गुरुवार, 25 जुलाई 2019

राष्ट्रवाद ,समाजवाद,धर्मनिरपेक्षता !

भारत में गनीमत है कि संसद 'मॉब लिंचिंग' के खिलाफ कानून बना रही है!जबकि उधर कराची में एक मौलाना महाशय जियो टीवी चैनल पर बड़े गर्व से स्वीकार कर रहे थे कि पाकिस्तान में खुद उन मौलवी महाशय ने दर्जनों हिंदू लड़कियों का निकाह जबरन मुस्लिमों से करके उनका उद्धार किया!
कराची से कैराना तक जो कुछ होता रहा वह सबको मालूम है!किंतु सच स्वीकार करने का साहस बहुत कम लोगों में है! इस दौर का इतिहास बताता है कि दुनिया के तमाम असभ्य यायावर आक्रमणकारी और बर्बर मजहबी लुटेरे भारत को लूटने रौंदने में इसलिये सफल रहे,क्योंकि इस उपमहाद्वीप में यूरोप,चीन,जापान की तर्ज पर 'राष्ट्रवाद' नहीं था! और तब इसकी रक्षा के लिए कुछ करने का सवाल ही नही था!वेशक कभी- कभी आचार्य चाणक्य जैसे उद्भट विद्वानों के मार्गदर्शन पर चंद्रगुप्त मौर्या और उसके पौत्र अशोक जैसे महान जननायकों ने अवश्य राष्ट्रवाद का कुछ अवगाहन किया!किंतु बाकी सब तो भगवान भरोसे ही बैठे रहे!
ऐंसा नही था कि विदेशी हमलावरों से कोई हिंदुस्तानी लड़ा ही नही! किंतु यह सही है कि लड़नै वाले कम और जयचंद ज्यादा रहे!
1857 में या उसके पहले जो राजा रजवाड़े लड़े,वे अपने छोटे से गुलाम राज्य या जागीर के लिये ही लड़े!जैसे दुर्गावती,शिवाजी,राणा प्रताप ,झांसी की रानी !जो नही लड़े वे दोनों दीन से गये,क्योंकि वे न तो कुल मर्यादा बचा सके और न गुलामी से बच सके!जैसे राजा भारमल,राजा मानसिंह,वीरसिंहदेव बुंदेला! विदेशी हमलों को न रोक पाने वाले ये देशी राजा रजवाड़े अपने आपको भगवान से कम नही समझते थे!बल्कि शास्त्रानुसार तो वे इस धरती पर साक्षात विष्णु के प्रतिनिधि के प्रतिनिधि और प्रजापालक ही कहलाते थे !
किसान-मजूर -कारीगर के रूप में आम जनता की भूमिका केवल 'राजा की सेवा' करना ही था। जिन्हे यह कामधाम पसंद नहीं थी वे दंडकमंडल लेकर बाबा वैरागी हो गये!वे''अजगर करे न चाकरी ,पंछी करे न काम। दास मलूका कह गए सबके दाता राम।।
''गा -गा कर ईश्वर आराधना के बहाने विदेशी आक्रांताओं को कोसते रहे या जुल्म -सितम को आमंत्रित करते रहे !इस भारतीय उपमहाद्वीप की समस्त कार्मिक और वैज्ञानिक ऊर्जा विदेशी आक्रमणों ने निगल ली!इसीलिये यहां वैज्ञानिक आविष्कारों और राष्ट्रवाद ,समाजवाद,धर्मनिरपेक्षता जैसे क्रांतिकारी विषयों पर सोचने का अवसर ही नही मिला! वैसै भी हजार साल गुलाम रही कोई कौम इन लोकतींत्रिक शब्दों का महत्व इस देश की जनता उस सामन्ती दौर में कैसे समझ सकती थी ?
आजादी के 72 साल बाद भी इस देश की हालत वैसी ही है ,जैसी गुलामी के दौर में थी! अभी तक स्वतंत्र निष्पक्ष न्याय और चुनाव प्रणाली भी विकसित नहीं कर पाये! अतीत में इस धरती के मूल और आयातित यायावरों ने आजादी का दुरुपयोग करते हुये इस देश को बिखराव के गर्त में धकेला है!
बिडम्बना ही है कि अत्याधुनिक तकनीकी दक्ष,एंड्रॉयड फोनधारी आधुनिक युवा पीढ़ी नशेड़ी,गंजेड़ी तो आसानी से हो सकती है! किंतु 'गूगल सर्च 'का सहारा लेकर भी वह लोकतंत्र ,धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद जैसे क्रांतिकारी शब्दों की सटीक परिभाषा ठीक से पढ़ लिख नही सकती।इसीलिये तो फेंकू नेता लोग,वर्तमान युवा पीढ़ी को चाय पकौड़े बेचने से ज्यादा का महत्व नही देते!
श्रीराम तिवारी!

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