज्य को बुरी तरह से लूटने -खसोटने में जुटे हैं। इस दौर के सत्तासीन तत्व पूर्ववर्ती कांग्रेस की और यूपीए की सरकारों से भी ज्यादा बुरी तरह लूट रहे हैं।
यह सही है कि प्रदेश की जनता - जिसने भारी बहुमत से भाजपा को या 'संघ परिवार' को वोट दिया है ,वो सदैव इस महाभृष्ट प्रदेश सरकार का असहनीय बोझ -ढोते रहने को कतई अभिशप्त नहीं है। यह भरम कोई मूरख ही पाल सकता है कि वर्तमान 'व्यवस्था' याने मौजूदा 'सिस्टम' याने इसी भृष्ट 'प्रशासन तंत्र' के रहते ही सत्ता परिवर्तन कर देने मात्र से - न्याय ,शुचिता , सुशासन तथा विकाश की गंगा बहाना सम्भव है ! पूर्ववर्ती सत्ताच्युत कांग्रेसी सरकार तथा वर्तमान सत्तारूढ़ भाजपा नेताओं का अनैतिक आचरण बिलकुल एक जैसा है। भाई भतीजावाद ,माफियावाद,दुष्प्रचार तथा चुनावी कथनी-करनी में दोनों एक समान हैं। जब कभी भी शिवराजसिंह या उनकी सरकार पर अंगुली उठती है तो वे अपने पूर्ववर्तियों के काले कारनामों की जांच की धौंस देने लगते हैं। माना कि कोई भी पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री भी दूध का धुला नहीं रहा । यदि मान भी लें कि मौजूदा शिवराज सरकार ने अपने रिश्तेदारों को -सालों को , भांजियों को ,'संघियों ' को वास्तव में उपकृत किया है, तो भी कोई बेजा बात नहीं। क्योंकि स्वर्गीय अर्जुनसिंह जी के कार्यकाल में तो न केवल विंध्य क्षेत्र अपितु पूरे मध्यप्रदेश ,छग और पूरे भारत के अन्य राज्यों से भी कांग्रेस के हजारों लाखों अनुयाईओं को वर्षों तक इसी तर्ज पर उपकृत किया जाता रहा है । उनके कार्यकाल में 'भोपाल गैस काण्ड हुआ और हजारों मारे गए। लाखों अपंग हो गए। किन्तु लाखों ऐंसे भी होंगे जिनका गैसकांड में रत्ती भर नुक्सान नहीं हुआ किन्तु इस काण्ड की ही बदौलत वे मालामाल होते चले गए। कांग्रेस के ही कार्यकाल के दौरान 'एंडरसन' को भगाने की बात लोग भूले नहीं हैं। इसी तरह ' दिग्गी राजा ' जी ने भी अनेक पार्टी कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों का उद्धार किया होगा। भले ही वे आजकल शिवराज की मुश्कें बाँधने में व्यस्त हैं। किन्तु उनके द्वारा उपकृतों की सूची भी छोटी नहीं हैं। इसी तरह शुक्ल बंधू ,सेठी जी ,पटवाजी,सकलेचा जी ,जोगी जी ,जितने भी महानुभाव मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने सभी ने जी भरकर जनता की 'सेवा' के बहाने मेवा भी पाया ही होगा। लेकिन शिवराज जी को याद रखना चाहिए कि कांग्रेस को उसके किये-धरे का फल मिल चूका है। जनता ने उसे भरपूर सजा दी है। उसके किये का दंड इतना भयावह मिला है कि आज कांग्रेस इस लायक भी नहीं रही कि वह संसद में विपक्ष की हैसियत पा सके। याने [१०% सीटे ] भी हासिल कर सके। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार को कांग्रेस के इस हश्र से सबक सीखना चाहिए।
वास्तव में तो भाजपा ने महँगाई ,भृष्टाचार,सुशासन और विकाश के नारों के साथ ही कांग्रेस मुक्त भारत के नाम पर , देश-प्रदेश में प्रचंड बहुमत हासिल किया है.ये बात जुदा है कि वो किसी भी मोर्चे पर कुछ भी कर दिखाने में असफल रही है। सत्ता पाने के बाद भाजपाई भी उस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं कि "प्रभुता पाय काहि मद नाहीं। " इन दिनों मध्यप्रदेश में 'कांग्रेस वनाम भाजपा ' याने 'नागनाथ वनाम साँपनाथ 'वाला जुमला ही सही सावित होता जा रहा है ! जनता की नजरों में यदि कांग्रेस चोर सिद्ध हुई थी तो अब भाजपा 'डाकू' सिद्ध हो रही है। इस दौर में एक फर्क जरूर नजर आ रहा है की कांग्रेसी शासन में आलोचकों या विरोधियों को अपनी बात रखने की पूरी आजादी थी. किन्तु भाजपा शासन में फासिस्टवाद का बीभत्स चेहरा भी धीरे -धीरे सामने आने लगा है।
इन दिनों भाजपा नेतत्व की असहिष्णुता और अलोकतांत्रिकता का नंगा नाच मध्यप्रदेश में देखने को आसानी से मिल सकता है।शिवराज जी के बग़लगीरों पर लगे आरोपों को वे तर्क से नहीं 'चोरी और सीनाजोरी 'से या वेशर्मी से नकार रहे हैं। वे अपनी शक्ल सूरत में बदलाव के बजाय आइना फोड़ने पर आमादा हैं। जिस कार्पोरेट और सोशल मीडिया ने सर आँखों पर बिठाकर विजय दिलवाई उसे अब आँखें दिखाएँ जा रहीं हैं।शिव सेना के "सामना' की तर्ज पर मध्यप्रदेश के 'शिवगण' भी 'आग उगलु' अखवार निकालने की जुगत भिड़ा रहे हैं। है। वर्तमान सत्तापक्ष तो आलोचना का एक लफ्ज भी सुनने को तैयार नहीं हैं।
शिवराज सरकार की एक वानगी देखें ग्वालियर के एक सामाजिक कार्यकर्ता और ' व्यापम' घोटाले में मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान की भांजी सहित सात अन्य 'भांजे-भांजियों' के प्रकरण में किये गए भृष्टाचार को उजागर करने वाले आशीष चतुर्वेदी को जान से मारने की धमकियाँ मिल रही हैं। सम्पूर्ण भारत में व्याप्त भयानक भृष्टाचार ,रिश्वत खोरी और नेताओं के परिवारवाद की लूटखोरी के सापेक्ष मध्यप्रदेश में भाई-भतीजावाद ,माफियावाद, भृष्टाचार ,हत्याएं,लूट,और रिश्वतखोरी जरा कुछ ज्यादा ही है। शासन-प्रशासन में जोंक की तरह चिपके कुछ भृष्ट अफसरों ने,माफियाओं ने और सत्तारूढ़ दल के कुछ हितग्राहियों ने अकूत धन अर्जित किया है। शिवराजसिंह सरकार के कार्यकाल में जितने घोटाले हुए हैं या हो रहे हैं ,उनके सामने कांग्रेसियों के घोटाले तो बहुत बौने और छुद्र लगते हैं।
आरटीआई आशीष चतुर्वेदी पर तीन जानलेवा हमले हो चुके हैं। जब उन्होंने इसकी शिकायत पुलिस में की तो उनसे सुरक्षा के एवज में ५०००० रूपये मांगे गए। परेशान होकर चतुर्वेदी जी न्यायालय का दरवाजा खटखटाने जा रहे हैं। वे खुद को काफी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। इसी तरह व्यापम घोटाले के 'विसिल ब्लोवर' इंदौर के डॉ आनंद राय को भी धमकियां मिल रहीं हैं। पुलिस और प्रशासन सुरक्षा देने से आनाकानी कर रहा है । भोपाल ,इंदौर , ग्वालियर तथा अन्य शहरों में भी इसी तरह सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई कार्यकर्ता असुरक्षा की जद में हैं। जबकि महाभृष्ट व्यापम परीक्षा नियंत्रक-पंकज त्रिवेदी , सहयोगी भृष्टाचारी नितिन महिंद्रा , खनन और व्यापम माफिया -सुधीर शर्मा , पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा , ओ एस डी शुक्ल तथा अन्य अनेक नामचीन्ह 'सत्ता के दलाल' जेलों में भी मदमस्त हैं। इंवेस्टिगेसन के नाम पर एसटीएफ ने गिरफ्तारी का ड्रामा तो किया पर ये नापाक ताकतवर लोग जेलों में भी महफूज हैं। मजामौज कर रहे हैं। ये कोई मामूली चोट्टे नहीं हैं बल्कि ये तो वर्तमान चुनाव प्रणाली में सत्तारूढ़ पार्टी को धन आपूर्ति के इंतजाम अली हैं। ये तो इस व्यवस्था में चंद दलालों के नाम भर हैं। इस खेल में बड़े-बड़े ओहदेदार और भी शामिल हो सकते हैं किन्तु एसआईटी की जांच के बहाने मामला रफा दफा किये जाने के प्रयास जारी हैं। यही वजह है कि न केवल विपक्षी पार्टियाँ बल्कि सुश्री उमा भारती सहित कुछ अन्य भाजपाई भी सीबीआई जांच की मांग करने लगे हैं। लगता है इस बहाने कुछ खास लोग भी अब शिवराज को 'खो' करने की फिराक में हैं। किन्तु इससे 'व्यापम भृष्टाचार' या पीएससी घोटाले से पीड़ित युवाओं को न्याय कैसे मिलेगा ? वास्तव में जिस तरह यूपीए के काले कारनामों को उजागर करने में उसे सत्ता से वेदखल करवाने में जन-आंदोलनों के अलावा -अदालत की भी सार्थक भूमिका रही है , उसी भाँति अब मध्यप्रदेश सहित देश के अभी राज्यों में चल रहे भृष्टाचार और घोटालों पर भी अदालत की न्यायिक सक्रियता अपेक्षित है। जनता को भी सुनिश्चित करना होगा कि ईमान की रोटी चाहिए तो अनवरत संघर्ष करके अपना हक हासिल करें न कि सत्ता के दलालों को रिश्वत देकर ,वोट देकर या सम्मान खोकर अपनी आत्मा को बेचने का दुष्कर्म करते रहें।
चूँकि आज न केवल मीडिया के सवालों से , न केवल जनता के विरोधी तेवर से न केवल विपक्षी कांग्रेस पार्टी के अप्रत्याशित हमलों से बल्कि खुद उन्ही की पार्टी -भाजपा के मोदी समर्थक धड़े की बक्र दॄष्टि से शिवराज सिंह चौहान सरकार न केवल संदेह के घेरे में है बल्कि डगमगा भी रही है। यह सरकार न केवल जनता की नजरों से गिर रही है बल्कि 'संघ परिवार' के बुजुर्गों -चिंतकों ,बौद्धिकों और 'प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की नजरों में भी उसका कोई विशेष सम्मान नहीं रह गया है। विगत दिनों मोहन खेड़ा तीर्थ में संपन्न 'संघ' के विशेष सम्मेलन में सीएम - शिवराज सिंह को इस बाबत 'काफी फटकार भी लग चुकी है। उनके निजाम में ,उनके मुख्यमंत्रित्व में व्यापम और अन्य घोटालों की जो आंच 'सघ' तक पहुंची है , लगता है कि उससे संघ भी आहत है। अब यदि 'नमों ' को लम्बी पारी खेलना है तो वे भी इस दकियानूसी पतनशील सिस्टम में थेगड़े लगाने के बजाय उसके आमूल-चूल बदलाव की बात करें। राजकोष में इजाफे के लिए , विकाश -खर्चों की पूर्ती के लिए ,वांछित धन को हासिल किये जाने बाबत मनमोहनसिंग की बदनाम आर्थिक नीति को कट्टरता से लागू करने के बजाय, 'नमो 'को खुद अपनी ही पार्टी के बदनाम चेहरों से निजात पाने का सिलसिला जारी रखना चाहिए ।उन्होंने जिस काले धन को स्वटजरलैंड से वापिसी का जनता से चुनावी वादा किया था वो तो कभी भी संभव नहीं है। किन्तु उससे ज्यादा पैसा उन्हें मध्यप्रदेश के भू माफियाओं से , भृस्ट -बेईमान अफसरों से , सट्टा बाजार के खिलाडियों से ,दो नंबरी - व्यापारियों से और करप्ट नेताओं से भी मिल सकता है । यदि नरेंद्र मोदी यह कर पाते हैं तो इनके लिए इससे बड़ा लोकप्रिय और देशभक्तिपूर्ण कार्य और क्या हो सकता है ?
