यकीनन मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर देश के अच्छे दिन आये हैं। जिन्हें यकीन न हो वो अमेरिकन सीनेटर्स से पूंछ तांछ कर तसल्ली कर लें। जिसे अच्छे दिनों के आगाज पर एतबार न हो उसे मालूम हो कि अभी -अभी अमेरिकी कांग्रेस मे मोदी जी के भाषण पर ७२ बार तालियाँ बजाई गई ! और ९ बार सभी सीनेटर्स ने खड़े होकर भारतीय प्रधान मंत्री का तहेदिल से इस्तकबाल किया ! बकौल मोदी जी ''भारतीय अर्थव्यवस्था कुलाँचे भरते हुए आसमान छूने वाली है,,,हम [भारत +अमेरिका] मिलकर आतंकवाद से लड़ेंगे !,,'आतंकवाद को पालने -पोषण वाले ही हमें शान्ति का पाठ पढ़ाते हैं' ,,वगैरह ,,वगैरह !
कोई माने या न माने मैं तो मोदी जी के अधिकांश भाषण से मैं गदगद हूँ। सिर्फ उनके एक वाक्य से सहमत नहीं हूँ कि ''भारतीय अर्थ व्यवस्था उछाल पर है और हमारा विदेशी मुद्रा भण्डार लबालब है।''मैं यदि मैं मोदी जी की इस सूचना से सहमत होता हूँ तो 'रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन को भी इस उपलब्धि का श्रेय देना पड़ेगा। चूँकि सुब्रमण्य स्वामी जैसा महानतम विद्वान जब रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन को 'नालायक'कह चुका है ,तो मेरी औकात नहीं कि मैं योगियों ,स्वामियों.बाबाओं -शंकराचार्यों की किसी बात का खंडन कर सकूँ। ये बात जुदा है कि प्रकारांतर से मोदी जी ने रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन की बौद्धिक क्षमता का लोहा को मान लिया है! किन्तु कोणार्क सूर्य मंदिर की मूर्तियों को दो हजार साल पुरानी बताकर मोदी जी ने अपनी जग हँसाई करा ली है । और तत् विषयक उनकी अज्ञानता पर विश्व पुरातत्ववेत्ताओं ने मोदी जी की जो हंसी उड़ाई है वो मुझे बहुत खल रही है। काश मोदी जी की टीम में कोई एक- आध पड़ा लिखा प्रगतिशील धर्मनिपेक्ष बुद्धिजीवी भी होता !
अमेरिकी सीनेटर्स के मिजाज और भारतीय कार्पोरेट्स परस्त मीडिया द्वारा स्थापित छवि से भारत के मध्यम वर्गीय हिन्दुओं को तो बहरहाल यह अनुभूति करनी चाहिए कि वह सुखमय जीवन यापन कर रही है। भारत की पैटी बुर्जुवा आवाम सुख-चैन से सो रही है। फ़िक्र सिर्फ इतनी है कि जब देश की अवाम के अच्छे दिन आये हैं तो भाजपा वाले अपनी दो साल की उपलब्धियों को लेकर ढपोरशंख क्यों बजा रहे हैं ? झांझ -मँजीरा बजा -बजाकर सुखी और सम्पन्न जनता की नींद हराम क्यों कर रहे हैं ?मोदी जी की प्रेरणा से पूँजी नियंत्रित मीडिया और उसके भाट -चारण दरवारी गण देश भर में उपलब्धियों का उदयगान क्यों गा रहे हैं ? अच्छे दिनों के आगाज रुपी सूरज को चुनावी प्रचार का दिया क्यों दिखा रहे हैं ? क्या सरकार और उसके पालतू मीडिया को खुद अपने ही उस सर्वे पर भरोसा नहीं ,जिसमें बताया गया है कि देश की ६८% जनता मोदी सरकार के कामकाज से खुश है। इसका मतलब यह भी है कि देश के ६८ % लोग तो मानते ही हैं कि उनके अच्छे दिन आये हैं !याने जनता खुद मान रही है कि 'दुःख भरे दिन बीते रे भैया ,,अब सुख आयो रे ,,,,,!देश बदल रहा है ,,,और अच्छे दिन आये हैं !
