अभी कल तक मीडिया के केंद्र में केवल नरेन्द्र मोदी नजर आ रहे थे। देश और मीडिया का पूरा फोकस उन्ही पर था। आडवानी को निपटाना ,राजनाथ,सुषमा और शिवराज को को ज्यादा तेज न चलने देना ,जेटली को सीबीआई से निपटने मैं लगाए रखना और संघ परिवार को अपनी ताजपोशी के लिए देश भर में कोहराम मचाने के लिए प्रेरित करना तो मोदी का अपना व्यक्तिगत अजेंडा था ही इसके अलावा हैदराबाद , रायपुर भोपाल महाकुम्भ ,दिल्ली महारेली ,केरल के मंदिरों में देव दर्शन तथा मुंबई अहमदाबाद मैं देश के पूंजी - पतियों की बदौलत दनादन मैराथान महासभाओं को संबोधित करने वाले मोदी ,मनमोहन -राहुल और सोनिया गाँधी का उपहास करने वाले मोदी आज दो अक्तूबर -२०१३ को मीडिया के हासिये से भी गायब हैं।
आज का दिन तो { महात्मा गाँधी का जन्म दिन }राहुल और कांग्रेस के लिए गौरवान्वित होने का दिन है। आज केवल और केवल राहुल गाँधी मीडिया और जन चर्चा के केंद्र मैं आ चुके हैं।
जिस तरह मोदी ने अपने वरिष्ठो-आडवाणी ,मुरलीमनोहर जोशी ,यशवंत सिन्हा ,सुषमा स्वराज और केशु भाई को निपटाया और इन सभी को 'नाथकर' बढ़त हासिल की है उसी तरह राहुल गाँधी ने भी न केवल माताश्री सोनिया गाँधी , न केवल प्रधानमंत्री डॉ मनमोहनसिंह ,न केवल कांग्रेस कोर ग्रुप ,न केवल सेंट्रल केविनेट बल्कि यूपीए के समर्थकों-शरद पंवार और मुलायम जैसे बफादारों तक को लहू लुहान कर 'दागी राजनेताओं को बचाने सम्बन्धी अध्यादेश को बाकई फाड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया है. जो लोग कल तक इस अध्यादेश का गुणगान कर रहे थे वे आज उस अध्यादेश की मिट्टी पलीद करने वाले राहुल गाँधी की जय जैकार कर रहे हैं। आइन्दा देखने की बात ये है की राहुल अपने इस 'राजनैतिक शुचिता' के जोश को भविष्य में कायम रख पाते हैं या नहीं। क्योंकि अब भाजपा और मोदी को जो करारा झटका लगा है ,यूपीए -एनडीए के दागी नेताओं को जो राजनीती से बेदखल हो जाने का खतरा उत्पन्न हुआ है ,अब वो क्या गुल खिलाएगा अभी ठीक से कहा नहीं जा सकता।
इतना अवश्य कहा जा सकता है की उच्चतम न्यायालय द्वारा धारा ८[४] के निरस्त किये जाने पर लोकसभा और विधान सभा के चुनाव अब शायद एवाजियों के मार्फ़त लड़ाए जायेंगे। याने यदि लालूजी जेल गए हैं तो क्या हुआ ,पहले रावडी भावी जी थीं , अब उनके बच्चे हैं और मेरा दावा है की वे ही जीतेंगे। डंके की चोट पर जीतेंगे क्योंकि जो लालूजी ने अपना जनाधार तैयार किया है उसे कोई दूसरा नहीं ले जा सकता। सुप्रीम कोर्ट लाख कहे की दागी नहीं चलेगा। राहुल लाख कहें की दागी को नहीं बचायेंगे। किन्तु भविष्य मैं जो भी चुनाव होगा आइन्दा तो दागियों से निजात मिलती दिखाई नहीं पड़ती। क्योंकि दागियों के बीबी -बच्चों ,रिश्तेदारों ,नेता पत्नियों और नेता पतियों, बहिनों ,भाइयों ,सालों और जीजाओं से जनता को कोई छुटकारा नहीं मिलने वाला। जो जनता अभी तक इन भ्रष्ट नेताओं को चुनती रही वही आगे भी इन नेताओं के वंशजों ,नौकरों और रिश्तेदारों को चुनकर लोकसभा और विधान सभा मैं भेज देगी। राईट तू रिजेक्ट वाली बात भी मजाक हो जायेगी जब मनचले लोग जानबूझकर ' कोई नहीं ' का बटन दवाएंगे और अंत मैं शेष वोटों के विभाजन मैं 'दागी' जीत जायेंगे। भारत के अधिकांस अर्धशिक्षित युवाओं की मानसिकता है की उनका पेशाब वहीँ उतरेगा - जहां लिखा होगा की "यहाँ मूतना मना है "