श्रीराम तिवारी
वैसे भी मध्यप्रदेश की जनता को चौतरफा संकट ने घेर रखा है। पहले केंद्र में यूपीए की मनमोहन सरकार ने इसलिए कोई तवज्जो नहीं दी कि मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार थी। कांग्रेस की सोच थी कि जब शिवराज जैसे घोषणावीर सत्ता सुख भोग रहे हैं तो वे उसका खामियाजा भी भुगते।उनकी वेजा घोषणाओं की पूर्ती कांग्रेस या यूपीए क्यों करे ? अब चूँकि संघ के प्रसाद पर्यन्त भाजपा और मोदी जी को राष्ट्रीय स्तर पर महाविजय प्राप्त हुई है, केंद्र में भी भाजपा की ही सरकार है, तो भी मध्यप्रदेश के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। यह जग जाहिर है कि शिवराजसिंह चौहान ने कभी भी श्री नरेंद्र मोदी का दिल से साथ नहीं दिया। वे कभी आडवाणी के खड़ाऊँ उठाऊ बने रहे , कभी खुद भी भारत का प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोते रहे। हालाँकि यह कोई गुनाह नहीं है किन्तु जब इसी वजह से वर्तमान केंद्र सरकार याने एनडीए या यों कहें कि 'नमो सरकार' की ओर से मध्यप्रदेश को न तो रेल बजट में और न ही आम बजट में कोई खास तवज्जो दी गई हो तो फिर शिवराज की योग्यता पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है। सभी को विदित है कि शिवराज द्वारा की गई किसी भी आर्थिक मांग पर मोदी सरकार ने कोई ठोस आश्वाशन नहीं दिया है ।उलटे मोदी सरकार की ओर से मध्यप्रदेश के किसानों की सब्सिडी -बोनस छीने जाने की खबर है । प्रादेशिक इंफ्रास्ट्रक्चर की किसी भी मद के लिए निवेश की किसी प्रकार के सहयोग की सूचना नहीं है ।
इधर मानसून ने भी इस बार देश के अन्य हिस्सों की तरह ही मध्यप्रदेश के किसानों को भी अधमरा कर दिया है। आधी से ज्यादा बोनी या तो पिछड़ गई है या बोनी हुई ही नहीं है। जबकि दूसरी ओरशासन-प्रशासन में विराजे - भृष्ट बाबू-अफसर - ठेकेदार -खनन माफिया,नेता और उनके रिस्तेदार इस बीमारू राज्य को बुरी तरह से लूटने -खसोटने में जुटे हैं। इस दौर के सत्तासीन तत्व पूर्ववर्ती कांग्रेस की और यूपीए की सरकारों से भी ज्यादा बुरी तरह लूट रहे हैं।
यह सही है कि प्रदेश की जनता - जिसने भारी बहुमत से भाजपा को या 'संघ परिवार' को वोट दिया है ,वो सदैव इस महाभृष्ट प्रदेश सरकार का असहनीय बोझ -ढोते रहने को कतई अभिशप्त नहीं है। यह भरम कोई मूरख ही पाल सकता है कि वर्तमान 'व्यवस्था' याने मौजूदा 'सिस्टम' याने इसी भृष्ट 'प्रशासन तंत्र' के रहते ही सत्ता परिवर्तन कर देने मात्र से - न्याय ,शुचिता , सुशासन तथा विकाश की गंगा बहाना सम्भव है ! पूर्ववर्ती सत्ताच्युत कांग्रेसी सरकार तथा वर्तमान सत्तारूढ़ भाजपा नेताओं का अनैतिक आचरण बिलकुल एक जैसा है। भाई भतीजावाद ,माफियावाद,दुष्प्रचार तथा चुनावी कथनी-करनी में दोनों एक समान हैं। जब कभी भी शिवराजसिंह या उनकी सरकार पर अंगुली उठती है