मेरे मित्रों,परिचितों और शुभचिंतकों में कुछ आध्यात्मिक किस्म के भाववादी उच्च शिक्षित प्राणी भी हैं ,वे हमेशा 'संतोषं परम सुखं'का मन्त्र जाप करते रहते हैं। उनका कहना है कि हमें दुनिया की फ़िक्र में दुबले नहीं होना चाहिए। उनके मतानुसार कार्य कारण का सिद्धांत प्रत्येक व्यक्ति के कर्म और सुख-दुःख तय करता है। उनके मतानुसार विचार अनुभूति बनाम अवचेतन मन की शक्ति के संकेंद्रण तथा मन की सकारात्मकता पर जोर देकर हम बड़ी से बड़ी उपलब्धि वैयक्तिक तौर से भी हासिल कर सकते हैं. और दैहिक-दैविक -भौतिक दुखों से छुटकारा पा सकते हैं। ये अध्यात्मवाद के प्रचण्ड तत्ववेत्ता और आत्मतत्व के महाज्ञानी विद्वान लोग मोदी सरकार की आलोचना पसंद नहीं करते। सरकार की प्रतिगामी पॉलिसी या विनाशकारी प्रोग्राम से उनका कोई वास्ता नहीं। वे तो केवल साक्षी भाव से तमाम कोलाहल ,तमाम जागतिक व्यवहार से परे अपनी अतीन्द्रिय शक्ति के काल्पनिक छलावे में मग्न हैं । उनका कहना है कि गरीबी-अमीरी,अच्छे -बुरे दिन ये सब मानव मन की 'विचार तरंगों' की आवृत्ति का विकार मात्र है। यह तो व्यक्ति की सोच पर निर्भर है कि वह क्या देखना चाहता है ? एक उद्भट विद्वान का तो यह भी कहना है कि सरकार या शासन की आलोचना करने से 'नकारात्मक ऊर्जा' का उत्सृजन होता है ,जिससे मनुष्य शारीरिक, मानसिक और सांसारिक व्याधियों का शिकार भी हो जाया करता है।
उपरोक्त 'तत्वज्ञान' का लब्बोलुआब यह है कि तमाम 'नकली राष्ट्रवादी सत्तारूढ़ नेता सुखासन में बैठकर अपनी आँख मीच लें ! वे देश की आवाम के दुखों-कष्टों को भूल जाएँ। राष्ट्र पर छाये संकट से निष्पृह हो जाएँ। यदि कोई सीमाओं पर तैनात है तो उसे देश को राम भरोसे छोड़कर 'योगनिद्रा' में लीन रहने के लिखित आदेश दिए जाएँ !देश में यदि अफसर -बाबू और दल्ले लोग रिश्वत की कमाई से गुलछर्रे उड़ा रहे हों ,तो इसे मोहमाया समझकर आप भूल जाएँ। आपके देश में या समस्त भूमण्डल पर क्या हो रहा है ,इससे आपको कुछ लेना -देना नहीं है। सीमाओं पर दुश्मन घात लगाए बैठाहै ,उसे बुरा स्वप्न समझकर भूल जाएँ। पाकिस्तानपरस्त आतंकियों की काली करतूतको भगवान भरोसे छोड़कर आपको 'निर्विचार' हो जानाहै। यदि देशका युवा वर्ग ,देशका बहुजन समाज-और मेहनतकश लोग वास्तविक जन संघर्षों में यकीन न करके आतंकवाद,फासिज्म ,मक्कारी और आपराधिक प्रवृति की नाली में कूंदें तो मत रोको उन्हें अपनी मौत मरने दो। आप तो अपने नासिका रंध्र से गहरी सांस लेकर भ्रामरी या भस्त्रिका प्राणायाम करते हुए अपने 'अष्टचक्र 'का सन्धान करें। अपने अवचेतन मन की शक्ति कोसुप्त रखें और मानसिक 'सुगंध' महसूस कराते रहें। आप फीलगुड महसूस करें कि 'अच्छे दिन आये हैं'यह सुदर्शन क्रियादिन में तीन बार करें। यही विपष्यना है ,यही ध्यान-धारणा और समाधि है। इस क्रियायोग को निरंतर करते हुए आप अपने मनोमय कोष में ''अच्छे दिनों 'का एहसास कीजिये ! इसी तन्द्रा में रहकर आप अपने तमाम दुखों को मनोमय कोष से बाहर कीजिये। अपने आपको आनंदमय कोष में ले जाइये । इसी में आपका कल्याण है।
