गुरुवार, 8 जुलाई 2010

शहीद भगतसिंह का दृष्टिकोण-साम्राज्यवाद के सन्दर्भ में


शहीद भगत सिंह की वैचारिक परिश्क्र्मन की प्रक्रिया का मूल्यांकन वैसे तो सर्वकालिक है ;किन्तु वर्तमान वैश्वीकरण के दौर में साम्राज्यवादी मुल्कों ने आज जिस तरह से समस्त भूमंडल को अपने बहुरास्ट्रीय निगमों का चारागाह बनाकर रखा है ऐसी अवस्था में नवस्वाधीन या विकाशशील देशों और खास तौर से भारत के शुभचिंतकों को यह उचित होगा की भगतसिंह की विचारधारा का अनुशीलन करें ।
शहीद भगतसिंह और उनके साथी सिर्फ सत्ता हस्तांतरण हेतु संघर्ष रत नहीं थे ;अपितु शोषणकारी व्यवस्था को बदलने की स्पस्ट सोच रखते थे .बीसवी शताब्दी के तीसरे दशक की अनेक घटनाएं यह सावित करने को पर्याप्त हैं .तत्कालीन बोम्बे की मजदूर हड़तालें ;देश के अनेक हिस्सों में किसान विद्रोह न केवल ब्रिटिश साम्रज्य से मुक्ति की चाहत बल्कि देशी सामंतों के चंगुल से आज़ादी की तमन्ना
रखते थे .इस क्रांतिकारी प्रवाह को रोकने में अंग्रेजों का साथ देने वाले वे सभी थे जो जाती धरम और पूंजीवादी व्यवस्था के पालतू थे .किन्तु क्रांतिकारियों का मनोबल कम नहीं हुआ उनहोंने जनांदोलनों को कुचलने के प्रयासों
के विरोधस्वरूप असेम्बली में बम फेंक कर भारतीय जन मानस को झिंझोड़ा .तत्कालीन स्थापित बुर्जुवा नेत्रत्व जिन्हें स्वाधीनता आन्दोलन का पुरोधा माना जाता है ;सदेव मजदूर किसान आंदोलनों एवं उनकी अगुव्वाई करने बाले जन -नायकों को दवाये जाने के पक्षधर हुआ करते थे ।
सारा संसार जानता है की शहीदों को फांसी दिए जाने के खिलाफ कोई भी कारगर कदम नहीं उठाया गया .यही वजह है की देश की वर्तमान पीढ़ी को आज़ादी के संघर्षों का अधुरा इतिहास पढाया जा रहा है .१८५७ का प्रथम स्वाधीनता संग्राम तथा साम्राज्यवाद -पूंजीवाद से आम जनता के सतत संघर्षों के परिणामस्वरूप आधी अधूरी आज़ादी ;आधा अधुरा वतन तो मिला किन्तु भारतीय जन मानस की एकता को तार तार करने बाले तत्वों ने शहीद भगत सिंह के उन विचारों को विस्मृत करने में प्रत्गामी ताकतों का साथ दिया .जिन विचारों के बलबूते एकता के मूलभूत सिद्धांत स्थापित किये गए थे ।
भारतीय जन-गन -मन की वैचारिक एकता के सूत्र समझे बिना न तो साम्प्रदायिकता की वीभत्सता को समझा जा सकता है ;और न ही अंतर रास्ट्रीय साम्राज्वाद के नव उपनिवेशवाद को समझा जा सकता है.शहीद भगतसिंह ने जलियाबाला बाग़ नर संहार ;ग़दर पार्टी का चिंतन और संघर्ष विरासत में पाया था .सोवियत क्रांति की आंच ने गर्माहट दी थी ;उन्होंने गाँधी
वादी आंदोलनों को व्यवस्था परिवर्तन का कारक नहीं माना .देश ब्बिभाजन हेतुउत्तरदाई हर किस्म के साम्प्रदायिक संगठनो उनकी नीतियों और बक्ताव्यों का पुरजोर विरोध उनके विचारों में स्पस्ट झलकता है,
ट्रेड दिस्पुत एक्ट के खिलाफ संघर्षरत लाला लाजपतराय पर निर्मम लाठी चार्ज और परिणामस्वरूप लालाजी समेत अनेकों निहत्थी जनता की अकाल मौत ने हिदुस्तान सोसलिस्ट रिपुब्लिकन आर्मी के पुराधाओं ;चंद्रशेखर आज़ाद बटुकेश्वर दत्त असफाक उल्लाह खान तथा भगतसिंह को असेम्बली में बम फेंकने के लिए मजबूर किया .इससे पहले कामागातामारु नामक जहाज पर सवार सैकड़ों भारतीयों जिनमें अधिकांस तो सिख ही थे ;को अमेरिका ने अपने अन्दर उतरने नहीं दिया जिसके कारन सभी महासागर में कल कवलित हो गए थे .अतः साम्राज्वाद के बारे में क्रांतिकारियों की समझ और पुख्ता होती चली गई ।
शचीन्द्रनाथ सान्याल द्वारा स्थापित हिदुस्तान सोस्लित रेपुब्लिकन आर्मी में सोसलिस्ट शब्द
भगतसिंह ने ही जुद्वाया था .भगतसिंह ने कहा था "

_पूंजीवादी साम्राज्यवाद नए नए रूप धारण कर निर्बल रास्त्रों का शोषण करता है .सम्रज्वादी युद्ध्यों का समापन ही हमारा अंतिम लक्ष्य है .जब तलक दुनिया में सबल रास्त्रो द्वारा निर्बल देशों का शोषण होता रहेगा 'जब तलक सबल समाजों द्वारा निर्बल समाजों का शोषण होता रहेगा .सबल व्यक्ति द्वारा निर्बल और लाचारों का शोषण होता रहेगा ;क्रांति के लिए हमारा संघर्ष जारी रहेगा "
आज भी जो मजदूर किसान क्षत्र नौजवान तथा धर्मनिरपेक्ष जनतांत्रिक शक्तियां भगतसिंह के विचारों को अमली जामा पहनने हेतु कृत संकल्पित हैं ;वे ही सच्चे देशभक्त हैं .

3 टिप्‍पणियां:

  1. tiwari ji aaj aajtak ke daftar par jo hungama hua hai, usse RSS jesi fasivadi sanghtahn ne ye sidh kar diya hai ki unki nazar me consiution or media ki koi izzat nahi hai wo khud ko kanoon se bhi upar samjhten hai, mein is par aapke lekh ka intzaar kar rahi hun, mujhe hindi typing nahi aati hai varna mein khud post karti mein chahti hun aap kuch likhe,iske atirikt mein writer bhi nahi hun fir bhi jo kuch mere paas mere dimaag me aayega mein aapko mail karti rahungi, agar aapko acha lage to or behtar samjhe to us vishay me likh diya karen, ho saka to jawab dijiyega.

    deepa sharma

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  2. aapki twarit tippni ke falitarth ye hin ki aapko sahi galat ka fark malum hai.yhi aapki sampda hai.jab ye vaiyktik sampda avam men ek deergh chhlang laga degi to use varg sangharsh kaha jawega .fasiston ko khurak kon de raha hai ?ye prbhu chavla bahut sayana banta tha .RSS ke muftkhoron kodeshbhakti ka sartficate deta tha .vo chandan mitra member of house of state vana diya gaya to ab bolti band hai.ye tamam mahapatki peetpatrkarita karne bale ab apne dadve men muh chhupae baithai hain.is ghatna par men jarur likhta kintu abhi men apni pustak par kam kar raha hun .punasch aapne mahtwpurn vishay par sangyaan liya dhanybad

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