गोस्वामी तुलसीदास हिंदुओं के लिए सबसे बड़े श्री रामभक्त संत हुए हैं,जिन्होंने अवधी,बुदेली,संस्कृत मिश्रित तत्कालीन लोकभाषा में रामचरितमानस ग्रंथ लिखकर श्रीराम के उदात्त एवं शीलवान चरित्र को उत्तर भारत के घर -घर पहुंचा दिया.
रविवार, 14 अप्रैल 2024
लखनऊ के मिर्जा हसन नासिर - ने श्री रामस्तुति में लिखा है -
तुलसी के सबसे अच्छे मित्रों में से एक रहीम खानखाना कौन हैं ?
रहीम मुसलमान थे, अकबर के सेनापति थे और कवि भी थे।
सुरतिय-नरतिय-नागतिय-अस चाहत सब कोय!
बदले में सेनापति रहीम ने उस स्त्री को खूब सारा धन दिया और दोहा पूरा करके यूं भेजा:-
गोद लिए हुलसी फिरे ,तुलसी सौ सुत होय।।
...
बेशक इस्लामी राज में तुलसी को अकबर ने सताया नही।
उन्हें सताया काशी के कट्टर पंडितों ने, इसलिए कि उन्होंने रामचरितमानस लोकभाषा में क्यों लिखी? संस्कृत में क्यों नही?
एक हिन्दू संत का महात्म्य फैल रहा था लेकिन इससे अकबर को कोई परेशानी नही हुई.
तुलसी और रहीम की मित्रता से आपने क्या सीखा?
इन दिनों कुछ लोगों को लगता है कि तलवार दिखाकर, जबरन जय श्रीराम बुलवा कर वे राम का और हिन्दू धर्म का सम्मान कर रहे?
वे मूर्ख हैं जो अपनी ही जड़ें काट रहे हो. उन्हें न धर्म का पता है न संस्कृति का. तुलसी ने ही लिखा है--
रामहि केवल प्रेम पियारा!
जान लेइ जो जाननिहारा।।
और नकली रामभक्त क्या कर रहे?
जिस चरित्र में इतना आकर्षण है जिससे मुसलमान कवि तक खिंचे चले आते थे, उन्हें क्या बना रहे हो?
अमीर खुसरो,रहीम, रसखान,नजीर अकबराबादी, आलम सहित दर्जनों कवि होंगे जिन्होंने कृष्ण के प्रेम में डूबकर कविताएं लिखी हैं. उन्हें पैगम्बर तक माना है.
क्या उन्होंने ऐसा तलवार के डर से किया है? नही; ये कृष्ण और राम के चरित्र का आकर्षण था.
सैय्यद इब्राहिम रसखान बन जाते हैं और लिखते हैं कि--
"मानुष हों तो वही रसखान,बसों नित गोकुल गांव के ग्वारन।
जो पशु हों तो कहा बस मेरो,चरों नित नंद की धेनु मझारन।।
जो खग हों तो बसेरो करों नित कालिंदी कूल कदंब की डारन ।
पाहन हों तो वही गिरि को धरयो कर क्षत्र पुरंदर कारन।।"
"यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य बनूँ तो यही रसखान बनूँ, अगर पत्थर बनूँ तो वही पत्थर बनूँ, जिसे कृष्ण ने उंगली पर धारण कया था, गाय बनूँ तो वही जिसे कृष्ण चराने जाते थे.
एक मुसलमान कवि राज पाट से निकल अन्तिम सांस वृंदावन में लेता है! क्या उन्हें किसी का डर था? उस समय तो इस्लामी शासन ही था!
*****
नजीर अकबराबादी ने जाने कितने पद कृष्ण पर लिखे हैं-
‘तू सबका ख़ुदा, सब तुझ पे फ़िदा, अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
हे कृष्ण कन्हैया, नंद लला, अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
तालिब है तेरी रहमत का, बन्दए नाचीज़ नज़ीर तेरा
तू बहरे करम है नंदलला, ऐ सल्ले अला, अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी.’
...
संभवत: पहली बार अकबर के जमाने में,याने (1584-89) में वाल्मीकि रामायण का फारसी में पद्यानुवाद हुआ. शाहजहाँ के समय 'रामायण फौजी' के नाम से गद्यानुवाद हुआ.
औरंगजेब के युग में चंद्रभान बेदिल ने फारसी में पद्यानुवाद किया. तर्जुमा-ए-रामायन एवं अन्य रामायनों की रचना वाल्मीकि रामायण के आधार पर की गई.
मगर जहाँगीर के जमाने में मुल्ला मसीह ने 'मसीही रामायन' नामक एक मौलिक रामायण की रचना की.
पाँच हजार छंदों वाली इस रामायण को सन् 1888 में मुंशी नवल किशोर प्रेस लखनऊ से प्रकाशित भी किया गया था.
गोस्वामी तुलसीदास के सखा अब्दुल रहीम खान-ए-खाना ने कहा है:
'रामचरित मानस हिन्दुओं के लिए ही नहीं मुसलमानों के लिए भी आदर्श है.'
"रामचरित मानस विमल,संतन जीवन प्राण,
हिन्दुअन को वेदसम,यवनहिं प्रगट कुरान'"
फरीद, रसखान, आलम रसलीन, हमीदुद्दीन नागौरी, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती आदि कई रचनाकारों ने राम की काव्य-पूजा की है.
कवि खुसरो ने भी तुलसीदासजी से 250 वर्ष पूर्व अपनी मुकरियों में राम को नमन किया है.
सन् 1860 में प्रकाशित रामायण के उर्दू अनुवाद की लोकप्रियता का यह आलम रहा है कि 8 साल में उसके 16 संस्करण प्रकाशित करना पड़े.
वर्तमान में भी अनेक उर्दू रचनाकार राम के व्यक्तित्व की खुशबू से प्रभावित होकर अपने काव्य के जरिए उसे चारों तरफ बिखेर रहे हैं.कुछ तो धर्म वापिसी पर जोर दे रहे हैं। नाजिया इलाही खान, रिजवान अहमद अंसारी,और स्व तारिक फतेह की आस्था सनातन धर्म में रमण करती है।अब्दुल रशीद खाँ, नसीर बनारसी, मिर्जा हसन नासिर, दीन मोहम्मद्दीन इकबाल कादरी,पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के शायर जफर अली खाँ और कुछ युवा पत्रकार आदि प्रमुख रामभक्त रचनाकार शिद्दत से अपनी जड़ें सनातनधर्म -आर्य सभ्यता और संस्कृति में तलाश रहे हैं.
लखनऊ के मिर्जा हसन नासिर - उन्होंने श्री रामस्तुति में लिखा है -
कंज-वदनं दिव्यनयनं मेघवर्णं सुन्दरं।
दैत्य दमनं पाप-शमनं सिन्धु तरणं ईश्वरं।।
गीध मोक्षं शीलवन्तं देवरत्नं शंकरं।
कोशलेशम् शांतवेशं नासिरेशं सिय वरम्।।
...
ये सब मोदी सरकार के डर से नही हुआ है.
कुछ सनातन विरोधी दल वोट की राजनीति के लिए CAA/ NRC का विरोध कर रहे हैं,हर मुद्दे पर मोदी सरकार का विरोध करते रहते हैं।और कुछ कट्टर हिंदुत्ववादी,संस्कृति रक्षा का मुखौटा लगाकर इस देश की संस्कृति की जड़ें खोद रहे हैं ।
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भारतीय दर्शन का सारतत्व:-
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4Akshat Tiwari, Opbhatt and 2 othersजिन्होंने मेरी निंदा और आलोचना की है,उन्हें बहुत -बहुत धन्यवाद!
मैं अपने मित्रों,बंधु-बांधवों और हितैषियों को सलाह इसलिए नही देता कि मैं उन सभी से ज्यादा समझदार हूँ!अपितु मैं इस ख्याल से अपने अनुभव साझा करता हूंँ कि शायद मैंने जिंदगी में उनसे ज्यादा गलतियां की हैं और उन गलतियों से अत्यंत उत्साहबर्धक सबक सीखा है! जिंदगी में जिन्होंने मेरी निंदा और आलोचना की है,उन्हें बहुत -बहुत धन्यवाद!
क्योंकि कबीर बाबा कह गये हैं कि :-
चुनाव प्रचार फीका नजर आता है।
आजकल सिद्धांत विहीन नेताओं का झुण्ड,
सडकों गलियों बाजारों से शांत गुजर जाता है।
पांच साल गायब रहने वाला सांसद भी अब,
वोट के लिये धूप में सड़कों पर नजर आता है।।
बंगाल में सैमल पलाश कचनार मानो ऊब गये,
ममता का शासन अब रक्तरंजित नजर आता है।।
उमड़ रही भीड़ गावों,कस्बों,शहरों,होटलों में,
समस्त राजनीतिक वर्ग आक्रांत नजर आता है!
सड़कों पर ट्रेफिक जाम करती मजहबी भीड़,
कभी कभी तो मौत का मंजर नजर आता है!!
फिजाओं में अलश उमस बेमौसम बरसात ऐंसी,
फूल पत्ते तितलियों पर कहकशां नजर जाता है!
दिन हो या रात सुबह हो या शाम हर नागरिक को,
खयालों में सिर्फ एक नेता का चेहरा नजर आता है।।
:-श्रीराम तिवारी
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4Vivek Moghe, Jagadishwar Chaturvedi and 2 othersआर्यभट्ट
दुनिया को गणित की मूल अवधारणा शून्य से परिचित करा कर आधुनिक विज्ञान को आधार देने वाले महान गणितज्ञ एवं खगोल शास्त्री आर्यभट्ट जी की जयंती पर उन्हें शत्-शत् नमन।
आचार्य आर्यभट्ट प्राचीन समय के महान गणितज्ञ व खगोलशास्त्री थे। बीजगणित का प्रथम बार उपयोग आचार्य आर्यभट्ट ने ही किया था। अपनी प्रसिद्ध रचना "आर्यभटिया" में आचार्य श्री ने बीजगणित, अंकगणित और त्रिकोणमिति के 33 नियम बताये हैं। पाई ( pi) के मान का दशमलव के पाँच अंकों तक अनुमान इन्होंने ही लगाया था।
पृथ्वी गोल है और अपने धुरी में घूमती है, जिसके कारण दिन व रात होता है। ये सिद्धांत आचार्य आर्यभट्ट ने लगभग 1200 साल पहले प्रतिपादित कर दिया था। आचार्य आर्यभट्ट ने ये भी बताया था कि पृथ्वी गोल है औऱ इसकी परिधि 24853 मील है। आचार्य आर्यभट्ट ने ये भी बताया था कि चंद्रमा सूर्य की रोशनी से प्रकाशित होता है। आचार्य आर्यभट्ट ने यह सिद्ध किया था कि 1 वर्ष में 366 नही बल्कि 365.2951 दिन होते हैं।
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8You, Anamika Tiwari, Rawat Sangita and 5 others2
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