स्वाधीनता संग्राम के दौरान एक तरफ शहीद बाघा जतीन,शहीद ऊधमसिंह, स्व.अशफाक उल्लाह खान,लाल,बाल,पाल,शहीद राजगुरू भगतसिंह,चंद्रशेखर आजाद ,सुभाषचंद्र बोस जैसे सैकड़ों क्रांतिकारी मजदूर किसान और कम्युनिस्ट लगातार अंग्रेजों से लड़ते लड़ते शहीद होते रहे! स्वतंत्रता की मांग को लेकर शहीद होते रहे!
दूसरी ओर महात्मा गांधी,गोपाल कृष्ण गोखले,गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर,मदनमोहन मालवीय और पंडित मोतीलाल नेहरू जैसे लोग अहिंसा की राह पर 'संपूर्ण अखंड स्वतंत्र भारत' के लिये निरंतर आजीवन निरंतर संघर्ष करते रहे!
चूँकि मुल्क की आजादी और बटवारे के बाद देशी रियासतों के विलीनीकरण का मुद्दा गृह मंत्रालय के जिम्मे था,जो सरदार पटैल के अधीन था और जिसे रियासतों की जनता एवं कांग्रेस,कम्युनिस्ट और हिंदुवादी संगठनों का भरपूर समर्थन हासिल था! चूंकि गृह मंत्रालय सरदार पटैल के पास था,अत: देशी रियासतों को विलय करने के निमित्त अंग्रेजों द्वारा पहले से तैयार चार्टर पर सरदार पटैल को सिर्फ दस्तखत करने थे,यदि यह सौभाग्य किसी और को मिला होता तो वह भी यह काम सहज ही कर लेता!जैसा कि दो सौ से ज्यादा रियासतों को जोड़कर मि.मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान बनाया!उनकी या पटैल की जगह XYZ कोई और होता,तो उसे भी यह सौभाग्य प्राप्त होता!
कहनेका तात्पर्य यह है कि राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया में हजारों नर नारी शहीद हुए और लाखों युवा अंग्रेजी हुकुमत के शिकार हुए,हजारों ने मुल्क के निर्माण में अपना सर्वस्व होम कर दिया!
किंतु इन दिनों तिलक,महात्मा गांधी,शहीद भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद को भुलाकर चुनावी जीत के लिये केवल सरदार पटैल को भुनाया जा रहा है! सवाल उठता है कि आजादी का सारा श्रेय सिर्फ पटैल या सावरकर को ही क्यों?अकेले सरदार पटैल को सारा श्रेय देने का मतलब है, बाकी के लाखों बलिदानियों का अपमान करना!
15 अगस्त 1947 के बाद भारत राष्ट्र को एक करने की वास्तविक तस्वीर यों है कि
रियासतों का विलीनीकरण पटेल का ही नहीं
बल्कि वास्तव में गांधीजी का भी सपना था..
560 देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय सरदार पटेल का कोई निजी एजेंडा नहीं था बल्कि यह गांधीजी और कांग्रेस का तथा देश के किसानों और मजूरों का सपना था! जिसे गृह मंत्री के रूप में सरदार पटेल ने बेहतरीन ढंग से साकार किया!
इस मसले पर प्रधानमन्त्री नेहरू और उनके मंत्रिमंडल द्वारा गृहमंत्री को इस कार्य के लिए स्वतंत्र काम करने का मौका देना भारतीय लोकतंत्र की मिसाल है l अंतत: गांधी,नेहरू,मौलाना आजाद और तत्कालीन कांग्रेस और कम्युनिस्ट सभी प्रशंसा के पात्र हैं! सवाल तो हिंदू महासभा और संघ पर उठता रहा है कि वे महात्मा गांधी और पंडित नेहरु के नाम से तब भी चिढ़ते थे और 74 साल बाद आज भी उनके नामों से चिढ़ते हैं! यह सरासर कृतघ्नता है!
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