मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013

सच्चा मुसलमान केवल अल्लाह से और सच्चा हिन्दू केवल ईश्वर से डरता है।

    

   जमीयत उलेमा -ऐ -हिन्द  के सैयद  मौलाना मह्मूद् मदनी   ने वयां किया है की - "कांग्रेस  वोट के लिए मुसलमानों को नरेन्द्र मोदी का डर  दिखा रही है। "-   उनके इस वयांन से जहां  कांग्रेसी खेमे में हड़कंप  मची हुई है , वहीं भाजपा और संघ परिवार में "फील गुड" का माहौल है। यह कोई अनहोनी या असंभाव्य घटना नहीं है।   दुनिया के तमाम  देशों  की  विचारधाराओं  और उनके अध्येताओं द्वारा यह  निष्कर्ष अनेकों बार सिद्ध  किया जा   चूका है की  अन्ततोगत्वा राजनैतिक -  ध्रुवीकरण  की प्रक्रिया में एक तरफ  गैर -साम्प्रदायिक  धर्मनिरपेक्ष ,लोकतांत्रिक और  जनवादी ताकतें होंगी और दूसरी ओर सभी  गैर- लोकतांत्रिक ,सारे फासिस्ट , समस्त प्रतिगामी, सभी  साम्प्रदायिक  तत्व और  दक्षिण पंथी  एकजुट होंगे। यह प्रक्रिया  अंतर्धारा के रूप में  निरंतर जारी रहती है। इसका  पता आवाम को तब चलता है जब या तो सत्ता परिवर्तन की सम्भावनाएं हों या किसी  खास -  कबीलाई -  साम्प्रदायिक लीडर  का दिमाग फिर गया हो। वो तथाकथित  आलमी विद्द्वान समझता है की उसने   अपने कबीले नुमा सम्प्रदाय के अन्दर की हताशा को  उजागर   किया   है। उसने सम्प्रदाय की मनोदशा को  अभिव्यक्त  है। तो  वो कितना भी बड़ा आलिम हो किन्तु  उसकी राजनैतिक समझ और जमीनी सच्चाइयों  की समझ नितांत शून्य है।
                                     मैं  जनाब मदनी साहिब के बयान से इत्तफाक नहीं रखता। मेरा यकीन है की " एक  सच्चा  और देशभक्त मुसलमान केवल अल्लाह से डरता है "उसे न तो मोदी का  भय है और न किसी और दीगर  दुनियावी ताकत  का भय है। हाँ यदि वो  अपने दींनी इल्म से नावाफिक  है ,अल्लाह के हुक्म की  फरमावरदारी से  चूक कर  अपने स्वार्थ के लिए अल्लाह के वन्दों की भावनाओं का दोहन करता है , राष्ट्र के प्रति नकारात्मक भाव है , तो ऐंसा व्यक्ति  जरुर किसी  खास घटना , खास  शख्सियत  या  किसी खास पावर सेंटर या  सत्ताकेंद्र  से अवश्य  डरेगा।   इसी तरह एक सच्चा देशभक्त  हिन्दू -मन वचन कर्म से  केवल 'परम  ब्रह्म परमात्मा 'से ही डरता  है , एक सच्चा हिन्दू तो  सारे संसार  के महा-हरामियों  से  भी  नहीं डरता।  हाँ !उसकी एक अतिरिक्त विशेषता भी है की  वो  न तो मदनी से  बैर भाव रखेगा और न  ही  मोदी से घृणा करेगा । वो तो  हर् किस्म के अन्याय  से ,शोषण से ,अत्याचार से लड़ने को तैयार मिलेगा. किन्तु यदि वो हिन्दू  साधू वेश में  रंग रंगेलियाँ   मनाने वाला स्वामी,साधू,संत होगा  या नेता के वेश में सत्ता की चाहत में  इंसानों को मरवाने वाला हुआ तो वो  जरुर  हर किसी से डरेगा। संभव है की  किसी और  जालिम के जाल में उलझकर नष्ट हो जाए। सभी पक्षों के  धर्मांध लोग जब राजनीती में एकता बना लेंगे तो ये  अच्छे हिन्दू ,सच्चे मुसलमान केवल मूक दर्शक नहीं बने रहेंगे। ये अधिकांस मेहनतकश वर्ग से ही आते हैं  इसीलिये साम्प्रदायिकता की राजनीती को लात मारना भी जानते हैं।