इन दिनों भारतीय राजनीती और संचार माध्यमों में नकारात्मक 'बोल-बचन' का बोलबाला है। जब वाकये या घटनाएं गलत होने जा रहीं हों , तब उन से सरोकार रखने वाले जिम्मेदार लोग 'मुसीका' डाले रहते हैं। गफलत या प्रमाद के वशीभूत हो जाते हैं। जब तक उन्हें ये पक्का एहसास न हो जाए की अमुक घटना या 'कदम' से उनके वर्गीय हितों को हानि पहुँच सकती है तब तक तो वे जरुर ही स्वयम को और अपने आसपास के लोगों को द्विधा में ही रख छोड़ते हैं। दोषी जनप्रतिनिधियों को विधायिका और कार्यपालिका से निकाल बाहर करने और आइन्दा सक्रीय राजनीती में प्रवेश वर्जित करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले में कुछ अपवादों को छोड़ लगभग 'राष्ट्रीय आम सहमती ' पहले से ही है । अधिकांस भारतीय वर्तमान भ्रष्ट राजनीती और प्रशासन से आक्रान्त हैं और छुटकारा चाहते हैं किन्तु जनता की व्यापक चेतना में बदलाव किये बिना केवल कोर्ट के किसी खास सकारात्मक हस्तक्षेप या नेताओं की राजनैतिक बाजीगरी से यह मुमकिन नहीं है। फिर भी चूँकि देश के तमाम सजग और प्रबुद्ध वर्ग ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया तो ये एक बेहतरीन शुरुआत तो अवश्य ही कही जा सकती है।
जैसा की सभी को ज्ञात है की देश की राजनीती में व्याप्त राजनैतिक भृष्टाचार के अनैतिक दबाव और 'गठबंधन' की मजबूरियों ने वर्तमान यूपी ऐ सरकार को मजबूर कर दिया था की वो उच्चतम न्यायालय के इस राजनैतिक शुद्धिकरण के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए संसदीय प्रक्रिया के तहत तत्सम्बन्धी कानून को ही बदल दे। यह सर्वविदित है की संसद के विगत मानसून सत्र में तत्सम्बन्धी विधेयक राज्यसभा में तो सर्वसम्मति से पास किया जा चूका था किन्तु लोकसभा में इसे पास करने के दौरान तकनीकी गफलत से सीमित समयवधि में इसे पास नहीं किया जा सका। विधेयक की शक्ल में इस गेंद को पार्लियामेंट्री स्टेंडिंग कमेटी ' के पाले में डाल दिया गया। चूँकि इस प्रक्रिया में पर्याप्त देरी हो रही थी और इधर लालू,रशीद मसूद,तथा अन्य दागी नेताओं को जेल भेजने की न्यायिक तीव्रता सामने आ रही थी , इसीलिये प्रधानमंत्री श्री मनमोहनसिंह और केविनेट पर सत्तारूढ़ यूपीए और अन्य अधिकांस राजनैतिक दलों ने परोक्ष दबाव डाला की "आर्डिनेंस फॉर प्रोटेक्ट कनविक्टेड पोलिटीसयंस" अध्यादेश लाकर उच्चतम न्यायालय के ' फैसले' को तत्काल निष्प्रभावी किया जाए।डॉ मनमोहनसिंह और उनके सलाहकारों ने सभी की आम राय से यह फैसला लिया की अध्यादेश तामील किया जाए।
