बुधवार, 18 अगस्त 2010

कम्युनिस्ट ही सच्चे आस्तिक हुआ करते हैं


यदा-कदा साम्यवादी और बर-हमेशा गैर साम्यवादी उस कथन को -जो कार्ल मार्क्स ने प्रतिपादित किया था -की "धर्म एक अफीम है "को सरसरी तौर से इस्तेमाल किया करते हैं .जहाँ तक इस ऐतिहासिक सैद्धांतिक युक्ति के
प्रयोजन का प्रश्न है -अक्सर अति उत्साही कम्युनिस्ट तो धर्म के मूल पर ही कुठाराघात कर बैठता है .कुछ चतुर चालाक लोग इन अर्ध-परिपक्व साम्यवादियों व्याख्या को आधार बनाकर ;वर्ग संघर्ष में प्रतिगामी बढ़त हासिल कर लेते हैं .इन में दोनों बुर्जुआ धड़े शामिल हैं .एक धडा पूंजीवादी -सामंती शोषण के करता -धर्ताओं का है .दूसरा धडा धरम मजहब -के माध्यम से आजीविका चलाने वाले अनुत्पादक वर्ग का है .ये दोनों वर्ग श्रम शोषण के लिए कभी -कभी नीर -क्षीर हो जाते है .दोनों का साझा शत्रु है -साम्यवाद .इसलिए ये दोनों आक्रान्ता के रूप में आधुनिक सुशिक्षित .वैज्ञानिक ;प्रगतिशील शक्तियों को सर्वहारा से अलग -थलग करने और शोषित वर्ग की संघर्ष शक्ति को
भोंथरा बनाने के लिए पुराणी परम्परा को देवीय रूप प्रदान करने का प्रयास करते है .जब कभी इस पाखंडपूर्ण
इस दुष्कृत्य का कोई ईमानदार -न्यायप्रिय व्यक्ति या संस्था विरोध करता है तो उस नास्तिक करार दे दिया जाता है। अंध धार्मिकता की लहर को रोक पाना मुश्किल हो जाता है .धर्म के उस रूप को जो शोषण की ताकतों का दुर्दमनीय हथियार बन जाये ;समाज में विग्रह पैदा करे ;क्रांति के मार्ग में बाधा कड़ी करे -साम्प्रदायिकता कहते हैं दरसल उस धर्म या मजहब से जो अपने मूल स्वरूप में -मानव मात्र का न्यायपूर्ण जीवन जीने का अधिकार स्वीकार करता हो उससे मार्क्सवाद का कोई विरोध नहीं है विरोध उससे हो सकता है जो साम्प्रदायिकता ;पाखण्ड तथा शोषण की यथा स्थिति का समर्थन करता है ।
कोई भी वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित धर्म /मजहब यदि वह सत्ता के स्वार्थ से दूर रहकर व्यक्ति .परिवार ;समाज या दुनिया को सुसभ्य बनाए तो वह स्वयमेव क्रांतिकारी पथ का अनुगामी हो जाएगा ।
अक्सर धार्मिकता और साम्यवाद के बीच अनुपयोगी कुतर्कों का समावेश हुआ करता है .यह बिडम्बना ही है की जो अपने आप को धार्मिक कहता है; वह बुरी तरह पाखंडपूर्ण जीवन जीता हुआ देखा जा सकता है ।
उधर दूसरी और ऐसे अनेक साम्यवादी दुनिया में हो चुके हैं ;आज भी हैं और आगे भी होते रहेंगे जो की तथाकथित "नास्तिक "होते हुए भी किसी महान अवतार या पीर पैगम्बर से कम त्यागी व बलिदानी नहीं थे .मानवता के महान साम्यवादी कर्म्योद्धाओं ने जो अनगिनत कष्ट झेले उनके प्रमाण साइबेरिया ;वियेतनाम ;चीन क्यूबा तथा यूरोप के संग्रहालयों में अब भी उपलब्ध हैं ।
उधर प्रत्येक वह व्यक्ति जो मंदिर ;मस्जिद ;गिरजा या गुरुद्वारे में जाता है .वह जरुरी नहीं की सत्य निष्ठ ही हो -वह महा मक्कार ; झूंठा ;चरित्रहीन ;मुनाफाखोर ;कालाबाजारी ;रिश्वतखोर नही होगा ;इसकी कोई गारंटी नहीं दे सकता । इसी तरह जो अपने आपको धार्मिक नज़रिए से प्रस्तुत नहीं करता उसमें उदात्त ; उज्जवल चरित्र
मानवीयता ; ईमानदारी तथा सत्यनिष्ठा कूट-कूट कर भरी हो तो उस नास्तिक को किस कोटि में स्थान दिया जाये ।

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