तो वे अपने पूर्ववर्तियों के काले कारनामों की जांच की धौंस देने लगते हैं। माना कि कोई भी पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री भी दूध का धुला नहीं रहा । यदि मान भी लें कि मौजूदा शिवराज सरकार ने अपने रिश्तेदारों को -सालों को , भांजियों को ,'संघियों ' को वास्तव में उपकृत किया है, तो भी कोई बेजा बात नहीं। क्योंकि स्वर्गीय अर्जुनसिंह जी के कार्यकाल में तो न केवल विंध्य क्षेत्र अपितु पूरे मध्यप्रदेश ,छग और पूरे भारत के अन्य राज्यों से भी कांग्रेस के हजारों लाखों अनुयाईओं को वर्षों तक इसी तर्ज पर उपकृत किया जाता रहा है । उनके कार्यकाल में 'भोपाल गैस काण्ड हुआ और हजारों मारे गए। लाखों अपंग हो गए। किन्तु लाखों ऐंसे भी होंगे जिनका गैसकांड में रत्ती भर नुक्सान नहीं हुआ किन्तु इस काण्ड की ही बदौलत वे मालामाल होते चले गए। कांग्रेस के ही कार्यकाल के दौरान 'एंडरसन' को भगाने की बात लोग भूले नहीं हैं। इसी तरह ' दिग्गी राजा ' जी ने भी अनेक पार्टी कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों का उद्धार किया होगा। भले ही वे आजकल शिवराज की मुश्कें बाँधने में व्यस्त हैं। किन्तु उनके द्वारा उपकृतों की सूची भी छोटी नहीं हैं। इसी तरह शुक्ल बंधू ,सेठी जी ,पटवाजी,सकलेचा जी ,जोगी जी ,जितने भी महानुभाव मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने सभी ने जी भरकर जनता की 'सेवा' के बहाने मेवा भी पाया ही होगा। लेकिन शिवराज जी को याद रखना चाहिए कि कांग्रेस को उसके किये-धरे का फल मिल चूका है। जनता ने उसे भरपूर सजा दी है। उसके किये का दंड इतना भयावह मिला है कि आज कांग्रेस इस लायक भी नहीं रही कि वह संसद में विपक्ष की हैसियत पा सके। याने [१०% सीटे ] भी हासिल कर सके। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार को कांग्रेस के इस हश्र से सबक सीखना चाहिए।
वास्तव में तो भाजपा ने महँगाई ,भृष्टाचार,सुशासन और विकाश के नारों के साथ ही कांग्रेस मुक्त भारत के नाम पर , देश-प्रदेश में प्रचंड बहुमत हासिल किया है.ये बात जुदा है कि वो किसी भी मोर्चे पर कुछ भी कर दिखाने में असफल रही है। सत्ता पाने के बाद भाजपाई भी उस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं कि "प्रभुता पाय काहि मद नाहीं। " इन दिनों मध्यप्रदेश में 'कांग्रेस वनाम भाजपा ' याने 'नागनाथ वनाम साँपनाथ 'वाला जुमला ही सही सावित होता जा रहा है ! जनता की नजरों में यदि कांग्रेस चोर सिद्ध हुई थी तो अब भाजपा 'डाकू' सिद्ध हो रही है। इस दौर में एक फर्क जरूर नजर आ रहा है की कांग्रेसी शासन में आलोचकों या विरोधियों को अपनी बात रखने की पूरी आजादी थी. किन्तु भाजपा शासन में फासिस्टवाद का बीभत्स चेहरा भी धीरे -धीरे सामने आने लगा है।
इन दिनों भाजपा नेतत्व की असहिष्णुता और अलोकतांत्रिकता का नंगा नाच मध्यप्रदेश में देखने को आसानी से मिल सकता है।शिवराज जी के बग़लगीरों पर लगे आरोपों को वे तर्क से नहीं 'चोरी और सीनाजोरी 'से या वेशर्मी से नकार रहे हैं। वे अपनी शक्ल सूरत में बदलाव के बजाय आइना फोड़ने पर आमादा हैं। जिस कार्पोरेट और सोशल मीडिया ने सर आँखों पर बिठाकर विजय दिलवाई उसे अब आँखें दिखाएँ जा रहीं हैं।शिव सेना के "सामना' की तर्ज पर मध्यप्रदेश के 'शिवगण' भी 'आग उगलु' अखवार निकालने की जुगत भिड़ा रहे हैं। है। वर्तमान सत्तापक्ष तो आलोचना का एक लफ्ज भी सुनने को तैयार नहीं हैं।
शिवराज सरकार की एक वानगी देखें ग्वालियर के एक सामाजिक कार्यकर्ता और ' व्यापम' घोटाले में मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान की भांजी सहित सात अन्य 'भांजे-भांजियों' के प्रकरण में किये गए भृष्टाचार को उजागर करने वाले आशीष चतुर्वेदी को जान से मारने की धमकियाँ मिल रही हैं। सम्पूर्ण भारत में व्याप्त भयानक भृष्टाचार ,रिश्वत खोरी और नेताओं के परिवारवाद की लूटखोरी के सापेक्ष मध्यप्रदेश में भाई-भतीजावाद ,माफियावाद, भृष्टाचार ,हत्याएं,लूट,और रिश्वतखोरी जरा कुछ ज्यादा ही है। शासन-प्रशासन में जोंक की तरह चिपके कुछ भृष्ट अफसरों ने,माफियाओं ने और सत्तारूढ़ दल के कुछ हितग्राहियों ने अकूत धन अर्जित किया है। शिवराजसिंह सरकार के कार्यकाल में जितने घोटाले हुए हैं या हो रहे हैं ,उनके सामने कांग्रेसियों के घोटाले तो बहुत बौने और छुद्र लगते हैं।
आरटीआई आशीष चतुर्वेदी पर तीन जानलेवा हमले हो चुके हैं। जब उन्होंने इसकी शिकायत पुलिस में की तो उनसे सुरक्षा के एवज में ५०००० रूपये मांगे गए। परेशान होकर चतुर्वेदी जी न्यायालय का दरवाजा खटखटाने जा रहे हैं। वे खुद को काफी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। इसी तरह व्यापम घोटाले के 'विसिल ब्लोवर' इंदौर के डॉ आनंद राय को भी धमकियां मिल रहीं हैं। पुलिस और प्रशासन सुरक्षा देने से आनाकानी कर रहा है । भोपाल ,इंदौर , ग्वालियर तथा अन्य शहरों में भी इसी तरह सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई कार्यकर्ता असुरक्षा की जद में हैं। जबकि महाभृष्ट व्यापम परीक्षा नियंत्रक-पंकज त्रिवेदी , सहयोगी भृष्टाचारी नितिन महिंद्रा , खनन और व्यापम माफिया -सुधीर शर्मा , पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा , ओ एस डी शुक्ल तथा अन्य अनेक नामचीन्ह 'सत्ता के दलाल' जेलों में भी मदमस्त हैं। इंवेस्टिगेसन के नाम पर एसटीएफ ने गिरफ्तारी का ड्रामा तो किया पर ये नापाक ताकतवर लोग जेलों में भी महफूज हैं। मजामौज कर रहे हैं। ये कोई मामूली चोट्टे नहीं हैं बल्कि ये तो वर्तमान चुनाव प्रणाली में सत्तारूढ़ पार्टी को धन आपूर्ति के इंतजाम अली हैं। ये तो इस व्यवस्था में चंद दलालों के नाम भर हैं। इस