भले ही देश की सीमाओं पर फौजियों को ही जिन्दा जलाया जा रहा हो,भले ही मानव स्वास्थ्य सेवाओं के बरक्स हमारे देश की दयनीय स्थिति -विश्व सूची में १४९ वें स्थान हो। भले ही भारतमें चारों ओर हाहाकार मचा हो सूखा -पड़ा हो ,मेंहँगाई -बेकारी हो ,हत्या बलात्कार या व्यापम हो ,कालाधन हो ,शिक्षा-स्वास्थ्य सेवाओं में भृष्टाचार हो, यह सब देशके बदमाश बुद्धिजीवियों और प्रगतिशील जनताकी 'नकारात्मक सोच' है। देशमें नकली मुद्रा चलाने वाले ,धर्म-मजहबके बहाने देशमें दंगे कराने वाले तथा चुनावमें जीतनेके लिए जनताको जातिवाद -सम्प्रदायवाद के खूंटे से बाँधने वाले भृष्ट नेताओं की औकात नहीं कि 'फिदायीन'का मुकाबला कर सकें।
जो लोग दुश्मन से लड़ नहीं सकते उनसे निवेदन है कि कमसे कम सीमाओं पर चोकसी तो ठीक से करें ताकि दुश्मन बिना बाधा के अंदर न आ सकेँ। यदि आ भी जाए तो ''राष्ट्रवादियों'को तो बताओ ताकि वक्त रहते वे कुछ नहीं तो कमसेकम हनुमान चालीसा अवश्य पढ़ना ही शुरूं कर दें! कोई यज्ञ-वग्य शुरूं कर दें ताकि दुश्मन उस यज्ञ के धुएँ से ही डर जाए। हालाँकि रियो ओलम्पिक में मेडल के लिए भारत में कई जगह यज्ञ किये गए किन्तु बात बनी नहीं। लेकिन कश्मीर के पत्थरबाजों को शान्त करने के लिए,पाकिस्तान को 'माँजने 'के लिए यह सब टोटके काम नहीं आयँगे। उसके लिए तो विराट 'नरमेध'यज्ञ ही अंतिम विकल्प है । जो इससे सहमत नहीं उससे निवेदन है कि जनाब आप - 'संतोषम परम सुखं' महसूस कीजिये ! क्योंकि अच्छे दिन आये हैं ! श्रीराम तिवारी !
कोई माने या न माने मैं तो मोदी जी के अधिकांश भाषण से मैं गदगद हूँ। सिर्फ उनके एक वाक्य से सहमत नहीं हूँ कि ''भारतीय अर्थ व्यवस्था उछाल पर है और हमारा विदेशी मुद्रा भण्डार लबालब है।''मैं यदि मैं मोदी जी की इस सूचना से सहमत होता हूँ तो 'रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन को भी इस उपलब्धि का श्रेय देना पड़ेगा। चूँकि सुब्रमण्य स्वामी जैसा महानतम विद्वान जब रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन को 'नालायक'कह चुका है ,तो मेरी औकात नहीं कि मैं योगियों ,स्वामियों.बाबाओं -शंकराचार्यों की किसी बात का खंडन कर सकूँ। ये बात जुदा है कि प्रकारांतर से मोदी जी ने रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन की बौद्धिक क्षमता का लोहा को मान लिया है! किन्तु कोणार्क सूर्य मंदिर की मूर्तियों को दो हजार साल पुरानी बताकर मोदी जी ने अपनी जग हँसाई करा ली है । और तत् विषयक उनकी अज्ञानता पर विश्व पुरातत्ववेत्ताओं ने मोदी जी की जो हंसी उड़ाई है वो मुझे बहुत खल रही है। काश मोदी जी की टीम में कोई एक- आध पड़ा लिखा प्रगतिशील धर्मनिपेक्ष बुद्धिजीवी भी होता !
