शनिवार, 21 नवंबर 2020

बढ़ती उम्र पर 'जॉर्ज कार्लिन' की सलाह:-

(अद्भुत संदेश - अंत तक जरूर पढ़ें नहीं तो आप अपने जीवन का एक दिन गवाँ देंगे।)

कैसे बने रहें - चिरयुवा?
1. फालतू की संख्याओं को दूर फेंक आइए। जैसे- उम्र, वजन, और लंबाई। इसकी चिंता डॉक्टर को करने दीजिए। इस बात के लिए ही तो आप उन्हें पैसा देते हैं।
2. केवल हँसमुख लोगों से दोस्ती रखिए। खड़ूस और चिड़चिड़े लोग तो आपको नीचे गिरा देंगे।
3. हमेशा कुछ सीखते रहिए। इनके बारे में कुछ और जानने की कोशिश करिए - कम्प्यूटर, शिल्प, बागवानी, आदि कुछ भी। चाहे रेडियो ही। दिमाग को निष्क्रिय न रहने दें। खाली दिमाग शैतान का घर होता है और उस शैतान के परिवार का नाम है - अल्झाइमर मनोरोग।
4. सरल व साधारण चीजों का आनंद लीजिए।
5. खूब हँसा कीजिए - देर तक और ऊँची आवाज़ में।
6. आँसू तो आते ही हैं। उन्हें आने दीजिए, रो लीजिए, दुःख भी महसूस कर लीजिए और फिर आगे बढ़ जाइए। केवल एक व्यक्ति है जो पूरी जिंदगी हमारे साथ रहता है - वो हैं हम खुद। इसलिए जबतक जीवन है तबतक 'जिन्दा' रहिए।
7. अपने इर्द-गिर्द वो सब रखिए जो आपको प्यारा लगता हो - चाहे आपका परिवार, पालतू जानवर, स्मृतिचिह्न-उपहार, संगीत, पौधे, कोई शौक या कुछ भी। आपका घर ही आपका आश्रय है।
8. अपनी सेहत को संजोइए। यदि यह ठीक है तो बचाकर रखिए, अस्थिर है तो सुधार करिए, और यदि असाध्य है तो कोई मदद लीजिए।
9. अपराध-बोध की ओर मत जाइए। यदि कोई भूल चूक या जाने अनजाने अपराध हुआ हो तो मन ही मन तौबा कीजिये!
10. जिन्हें आप प्यार करते हैं उनसे हर मौके पर बताइए कि आप उन्हें चाहते हैं; और हमेशा याद रखिए कि जीवन की माप उन साँसों की संख्या से नहीं होती जो हम लेते और छोड़ते हैं बल्कि उन लम्हों से होती है जो हमारी सांस लेकर चले जाते हैं
जीवन की यात्रा का अर्थ यह नहीं कि अच्छे से बचाकर रखा हुआ आपका शरीर सुरक्षित तरीके से श्मशान या कब्रगाह तक पहुँच जाय। बल्कि आड़े-तिरछे फिसलते हुए, पूरी तरह से इस्तेमाल होकर, सधकर, चूर-चूर होकर यह चिल्लाते हुए पहुँचो - वाह यार, मजा आ गया क्या शानदार यात्रा थी?💐

सोमवार, 9 नवंबर 2020

*बच्चों को हुनर सीखने की सीख दीजिये*

 यह ओव्जर्व किया गया है कि मुसलमान कभी बेरोजगारी का रोना नहीं रोते और न उसके लिए हड़ताल करते हैं। भले ही वे मजहबी साम्प्रदायिक झगड़ों के लिए तैयार रहते हैं,किन्तु हिन्दुओं की तरह बेरोजगारी का रोना नहीं रोया करते।

साथ हीबेरोजगारी को लेकर *आत्महत्या* जैसा कृत्य इस कौम में न के बराबर है !
जबकि *हिन्दुओं* के बच्चे सरकार को कोसते हैं,बेरोजगारी का रोना रोते हैं और माँ बाप अपनी औलाद की बेरोजगारी परमाथा कूटते हैं।
कारण क्या है नीचे पढ़िये 👇
उसका कारण बहुत साधारण है ।
एक जीवंत उदाहरण मैं आपको बता रहा हूँ - 😳
पड़ोस का एक लड़का कल मेरे पास आया और बोला- भैया मैं बेरोजगार हूँ, कहीं नौकरी नहीं मिल रही है, बहुत परेशान हूँ। आप ही बताइये मोदी जी ने कहा था कि हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार दूँगा, सात साल होने को जा रहे है, कुछ भी नहीं मिला। उसने अपनी अक्ल मुताबिक *GDP* की बात की सो अलग
मैंने उससे कुछ प्रश्न पूछे और सारे प्रश्नों का जबाब इस प्रकार रहा...
तुम तो टेलरिंग/कटिंग (दर्ज़ी) का काम कर लो ?
नहीं !
लेडीज़ ब्यूटी पार्लर पर काम करोगे ?
नहीं !
तो मर्दों के नाई (बार्बर) बन जाओ ?
नहीं !
लांड्री में काम करोगे ?
नहीं !
हलवाई का काम कर लो?
नहीं !
बढ़ई (कारपेंटर) का काम सीखोगे ?
नहीं !
लुहार के यहां काम करोगे ?
नहीं !
खराद मशीन पर काम करोगे ?
नहीं !
वेल्डिंग कर सकते हो?
नहीं !
ग्राफिक डिज़ाइन का कुछ काम आता है ?
नहीं !
कबाड़ी का काम कर लो ?
नहीं !
सब्जी/फ्रूट का धंधा कर लो ?
-नहीं !
जूस की दुकान पर काम करोगे ?
नहीं !
आटा चक्की पर काम करोगे?
नहीं !
चाय, पोहे, पकोड़े की दुकान पर काम करोगे ?
नहीं !
किराने की दुकान पर काम करोगे ?
-नहीं !
रंगाई पुताई कर लोगे ?
नहीं !
मेडिकल स्टोर के काम का कुछ ज्ञान है ?
नहीं !
कार, ट्रक आदि चला लोगे ?
नहीं !
बाइक रिपेरिंग आती है ?
नहीं !
कम्प्यूटर चलाना आता है ?
नहीं !
अकाउंट का काम आता है ?
नहीं !
प्लम्बिंग का काम कर सकते हो?
नहीं !
राज मिस्त्री के साथ काम कर सकते हो?
नहीं !
खेती बागवानी का काम करोगे ?
नहीं !
पंचर बना लोगे ?
नहीं !
होटल या रेस्टोरेंट में काम करोगे ?
नहीं !
बिजली रिपेरिंग, पंखा, AC, गीज़र, कूलर, वाशिंग मशीन रिपेरिंग कर लोगे ?
नहीं !
कपड़े की दुकान पर काम कर सकते हो ?
किराना दुकान पर काम कर सकते हो ?
नहीं !
सिलाई या टेलरीग का काम जानते हो ?
नहीं !
पान मसाला गुटखा बेचोगे ?
नहीं !
मजदूरी तो कर ही सकते हो ?
-नहीं !
फिर मैंने पूछा तुमको काम क्याआता है ?
वो बोला जी मैं पढ़ा लिखा हूँ, BA पास हूँ। ये सब काम मेरे लिए नहीं, मुझे तो बस सरकारी क्लर्क की नौकरी चाहिए। वर्ना मेरी शादी भी नहीं होगी। पढ़े लिखे होने के बाबजूद मुझे कोई काम नहीं मिल रहा है ।
वो बोला मोदी जी ने हम जैसे अनेक युवाओं को बेरोज़गार कर दिया ।
तब से दिमाग़ खराब है मेरा ।
ये वह लोग हैं जिनको मोदी तो क्या पूरी दुनिया में कोई नौकरी नहीं दे सकता। आज के युवा मेहनत करने के बजाए सरकार को गाली देना बेहतर विकल्प मानते हैं ।।
मैं बोला तुमको ही कुछ काम करना नहीं आता, कमी काम करने वालों की है काम की नहीं, काम चारों तरफ बिखरे पड़े हैं, और उनको मुस्लिम लड़के झपट रहे हैं । तुम लोग बस सरकारी या किसी 10 से 5 वाली नौकरी के इंतज़ार में बैठे हो, और बेरोज़गारी का रोना रो रो के मोदी का स्यापा कर रहे हो । मोदी के "स्किल इंडिया" का लाभ मुस्लिम लड़के उठा रहे हैं और हिन्दू लड़के सरकारी या गैर सरकारी परन्तु नौकरी के इंतज़ार में बैठे रहते हैं ।
अपने बच्चों को शिक्षित करने के साथ ही हुनरमंद भी बनाइए।
अपने अंदर यह सोच हटा दीजिए कि "लोग क्या कहेंगे" या "लोग क्या सोचेंगे' क्योंकि लोग क्या कहेंगे यह सबसे खतरनाक वाक्य है जो हमें बर्बाद कर देता है
बच्चों को समझाइये कि कोई भी काम छोटा नहीं होता। धीरूभाई अंबानी ने पहले पैट्रोल पम्प पर भी नौकरी की थी, और शुरू शुरू में पुराने कपड़ों के खरीदने बेचने का व्यापार किया था।
अगर वो सरकारी नौकरी का इंतज़ार करते रहते तो, किसी सरकारी विभाग में क्लर्क/मैनेजर बन कर ही रह जाते, और रिलायंस कम्पनी न बनती ।
अटल बिहारी वाजपेई जी जब पाकिस्तान बस लेकर गए थे तब उनके साथ फिल्म अभिनेता देवानंद भी गए थे और देवानंद जो अपनी डिग्री पाकिस्तान से पलायन के समय नहीं ले पाए थे वह डिग्री जब उन्हें दी गई तब उन्होंने कहा कि आज मैं जो कुछ हूं अपनी इस छूटी हुई डिग्री के कारण हूं
क्योंकि मेरे भाई मुझे नेवी में क्लर्क की नौकरी दिलवा रहे थे क्योंकि मैं अपनी डिग्री पाकिस्तान ही भूल गया था इसीलिए मुझे वह क्लर्क की नौकरी नहीं मिली शुरू में मैं मायूस रहा कि संघर्ष किया और आज मैं इस मुकाम पर हूं
अगर मेरे पास यह डिग्री उस वक्त होती तो मैं आज नेवी का क्लर्क होकर मर जाता मुझे कोई नहीं पहचानता
*बच्चों को हुनर सीखने की सीख दीजिये*
हमें भी अपने समाज के बच्चों को *पढ़ाई के अलावा'* कुछ ना कुछ *हुनर* भी सीखने के लिए ध्यान अवश्य दिलाना चाहिए।
समाज का हर व्यक्ति जब कुछ ना कुछ *हुनर* जानने वाला होगा, *बेरोजगारी* की समस्या तभी हल होगी ।
*यह संदेश हिन्दू स्वजनों तक पहुँचायें*
*किसी ने भेजा था सही लगा*
*सोचने लायक है*

रविवार, 8 नवंबर 2020

*ईमानदारी और सच्चाई की दौलत*

सऊदी अरब में बुखारी नामक एक विद्वान रहते थे। वह अपनी ईमानदारी के लिए मशहूर थे। एक बार वह समुद्री जहाज से लंबी यात्रा पर निकले। उन्होंने सफर के खर्च के लिए एक हजार दीनार अपनी पोटली में बांध कर रख लिए। यात्रा के दौरान बुखारी की पहचान दूसरे यात्रियों से हुई। बुखारी उन्हें ज्ञान की बातें बताते।

एक यात्री से उनकी नजदीकियां कुछ ज्यादा बढ़ गईं। एक दिन बातों-बातों में बुखारी ने उसे दीनार की पोटली दिखा दी। उस यात्री को लालच आ गया। उसने उनकी पोटली हथियाने की योजना बनाई।
एक सुबह उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘हाय मैं मार गया। मेरा एक हजार दीनार चोरी हो गया।’ वह रोने लगा। जहाज के कर्मचारियों ने कहा, ‘तुम घबराते क्यों हो। जिसने चोरी की होगी, वह यहीं होगा। हम एक-एक की तलाशी लेते हैं। वह पकड़ा जाएगा।’
यात्रियों की तलाशी शुरू हुई।
जब बुखारी की बारी आई तो जहाज के कर्मचारियों और यात्रियों ने उनसे कहा, ‘अरे साहब, आपकी क्या तलाशी ली जाए। आप पर तो शक करना ही गुनाह है।’ यह सुन कर बुखारी बोले, ‘नहीं, जिसके दीनार चोरी हुए है उसके दिल में शक बना रहेगा। इसलिए मेरी भी तलाशी भी जाए।’ बुखारी की तलाशी ली गई। उनके पास से कुछ नहीं मिला।
दो दिनों के बाद उसी यात्री ने उदास मन से बुखारी से पूछा, ‘आपके पास तो एक हजार दीनार थे, वे कहां गए?’ बुखारी ने मुस्करा कर कहा, ‘उन्हें मैंने समुद्र में फेंक दिया। तुम जानना चाहते हो क्यों? *क्योंकि मैंने जीवन में दो ही दौलत कमाई थीं- एक ईमानदारी और दूसरा लोगों का विश्वास। अगर मेरे पास से दीनार बरामद होते और मैं लोगों से कहता कि ये मेरे हैं तो लोग यकीन भी कर लेते लेकिन फिर भी मेरी ईमानदारी और सच्चाई पर लोगों का शक बना रहता। मैं दौलत तो गंवा सकता हूं लेकिन ईमानदारी और सच्चाई को खोना नहीं चाहता।’*
*Moral of the Story : इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि ईमानदारी और सच्चाई असली दौलत है और इन्हें जीवन में कभी नहीं खोना चाहिए।*

*हिन्दुओं* के बच्चे ही रोना रोते हैं *बेरोजगारी*

 *मुसलमान कभी बेरोजगारी का रोना नहीं रोते*

साथ ही *आत्महत्या* जैसा कृत्य यह लोग ना के बराबर करते हैं।
जबकि *हिन्दुओं* के बच्चे ही रोना रोते हैं *बेरोजगारी* का
कारण क्या है नीचे पढ़िये 👇
उसका कारण बहुत साधारण है ।
एक जीवंत उदाहरण मैं आपको बता रहा हूँ - 😳
पड़ोस का एक लड़का कल मेरे पास आया और बोला- भैया मैं बेरोजगार हूँ, कहीं नौकरी नहीं मिल रही है, बहुत परेशान हूँ। आप ही बताइये मोदी जी ने कहा था कि हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार दूँगा, सात साल होने को जा रहे है, कुछ भी नहीं मिला। उसने अपनी अक्ल मुताबिक *GDP* की बात की सो अलग
मैंने उससे कुछ प्रश्न पूछे और सारे प्रश्नों का जबाब इस प्रकार रहा...
तुम तो टेलरिंग/कटिंग (दर्ज़ी) का काम कर लो ?
नहीं !
लेडीज़ ब्यूटी पार्लर पर काम करोगे ?
नहीं !
तो मर्दों के नाई (बार्बर) बन जाओ ?
नहीं !
लांड्री में काम करोगे ?
नहीं !
हलवाई का काम कर लो?
नहीं !
बढ़ई (कारपेंटर) का काम सीखोगे ?
नहीं !
लुहार के यहां काम करोगे ?
नहीं !
खराद मशीन पर काम करोगे ?
नहीं !
वेल्डिंग कर सकते हो?
नहीं !
ग्राफिक डिज़ाइन का कुछ काम आता है ?
नहीं !
कबाड़ी का काम कर लो ?
नहीं !
सब्जी/फ्रूट का धंधा कर लो ?
-नहीं !
जूस की दुकान पर काम करोगे ?
नहीं !
आटा चक्की पर काम करोगे?
नहीं !
चाय, पोहे, पकोड़े की दुकान पर काम करोगे ?
नहीं !
किराने की दुकान पर काम करोगे ?
-नहीं !
रंगाई पुताई कर लोगे ?
नहीं !
मेडिकल स्टोर के काम का कुछ ज्ञान है ?
नहीं !
कार, ट्रक आदि चला लोगे ?
नहीं !
बाइक रिपेरिंग आती है ?
नहीं !
कम्प्यूटर चलाना आता है ?
नहीं !
अकाउंट का काम आता है ?
नहीं !
प्लम्बिंग का काम कर सकते हो?
नहीं !
राज मिस्त्री के साथ काम कर सकते हो?
नहीं !
खेती बागवानी का काम करोगे ?
नहीं !
पंचर बना लोगे ?
नहीं !
होटल या रेस्टोरेंट में काम करोगे ?
नहीं !
बिजली रिपेरिंग, पंखा, AC, गीज़र, कूलर, वाशिंग मशीन रिपेरिंग कर लोगे ?
नहीं !
कपड़े की दुकान पर काम कर सकते हो ?
किराना दुकान पर काम कर सकते हो ?
नहीं !
सिलाई या टेलरीग का काम जानते हो ?
नहीं !
पान मसाला गुटखा बेचोगे ?
नहीं !
मजदूरी तो कर ही सकते हो ?
-नहीं !
फिर मैंने पूछा तुमको काम क्याआता है ?
वो बोला जी मैं पढ़ा लिखा हूँ, BA पास हूँ। ये सब काम मेरे लिए नहीं, मुझे तो बस सरकारी क्लर्क की नौकरी चाहिए। वर्ना मेरी शादी भी नहीं होगी। पढ़े लिखे होने के बाबजूद मुझे कोई काम नहीं मिल रहा है ।
वो बोला मोदी जी ने हम जैसे अनेक युवाओं को बेरोज़गार कर दिया ।
तब से दिमाग़ खराब है मेरा ।
ये वह लोग हैं जिनको मोदी तो क्या पूरी दुनिया में कोई नौकरी नहीं दे सकता। आज के युवा मेहनत करने के बजाए सरकार को गाली देना बेहतर विकल्प मानते हैं ।।
मैं बोला तुमको ही कुछ काम करना नहीं आता, कमी काम करने वालों की है काम की नहीं, काम चारों तरफ बिखरे पड़े हैं, और उनको मुस्लिम लड़के झपट रहे हैं । तुम लोग बस सरकारी या किसी 10 से 5 वाली नौकरी के इंतज़ार में बैठे हो, और बेरोज़गारी का रोना रो रो के मोदी का स्यापा कर रहे हो । मोदी के "स्किल इंडिया" का लाभ मुस्लिम लड़के उठा रहे हैं और हिन्दू लड़के सरकारी या गैर सरकारी परन्तु नौकरी के इंतज़ार में बैठे रहते हैं ।
अपने बच्चों को शिक्षित करने के साथ ही हुनरमंद भी बनाइए।
अपने अंदर यह सोच हटा दीजिए कि "लोग क्या कहेंगे" या "लोग क्या सोचेंगे' क्योंकि लोग क्या कहेंगे यह सबसे खतरनाक वाक्य है जो हमें बर्बाद कर देता है
बच्चों को समझाइये कि कोई भी काम छोटा नहीं होता। धीरूभाई अंबानी ने पहले पैट्रोल पम्प पर भी नौकरी की थी, और शुरू शुरू में पुराने कपड़ों के खरीदने बेचने का व्यापार किया था।
अगर वो सरकारी नौकरी का इंतज़ार करते रहते तो, किसी सरकारी विभाग में क्लर्क/मैनेजर बन कर ही रह जाते, और रिलायंस कम्पनी न बनती ।
अटल बिहारी वाजपेई जी जब पाकिस्तान बस लेकर गए थे तब उनके साथ फिल्म अभिनेता देवानंद भी गए थे और देवानंद जो अपनी डिग्री पाकिस्तान से पलायन के समय नहीं ले पाए थे वह डिग्री जब उन्हें दी गई तब उन्होंने कहा कि आज मैं जो कुछ हूं अपनी इस छूटी हुई डिग्री के कारण हूं
क्योंकि मेरे भाई मुझे नेवी में क्लर्क की नौकरी दिलवा रहे थे क्योंकि मैं अपनी डिग्री पाकिस्तान ही भूल गया था इसीलिए मुझे वह क्लर्क की नौकरी नहीं मिली शुरू में मैं मायूस रहा कि संघर्ष किया और आज मैं इस मुकाम पर हूं
अगर मेरे पास यह डिग्री उस वक्त होती तो मैं आज नेवी का क्लर्क होकर मर जाता मुझे कोई नहीं पहचानता
*बच्चों को हुनर सीखने की सीख दीजिये*
हमें भी अपने समाज के बच्चों को *पढ़ाई के अलावा'* कुछ ना कुछ *हुनर* भी सीखने के लिए ध्यान अवश्य दिलाना चाहिए।
समाज का हर व्यक्ति जब कुछ ना कुछ *हुनर* जानने वाला होगा, *बेरोजगारी* की समस्या तभी हल होगी !