उधर मोदी से आक्रान्त आडवाणी और सुषमा को कोई काम नहीं था और भाजपा के दागियों में ज्यादा मोदी समर्थक अमित शाह जैसे नेताओ को निपटाने के लिए लालायित थे इसलिए महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के दरवार में जा पहुंचे। आडवानी ग्रुप ने अध्यादेश का विरोध इस तरह किया मानों सिर्फ कांग्रेस को ही इसकी गरज हो। इसी खबर से और जनता में ,मीडिया में अध्यादेश की आलोचना से युवा कांग्रेसी उत्तेजित होकर राहुल को उकसाने में सफल रहे। राहुल ने २८ सितम्बर -२०१३ को दिल्ली प्रेस क्लब में दो वाक्य बोलकर न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में ये सन्देश भेज दिया की वे वैसे पप्पू' नहीं हैं जैंसा की मोदी प्रचारित करते रहते हैं। राहुल गाँधी इस घटना से एक ताकतवर संविधानेतर सत्ता केंद्र के रूपमें उभरे हैं। उनके इस स्टेप से प्रधानमंत्री ,केविनेट ,गठबंधन सरकार और लोकतांत्रिक प्रणाली की कुछ विसंगतियाँ भी विमर्श के केंद्र में हैं किन्तु ये बातें तब गौड़ हो जाया करती हैं जब कहां जाता है की 'लोकतंत्र में जनता ही सिरमौर है ' चूँकि जनता जो चाहती है वो राहुल गाँधी ने किया इसीलिये उनके विधि-निषेध के तमाम अपराध माफ़ किये जाने योग्य हो जाते हैं।
वैसे भी यह अध्यादेश महामहिम राष्ट्रपति जी को भी जचा नहीं तो उन्होंने कानून मंत्री और संसदीय मंत्री को बुलाकर पहले ही कुछ पूंछ तांछ की थी। इस बार मीडिया और प्रबुद्ध वर्ग ने भी कसम खा र्र्खी थी की देश में राजनैतिक अपराधीकरण रोकने के लिए न्यायपालिका के द्वारा किये जा रहे प्रयासों पर पानी नहीं फेरने देंगे। ये सारे जनसंचार उत्पन्न सन्देश पाकर राहुल जी तैस्श में आ गए। और इसीलिये जब कांग्रेस महासचिव और प्रमुख मीडिया प्रभारी अजय माकन दिल्ली प्रेस कल्ब में सरकार ,केविनेट और प्रधानमंत्री की इस अध्यादेश सम्बन्धी खूबियों को लेकर बखान करने जा रहे थे तभी उन्हें कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का सन्देश मिला की मैं स्वयम इस प्रेस वार्ता को 'व्रीफ ' करूंगा। वे आंधी की तरह आये और तूफ़ान की तरह बोले 'ये अध्यादेश बकवास है ,फाड़कर फेंक देना चाहिए 'ऐंसा कहते समय वे शायद भूल गए की देश में कांग्रेस का नहीं यूपीए गठबंधन का राज है, उनकी पार्टी और उनके ही मंत्रियों ने इस अध्यादेश का मसौदा तैयार किया था। उन्हें भी सब मालूम था। सभी पार्टियों और सभी नेताओं को सब कुछ मालूम था. यह कैसे हो सकता है की सिर्फ राहुल गाँधी को ही मालूम न हो। यदि यह अध्यादेश फाड़ने लायक था तो तबयह विवेक किसी का क्यों नहीं नहीं जगा? भाजपा के धपोर शंखी प्रवक्ता अब श्रेय के लिए गला फाड़ रहे हैं तब तो मनमें लड्डू फुट रहे थे की एक तीर से दो निशाने लग गए। एक तरफ कांग्रेस बदनाम हो रही दूसरी तरफ भाजपा के दागियों को बचने का मौका भी मिलने ही वाला है। वे भूल गए की जनता क्या चाहती है ? राहुल को किसी ने समय पर जगा दिया और वे वास्तव में इस समय तो भारतीय राजनीती के सर्वोच्च शक्ति स्तम्भ बनकर उभर चुके हैं।
