मुरझाया चमन कैसा ,सावन के महीने में।
आसमा भयावह है ,कसक प्यासे पपीहे में।।
आदत पुरानी है ,उसे चोट खाने की।
जब -जब जागा नसीब ,आई बेला रुलाने की ।।
रीते - रीते मेघों को , बहुत देखा -सुना -जाना।
प्यास सबकी बुझा दे ,घटा ऐंसी आ जाना।।
दिल का जख़्म भर दे ,दवा ऐंसी दे जाना।
ग़मों के हिमालय को ,काली घटा ले जाना ।।
धूं -धूं जलती धरा ,मेघदूत आ जाना।
सावन -भादों बरसने दो , तब तुम चले जाना।।
श्रीराम तिवारी
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