अमेरिकी सीनेटर्स के मिजाज और भारतीय कार्पोरेट्स परस्त मीडिया द्वारा स्थापित छवि से भारत के मध्यम वर्गीय हिन्दुओं को तो बहरहाल यह अनुभूति करनी चाहिए कि वह सुखमय जीवन यापन कर रही है। भारत की पैटी बुर्जुवा आवाम सुख-चैन से सो रही है। फ़िक्र सिर्फ इतनी है कि जब देश की अवाम के अच्छे दिन आये हैं तो भाजपा वाले अपनी दो साल की उपलब्धियों को लेकर ढपोरशंख क्यों बजा रहे हैं ? झांझ -मँजीरा बजा -बजाकर सुखी और सम्पन्न जनता की नींद हराम क्यों कर रहे हैं ?मोदी जी की प्रेरणा से पूँजी नियंत्रित मीडिया और उसके भाट -चारण दरवारी गण देश भर में उपलब्धियों का उदयगान क्यों गा रहे हैं ? अच्छे दिनों के आगाज रुपी सूरज को चुनावी प्रचार का दिया क्यों दिखा रहे हैं ? क्या सरकार और उसके पालतू मीडिया को खुद अपने ही उस सर्वे पर भरोसा नहीं ,जिसमें बताया गया है कि देश की ६८% जनता मोदी सरकार के कामकाज से खुश है। इसका मतलब यह भी है कि देश के ६८ % लोग तो मानते ही हैं कि उनके अच्छे दिन आये हैं !याने जनता खुद मान रही है कि 'दुःख भरे दिन बीते रे भैया ,,अब सुख आयो रे ,,,,,!देश बदल रहा है ,,,और अच्छे दिन आये हैं !
मेरे मित्रों,परिचितों और शुभचिंतकों में कुछ आध्यात्मिक किस्म के भाववादी उच्च शिक्षित प्राणी भी हैं ,वे हमेशा 'संतोषं परम सुखं'का मन्त्र जाप करते रहते हैं। उनका कहना है कि हमें दुनिया की फ़िक्र में दुबले नहीं होना चाहिए। उनके मतानुसार कार्य कारण का सिद्धांत प्रत्येक व्यक्ति के कर्म और सुख-दुःख तय करता है। उनके मतानुसार विचार अनुभूति बनाम अवचेतन मन की शक्ति के संकेंद्रण तथा मन की सकारात्मकता पर जोर देकर हम बड़ी से बड़ी उपलब्धि वैयक्तिक तौर से भी हासिल कर सकते हैं. और दैहिक-दैविक -भौतिक दुखों से छुटकारा पा सकते हैं। ये अध्यात्मवाद के प्रचण्ड तत्ववेत्ता और आत्मतत्व के महाज्ञानी विद्वान लोग मोदी सरकार की आलोचना पसंद नहीं करते। सरकार की प्रतिगामी पॉलिसी या विनाशकारी प्रोग्राम से उनका कोई वास्ता नहीं। वे तो केवल साक्षी भाव से तमाम कोलाहल ,तमाम जागतिक व्यवहार से परे अपनी अतीन्द्रिय शक्ति के काल्पनिक छलावे में मग्न हैं । उनका कहना है कि गरीबी-अमीरी,अच्छे -बुरे दिन ये सब मानव मन की 'विचार तरंगों' की आवृत्ति का विकार मात्र है। यह तो व्यक्ति की सोच पर निर्भर है कि वह क्या देखना चाहता है ? एक उद्भट विद्वान का तो यह भी कहना है कि सरकार या शासन की आलोचना करने से 'नकारात्मक ऊर्जा' का उत्सृजन होता है ,जिससे मनुष्य शारीरिक, मानसिक और सांसारिक व्याधियों का शिकार भी हो जाया करता है।