वर्तमान यूपीए गठबंधन अल्पमत में ही है. जिसे वसपा और सपा ने टेका लगा रखा है. इन सभी पार्टियों के एक-एक दर्जन सांसदों और नेताओं पर क़ानून की तलवार लटक रही है,एनडीए और भाजपा के १८ सांसद ,कांग्रेस के १४ ,सपा के आठ ,वसपा के ६ ऐ आई डी एम् के ४,जदयू ३ और अन्य सभी दलों के एक-एक सांसद -आपराधिक मामलों में फंसे हैं। इसीलिये अध्यादेश इन सब पार्टियों की मर्जी से लाया गया था ,अब यदि मीडिया और जनता में नकारात्मक कोलाहल सुनाई देने लगा याने खेल में आसन्न हार दिखने लगी तो कांग्रेस के भावी कप्तान नियम बदलने या मैदान बदलने के लिए मचल उठे । सरकार को युटर्न लेना पडा ,विधेयक भी वापिस लेने की चर्चा है। राहुल गाँधी स्वयम तो हीरो बन गए और डॉ मनमोहन सिंह के सर पर पाप का घडा फोड़ दिया। यह एक बिडम्बना ही है की भारतीय राजनीती के सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री के रूप में इस प्रकरण में और पहले के भी सभी आरोपों में वेवजह डॉ मनमोहन सिंह पर भ्रष्टाचार का ठीकरा फोड़ा जाता रहा है। पक्ष-विपक्ष के सभी नेता जानते हैं की प्रधानमंत्री बनाए जाने का सर्वाधिक नैतिक मुआवजा डॉ मनमोहन सिंह से ही बसूला गया है। वे वास्तव में राजनीती का हलाहल पीने वाले इस दौर के 'नीलकंठ' सावित हुए हैं। उनके कन्धों पर चढ़कर राहुल यदि लोकप्रियता के शिखर पर हैं तो यह खुद की पुण्याई तो नहीं है। डॉ मनमोहन सिंह की इस विशेष योग्यता के कारण तीसरी बार प्रधानमंत्री बन् ने या बनवाने में उनकी भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। इतिहास शायद मोदी और राहुल दोनों को ही "पी एम् इन वेटिंग " के पिजन्होल में फेंक दे।
श्रीराम तिवारी
आज का दिन तो { महात्मा गाँधी का जन्म दिन }राहुल और कांग्रेस के लिए गौरवान्वित होने का दिन है। आज केवल और केवल राहुल गाँधी मीडिया और जन चर्चा के केंद्र मैं आ चुके हैं।
जिस तरह मोदी ने अपने वरिष्ठो-आडवाणी ,मुरलीमनोहर जोशी ,यशवंत सिन्हा ,सुषमा स्वराज और केशु भाई को निपटाया और इन सभी को 'नाथकर' बढ़त हासिल की है उसी तरह राहुल गाँधी ने भी न केवल माताश्री सोनिया गाँधी , न केवल प्रधानमंत्री डॉ मनमोहनसिंह ,न केवल कांग्रेस कोर ग्रुप ,न केवल सेंट्रल केविनेट बल्कि यूपीए के समर्थकों-शरद पंवार और मुलायम जैसे बफादारों तक को लहू लुहान कर 'दागी राजनेताओं को बचाने सम्बन्धी अध्यादेश को बाकई फाड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया है. जो लोग कल तक इस अध्यादेश का गुणगान कर रहे थे वे आज उस अध्यादेश की मिट्टी पलीद करने वाले राहुल गाँधी की जय जैकार कर रहे हैं। आइन्दा देखने की बात ये है की राहुल अपने इस 'राजनैतिक शुचिता' के जोश को भविष्य में कायम रख पाते हैं या नहीं। क्योंकि अब भाजपा और मोदी को जो करारा झटका लगा है ,यूपीए -एनडीए के दागी नेताओं को जो राजनीती से बेदखल हो जाने का खतरा उत्पन्न हुआ है ,अब वो क्या गुल खिलाएगा अभी ठीक से कहा नहीं जा सकता।
इतना अवश्य कहा जा सकता है की उच्चतम न्यायालय द्वारा धारा ८[४] के निरस्त किये जाने पर लोकसभा और विधान सभा के चुनाव अब शायद एवाजियों के मार्फ़त लड़ाए जायेंगे। याने यदि लालूजी जेल गए हैं तो क्या हुआ ,पहले रावडी भावी जी थीं , अब उनके बच्चे हैं और मेरा दावा है की वे ही जीतेंगे। डंके की चोट पर जीतेंगे क्योंकि जो लालूजी ने अपना जनाधार तैयार किया है उसे कोई दूसरा नहीं ले जा सकता। सुप्रीम कोर्ट लाख कहे की दागी नहीं चलेगा। राहुल लाख कहें की दागी को नहीं बचायेंगे। किन्तु भविष्य मैं जो भी चुनाव होगा आइन्दा तो दागियों से निजात मिलती दिखाई नहीं पड़ती। क्योंकि दागियों के बीबी -बच्चों ,रिश्तेदारों ,नेता पत्नियों और नेता पतियों, बहिनों ,भाइयों ,सालों और जीजाओं से जनता को कोई छुटकारा नहीं मिलने वाला। जो जनता अभी तक इन भ्रष्ट नेताओं को चुनती रही वही आगे भी इन नेताओं के वंशजों ,नौकरों और रिश्तेदारों को चुनकर लोकसभा और विधान सभा मैं भेज देगी। राईट तू रिजेक्ट वाली बात भी मजाक हो जायेगी जब मनचले लोग जानबूझकर ' कोई नहीं ' का बटन दवाएंगे और अंत मैं शेष वोटों के विभाजन मैं 'दागी' जीत जायेंगे। भारत के अधिकांस अर्धशिक्षित युवाओं की मानसिकता है की उनका पेशाब वहीँ उतरेगा - जहां लिखा होगा की "यहाँ मूतना मना है "
इन दिनों भारतीय राजनीती और संचार माध्यमों में नकारात्मक 'बोल-बचन' का बोलबाला है। जब वाकये या घटनाएं गलत होने जा रहीं हों , तब उन से सरोकार रखने वाले जिम्मेदार लोग 'मुसीका' डाले रहते हैं। गफलत या प्रमाद के वशीभूत हो जाते हैं। जब तक उन्हें ये पक्का एहसास न हो जाए की अमुक घटना या 'कदम' से उनके वर्गीय हितों को हानि पहुँच सकती है तब तक तो वे जरुर ही स्वयम को और अपने आसपास के लोगों को द्विधा में ही रख छोड़ते हैं। दोषी जनप्रतिनिधियों को विधायिका और कार्यपालिका से निकाल बाहर करने और आइन्दा सक्रीय राजनीती में प्रवेश वर्जित करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले में कुछ अपवादों को छोड़ लगभग 'राष्ट्रीय आम सहमती ' पहले से ही है । अधिकांस भारतीय वर्तमान भ्रष्ट राजनीती और प्रशासन से आक्रान्त हैं और छुटकारा चाहते हैं किन्तु जनता की व्यापक चेतना में बदलाव किये बिना केवल कोर्ट के किसी खास सकारात्मक हस्तक्षेप या नेताओं की राजनैतिक बाजीगरी से यह मुमकिन नहीं है। फिर भी चूँकि देश के तमाम सजग और प्रबुद्ध वर्ग ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया तो ये एक बेहतरीन शुरुआत तो अवश्य ही कही जा सकती है।
जैसा की सभी को ज्ञात है की देश की राजनीती में व्याप्त राजनैतिक भृष्टाचार के अनैतिक दबाव और 'गठबंधन' की मजबूरियों ने वर्तमान यूपी ऐ सरकार को मजबूर कर दिया था की वो उच्चतम न्यायालय के इस राजनैतिक शुद्धिकरण के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए संसदीय प्रक्रिया के तहत तत्सम्बन्धी कानून को ही बदल दे। यह सर्वविदित है की संसद के विगत मानसून सत्र में तत्सम्बन्धी विधेयक राज्यसभा में तो सर्वसम्मति से पास किया जा चूका था किन्तु लोकसभा में इसे पास करने के दौरान तकनीकी गफलत से सीमित समयवधि में इसे पास नहीं किया जा सका। विधेयक की शक्ल में इस गेंद को पार्लियामेंट्री स्टेंडिंग कमेटी ' के पाले में डाल दिया गया। चूँकि इस प्रक्रिया में पर्याप्त देरी हो रही थी और इधर लालू,रशीद मसूद,तथा अन्य दागी नेताओं को जेल भेजने की न्यायिक तीव्रता सामने आ रही थी , इसीलिये प्रधानमंत्री श्री मनमोहनसिंह और केविनेट पर सत्तारूढ़ यूपीए और अन्य अधिकांस राजनैतिक दलों ने परोक्ष दबाव डाला की "आर्डिनेंस फॉर प्रोटेक्ट कनविक्टेड पोलिटीसयंस" अध्यादेश लाकर उच्चतम न्यायालय के ' फैसले' को तत्काल निष्प्रभावी किया जाए।डॉ मनमोहनसिंह और उनके सलाहकारों ने सभी की आम राय से यह फैसला लिया की अध्यादेश तामील किया जाए।
उधर मोदी से आक्रान्त आडवाणी और सुषमा को कोई काम नहीं था और भाजपा के दागियों में ज्यादा मोदी समर्थक अमित शाह जैसे नेताओ को निपटाने के लिए लालायित थे इसलिए महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के दरवार में जा पहुंचे। आडवानी ग्रुप ने अध्यादेश का विरोध इस तरह किया मानों सिर्फ कांग्रेस को ही इसकी गरज हो। इसी खबर से और जनता में ,मीडिया में अध्यादेश की आलोचना से युवा कांग्रेसी उत्तेजित होकर राहुल को उकसाने में सफल रहे। राहुल ने २८ सितम्बर -२०१३ को दिल्ली प्रेस क्लब में दो वाक्य बोलकर न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में ये सन्देश भेज दिया की वे वैसे पप्पू' नहीं हैं जैंसा की मोदी प्रचारित करते रहते हैं। राहुल गाँधी इस घटना से एक ताकतवर संविधानेतर सत्ता केंद्र के रूपमें उभरे हैं। उनके इस स्टेप से प्रधानमंत्री ,केविनेट ,गठबंधन सरकार और लोकतांत्रिक प्रणाली की कुछ विसंगतियाँ भी विमर्श के केंद्र में हैं किन्तु ये बातें तब गौड़ हो जाया करती हैं जब कहां जाता है की 'लोकतंत्र में जनता ही सिरमौर है ' चूँकि जनता जो चाहती है वो राहुल गाँधी ने किया इसीलिये उनके विधि-निषेध के तमाम अपराध माफ़ किये जाने योग्य हो जाते हैं।
वैसे भी यह अध्यादेश महामहिम राष्ट्रपति जी को भी जचा नहीं तो उन्होंने कानून मंत्री और संसदीय मंत्री को बुलाकर पहले ही कुछ पूंछ तांछ की थी। इस बार मीडिया और प्रबुद्ध वर्ग ने भी कसम खा र्र्खी थी की देश में राजनैतिक अपराधीकरण रोकने के लिए न्यायपालिका के द्वारा किये जा रहे प्रयासों पर पानी नहीं फेरने देंगे। ये सारे जनसंचार उत्पन्न सन्देश पाकर राहुल जी तैस्श में आ गए। और इसीलिये जब कांग्रेस महासचिव और प्रमुख मीडिया प्रभारी अजय माकन दिल्ली प्रेस कल्ब में सरकार ,केविनेट और प्रधानमंत्री की इस अध्यादेश सम्बन्धी खूबियों को लेकर बखान करने जा रहे थे तभी उन्हें कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का सन्देश मिला की मैं स्वयम इस प्रेस वार्ता को 'व्रीफ ' करूंगा। वे आंधी की तरह आये और तूफ़ान की तरह बोले 'ये अध्यादेश बकवास है ,फाड़कर फेंक देना चाहिए 'ऐंसा कहते समय वे शायद भूल गए की देश में कांग्रेस का नहीं यूपीए गठबंधन का राज है, उनकी पार्टी और उनके ही मंत्रियों ने इस अध्यादेश का मसौदा तैयार किया था। उन्हें भी सब मालूम था। सभी पार्टियों और सभी नेताओं को सब कुछ मालूम था. यह कैसे हो सकता है की सिर्फ राहुल गाँधी को ही मालूम न हो। यदि यह अध्यादेश फाड़ने लायक था तो तबयह विवेक किसी का क्यों नहीं नहीं जगा? भाजपा के धपोर शंखी प्रवक्ता अब श्रेय के लिए गला फाड़ रहे हैं तब तो मनमें लड्डू फुट रहे थे की एक तीर से दो निशाने लग गए। एक तरफ कांग्रेस बदनाम हो रही दूसरी तरफ भाजपा के दागियों को बचने का मौका भी मिलने ही वाला है। वे भूल गए की जनता क्या चाहती है ? राहुल को किसी ने समय पर जगा दिया और वे वास्तव में इस समय तो भारतीय राजनीती के सर्वोच्च शक्ति स्तम्भ बनकर उभर चुके हैं।
वर्तमान यूपीए गठबंधन अल्पमत में ही है. जिसे वसपा और सपा ने टेका लगा रखा है. इन सभी पार्टियों के एक-एक दर्जन सांसदों और नेताओं पर क़ानून की तलवार लटक रही है,एनडीए और भाजपा के १८ सांसद ,कांग्रेस के १४ ,सपा के आठ ,वसपा के ६ ऐ आई डी एम् के ४,जदयू ३ और अन्य सभी दलों के एक-एक सांसद -आपराधिक मामलों में फंसे हैं। इसीलिये अध्यादेश इन सब पार्टियों की मर्जी से लाया गया था ,अब यदि मीडिया और जनता में नकारात्मक कोलाहल सुनाई देने लगा याने खेल में आसन्न हार दिखने लगी तो कांग्रेस के भावी कप्तान नियम बदलने या मैदान बदलने के लिए मचल उठे । सरकार को युटर्न लेना पडा ,विधेयक भी वापिस लेने की चर्चा है। राहुल गाँधी स्वयम तो हीरो बन गए और डॉ मनमोहन सिंह के सर पर पाप का घडा फोड़ दिया। यह एक बिडम्बना ही है की भारतीय राजनीती के सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री के रूप में इस प्रकरण में और पहले के भी सभी आरोपों में वेवजह डॉ मनमोहन सिंह पर भ्रष्टाचार का ठीकरा फोड़ा जाता रहा है। पक्ष-विपक्ष के सभी नेता जानते हैं की प्रधानमंत्री बनाए जाने का सर्वाधिक नैतिक मुआवजा डॉ मनमोहन सिंह से ही बसूला गया है। वे वास्तव में राजनीती का हलाहल पीने वाले इस दौर के 'नीलकंठ' सावित हुए हैं। उनके कन्धों पर चढ़कर राहुल यदि लोकप्रियता के शिखर पर हैं तो यह खुद की पुण्याई तो नहीं है। डॉ मनमोहन सिंह की इस विशेष योग्यता के कारण तीसरी बार प्रधानमंत्री बन् ने या बनवाने में उनकी भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। इतिहास शायद मोदी और राहुल दोनों को ही "पी एम् इन वेटिंग " के पिजन्होल में फेंक दे।
श्रीराम तिवारी
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