सोमवार, 22 अक्टूबर 2012

is vyvstha ko badal dalo.....

जिन्दगी में सबकी जरुरत पड़ती है सो उस हिसाब से सम्वाद बनाओ किन्तु ये मत सोचो कि  किसी की कमी से  कोई काम नहीं रुकता ,उसकी कमी कोई और पूरी कर देगा -ऐसा सोचने से उसकी कमी को पूरा नहीं किया जा सकता।जिन्दगी शतरंज के खेल की तरह है,जिसमें कोई भी प्यादा चाहे तो अंतिम पंक्ति में पहुंचकर - वजीर,हाथी,ऊंट,घोडा,बनकर  प्रत्स्पर्धी  के राजा को मात दे सकता है,किन्तु  किसी भी पक्ष का कोई भी मोहरा लाख चाहने पर भी किसी और की जगह नहीं ले सकता।प्यादे की भी जगह कोई नहीं ले सकता .जीवन में  सबको सबकी जरुरत है।सब को चाहिए की सभी की कद्र करें,फ़िक्र करें .यह प्रकारांतर से स्वयम की फ़िक्र का शानदार क्रियान्वन होगा।
                                              आजकल भारतीय  राजनीति में विश्वाश का संकट उत्पन्न हो गया है। सत्ता पक्ष [यूपीए] के नेता विपक्ष[खास तौर  से एनडीए] पर सच्चे-झूंठे आरोप लगा रहे हैं,मीडिया   भी अपने हितधारकों के मंशानुसार आरोप,प्रत्यारोप की चूहा-बिल्ली दौड़ में शामिल है।स्वनामधन्य कतिपय तथाकथित 'सिविल सोसायटी'वाले और राजनीती में शोषित वर्ग के पक्षधर भी इस कीचड उछाल वीभत्स खेल में शामिल हो गए हैं।न्याय पालिका और कतिपय वास्तविक ईमानदार समूह भी इस हवा के रुख के साथ चला जा रहा है।इस दौर में क्या वास्तव में कुछ भी ऐंसा नहीं जिस पर देश को नाज़ हो? क्या राजनीती में,कार्यपालिका में,न्याय पालिका में,व्यवस्थापिका में ऐसा कुछ नहीं बचा जो इस व्यवस्था की जीवन्तता का वाहक सिद्ध हो सके? यदि  कुछ नहीं बचा तो इस व्यवस्था को बदलने में क्या हर्ज़ है?

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012

अरविन्द केजरीवाल को अपनी नीतियां घोषित करना चाहिए.

