सोमवार, 21 जुलाई 2014

हर सवेरा नया और संध्या सुहानी हो !!





     माँ की तस्वीर हो ,माथे कश्मीर हो ,

    धोए  चरणों को सागर का पानी हो।

    पुरवा गाती रहे ,पछुआ गुनगुन करे ,

    मानसून की सदा  मेहरवानी   हो।।

  सावन सूना न हो ,भादों रीता न हो ,

 नाचे वन-वन में मोर- मीठी वाणी हो।

 यमुना कल-कल करे ,गंगा निर्मल बहे ,

 कभी रीते  ना   रेवा  का पानी हो।।

 बाएं अरुणांचल ,दायें कच्छ का रण ,

 ह्रदय गोदावरी- कृष्णा  -कावेरी हो।।

उपवन खिलते रहें ,वन महकते रहें ,

खेतों -खलिहानों में हरियाली हो।

लूटखोरी  न हो ,बेकारी  न  हो ,

भृष्ट सिस्टम की   बाकी निशानी न हो।।

डरें  पापों के भोग ,पलें  मेहनतकश लोग,

मिटे शोषण की अंतिम निशानी हो।

फलें फूलें दिग्दिगंत ,गाता आये वसंत,

हर सवेरा नया और  संध्या ,सुहानी हो।।

    
        :- श्रीराम तिवारी -:


[ मेरे प्रथम  काव्य संग्रह -अनामिका से उद्धृत -समसामयिक पावस गीत ]


 

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