हम एक दूसरे के साथ कर्मों की डोरी से
बँधे हुए हैं!
अपने कर्मों के लेन-देन का हिसाब पूरा करने के लिए यहां आते हैं!
कोई दोस्त औरकोई रिश्तेदार बनकर आ जाता है!
जैसे ही प्रारब्ध के कर्मों का हिसाबख़त्म हो जाता है,
हम एक-दूसरे सेअलग होकर अपने रास्ते पर चल देते हैं!
यह दुनिया एक रैनबसेरा की तरह है!जहां सब मुसाफ़िर रात को इकट्ठे होते हैं
सुबह होते ही अपनी राह चल देते हैं!हम सभी पंछियों की तरह हैं,जो सांझ होने पर पेड़ पर आ बैठते हैं
और सूरज की पहली किरण आते ही अपनी-अपनी राह आसमान में उड़ जाते हैं! "
See insights
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें