शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

हिंदू धर्म को अपडेट या पुनर्भाषित किए जाने की आवश्यकता...

विगत   ३० सतम्बर २०१०  के बाद देश में आसन्न चुनौतियों की सूची में -जो विषय अभी तक बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समाजों के द्वंदात्मक  विमर्श  का कारण था -वो  वरीयता  में अब नहीं रहा .मंदिर -मस्जिद  विवाद  वैसे भी आस्था के दो  नामों ,दो पूजा पद्धतियों ,दो  बिरादर्यों और दो दुर्घटनाओं की एतिहासिक द्वंदात्मक संघर्स  यात्रा का  नामकरण  मात्र है .दो भिन्न  पूजा पद्धतियों में से एक है इस्लाम ...दूसरी है भारतीय सनातन धर्म याने भारत की सांस्कृतिक ,आध्यात्मिक ,धार्मिक परंपराजिसे वर्तमान में हिदुत्वा के नाम से पुकारा जाता है और यह नया नामकरण भारत पर बाहरी आक्रान्ताओं ने थोपा था जिसका श्रीमद भगवद्गीता ,बाल्मीकी रामायण वैद  उपनिषद  तो बड़ी चीजें हैं किन्तु मुगलकाल में सृजित लोकभाषा के महान ग्रुन्थ रामचरित मानस में भी हिन्दू शब्द का रंचमात्र जिक्र नहीं है  .इस्लाम के बारे मेंयदि  हिन्दुओं कोसही -सही जानकारी  होती और भारतीय पुरातन -सनातन पूजा पद्धति के बारे में  मुसलमानों को सही जानकारी होती तो भारत में भी -महास्थिवर  मोहम्मद हुए होते और इंडोनेसिया जैसी एक वास्तविक गंगा -जमुनी तहजीव  का भारत में भी सकारात्मक आविर्भाव सम्भव हो गया होता .विगत शताब्दी तो दुनिया ने दो महान क्रांतियों को समर्पित कर दी थी .एक -उपनिवेशवाद का खत्म .दो -सर्वहारा क्रांति .वर्तमान २१ वीं शताब्दी में दो चीजें एक साथ जारी है , एक -सभ्यताओं  का  संघर्ष ,दो -नव उपनिवेशवाद अर्थात पूँजी का वैश्वीकरण ...ये दोनों ही अवतार शैतानियत के गुणों से सान्निध हैं .दोनों ही  मानवता की दो अनमोल  शक्तियों का बेहद शोषण करते हुए हैवानियेत की शक्ल में इस वसुंधरा का सर्वस्व नष्ट  करते हुए अब 'सितारों से आगे जहान और भी हैं'उन्हें  विजित करने चाल पड़े हैं .भारत  को इन दोनों से एक साथ संघर्ष करना  पढ़ रहा है ..एक  तरफ  वैश्वीकरण की चुनोती और दूसरी ओर साम्प्रदायिकता के जूनून से  निरंतर जूझता भारत इतिहास के सबसे खतरनाक मोड़ पर आ खड़ा है .देशभक्ति का असली मतलब है की दुनिया की तमाम सभ्यताओं में जो सत्व तत्व है उसका नवनीत बनाया जाए और आसन्न विभीषिका को रोका जाए .

शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

10-10-10 की कविता---- मंदिर-मस्जिद का फंडा


माथे  पर त्रिपुंड विराजत ,हाथ कमंडल गले में गण्डा.
जिनकी मर्जी राम ने सिरजी ,वे थामें हैं भगवा झंडा ..
असमंजस  अंसारी हामिद, मांग रहे हैं न्याय का डंडा.
सुन्नी कहें आस्था जीती, संघी कहें न्याय तो फंडा .

 कुछ कहते की अर्थहीन है, फ़ोकट का प्रतिवाद वितंडा .
 यक्ष प्रश्न पहले भी था वो, पहले मुर्गी हुई या अंडा ..
 आज प्रश्न प्रासंगिक क्या है? क्या है मंदिर -मस्जिद  फंडा .
३० सितम्बर के दिन ही ये, हो जाना था प्रकरण ठंडा ..

 बिना आस्था मुल्क बने न, जाने ज्ञानी -ध्यानी -पंडा .
बिन क़ानून देश चलिबे न, जबरन गले न डालो फंदा.
लखनऊ पीठ ने दिखा दिया, क्या है राजनीति का फंडा.
संस्कृति अपनी गंगा -जमुनी, यही बताये तिरंगा झंडा ..
             

...श्रीराम तिवारी ......

शनिवार, 2 अक्टूबर 2010

बापू को FEEL GOOD की बधाई ..


आदरणीय बापू सादर प्रणाम .....

जैसा की आपको सुविदित है की कुछ लोग वर्षों से आपकी समाधी पर जाकर मगरमच्छ के आंसू बहाया करते हैं, कुछ लोग़ जिन्होंने आपको जीते जी तो परेशान किया ही और अंत में आपको मौत के घाट उतार दिया -अब आपके सिद्धांतो में आस्था प्रकट करने लगे हैं। अदालतें भी अब बहुत जिम्मेदार और परिपक्व हो गईं हैं, वो जो अयोध्या वाला विबाद था न :अरे वही -मंदिर -मस्जिद वाला ...हाँ ..हाँ ..वही -उसके तीनों पक्षकार बहुत खुश हैं ...क्योंकि इलाहबाद उच्च न्यायलय की लखनऊ खंडपीठ ने २:१से ऐसा फैसला सुनाया है की सारा भारत विगत ३० सितम्बर -२०१० से आज आपके जन्म की १४१ वीं जयंती की पुण्य वेला तक तो फील गुड में है ही... बाकी आगे की आप जाने ..क्योंकि आपकी तो सभी तक पहुँच है, सो जानवी, आप हिन्दू -मुस्लिम -सिख -ईसाई -सभी के भगवानों के प्रिय हैं इसलिए इन सबसे आपकी अच्छी पकड़ है।

आप से निवेदन है की भारत जैसे गरीब देश में अंध धार्मिक आस्था और इतिहास की भूलों के नाम पर कोई फसाद न हो इसके लिए ऊपर तक हमारी अर्जी पहुंचा दें ।

पूज्य बापू आपको यहाँ के संक्षेप समाचार सही -सही जानना हो तो लाइव इंडिया चैनल जरूर देखें। मैं मज़ाक नहीं करता ...आपको तो दिव्य दृष्टी प्राप्त है ..पूरा देश ३० सितम्बर को सहमा -सहमा था की -राम जाने ,अल्लाह जाने क्या होगा ?अयोध्या पर संभावित निर्णय के उपरांत की काल्पनिक विभीषिका ने हम सत्य -अहिंसा वादियों की नींद उड़ा दी थी। कुछ स्वयम्भू धर्म रक्षक हिदुत्व की आस्था के नाम पर जहर उगलते हुए तमाम -दृश्य --श्रव्य- छाप्य-पाठ्य मीडिया पर पसर चुका था किन्तु कुछ अभी भी आपके अहिंसा सिध्दांत पर अडिग थे -उनमें लाइव इंडिया, नई दुनिया, लोक लहर -देशाभिमानी और पीपुल्स डेक्रेसी जैसे सूचना स्त्रोत थे।

सभी धर्म निरपेक्ष जनता -किसान -मजदूर खुश हैं की उन्हें नाहक ही साम्प्रदायिक दंगों का शिकार नहीं होना पड़ा। हमें चिंता थी बापू की यदि किसी ने अफवाह फैला दी या फैसला एकदम एकपक्षीय हुआ तो क्या होगा, इस देश का और बापू परसों ३० सितम्बर से आज तक यदि ये देश उस शैतानी हिंसक ताकतों के हाथ होता तो आज आपको जन्म दिन पर क्या मुहं दिखाता ..अब सब ठीक है ..आपकी नई पीढी बहुत काबिल है -फासिस्टों और पाखंडियों को पहचानने की ओर अग्रसर है। आपका सपना पूरा होगा बापू ...देश में सभी धरम जात और नस्ल के लोग आपसी सौहार्द्र से रहने का अर्थ समझने लगे हैं ... वैसे आपसे एक शिकायत है की आपने जिन्दगी भर यही सपना क्यों देखा ? यह देश दुनिया के सबसे गरीब मुल्कों में अभी भी शुमार है ३० करोड़ जनता कुपोषण और लाचारियों की शिकार है ..व्यवस्था के नियंता पूँजी के तरफदार हैं ...मानवीय मूल्यों से वंचित बाज़ार है ...बापू इस दिशा में हम अब तक लाचार हैं ॥

आपका भजन ...ईश्वर -अल्लाह ..तेरे नाम ...और वैष्णव जन ...गाते हुए आज २ अक्तूबर -२०१० को FEEL GOOD हो रहा है।

आपके एक अहिंसावादी -धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण का सच्चा अनुयायी ...

शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

मज़हब और मीडिया (साभार:drpraveentiwari.blogspot.com)


इसे माननीय कोर्ट और एनबीए की गाइड लाईन्स का असर कहें या मीडिया की सूझबूझ अयोध्या के संवेदनशील ज़मीन विवाद पर आए ऐतिहासिक अमन के फ़ैसले पर मीडिया की भूमिका सराहनीय रही। चंद चैनल्स की शाम की चर्चाएं और कुछ राजनैतिक प्रतिक्रियाओं को छोड़ दिया जाए तो ज़्यादातर चैनल्स ने सधी हुई ख़बर और प्रतिक्रियाएं दर्शकों तक पहुंचाई। इस पूरे मामले में चैनल्स के साथ-साथ पक्षकारों की भूमिका भी शानदार रही, हांलाकि यहां भी राजनीति चमकाने की नाकाम कोशिश हुई लेकिन मीडिया ने ऐसे लोगों और उनकी प्रतिक्रियाओं को भाव नहीं दिया। पूरे मामले को शिद्दत से लड़ने वाले और मामले के सबसे बुज़ुर्ग पक्षकार हाशिम अंसारी साहब की प्रतिक्रिया और भूमिका सबसे शानदार रही। उन्होंने इसे अमन का फ़ैसला और सभी पक्षों के लिए संतोषजनक बताते हुए मुस्लिम भाईयों से भी घर में ख़ुशियां मनाने के लिए कहा। घर में ख़ुशियां मनाने की बात ख़ासतौर पर इसीलिए क्योंकि कोई भी पक्ष सड़क पर आकर ख़ुशियां नहीं मनाएगा ये भी कोर्ट की गाइड लाइन्स में शामिल था।