मेरे कतिपय समकालीन प्रगतिशील   मित्रों में आजकल एक विषय पर आम राय  है कि  वर्तमान वैश्विक चुनौतियां अब भारत में तीव्रगति से और अधिक  आक्रामक रूप से प्रविष्ट हो रही हैं। इन चुनौतियों में सबसे अव्वल है राज्य सत्ता का अमानवीयकरण। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में भले ही वो  पूंजीवादी ही क्यों न हो,आम जनता को ज़िंदा रहने के न्यूनतम संसाधनों का एक हिस्सा न्यूनतम ही सही - जन-कल्याण के रूप में -विगत  शताव्दी के अंतिम दशक तक सर्वत्र दिया जाता रहा है। सबको  शिक्षा,स्वास्थ्य,सुरक्षा,रोटी,कपडा,मकान और  सामाजिक सुरक्षा इत्यादि के लिए निरंतर संयुक्त संघर्ष चलाये  जाने पर शाशक वर्गों ने 'सोवियत पराभव'उपरान्त पश्चिमी पूंजीवादी आर्थिक माडल को अपनाने में देर नहीं की और जनता को मिलने वाली कमोवेश आवश्यक न्यूनतम  सेवा सुविधाएँ  धीरे-धीरे  छीन  ली गई .राजकोषीय घाटे के बहाने ,अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक अनुबंधों के बहाने खाद,बीज,तेल,गेस  शिक्षा  स्वास्थय  पर सरकारी इमदाद लगभग जीरो कर दी गई।सरकारी क्षेत्र का दायरा सीमित कर दिया गया।निजी क्षेत्र को  लूट की खुली  छूट दी गई।राज्यसत्ता में हितधारकों  को उपकृत करने हेतु एनजीओ बनाये गए .आर्थिक सुधारों के बहाने जनता को बाज़ार के हवाले कर दिया गया . इस अंधेरगर्दी के खिलाफ देश की संगठित ट्रेड यूनियनों ने अपनी-अपनी राजनैतिक विचारधारा से परे एकजुट होकर निरंतर  संघर्ष चलाया है।विगत 28 फरवरी -2012 ,20 सितम्बर-2012 और आगामी 21-22 फरवरी 2013 को राष्ट्रव्यापी हड़तालों का एलाने जंग इसी संघर्ष की छोटी सी कड़ी है। इस संघर्ष में साथ देने के बजाय कुछ लोग' विना सुर-ताल के अपनी  ढपली अपना राग' गा-बजा रहे हैं।अन्ना  एंड कम्पनी,रामदेव रविशंकर,और इन्ही के कल तक के हमसफर अरविन्द केजरीवाल  कुछ इस तरह से देश के तस्वीर दुनिया के सामने रख  रहे हैं कि  इस देश में 'सब कुछ बुरा ही बुरा है' ये कल तक अपने अपने एनजीओ चलाने  वाले अब देश का उद्धार करने के लिए अवतरित हो चुके हैं।
                                                                      सारी दुनिया जानती है की  किसी भी राष्ट्र की एकजुटता,शांति ,सुरक्षा और विकाश तभी संभव  है जब उस राष्ट्र के नागरिकों  की  राष्ट्रीय  चेतना  को  वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचने समझने  के अनुरूप ढाला जाए। आर्थिक नीतियों को राष्ट्र की मांग आपूर्ति और जनसंख्या अनुपात से तत्संगत किया जाए।आज जब देश में खुदरा व्यापार में  विदेशी  निवेश पर आपत्ति है, वायदा वाजार।सट्टा -बाज़ार ,निजीकरण, ठेकाकरण,कारखना बंदी पर आमजनता को संगठित कर संघर्ष की जरुरत है तब  देश में कुछ लोग जनता को धार्मिक अफीम खिला रहे है, चारों ओर धरम के नाम पर तिजारत करने वाले ढोंगी बाबाओं,मुल्लाओं,फादरों की भरमार है।जनता का एक हिस्सा इन बाबाओं -मुल्लाओं-फादरों की मीठी-मीठी  लुभावनी  बातों  में आकर  न केवल खुद का सतानाश कर लेता है अपितु देश को दुनिया भर में जग हंसाई का पात्र  बना देता है। धरम मज़हब का ये धंधा कुछ राजनीतिक पार्टियों को भी  पोषता है। ये धर्माडंबर  उन्हें आम चुनाव में  परोक्ष सहयोग देकर राष्ट्र को वास्तविक प्रजातांत्रिक रास्ते से भटकाता है।
 निरीह निर्दोष आम जनता अपने हकों की लूट को ईश्वर की इक्षा  समझती  है। इसी वजह से जब कभी देश के संगठित  मजदूर किसान  बढ़ती हुई महंगाई ,वेरोजगारी,शिक्षा,स्वास्थ्य ,पीने का पानी और आवश्यक जीवन संसाधनों के  लिए राष्ट्र व्यापी संघर्ष छेड़ते  हैं तो यह तथाकथित अंध श्रद्धालु वर्ग इन ढोंगी बाबाओं के चरणों में अपनी मुक्ति   ढूंड़ता  है।इतना ही नहीं ये एनजीओ चलाने वाले अन्ना  ,रामदेव ,केजरीवाल सबके सब सिर्फ  मीडिया के सामने ही  हीरो बनने की फितरत में रहते हैं। ये कभी कांग्रस  कभी भाजपा के नेताओं को भ्रष्ट बताकर समझते हैं  की इससे देश पाक साफ़ हो जाएगा?
          कौन कितना भृष्ट है यह जान लेने से क्या होगा? जब व्यवस्था ही लूट की है याने आर्थिक सुधारों की ,भूमंडलीकरण की,निजीकरण की या पूँजी के मार्फ़त राज्यसत्ता सञ्चालन की तब यह कैसे संभव है की रिश्वत ,घूंस, घोटाले नहीं होंगे ? गंदगी होगी तो मख्खियाँ भी होंगी। पूंजीवाद होगा ,अमेरिकी इच्छाओं का प्रधान  मंत्री होगा,देशी-विदेशी पूंजी का प्रवाह होगा, व्यापार और मुनाफे पर  सरकार उदार होगी तो जो सरकार में होंगे  उन्हें बिन मांगे  मोती  तो मिलना ही हैं। फिर सत्ता में चाहे यूपीए हो या एनडीए हो ऐ  राजा  हो या प्रमोद महाजन हो,रावर्ट वाड्रा हो या गडकरी हो खुर्शीद हों या लक्ष्मण बंगारू हों कलमाडी हों या जूदेव हों लूट  का ये सिलसिला जारी रहेगा   .अरविन्द केजरीवाल का इरादा यदि वाकई देश भक्ति पूर्ण है तो   वे पहले अपनी आर्थिक नीति घोषित करें . इतना ही काफी नहीं बल्कि व्यवस्था रुपी जिस कुएं में भंग पडी  उसी की साफ़ सफाई करते कराते रहेंगे या की नए कुएं के निर्माण पर देश के प्रगतिशील वैज्ञानिक विचारों से सलाह मशविरा करेंगे! सिर्फ हंगामा खड़ा करते रहने से आप चेर्चा में बने रह सकते हैं देश का कुछ भी भला इस हँगामा  नवाजी से नहीं होने वाला। यदि  नदी किनारे खड़े खड़े लहरों को कोसते रहोगे तो नदी रुकने वाली नहीं  और लहरें तो कभी भी नहीं।।।।
                                                             श्रीराम तिवारी 

शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2012

कविता- सारा जहाँ हमारा है....

  [1] डेंगू -मलेरिया-स्वाइन फ्ल्यू का बुखार ,  अस्पतालों में अव्यवस्था वेशुमार!
   महंगी दवाईयाँ, महँगे टेस्ट,महँगी  फीस, आम आदमी होता इलाज़ को लाचार!!
   निजी अस्पतालों में निर्धन का प्रवेश निषेध,सरकारी क्षेत्र  में लुटेरों की भरमार !
   पानी सर से ऊपर  गुजरने लगा,फिर भी लोगों को है किसी नायक का इंतज़ार!!
   लोग पूजा घरों में करते रहते  हैं बेसब्री से ,    कि प्रभु कब लोगे कल्कि अवतार !
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 [ 2] यत्र-तत्र-सर्वत्र हो रहा निरंतर धुंआधार, दृश्य-श्रव्य-पाठ्य मीडिया में प्रचार !
 कि  हो रहा भारत निर्माण , भारत के इस निर्माण में मेरा भी हक़ है यार!!
 विकाश की गंगा बह रही  उल्टी आज,श्रम के सागर से समृद्धि के शिखर पार!
  क्रांति  की चिंगारी बुझने  को है ,पतंगों को पता नहीं किसका है इंतज़ार!!
  देशी मर्ज़ विदेशी इलाज़ ;उधार का हलुआ , वतन को अब मंज़ूर नहीं सरकार!
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[3]    जात -पांत ,भाषा-मजहब के झगड़ों से, अपना वतन बचाना  साथी!
    समाजवाद,प्रजातंत्र,धर्मनिरपेक्षता,के   नाना  दीप  जलाना  साथी!!
    मिल जाए  आवश्यक  श्रम- फल ,रोजी-रोटी संसाधन जीवन का साथी!
    बोलो बच्चो चीख-चीख कर,  'सारे जहां से अच्छा' हिन्दोस्तान हमारा  है !!
   वर्ना नंगे  भूँखों  को तो 'सारा जहां हमारा है !

  [4] दुनिया भर के महाठगों ने नव -उदार चोला पहना!
 पहले गैरों ने लतियाया अब अपनों का क्या कहना!!
भूल हमारी हम पर भारी,शोषण को सहते रहना!
मीरजाफरों जयचंदों को हमने दिया सहारा है!!
देश हमारा नीति  विदेशी ,निजीकरण का नारा!
 वर्ना नंगे भूँखों  को तो सारा जहां हमारा है !!
सबको शिक्षा सबको काम' काम के  बदले  पूरे दाम!
मिलता रहे मजूरों को उनकी क्षमता से नित काम !1
यही तमन्ना भगत सिंह की यही पैगाम हमारा है!
 वर्ना नंगे भूंखे को तो 'सारा जहां हमारा है'!!
   
                                                                     श्रीराम तिवारी









  

बुधवार, 10 अक्टूबर 2012

कामरेड ह्यूगो शावेज को -लाल सलाम।




 लगातार तीसरी बार वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर कामरेड ह्यूगो शावेज और वेनेज़ुएला के तमाम  क्रांतिकारी मतदाताओं का  क्रांतिकारी अभिवादन  .अभिनंदन।। शानदार- इंकलाबी- एकजुटता का वैश्विक समर्थन।।।
                       जो लोग वैश्विक राजनैतिक,सामाजिक,आर्थिक और भौगोलिक अज्ञानता के शिकार हैं उन्हें यदि ये नहीं मालूम कि  वेनेजुएला कहाँ है? ह्यूगो शावेज कौन हैं?समाजवादी व्यवस्था क्या है?  तो उनका इसमें कोई कसूर नहीं, हर किसी को हरेक चीज की जानकारी हो ये जरुरी नहीं,  किन्तु यदि एक जीवंत राष्ट्र के रूप में अमेरिकन साम्राज्य की नाक के सामने पूंजीवादी विश्व विनाशक नीतियों के सामने कोई जन-कल्याणकारी समतामूलक वैकल्पिक व्यवस्था प्रस्तुत करने वाला हो  और सारे संसार में उसकी चर्चा हो किन्तु भारतीय मीडिया में उसे चार पंक्तियाँ भी नसीब न हों  तो दो ही कारण समझे जा सकते हैं।एक-यह कि सूचना उपलब्ध नहीं दो-की भारत का  मीडिया अमेरिकी सूचनाओं की खुरचन पर  जिन्दा है।
                               मैं जिस शहर में रहता हूँ वहां आधा दर्जन राष्ट्रीय  एक दर्जन आंचलिक और सेकड़ों नगरीय समाचार पत्र ,टीवी चेनल्स और सूचना संसाधन उपलब्ध हैं ,देश के महानगरों से प्रदेश के राजधानियों से देश की राजधानी से निकलने वाले अखवारों ,टीवी चेनलों और रेडिओ संचार माध्यमों में भी  वो सब कुछ है जो  या तो सबको पहले से ही मालूम है [इन्टरनेट,मोबाइल एस एम् एस  इत्यादि से] या जो जनता के लिए  नितांत अनचाहे परोसा जाने वाला  पत्नोंमुखी  पूंजीवादी  वासी दुर्गंधित कचरा हो। इन माध्यमों में वो सब कुछ है जो विश्व बैंक ,विश्व व्यपार संगठन,अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और 'यूरो-पोंड-डालर ' के कर्ता-धर्ताओं को सुहाता हो। भारत के तथाकथित मुख्य धारा के मीडिया को भी शायद वेनेज़ुएला ,के आम चुनाव से ज्यादा मिस्टर ओबामा और मिस्टर मिट रोमनी के बीच चल रही आगामी इलेक्ट्रोरल प्रक्रिया में ज्यादा अभिरुचि  है और इस सन्दर्भ में भारत का प्रिंट,दृश्य,श्रव्य मीडिया वास्तव में तेजी से अधोगति की ओर अग्रसर है।