खेल में बड़े-बड़े ओहदेदार और भी शामिल हो सकते हैं किन्तु एसआईटी की जांच के बहाने मामला रफा दफा किये जाने के प्रयास जारी हैं। यही वजह है कि न केवल विपक्षी पार्टियाँ बल्कि सुश्री उमा भारती सहित कुछ अन्य भाजपाई भी सीबीआई जांच की मांग करने लगे हैं। लगता है इस बहाने कुछ खास लोग भी अब शिवराज को 'खो' करने की फिराक में हैं। किन्तु इससे 'व्यापम भृष्टाचार' या पीएससी घोटाले से पीड़ित युवाओं को न्याय कैसे मिलेगा ? वास्तव में जिस तरह यूपीए के काले कारनामों को उजागर करने में उसे सत्ता से वेदखल करवाने में जन-आंदोलनों के अलावा -अदालत की भी सार्थक भूमिका रही है , उसी भाँति अब मध्यप्रदेश सहित देश के अभी राज्यों में चल रहे भृष्टाचार और घोटालों पर भी अदालत की न्यायिक सक्रियता अपेक्षित है। जनता को भी सुनिश्चित करना होगा कि ईमान की रोटी चाहिए तो अनवरत संघर्ष करके अपना हक हासिल करें न कि सत्ता के दलालों को रिश्वत देकर ,वोट देकर या सम्मान खोकर अपनी आत्मा को बेचने का दुष्कर्म करते रहें।
चूँकि आज न केवल मीडिया के सवालों से , न केवल जनता के विरोधी तेवर से न केवल विपक्षी कांग्रेस पार्टी के अप्रत्याशित हमलों से बल्कि खुद उन्ही की पार्टी -भाजपा के मोदी समर्थक धड़े की बक्र दॄष्टि से शिवराज सिंह चौहान सरकार न केवल संदेह के घेरे में है बल्कि डगमगा भी रही है। यह सरकार न केवल जनता की नजरों से गिर रही है बल्कि 'संघ परिवार' के बुजुर्गों -चिंतकों ,बौद्धिकों और 'प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की नजरों में भी उसका कोई विशेष सम्मान नहीं रह गया है। विगत दिनों मोहन खेड़ा तीर्थ में संपन्न 'संघ' के विशेष सम्मेलन में सीएम - शिवराज सिंह को इस बाबत 'काफी फटकार भी लग चुकी है। उनके निजाम में ,उनके मुख्यमंत्रित्व में व्यापम और अन्य घोटालों की जो आंच 'सघ' तक पहुंची है , लगता है कि उससे संघ भी आहत है। अब यदि 'नमों ' को लम्बी पारी खेलना है तो वे भी इस दकियानूसी पतनशील सिस्टम में थेगड़े लगाने के बजाय उसके आमूल-चूल बदलाव की बात करें। राजकोष में इजाफे के लिए , विकाश -खर्चों की पूर्ती के लिए ,वांछित धन को हासिल किये जाने बाबत मनमोहनसिंग की बदनाम आर्थिक नीति को कट्टरता से लागू करने के बजाय, 'नमो 'को खुद अपनी ही पार्टी के बदनाम चेहरों से निजात पाने का सिलसिला जारी रखना चाहिए ।उन्होंने जिस काले धन को स्वटजरलैंड से वापिसी का जनता से चुनावी वादा किया था वो तो कभी भी संभव नहीं है। किन्तु उससे ज्यादा पैसा उन्हें मध्यप्रदेश के भू माफियाओं से , भृस्ट -बेईमान अफसरों से , सट्टा बाजार के खिलाडियों से ,दो नंबरी - व्यापारियों से और करप्ट नेताओं से भी मिल सकता है । यदि नरेंद्र मोदी यह कर पाते हैं तो इनके लिए इससे बड़ा लोकप्रिय और देशभक्तिपूर्ण कार्य और क्या हो सकता है ?
श्रीराम तिवारी