रविवार, 1 नवंबर 2020

मज़हबी जज़्बात और इंसानियत...........

 फ़र्ज़ कीजिये आप चाय का कप हाथ में लिये खड़े हैं और कोई आपको धक्का दे देता है तो क्या होता है? आपके कप से चाय छलक जाती है। अगर आपसे पूछा जाए कि आपके कप से चाय क्यों छलकी तो आपका जवाब होगा कि मुझे धक्का दिया।

ग़लत जवाब! सही जवाब ये है कि आपके कप में चाय थी इसलिये छलकी। आपके कप से वही छलकेगा जो उसमें है। इसी तरह जब ज़िंदगी में हमें धक्के लगते हैं लोगों के व्यवहार से, या हमारे मज़हब पर कोई टिप्पणी की जाती है हमारी मज़हबी जज़्बात को तकलीफ पहुंचती है तो उस वक़्त हमारी असलियत ही छलकती है।
आपका असल उस वक़्त तक सामने नहीं आता जब तक आपको धक्का ना लगे। तो देखना है कि जब आपको धक्का लगा या आपके मज़हबी जज़्बात को ठेस पहुंची तो क्या छलका; सब्र, ख़ामोशी, रवादारी, सम्मान, इंसानियत या जुनून, गुस्सा, नफरत या हिंसा।
आपके अंदर से वही छलकेगा जो आपने भरा हुआ है अपने अंदर एक काल्पनिक खुदा और उसके तथाकथित पैगंबर के नाम पर। आपने सिर्फ नफरत करना सीखा है। आप इंसानियत और मुहब्बत का दावा करते हैं लेकिन वे सारे झूठे साबित हुए हैं हर बार।
मज़हब के नाम पर आपने अपने अंदर नफरत, गुस्सा भरा हुआ है। आप मज़हब से बाहर निकल कर सोचने समझने की जहमत नहीं करना चाहते।
इंतज़ार करें उस दिन का जब दुनिया कहेगी कि इंसान और मुसलमान दोनों अलग अलग हैं।

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