रविवार, 1 नवंबर 2020

मज़हबी जज़्बात और इंसानियत...........

 फ़र्ज़ कीजिये आप चाय का कप हाथ में लिये खड़े हैं और कोई आपको धक्का दे देता है तो क्या होता है? आपके कप से चाय छलक जाती है। अगर आपसे पूछा जाए कि आपके कप से चाय क्यों छलकी तो आपका जवाब होगा कि मुझे धक्का दिया।

ग़लत जवाब! सही जवाब ये है कि आपके कप में चाय थी इसलिये छलकी। आपके कप से वही छलकेगा जो उसमें है। इसी तरह जब ज़िंदगी में हमें धक्के लगते हैं लोगों के व्यवहार से, या हमारे मज़हब पर कोई टिप्पणी की जाती है हमारी मज़हबी जज़्बात को तकलीफ पहुंचती है तो उस वक़्त हमारी असलियत ही छलकती है।
आपका असल उस वक़्त तक सामने नहीं आता जब तक आपको धक्का ना लगे। तो देखना है कि जब आपको धक्का लगा या आपके मज़हबी जज़्बात को ठेस पहुंची तो क्या छलका; सब्र, ख़ामोशी, रवादारी, सम्मान, इंसानियत या जुनून, गुस्सा, नफरत या हिंसा।
आपके अंदर से वही छलकेगा जो आपने भरा हुआ है अपने अंदर एक काल्पनिक खुदा और उसके तथाकथित पैगंबर के नाम पर। आपने सिर्फ नफरत करना सीखा है। आप इंसानियत और मुहब्बत का दावा करते हैं लेकिन वे सारे झूठे साबित हुए हैं हर बार।
मज़हब के नाम पर आपने अपने अंदर नफरत, गुस्सा भरा हुआ है। आप मज़हब से बाहर निकल कर सोचने समझने की जहमत नहीं करना चाहते।
इंतज़ार करें उस दिन का जब दुनिया कहेगी कि इंसान और मुसलमान दोनों अलग अलग हैं।

भारत राष्ट्र को एक करने की वास्तविक तस्वीर यों है कि

 स्वाधीनता संग्राम के दौरान एक तरफ शहीद बाघा जतीन,शहीद ऊधमसिंह, स्व.अशफाक उल्लाह खान,लाल,बाल,पाल,शहीद राजगुरू भगतसिंह,चंद्रशेखर आजाद ,सुभाषचंद्र बोस जैसे सैकड़ों क्रांतिकारी मजदूर किसान और कम्युनिस्ट लगातार अंग्रेजों से लड़ते लड़ते शहीद होते रहे! स्वतंत्रता की मांग को लेकर शहीद होते रहे!

