यदि कोई मारने वाला यह समझता है कि मैं मार रहा हूँ, यदि कोई यह समझता है किमैं मर रहा हूँ ,तो समझ लीजिये कि वे दोंनो ही नहीं जानते ,क्योंकि न यह मरता है और न वः मारता हैं। [कठोपनिषद ,द्व्तीय वल्ली ]
''ब्रहम तथा आत्मा ''--ब्रह्माण्ड तथा पिंड का वर्णन करने के उपरा'त इनके आपस के संबंध आचार्य कहते हैं कि जीवात्मा अणु है ,सूक्छम है. परमात्मा अणु से भी अणु है ,सुक्खं से भी सुक्खं से सूखम है। परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि वह अति सूकमतर है।वास्तव में वह महान से भी महान है। वः गुफा में रहता है किन्तु पहाड़ की गुफा में नहीं। वह तो इस जीव रुपी जंतु की गुफा में छिपा बैठा हैं।
उसे कर्मों के जाल में ,दुनिया के गोरखधंधों में फ,सा हुआ वयक्ति नहीं देख सकता। परमात्मा की महिमा को उस संसार को धारण करने वाला ,उस प्रभु की कृपा से ही जानi जा सकता है..
''हन्ता चेन्मन्यन्ते। ..... नायं हन्ति न हन्यते ;'