सोमवार, 30 दिसंबर 2024

इसे कहते हैं - अपॉर्चन्यूटी)

 एक *बैंक लूट* के दौरान लुटेरों के मुखिया ने बैंककर्मियों को चेतावनी देते हुए कहा-

यह पैसा देश का है और जान तुम्हारी । सब लोग लेट जाओ तुरंत... क्विक और सभी बिना कुछ कहे लेट गए....।
(मुखिया बोला - इसे कहते हैं- माइंड चेंजिंग कॉन्सेप्ट)
लुटेरों का एक साथी जो कि एमबीए किए हुआ था, उसने कहा- पैसे गिन लें...?
मुखिया ने कहा बेवकूफ:-
वह तो टीवी न्यूज में पता चल ही जाएगा।
(मुखिया - इसे कहते हैं - एक्सपीरियंस)
लुटेरे 20 लाख रुपए लेकर भाग गए।
असिस्टेंट मैनेजर ने कहा- पुलिस में एफआईआर दर्ज करा देते हैं...
मैनेजर ने कहा- 10 लाख और निकाल लो और हमने जो 50 लाख का गबन किया है वो भी उस लूट में जोड़ दो!
काश हर महीने ऐंसी डकैती होती रहे!
(मैनेजर ने कहा- इसे कहते हैं - अपॉर्चन्यूटी)
टीवी पर खबर आई- बैंक से 80 लाख रुपए लूटे गए...।
लुटेरों ने कई बार गिने..., 20 लाख ही थे...। फिर उनको समझ में आया कि इतनी जोखिम के बाद उनको 20 लाख ही मिले, जबकि बैंक मैनेजर ने 60 लाख बैठे-बैठे ही बना लिए...।
अब बताओ, असली लुटेरा कौन... ?
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श्रीराम तिवारी

भारतीय नव बर्ष चैत्र माह से प्रारंभ होता।

 अंग्रेज आये सिगरेट पी ओर आधी पीकर फेँक दी, उस फेँकी हुई झूठी सिगरेट को किसी घोंचू टाइप इंडियन लङके ने उठाया ओर एक कश मारा और बहुत हल्कापन महसूस किया!और दो चार कश और मार लिये,और बङा गर्व करने लगा कि आज तो क्वालिटी वाली धूम्रपान का सेवन किया! ऐसे ऐसे वो घोचुँ ( कूल ड्युड ) 'अँधो मे काँणा राजा' हो गया !फिर उसने घोंचुओं की एक जमात इकट्ठी कर ली,जो ऐसे ही अँग्रेजो की झूठन चाटती फिरती रही!धीरे धीरे यह जमात समस्त भारत में फैल गई, अँग्रेजों की सिगरेट धङल्ले से भारत मे बिकने लगी।

अंग्रेजो का नया साल 31 दिसंबर की मध्यरात्रि के फौरन बाद आता है,जबकि भारतीय नव बर्ष चैत्र माह से प्रारंभ होता। यही प्रकृत के अनुकूल भी है।
अब यदि दूसरों की खुशी में तुम्हारी खुशी है और दूसरों का जश्न आपका जश्न है तो! खू अंग्रेजी नव वर्ष मनाओ khuब पियो दारू, मनाओ हैप्पी न्यू ईयर,फिर न कहना कि बुढ़ापे में बच्चो ने घर से निकाल दिया। संस्कार नही दोगे,, तो हालत बहुत बुरी होगी।

सदियों लंबी गुलामी का इतिहास

 जब कभी हम भारतीय उपमहाद्वीप के अर्थात 'अखण्ड भारत' के राजनैतिक सामाजिक,आर्थिक सरोकारों वाले इतिहास पर नजर डालते हैं तो हम तत्सम्बन्धी इतिहास के अधिकांस हिस्से में गजब की 'धर्मान्धता' और बर्बर-विदेशी आक्रांताओं की सदियों लंबी गुलामी का इतिहास अपने ललाट पर लिखा पाते हैं!

ऐंसा लगता है कि इस भूभाग के'सुधीजनों' को परलोक की चिंता कुछ ज्यादा ही सताती रही है। हालाँकि भारतीय वेदांत दर्शन और सांख्य दर्शन ने अवश्य ही ज्ञान की सर्वोच्च अवस्था को प्राप्त किया है! इसमें मानवीय चिंतन का प्रकृति और पुरुष से तादात्म्य स्थापित किया है! वैदिक परंपरा में नैतिक मूल्यों, मानवीय मर्यादाओं और सर्वमान्य आचरण पर बल दिया गया है ! मानवीय जीवन के उच्चतर मूल्यों और आदर्शों वाले धर्म मजहब से किसी को कोई इतराज नही होना चाहिये! किंतु विचित्र बिडम्बना है कि जब यूनानी और चीनी दर्शन मनुष्य जाति से ऊपर राष्ट्र को तरजीह दे रहा था, तब हमारे भारतीय दर्शनों में अहिंसा अस्तेय ब्रह्मचर्य और यम नियम आसन ध्यान धारणा समाधि को मोक्ष का मार्ग बताया जा रहा था!
इसके साथ साथ 'धर्मअर्थ काम-मोक्ष' का खूबसूरत सब्जबाग भी दिखाया जा रहा था! भारतीय दर्शनमें विक्रत 'सिस्टम' को बदलने की कोशिश करने के बजाय भारतीय मनीषी कवि साहित्यकार 'आत्मकल्याण' अर्थात आत्मोद्धार पर जोर देकर स्वयं 'बैकुंठवासी होते चले गए।
इस भूभाग के निवासी दस हजार साल से वेद पढ़ रहे हैं ,सात हजार साल से वेदांत-उपनिषद, आरण्यक पढ़ रहे हैं,पाँच हजार साल से गीता,रामायण,महाभारत पढ़ रहे हैं,ढाई हजार सालसे त्रिपिटक, महापिटक, अभिधम्मपिटक,सुत्तपिटक, पदमपुराण
और उत्तराध्ययन सूत्र पढ़ते आ रहे हैं !दो हजार साल से बाइबिल 'टेस्टामेंट' पढ़ रहे हैं,!चौदह सौ साल से हदीस-कुरआन पढ़ रहे हैं! 1000 साल से समयसार, 400 साल से रामचरितमानस, रामचन्दजशचन्द्रिका, प्रबोधचंद्रोदय,साँख्यकारिका, कबीरवाणी, गुरुग्रन्थ साहब को पढ़ते आ रहे हैं।
धरम -करम ,अध्यात्म-दर्शन का सर्वाधिक बोलवाला भारत में ही रहा है। किंतु यह घोर आश्चर्य की बात है कि सर्वाधिक गुलामी इस 'अखण्ड भारत' को ही झेलनी पडी ! सैकड़ों साल की गुलामी से भारत की किसी पीढी ने यह नहीं सीखा कि उस गुलामी का और देशके खंड खंड होने का राजनीतिक,वित्तीय सामाजिक पतन का वास्तविक कारण क्या था?
भारत में राजाओं का इतिहास ही ईश्वरीय महिमा का गान हुआ करता था। बाद में यही काम चारण भाट भी करते रहे। लुच्चे राजे राजवाड़े अपने आपको चक्रवर्ती सम्राट और दिग्विजयी सम्राट की पदवी से नवाजते रहे! जबकि असभ्य बर्बर कबीले आ-आकर इस भारत को चरते रहे। भारत की जनता को हर दौर में डबल गुलामी भोगनी पड़ी! यहां पर कार्ल मार्क्स की तरह किसी ने भी 'जनता का इतिहास' नहीं लिखा !
आजाद भारत के संविधान निर्माताओं को कार्ल मार्क्स की शिक्षाओं का ज्ञान था,उन्हें मालूम था कि 'धर्म'-मजहब' के नाम पर उस सामन्तयुगीन इतिहास में किस कदर अत्यंत अमानवीय और क्रूर उदाहरण भरे पड़े हैं। वे इतने वीभत्स हैं कि उनका वर्णन करना भी सम्भव नहीं ! पंडित नेहरु और संविधान सभा के सहयोग से बाबा साहिब भीमराव अम्बेडकर ने धार्मिक -मजहबी उन्माद प्रेरित अन्याय जनित असमानता आधारित शोषण उत्पीड़न की रक्तरंजित धरा के पद चिन्हों पर न चलकर साइंस,आधारित और पाश्चात्य भौतिकवादी दर्शन आधारित विश्व के अनेक संविधानों का सार स्वीक्रत किया!
लेकिन पुरातन परंपराएं और उस दर्शन की गहरी जड़ें अब भी मौजूद हैं । अपने राज्य सुख वैभव की रक्षा के लिए न केवल अपने बंधु -बांधवों को बल्कि निरीह मेहनतकश जनता को भी 'काल का ग्रास' बनाया जाता रहा है । कहीं 'दींन की रक्षा के नाम पर, कहीं 'धर्म रक्षा' के नाम पर, कहीं गौ,ब्राह्मण और धरती की रक्षा के नाम पर 'अंधश्रद्धा' का पाखण्डपूर्ण प्रदर्शन किया जाता रहा है। यह नग्न सत्य है कि यह सारा धतकरम जनता के मन में 'आस्तिकता' का भय पैदा करके ही किया जाता रहा है।
क्रूर इतिहास से सबक सीखकर भारतीय संविधान निर्माताओं द्वारा भारत को एक धर्मनिरपेक्ष -सर्वप्रभुत्वसम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य घोषित किया गया । यह भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थिति है। हमें हमेशा ही बाबा साहिब अम्बेडकर और ततकालीन भारतीय नेतत्व का अवदान याद रखना चाहिए और उन्हें शुक्रिया अदा करना चाहिए। भारत के राजनैतिक स्वरूप में धर्मनिपेक्ष लोकतंत्र ही श्रेष्ठतम विकल्प है। श्रीराम तिवारी
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You, LN Verma and Kapil Rawat

मेरी रग-रग में गंगा का पानी दौड़ रहा है,

 डॉ.राही मासूम रज़ा ने नब्बे के दशक के क़रीब कुछ यूँ लिखा था और कहा था कि रामचरित मानस भक्तिकाल नहीं वीरगाथा काल का अंग है। तुलसीदास मुग़लिया दौर में रहे।मेरे ख़्याल से रावण मुसलमान बादशाह है,सीता हमारी आज़ादी,हमारी सभ्यता,हमारी आत्मा है,जिसे रावण हर ले गया है। परशुराम की कमान राम के हाथ में है,यानी ब्राह्मणों से धर्म की रक्षा नहीं हो सकती। मगर क्षत्रिय,सारे राजा-महाराजा तो मुग़ल दरबार में हैं। तुलसीदास ऊंची जाति के हिंदुओं से मायूस हैं,क्योंकि ऊंची जाति के हिंदू तो मुग़ल से मिल बैठे हैं। मगर वो किसी अछूत को नायक नहीं बना सकते थे,इसलिए उन्होंने एक देवता नायक बनाया। राम की सेना में लक्ष्मण के सिवा ऊंची जाति का एक भी आदमी नहीं है। इन दोनों भाईयों के सिवा राम की सेना में केवल बंदर हैं,नीची जाति के लोग। यानि कि ऊंची जाति के लोगों से मायूस होकर तुलसीदास ने अछूतों या नीची जाति के हिंदुओं को धर्म की रक्षा के लिए आवाज़ दी है। डॉ.राही मासूम रज़ा ने कहा है कि तुलसी के मानस में मुग़लिया दरबार की झलकियाँ हैं।शायर-लेखक राही ने लिखा कि वो तय नहीं कर पाए कि उनका घर ज़िला ग़ाज़ीपुर का गंगौली है या ज़िला आज़मगढ़ का ठेकमा बिजौली। वजह कि राही का जन्म तो गंगा किनारे के गंगौली में हुआ लेकिन उनके पूर्वज बिजौली से गंगौली में जाकर बसे थे। राही इस मामले में कन्फ़्यूज़ रहे। शायर मजरूह सुल्तानपुरी सवाल उठाते कि राही मेरा जन्म तो आज़मगढ़ के निज़ामाबाद में हुआ जबकि हमारे पूर्वज ज़िला सुल्तानपुर के थे और इसीलिए मेरे नाम के आगे सुल्तानपुरी लगा है। जबकि आप उस जगह का नाम अपने नाम के साथ लगाते हैं जहाँ आप जन्मे।तब कैफ़ी आज़मी दोनों के बीच सुलह करवाते और कहते कि आप दोनों आज़मी हैं,मतलब आज़मगढ़ के लोग।ख़ैर,राही का अंदाज़ ज़रा जुदा था। एक बार उनके पिता जो ग़ाज़ीपुर के बहुत जाने-माने वकील थे वो कांग्रेस के टिकट से ग़ाज़ीपुर से नगरपालिका का चुनाव लड़ गए। राही अपने पिता के ख़िलाफ़ हो गए और उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी से अपने ख़ास पब्बर राम को खड़ा किया। राही ने पब्बर के पक्ष में वो माहौल बनाया कि पब्बर राम चुनाव जीत गए और राही के पिता चुनाव हार गए। राही के लिखे की फ़ेहरिस्त लंबी है।जैसे कटरा बी आर्ज़ू,टोपी शुक्ला,आधा गाँव और तमाम। राही शायर भी थे।