दूसरी ओर महात्मा गांधी,गोपाल कृष्ण गोखले,गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर,मदनमोहन मालवीय और पंडित मोतीलाल नेहरू जैसे लोग अहिंसा की राह पर 'संपूर्ण अखंड स्वतंत्र भारत' के लिये निरंतर आजीवन निरंतर संघर्ष करते रहे!
चूँकि मुल्क की आजादी और बटवारे के बाद देशी रियासतों के विलीनीकरण का मुद्दा गृह मंत्रालय के जिम्मे था,जो सरदार पटैल के अधीन था और जिसे रियासतों की जनता एवं कांग्रेस,कम्युनिस्ट और हिंदुवादी संगठनों का भरपूर समर्थन हासिल था! चूंकि गृह मंत्रालय सरदार पटैल के पास था,अत: देशी रियासतों को विलय करने के निमित्त अंग्रेजों द्वारा पहले से तैयार चार्टर पर सरदार पटैल को सिर्फ दस्तखत करने थे,यदि यह सौभाग्य किसी और को मिला होता तो वह भी यह काम सहज ही कर लेता!जैसा कि दो सौ से ज्यादा रियासतों को जोड़कर मि.मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान बनाया!उनकी या पटैल की जगह XYZ कोई और होता,तो उसे भी यह सौभाग्य प्राप्त होता!
कहनेका तात्पर्य यह है कि राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया में हजारों नर नारी शहीद हुए और लाखों युवा अंग्रेजी हुकुमत के शिकार हुए,हजारों ने मुल्क के निर्माण में अपना सर्वस्व होम कर दिया!
किंतु इन दिनों तिलक,महात्मा गांधी,शहीद भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद को भुलाकर चुनावी जीत के लिये केवल सरदार पटैल को भुनाया जा रहा है! सवाल उठता है कि आजादी का सारा श्रेय सिर्फ पटैल या सावरकर को ही क्यों?अकेले सरदार पटैल को सारा श्रेय देने का मतलब है, बाकी के लाखों बलिदानियों का अपमान करना!
15 अगस्त 1947 के बाद भारत राष्ट्र को एक करने की वास्तविक तस्वीर यों है कि
रियासतों का विलीनीकरण पटेल का ही नहीं
बल्कि वास्तव में गांधीजी का भी सपना था..
560 देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय सरदार पटेल का कोई निजी एजेंडा नहीं था बल्कि यह गांधीजी और कांग्रेस का तथा देश के किसानों और मजूरों का सपना था! जिसे गृह मंत्री के रूप में सरदार पटेल ने बेहतरीन ढंग से साकार किया!
इस मसले पर प्रधानमन्त्री नेहरू और उनके मंत्रिमंडल द्वारा गृहमंत्री को इस कार्य के लिए स्वतंत्र काम करने का मौका देना भारतीय लोकतंत्र की मिसाल है l अंतत: गांधी,नेहरू,मौलाना आजाद और तत्कालीन कांग्रेस और कम्युनिस्ट सभी प्रशंसा के पात्र हैं! सवाल तो हिंदू महासभा और संघ पर उठता रहा है कि वे महात्मा गांधी और पंडित नेहरु के नाम से तब भी चिढ़ते थे और 74 साल बाद आज भी उनके नामों से चिढ़ते हैं! यह सरासर कृतघ्नता है!

भ्रामयन्सर्वभूतानि यंत्रारुढानि मायया.....

 "जीवन में जो भी है उसे मित्रता से और अनुग्रह से स्वीकार करो।शत्रुता का भाव अधार्मिक है।स्वीकार से परिवर्तन का मार्ग सहज ही खुलता है।शक्ति तो सदा ही तटस्थ है।वह न बुरी है न अच्छी। शुभ या अशुभ सीधे नहीं वरन् उसके उपयोग से ही जुड़े हैं।"

******************
गीता के दो श्लोक महत्वपूर्ण हैं।एक तो ईश्वरीय शक्ति सबको घुमाती रहती है।दूसरा जीव अहंमूर्छित होकर,'मैं कर्ता हूं' ऐसा मानकर कर्म करता है।
पुनरावृत्ति हर जीव की कथा का आधार है।पहले के जो संस्कार हैं,जो संचित वृत्तियां हैं वे बलपूर्वक प्रकट होती हैं।वे अपना कार्य करती हैं।जीव को उनके अनुसार चलना ही पडता है।जब जैसे सुखद,असुखद अनुभव होते हैं वे बरबस होंगे ही।इसे साक्षी भाव से जानते रहा जा सकता है मित्रतापूर्वक, स्वीकार भाव से।क्रोधलोभ, भयचिंता, शोकमोहविषाद आदि वृत्तियां तटस्थ हैं,न वे हमारी दोस्त हैं,न दुश्मन।वे जैसी हैं वैसी हैं।हम ही उनका उपयोग करके संसारी बन जाते हैं या जब अपने को साधक मानते हैं तो उनका विरोध करते हैं।
दोनों ही बाधक हैं।जब भी जो भी वृत्ति उठे न कर्ताभाव से उन्हें करना है,न भोक्ताभाव से उनका विरोध करना है।केवल उनका अनुभव करना है मैत्रीभाव से,स्वीकारभाव से।
जैसे अवसाद(डिप्रेशन)को बडा बुरा माना है।काफी मनोवैज्ञानिक तथा चिकित्सकीय चर्चा हुई है उस पर।यह तमोगुणी वृत्ति है।प्रकृति है जैसी है वैसी।इसे हमसे कोई प्रयोजन नहीं।
हम ही कर्ताभाव से अहंमूर्छित होकर इसे करने लगते हैं या इसका प्रतिरोध करते हैं।इसे रोक देना चाहते हैं।न रोक सकें तो चिंताएं बढ जाती हैं।
सच बात यह है कि इसे प्रकृति समझकर इसके प्रति मैत्री का भाव रखना चाहिए।तब यह स्वत:स्वीकार हो जाता है।शत्रुता का भाव रखने से स्वीकार नहीं होता,विरोध रहता है।
एक बात है कि शत्रुता भी एक संचित या दमित वृत्ति है।अच्छाई के नाम पर इसे पहले बहुत दबाया गया है तो अब यह बलपूर्वक प्रकट होती है।आदमी या तो स्वयं को उसका कर्ता मानकर इससे उससे शत्रुता करने में लग जाता है या फिर से उसे दबाने में लग जाता है।भीतर नाराजगी,चेहरे पर मुस्कान-ऐसा अक्सर देखने को मिलता है।
मेरे मित्र में अक्सर क्रोध और नाराजगी के भाव प्रकट होते मगर वह उनका साक्षी बना रहता।उनसे बेहोश न होता।
अगले ही क्षण हंस भी देता।
आम आदमी के लिये यह मुश्किल है।या तो वह क्रोध ही करता रहेगा या फिर समझ आयी तब भी उबरने में,संतुलित होने में समय लगता है।
ये जो मनोवैज्ञानिक समस्याएं हैं इनकी समझ और समाधान के लिये अनुभवी का सत्संग चाहिए।गीता यह अनुभव देते हुए कहती है-
तुम इन प्रकृति के गुणों का बेहोश कर्ता मत बनो,इनके द्रष्टा बनो।जो द्रष्टा बनता है वह स्वत:आत्मस्वरुप को प्राप्त हो जाता है।यदि वह अहंभाव से,कर्ताभाव से मूर्छित है तो उसे बलपूर्वक घुमाया जाता रहेगा।भ्रामयन्सर्वभूतानि यंत्रारुढानि मायया।
आदमी शिकायत ही करता रहेगा मेरे साथ ऐसा क्यों होता है?
इस तरह कोरे वीआईपी बनने से काम नहीं चलता,समझना पडता है।समझे बिना कोई चारा नहीं।
जो भी सात्विक, राजसी,तामसी वृत्तियां जमा हैं चित्त में वे समय समय पर उठती ही हैं प्रक्षेपित होकर।
बाहर कुछ अनुकूल घटा,भीतर शांति घटी,बाहर प्रतिकूल घटा,भीतर अशांति घटी।इसे न समझकर जो पूरी तरह से बहिर्मुखी है वह जीवन भर बाहरी परिस्थितियां ठीक करने में ही लगा रहता है।जो अंतर्मुखी है वह भीतर संचित वृत्तियों के पास आ जाता है।उन्हें देखता है मैत्री भाव से,स्वीकार भाव से चाहे वह क्रोधक्षोभ हो,चाहे घृणाप्रेम,शोकमोहविषाद जो भी।वह उन्हें अनुभव करता है।करना ही पडेगा वर्ना जायेगा कहां,वह हो ही रहा है।प्रकृति के गुण अपना काम कर रहे हैं।अब मैत्री भाव से स्वयं उपस्थित रहकर उनका अनुभव किया जाय नहीं तो शत्रु की तरह देखने से तो पलायन होगा,बचाव होगा।बचा नहीं जा सकता है।व्यक्ति से कोई बच सके,वृत्ति से बचना संभव नहीं।वहां तो यही उपाय है कि उपस्थित रहें तथा हर वृत्ति को अनुभव करें।भागना असंभव है।
या फिर साहस चाहिए।साहस पूर्वक या मैत्रीपूर्वक हर वृत्ति जन्य अनुभव के साथ रहा जा सकता है अर्थात् अहंवृत्ति(स्वयं)भी रहे तथा अन्य आगंतुक वृत्ति भी रहे।"जीयो और जीने दो" के भाव से।
