मंगलवार, 15 जुलाई 2014

प्यास सबकी बुझा दे ,घटा ऐंसी आ जाना !



      मुरझाया चमन कैसा  ,सावन के महीने में।

     आसमा भयावह है  ,कसक प्यासे पपीहे में।।


   आदत पुरानी है ,उसे  चोट     खाने    की।

   जब -जब  जागा  नसीब  ,आई  बेला रुलाने की ।।


  रीते - रीते  मेघों  को , बहुत  देखा -सुना -जाना।

  प्यास सबकी  बुझा दे ,घटा ऐंसी  आ  जाना।।


  दिल का  जख़्म भर दे ,दवा ऐंसी दे जाना।

  ग़मों के हिमालय  को ,काली घटा ले जाना ।। 

  धूं -धूं जलती धरा ,मेघदूत    आ        जाना।

सावन -भादों बरसने  दो , तब तुम चले जाना।।


                श्रीराम तिवारी





   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें