चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा ; गुड़ी पड़वा त्यौहार ।
जन्मे तब चैतन्य जी ; शुभ दिन शुक्रवार ॥
दो सहस्त्र अष्ट ईसवीं ; मार्च सत्ताईस की शाम ।
प्रकट भये चैतन्य जी ; सकल कला गुण धाम ॥
धन्य हुई जब अर्चना ; पा मातृत्व महान ।
हर्षित हिय प्रमुदित मनः ; पिता प्रवीण समान ॥
दादी बन गई उर्मिला ; दादा श्री श्रीराम ।
अग्रज अक्षत जी कहें ; अक्की मेरा नाम ॥
राजमती देवी जहाँ ; परदादी जब होय ।
तुलसी के प्रपौत्र की ; धवल कीर्ती होय ॥
सदा सहाय साईं रहें ; ठाकुर जी प्रसन्न ।
देव पितृ सबसे विनय ; रहें सदा प्रसन्न ॥
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