इसमें अहम्मन्यता(मैं कुछ हूँ, वीआईपी पन)बाधक है।अनुभव सुखद है तो स्वीकार है,असुखद है तो अस्वीकार है।पर अपना आग्रह काम नहीं देता।
बाहर भीतर प्रकृति पूर्ण है।बाहर घटना,परिस्थिति है भीतर अंत:करण है।दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।कभी भीतर अनुकूल तो बाहर अनुकूल, भीतर प्रतिकूल तो बाहर प्रतिकूल; कभी बाहर अनुकूल तो भीतर अनुकूल, बाहर प्रतिकूल तो भीतर प्रतिकूल।प्रकृति के राज्य में तो यह सब स्वाभाविक है।
इसे समझना चाहिए।अहंबुद्धि का कोई अर्थ नहीं।वह इस व्यवस्था को समझने में बाधक है।उसके अपने आग्रह होते हैं।आग्रह काम देते नहीं और मनुष्य की व्यथा कथा जारी रहती है।
उसे सब अनुकूल चाहिये।वह देखता नहीं कि यह संभव नहीं है।यहां अनुकूल प्रतिकूल दोनों चलेंगे।
समझ का फर्क है।अनुकूल-प्रतिकूल अहंबुद्धि के,अहम्मन्यता के शब्द हैं।
समझ के लिये न कुछ अनुकूल है,न प्रतिकूल।वह अहंदृष्टि ही नहीं है शत्रुमित्र का निर्धारण करनेवाली।
तथ्य को जहाँ प्रकृति की दृष्टि से समझा जा सकता है वहां पुरुष अर्थात् आत्मा की दृष्टि से भी समझा जा सकता है।
मैं हूं यह सीधा सरल आत्मबोध है।
यह अहंवृत्ति से जुडा है तो हर बात को प्रकृति की दृष्टि से समझना पडेगा।यह स्वस्थ है तो फिर इसमें अनुकूल, प्रतिकूल का भाव अनुपस्थित होगा।गीता का समता का निरंतर प्रतिपादन इसीकी वजह से है।स्वयं को जानें, स्वानुभव में स्थित रहें(विचारों में,कल्पनाओं में नहीं)।
यह संभव नही है तो सभी तरह की वृत्तियों के अनुभवों के साथ जीना ही पडेगा।भागना व्यर्थ सिद्ध होगा।मैत्रीभाव है तो ठीक है वर्ना साहस की जरूरत पडेगी जो अहंबुद्धि के लिये मुश्किल काम है क्योंकि वह अपने स्वार्थ की प्रबल पक्षपाती होती है।
वह अपने सच्चे स्वार्थ से अनभिज्ञ होती है।उसे पता नहीं कि भीतर जो भी वृत्ति जन्य अनुभव हो टिककर उसका अनुभव किया जाय तो बाहरी परिस्थितियां स्वत: प्रभावित होती हैं।
यदि बाहरी परिस्थितियों को ही बदलने में लगा रहा जाय तथा भीतर संचित(या दमित)वृत्ति जन्य अनुभव से भागते रहा जाय तो सारा जीवन भगोड़े की तरह बिताना पडता है।
इसलिए या तो अपने हर अनुभव के साथ रहें मित्रता पूर्वक प्रस्तुत रहकर उसका स्पष्ट अनुभव करते हुए या बाहरी व्यक्ति, घटना ,परिस्थिति से भागते रहें।
आंतरिक अवस्था जिम्मेदार है।भीतर साहस है तो बाहर पलायन नहीं है।तब बाहरी परिस्थिति को बदला जा सकता है।भीतर भय है,भय से पलायन है तो बाहरी परिस्थितियों को बदलने में कोई मदद नहीं मिलती।क्या जरूरी है यह समझदार आदमी खुद समझ लेगा।बेशक भीतर भय चिंता की वृत्ति है तो वह उसका स्वयं प्रस्तुत रहकर अनुभव कर सकेगा।भागेगा नहीं।
तब वृत्ति की क्षणभंगुरता का भी पता चल जायेगा।जो क्षणभंगुर वृत्ति से,उसके क्षणभंगुर अनुभव से भागता रहता है,बाह्य परिस्थिति को बदलने में लगा रहता है वह फिर जीवनभर भागता ही रहता है जैसा कि देखा जा सकता है।
भय भी तटस्थ शक्ति की वृत्ति मात्र है।इसे ठीक से समझे तो इसके तात्कालिक अनुभव के साथ रहा जा सकता है,बिना इससे डरे।शोक के,अवसाद के अनुभव के साथ रहा जा सकता है,बिना शोक का शोक किये या अवसाद का अवसाद किये।आदमी अवसाद शब्द से जितना अवसादग्रस्त होता है उतना अवसाद के प्रत्यक्ष अनुभव से भी नहीं।अनुभव तात्कालिक है,अस्थायी है।शब्द की प्रतिक्रिया उसे स्थायी बना देती है।इसे न समझने से जीवन मानसिक संघर्ष के स्तर पर जीया जाता रहता है।उसे वास्तविक भी मान लिया जाता है।जबकि ऐसी वास्तविकता भ्रामक होती है।
'Reality is illusion.'
वस्तुतः न प्रकृति का कुछ भी बुरा है,न अच्छा।यह सारा आयोजन है ही ऐसा।हमें लगता है पहले हमसे पूछ लेना था इसलिए ठीक कहा है-शुभ या अशुभ उससे सीधे नहीं-वरन् उसके उपयोग से ही जुडे हैं।'
अर्थात् उपयोकर्ता से।