                                          साम्प्र्दायिक आधार पर सत्ता की राजनीती का निर्धारण करने की चेष्टा का उपक्रम केवल  हिन्दुत्ववादी ही नहीं करते ,मुस्लिम ,सिख ईसाई और अन्य क्ष्त्रीय्तावादी भी अपने-अपने काम पर लगे हुए हैं।   समस्त शोषित -दमित -मेहनतकश  समाजों की वर्गीय  एकजुटता  को ध्वस्त करने और पूंजीवादी लुटेरों को महफूज करने का  यह एक  अप्रत्याशित कदम भी हो सकता है।   हालांकि धर्मर्निरपेक्षता का मतलब 'धर्म सापेक्षता नहीं है।  फिर भी यदि धर्मनिरपेक्ष  लोकतंत्र की  वेदी पर  मोदी और मदनी एक साथ  मथ्था  टेकते हैं तो  किसी को कोई इतराज क्यों होगा ?
                                                                         भारत में वैसे तो सभी सम्प्रदायों के मठाधीश हैं किन्तु साम्प्रदायिक   राजनीती की चौसर पर  अभी तक कट्टर हिंदुत्व के सबसे बड़े  प्रतीक  केवल  'नरेन्द्र मोदी' ही अकेले उभर सके  थे। अब साम्प्रदायिक जुगलबंदी के लिए मुस्लिम कट्टरपंथ की ओर से जमीयत -उलेमा  -ऐ -हिन्द के  सैयद मौलाना महमूद मदनी भी  हाजिर हैं।  शायद अवसरवादिता की राजनीती के अनुसंधान कर्ताओं  को - सत्ता की राजनैतिक सौदेबाजी का  इससे  शानदार   उदाहरण अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा।  कभी कांग्रेस ,कभी सपा ,कभी वसपा और अब भाजपा में भी  अपनी मुस्लिम अल्पसंख्यक  वादी  वोटों  की राजनीती  के बरक्स  और   तथाकथित कांग्रेसी पिछ्लाग्गुपन से मुक्ति की  छटपटाहट का यह    प्रतीकात्मक   प्रदर्शन  भाजपा और मोदी को छलने का एक बहाना भी हो सकता है।  यह किसी समूची कौम के लिये  "आकाश से गिरे -खजूर पे लटके " भी साबित हो सकता है।  निसंदेह यह दो सम्प्रदायों के बीच भ्रातत्व भाव का प्रयास   रंचमात्र   नहीं है ,ये विशुद्ध  साम्प्रदायिकतावादी राजनीती है। आशा की जानी चाहिए की   आगामी चुनावों में यदि  भाजपा के नेतत्व में एनडीए की  विजय होती है तो जनाब मदनी साहिब को और उनके जैसे दो-चार मुस्लिम आलिमों के लिए उचित  मुआवजा  के भरपाई में  'मोदी' देरी नहीं करंगे।
        वेशक  हिन्दू-मुस्लिम -सिख -ईसाई  या साम्प्रदायिक और क्षेत्रीयता के आधार पर अपनी राजनैतिक प्रभुसत्ता कायम  करने वाले ग्रुप ,दल,समूह  या गिरोह  अपने आपसी   अन्तर्विरोध  को एक सीमा तक ही ले जा सकते हैं।  किन्तु जब उनके अन्तर्विरोध का फायदा धर्मनिरपेक्ष और  जनवादी ताकतों को मिलने वाला हो ,गैर कांग्रेस और गैर   भाजपा का विकल्प उभरने को हो , तब इन सरमायेदारों के  देवदूतों को ईश्वर -अल्लाह  की  याद नहीं आती यदि उनके वर्गीय हितों को आपस की मुठभेड़ से नुक्सान संभावित  हो तो  ये साम्प्रदायिक  ताकतें अपने तथाकथित 'सभ्यताओं के संघर्ष' को  खूंटे पे  टांगकर   तात्कालिक युद्ध विराम  करने के लिए मजबूर हो जाया करते हैं. तब  सत्ता  का और साम्प्रदायिक राजनीती का चश्मा लगाने वालों को   'मोदी में मदनी'और 'मदनी में मोदी'की छवि नज़र आने  लगती है।  गैर कांग्रेसवाद और गैर भाज्पावाद  के लिए ये खतरे की घंटी है। क्योंकि राजनैतिक विमर्श में वे अभी तो हासिये पर ही है.

         श्रीराम तिवारी 

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