                                                    किस हिरोइन ने किस हीरो से डेटिंग की  कौन कहाँ अपनी ऐसी-तैसी करवा रहा है, कितने बलात्कार,कितनी हत्याएं और कितने महा भ्रष्ट्र हैं हम भारत के जन -गण  इसे पूरे आठ पेज में छपने  का गौरव हासिल है किन्तु वेनेज़ुएला में ह्यूगो शावेज तीसरी बार शानदार चुनाव जीते वो भी अमेरिकी हथकंडों  और वैश्विक पूंजीवादी ताकतों के खिलाफ  इसे छापने ,प्रकाशित करने की ,इस पर समीक्षा करने की किसी भी संपादक,एंकर या खबर नाबीस को फुर्सत नहीं मिली। क्यों? क्योंकि ये खबर मीडिया मालिकों में दहशत पैदा करती है।उनके विदेशी निवेशक आकाओं और देशी  प्रभु वर्ग को असहज करती प्रतीत होती है।क्योंकि  ये खबर कि ' वेनेजुएला में कामरेड ह्यूगो  शावेज तीसरी बार  भारी  बहुमत से जीते' वर्तमान सड़ी गली व्यवस्था को ललकारती प्रतीत होती हैं।
                                          वेनेज़ुएला के वर्तमान राष्ट्रपति कॉम  ह्यूगो शावेज विगत 8 अक्तूबर-2012 को पुन:तीसरी बार राष्ट्रपति का चुनाव जीत गए।वे "21 वीं शताब्दी का समाजवाद"परियोजना को आगे बढाने का  जनादेश हासिल करने में  सफल रहे। जैसा कि  सुविदित है की  कॉम  शावेज ने वेनेज़ुएला में तमाम राष्ट्रीय संपदाओं और उद्द्य्मो का राष्ट्रीयकरण पहले ही कर दिया है। दुनिया के तेल उत्पादक देशों में वेनेज़ुएला का स्थान अग्रिम पंक्ति में है।उस पर अमेरिका समेत पूरे पूंजीवादी मुनाफाखोरों की टेडी नज़र बनी हुई है। इस चुनाव   में कॉम  ह्यूगो शावेज को 54.42% वोट मिले है।नेशनल इलेक्ट्रोरल कौंसिल के अनुसार शावेज के प्रतिद्वंदी -डेमोक्रेटिक यूनिटी रौंड़ताब्ले गठबंधन को मात्र 40%और अन्य को दहाई के अंक तक पहुचने में असफलता हाथ लगी वेनेज़ुएला के 1.10 करोड़ मतदाताओं में से 90% ने अपने मताधिकार का  प्रयोग  किया।
        पांच घरेलु निरीक्षण समूह और कई अंतर्राष्ट्रीय निरीक्षण एजेंसियों की निगरानी में ये चुनाव सम्पन्न किये गए। इन सभी ने और खास  तौर  से यु एन ओ के निरीक्षकों ने बड़े बेमन से अपना बोरिया बिस्तर बांधकर 'काराकस' छोड़ा . हुगो शावेज ने इस एतिहासिक हेट्रिक जीत का श्रेय   महान स्वाधीनता सेनानी ' साइमन बोलिबार' को  समर्पित किया। कॉम  ह्यूगो शावेज विगत 14 वर्ष से वेनेजुएला के राष्ट्रपति है और उन्होंने अपने कार्यकाल में न केवल वेनेज़ुएला का बल्कि विश्व के तमाम निर्धन ,अविकसित और आर्थिक संकट से जूझ रहे   राष्ट्रों का पथ प्रदर्शन किया है।वे आधुनिक विश्व में विश्व सर्वहारा के वास्तविक हीरो हैं।
        उनकी महाविजय पर दुनिया के  मेहनतकशों में शोषण उत्पीडन के खिलाफ संघर्ष की चेतना का  संचार हुआ है। विश्व में आज पूंजीवादी व्यवस्था अपने चरम पर है और इस व्यवस्था में महंगाई,बेरोजगारी,नाइंसाफी,असमानता लूट और भयानक  भृष्टाचार का सर्वत्र बोलबाला है। इस व्यवस्था को ख़त्म किया जा सकता है और विश्व को एक वैकल्पिक व्यवस्था का शानदार माडल उपलब्ध है ,वेनेजुएला के रूप में।कामरेड   ह्यूगो शावेज के नेतृत्व में।
                                                                               श्रीराम तिवारी 

सोमवार, 1 अक्टूबर 2012

Wellwishers are like beautiful steeet lamps they can not make the distance shorter but they can lighten your path &make the journey easier ....like bapu yaane mahtma gandhi......