उपरोक्त 'तत्वज्ञान' का लब्बोलुआब यह है कि तमाम 'नकली राष्ट्रवादी सत्तारूढ़ नेता सुखासन में बैठकर अपनी आँख मीच लें ! वे देश की आवाम के दुखों-कष्टों को भूल जाएँ। राष्ट्र पर छाये संकट से निष्पृह हो जाएँ। यदि कोई सीमाओं पर तैनात है तो उसे देश को राम भरोसे छोड़कर 'योगनिद्रा' में लीन रहने के लिखित आदेश दिए जाएँ !देश में यदि अफसर -बाबू और दल्ले लोग रिश्वत की कमाई से गुलछर्रे उड़ा रहे हों ,तो इसे मोहमाया समझकर आप भूल जाएँ। आपके देश में या समस्त भूमण्डल पर क्या हो रहा है ,इससे आपको कुछ लेना -देना नहीं है। सीमाओं पर दुश्मन घात लगाए बैठाहै ,उसे बुरा स्वप्न समझकर भूल जाएँ। पाकिस्तानपरस्त आतंकियों की काली करतूतको भगवान भरोसे छोड़कर आपको 'निर्विचार' हो जानाहै। यदि देशका युवा वर्ग ,देशका बहुजन समाज-और मेहनतकश लोग वास्तविक जन संघर्षों में यकीन न करके आतंकवाद,फासिज्म ,मक्कारी और आपराधिक प्रवृति की नाली में कूंदें तो मत रोको उन्हें अपनी मौत मरने दो। आप तो अपने नासिका रंध्र से गहरी सांस लेकर भ्रामरी या भस्त्रिका प्राणायाम करते हुए अपने 'अष्टचक्र 'का सन्धान करें। अपने अवचेतन मन की शक्ति कोसुप्त रखें और मानसिक 'सुगंध' महसूस कराते रहें। आप फीलगुड महसूस करें कि 'अच्छे दिन आये हैं'यह सुदर्शन क्रियादिन में तीन बार करें। यही विपष्यना है ,यही ध्यान-धारणा और समाधि है। इस क्रियायोग को निरंतर करते हुए आप अपने मनोमय कोष में ''अच्छे दिनों 'का एहसास कीजिये ! इसी तन्द्रा में रहकर आप अपने तमाम दुखों को मनोमय कोष से बाहर कीजिये। अपने आपको आनंदमय कोष में ले जाइये । इसी में आपका कल्याण है।
भले ही देश की सीमाओं पर फौजियों को ही जिन्दा जलाया जा रहा हो,भले ही मानव स्वास्थ्य सेवाओं के बरक्स हमारे देश की दयनीय स्थिति -विश्व सूची में १४९ वें स्थान हो। भले ही भारतमें चारों ओर हाहाकार मचा हो सूखा -पड़ा हो ,मेंहँगाई -बेकारी हो ,हत्या बलात्कार या व्यापम हो ,कालाधन हो ,शिक्षा-स्वास्थ्य सेवाओं में भृष्टाचार हो, यह सब देशके बदमाश बुद्धिजीवियों और प्रगतिशील जनताकी 'नकारात्मक सोच' है। देशमें नकली मुद्रा चलाने वाले ,धर्म-मजहबके बहाने देशमें दंगे कराने वाले तथा चुनावमें जीतनेके लिए जनताको जातिवाद -सम्प्रदायवाद के खूंटे से बाँधने वाले भृष्ट नेताओं की औकात नहीं कि 'फिदायीन'का मुकाबला कर सकें।
जो लोग दुश्मन से लड़ नहीं सकते उनसे निवेदन है कि कमसे कम सीमाओं पर चोकसी तो ठीक से करें ताकि दुश्मन बिना बाधा के अंदर न आ सकेँ। यदि आ भी जाए तो ''राष्ट्रवादियों'को तो बताओ ताकि वक्त रहते वे कुछ नहीं तो कमसेकम हनुमान चालीसा अवश्य पढ़ना ही शुरूं कर दें! कोई यज्ञ-वग्य शुरूं कर दें ताकि दुश्मन उस यज्ञ के धुएँ से ही डर जाए। हालाँकि रियो ओलम्पिक में मेडल के लिए भारत में कई जगह यज्ञ किये गए किन्तु बात बनी नहीं। लेकिन कश्मीर के पत्थरबाजों को शान्त करने के लिए,पाकिस्तान को 'माँजने 'के लिए यह सब टोटके काम नहीं आयँगे। उसके लिए तो विराट 'नरमेध'यज्ञ ही अंतिम विकल्प है । जो इससे सहमत नहीं उससे निवेदन है कि जनाब आप - 'संतोषम परम सुखं' महसूस कीजिये ! क्योंकि अच्छे दिन आये हैं ! श्रीराम तिवारी !
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