मृत्यु है, इसलिए, ईश्वर, भगवान, परमात्मा है, अध्यात्म है, अन्यथा, इनमें से कोई नहीं होता, और, मजे की बात, ये है कि, मृत्यु आने से पहले, यदि कोई, मृत्यु से परिचय करने की ठान ले, तो, उसे पता चलता है, कि, इस अस्तित्व में, मृत्यु जैसी कोई चीज है ही नहीं।
परिचय होता है, तो, सिर्फ और सिर्फ जीवन से। पता लगता है, कि, यहां जीवन ही जीवन है, बस, मृत्यु जैसा कुछ है ही नहीं। मृत्यु तो सिर्फ हमारे अज्ञान की कल्पना थी, परिणाम थी, असल नहीं।
स्वयं के अंदर उतरकर, स्वयं की ओर यात्रा, अंतर्यात्रा करने पर, पता चला, कि, शरीर मेरा होना नहीं है, बल्कि, मेरे असल स्वरूप का मात्र cover है, मात्र वस्त्र जैसा है, और, असल स्वरूप तो शुद्ध चेतना है। हमारा होना तो विशुद्ध चैतन्य है, जिसकी कोई मृत्यु कभी संभव नहीं। वह है और है, बस।
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