शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

[कठोपनिषद ,द्व्तीय वल्ली ]

 यदि  कोई मारने  वाला यह समझता है कि मैं मार रहा हूँ, यदि कोई यह समझता है किमैं मर रहा हूँ ,तो समझ लीजिये कि वे दोंनो ही नहीं जानते ,क्योंकि न यह मरता है और  न वः मारता  हैं।  [कठोपनिषद ,द्व्तीय वल्ली ]


''ब्रहम तथा आत्मा ''--ब्रह्माण्ड तथा पिंड का वर्णन करने  के उपरा'त इनके आपस के संबंध आचार्य कहते हैं कि जीवात्मा अणु है ,सूक्छम है. परमात्मा अणु  से भी अणु है ,सुक्खं से भी सुक्खं से सूखम है। परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि वह अति सूकमतर  है।वास्तव में वह महान से भी महान है। वः गुफा में रहता है किन्तु पहाड़ की गुफा में नहीं। वह तो इस जीव रुपी जंतु की  गुफा में छिपा बैठा हैं। 


उसे कर्मों के जाल में ,दुनिया के गोरखधंधों में फ,सा हुआ वयक्ति  नहीं देख सकता।  परमात्मा की महिमा को उस संसार को धारण करने वाला ,उस प्रभु की कृपा से ही जानi   जा सकता है.. 

''हन्ता चेन्मन्यन्ते। .....    नायं  हन्ति न हन्यते ;' 

गुरुवार, 25 सितंबर 2025

नचिकेता का दूसरा वर

 इस प्रकार  जब ब्रह्मचारी  दोनों आश्रमों के बीच की संधि से गुजरता है ,जब ग्रहस्थि वानप्रस्थ में  प्रवेशब करता है तब वह गृहस्थ और वानप्रस्थ की संधि से होकर गुजरता है तब ओह वानप्रस्थ तथा संन्यास की समृद्धि से गुजरता है। इस प्रकार तीनो अग्नियों को नचिकेत अग्नि कहा जाता है।   

नचिकेता का दूसरा वर

 नचिकेता  का दूसरा वर :  स्वर्गसाधक अग्नि क्या है ? अब नचिकेता दूसरा वर मांगता है। 

स्वर्गलोक में किसी प्रकार का भय नहीं है।  न वहां तूँ  है  और न इन दो से ही तो मनुष्य डरता है। वहां मृत्यु से  भी भय नहीं।  यहां  बृद्धावस्था  से भी भय नहीं। इस प्रकार यमाचार्य ने नचिकेता को लोक की अर्थात स्वर्गलोक की साधक उस आदि अग्नि का उपदेष दिया। 

किसी की आरज़ू में लाजिमी है बेबसी होना।

 तड़प दिल में जरूरी है आंखों में नमी होना,

किसी की आरज़ू में लाजिमी है बेबसी होना।
अब समझ आया कि बेखौफ सच क्यों बोलो?
नहीं चाहिए अब इसमें ज़रा सी भी कमी होना।
अंधेरी रात उस पर भी घुमड़ आयी काली घटा,
जरूरी है अब भयानक बिजलियों का कोंधना।
चिरागों को खबर कर दो ये आंधियों का दौर है,
कोई मतलब नहीं बिना आंखों रोशनी का होना ।
हिंदुओ एक हो जाओ कि अभी भी वक्त बाकी है
जरूरी है इतिहास से सबक सीखकर सजग होना।
जिनके जुल्म से अतीत में बहते रहे दरिया लहू के,
किसीभी हालमें बाजिब नहीं विश्वास उनपर करना
नहीं तुम पोंछ सकते गर किसी की आंख के आंसू,
गले मिल साथ में रो लो यही है ज़िन्दगी का होना।
लिखा था 'आहत*' होना मेरी तक़दीर में शायद,
बहुत मुश्किल हुआ है आदमी का आदमी होना।
*श्रीराम तिवारी