इस मसले पर मैं आपका ध्यान एक बहुत दिलचस्प पहलू पर ले जाना चाहता हूं जो शायद किसी और दिन इतना दिलचस्प मालूम नहीं पड़ता। किस तरह की दरार डालने की कोशिश नापाक तत्व करते हैं इसका एहसास भी इस पहलू से होता है। मीडिया में अगर हम अपने इर्द-गिर्द नज़र दौड़ाते हैं तो कभी हिन्दू-मुसलमान का भेद नहीं कर सकते और मुझे लगता है ये स्थिति सिर्फ मीडिया में नहीं बल्कि हर क्षेत्र में हैं। काम करते वक्त क्या हिन्दू क्या मुसलमान मिलजुलकर साथ होते हैं। ईद और दीवाली पर एक दूसरे की खुशियों को बांटते हैं। इस फैसले के दिन भी इस शानदार पहलू पर एक दर्शक की प्रतिक्रिया ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। दरअसल मैं और मेरी सहयोगी आरफ़ा ख़ानम शेरवानी फैसले पर लगातार दर्शकों को अपडेट्स पहुंचा रहे थे और ये एक ऐसा काम था जो बड़ी ख़बरों के दौरान अमूमन होता है। एक हिन्दू और एक मुसलमान एंकर बैठकर इस फैसले को पहुंचा रहे थे इस बात का एहसास मुझे एक दर्शक की प्रतिक्रिया के बाद हुआ जो एक सुखद संयोग भी था। लेकिन सिर्फ ये ही संयोग नहीं था, प्रोड्यूसर्स के तौर पर सईद, सिद्धार्थ, इलमान, आलोक और अन्य साथी इस ख़बर के अपडे़ट्स हम तक पहुंचा रहे थे। वही रिपोर्टर को कोऑर्डिनेट करने वाले इनपुट पर इस्माइल भाई और चरन जी मुस्तैद थे। इस बात का एहसास पहले कभी नहीं हुआ लेकिन हिन्दू-मुसलमान के कॉम्बिनेशन वाली प्रतिक्रिया ने मेरा ध्यान इस ओर खींचा।
अब बात सिर्फ मेरे चैनल की नहीं मैंने जब नज़र दौड़ायी दूसरे चैनल्स पर तो ये कॉम्बिनेशन कई जगहों पर मौजूद था। जहां एक ओर एनडीटीवी पर पंकज पचौरी के साथ नग़मा बैठी थी वहीं न्यूज़ 24 पर हमेशा की तरह सईद अंसारी, अंजना कश्यप और अन्य साथी ये ख़बरें दर्शकों तक पहुंचा रहे थे, आज तक पर भी शम्स और अन्य साथी थे और ऐसा हर चैनल के साथ था।

ये बात तो साफ है की ये रोज़मर्रा की चीज़ है और ये कॉम्बिनेशन्स हमेशा चैनल्स पर होते है चाहे हिन्दू पत्रकार हो या मुस्लिम पत्रकार वो तमाम ख़बरे दर्शको तक पहुंचाते हैं। चाहे एंकर्स हों, रिपोर्टर्स हों या पर्दे के पीछे काम करने वाले दूसरे अहम साथी कभी कोई इस कॉम्बिनेशन के बारे में ध्यान नहीं देता और न इसकी जरूरत पड़ती है क्योंकि ये इस देश की ख़ूबसूरती है की हम भले ही हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन या कुछ और हों लेकिन हिन्दुस्तानी होने का एहसास सबसे पहले होता है।

ये मेरे 11 साल के पत्रकारिता जीवन में पहला मौक़ा था जो मैं इन सब बातों पर गौर कर रहा हूं या मेरे प्रिय दर्शक जिन्होंने ये एहसास मुझे कराया उन्होंने भी कभी इस बात पर गौर नहीं किया होगा। मंदिर-मस्जिद के ये मसले जिन्हे ये सियासतदां अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए पैदा करते हैं वो हमारे अंदर इन एहसासों को पैदा करते हैं। मैंने अपने आसपास तो कोई फर्क नहीं देखा और मुझे उम्मीद है ऐसे राजनैतिक विवादों के बात कहीं और भी कोई फर्क नहीं पड़ा होगा और न पड़ना चाहिए क्योंकि हम एक ही माला के मोती हैं जो इस तरह गुंथे है जिनमें फ़र्क नहीं किया जा सकता। मैं साथ ही ये उम्मीद भी करता हूं की आगे कोई ऐसे मसला न आए जो मुझ तक इस एहसास को पहुंचाए की हिन्दू और मुसलमान का कॉम्बिनेशन यहां काम करता है बल्कि हिन्दुस्तानी यहां काम करते हैं का एहसास कायम रहे जो हमेशा से हैं।

डॉ प्रवीण तिवारी
लाइव इंडिया के लिए कार्यरत हैं।