माँ की तस्वीर हो ,माथे कश्मीर हो ,
धोए चरणों को सागर का पानी हो।
पुरवा गाती रहे ,पछुआ गुनगुन करे ,
मानसून की सदा मेहरवानी हो।।
सावन सूना न हो ,भादों रीता न हो ,
नाचे वन-वन में मोर- मीठी वाणी हो।
यमुना कल-कल करे ,गंगा निर्मल बहे ,
कभी रीते ना रेवा का पानी हो।।
बाएं अरुणांचल ,दायें कच्छ का रण ,
ह्रदय गोदावरी- कृष्णा -कावेरी हो।।
उपवन खिलते रहें ,वन महकते रहें ,
खेतों -खलिहानों में हरियाली हो।
लूटखोरी न हो ,बेकारी न हो ,
भृष्ट सिस्टम की बाकी निशानी न हो।।
डरें पापों के भोग ,पलें मेहनतकश लोग,
मिटे शोषण की अंतिम निशानी हो।
फलें फूलें दिग्दिगंत ,गाता आये वसंत,
हर सवेरा नया और संध्या ,सुहानी हो।।
:- श्रीराम तिवारी -:
[ मेरे प्रथम काव्य संग्रह -अनामिका से उद्धृत -समसामयिक पावस गीत ]
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