शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

10-10-10 की कविता---- मंदिर-मस्जिद का फंडा


माथे  पर त्रिपुंड विराजत ,हाथ कमंडल गले में गण्डा.
जिनकी मर्जी राम ने सिरजी ,वे थामें हैं भगवा झंडा ..
असमंजस  अंसारी हामिद, मांग रहे हैं न्याय का डंडा.
सुन्नी कहें आस्था जीती, संघी कहें न्याय तो फंडा .

 कुछ कहते की अर्थहीन है, फ़ोकट का प्रतिवाद वितंडा .
 यक्ष प्रश्न पहले भी था वो, पहले मुर्गी हुई या अंडा ..
 आज प्रश्न प्रासंगिक क्या है? क्या है मंदिर -मस्जिद  फंडा .
३० सितम्बर के दिन ही ये, हो जाना था प्रकरण ठंडा ..

 बिना आस्था मुल्क बने न, जाने ज्ञानी -ध्यानी -पंडा .
बिन क़ानून देश चलिबे न, जबरन गले न डालो फंदा.
लखनऊ पीठ ने दिखा दिया, क्या है राजनीति का फंडा.
संस्कृति अपनी गंगा -जमुनी, यही बताये तिरंगा झंडा ..
             

...श्रीराम तिवारी ......

3 टिप्‍पणियां:

  1. Dharm, rajneeti tatha desh par Tiwariji ki ek aur sandeshparak rachna....Yeshwant Kaushik

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  2. great message through a poem of tiwari ji,congratulations !
    i feel when bhagwan krishna said in geeta, " yda yda --" means "o decendents of bharata, whenever there is a decline in dharma and abundance of unrigteousness, at that time i take form" ,it would have meant that all the bhagwan,sufi,pegambar,avatar's are form of the supreme GOD as per the time,space and situation,bringing diffrent faiths with same basic teaching offcourse with some variations.If all of us accept oneness of GOD then there will not be such patty dispute.

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