हम यहाँ सबका ज़िक्र ना कर उनकी कृति 'नीम का पेड़' पर आते हैं। बुधईया चमार एक नीम का पेड़ लगा रहा है। ज़मींदार ज़ामिन मियाँ का लठैत बजरंगी अहीर आकर लाठी अड़ा देता है। कहता है मियाँ से पूछे रहे हो। बुधईया जवाब देता है कि ई तो नीम का पेड़ है। बजरंगी कहता है कि नीम होय या पाकड़। कल ई जमीन मियाँ केऊ का दै देहैं तो का करिहो। बुधईया ज़ामिन मियाँ के यहाँ भागता है। मियाँ अपने दुआरे बैठे हुक्का पी रहे हैं। बुधईया पूछता है कि मियाँ अपने दुआरे हम एक ठो नीम का पेड़ लगाय लेई। ज़ामिन मियाँ ठहाका मारकर हंसते हैं। कहते हैं कि साला लगाए भी चला तो नीम का पेड़,नीम के पेड़ का होईहै बे,निमकौली की दुकान खोलेगा। फिर कहते हैं कि अच्छा जा लगा ले। तभी चमरौटी से एक बच्चा आकर बताता है कि बुधई काका के घर लड़का भवा है। मियाँ बुधईया चमार को एक बोरा गेहूँ और कपड़े देते हैं। बुधईया चमार सिर पर गेहूँ का बोरा रखकर और कपड़े की गठरी लटकाए घर भागता है। नीम का पेड़ अपने इसी पैदा होने वाले लड़के के लिए बुधईया लगाता है। बाद में जब बुधईया का घर हक़-ए-दुख़्तरी में मियाँ मुस्लिम के इलाके में चला जाता है तो मियाँ मुस्लिम बुधईया से कहते हैं कि जहाँ-जहाँ तक नीम के पेड़ का साया जाए वो ज़मीन तेरी हुई। तू तो ज़मींदार हो गया बे बुधईया। ख़ुश हो बुधईया लोगों से कहता फिरता है कि हम्मैं बुधईया चमार का मियाँ मुस्लिम जमींदार बनाए दिहेन,भले पेड़ के साया के बराबर जमीन होए मुदा बुधई चमार भी अब जमींदार हो गए। बहुत शानदार धारावाहिक था नीम का पेड़। नब्बे के दशक की शुरूआत में दूरदर्शन पर आता था। हमारे पास वीडियो कैसेट में रिकार्ड था जो बाद में हमने ध्यान से देखा।धारावाहिक डा. राही मासूम रज़ा की कृति नीम का पेड़ पर आधारित था। राही ने धारावाहिक में मुसलमान ज़मींदारों और तत्कालीन समाज के हालात का पूरा ख़ाका खींचकर रख दिया था। क्योंकि राही ख़ुद मुसलमान ज़मींदार थे इसलिए बहुत डीपली हालात और कल्चर से वाकिफ़ थे। एक सीन में सरकारी अफ़सर तिवारी जी तीन बार ज़मींदार मो.ज़ामिन ख़ान को ख़ान साहब कहकर संबोधित करते हैं। ज़ामिन मियाँ को अपनी इंसल्ट लगती है,कई बार टोकते हैं और कहते हैं कि हम मियाँ कहे जात हैं।तिवारी जी चौथी बार जैसे ही ख़ान साहब कहते हैं तो ज़ामिन मियाँ कहते है कि बुधईया चमार तनी तिवारी को चाय बनाके पिला तो। ये सुनते ही तिवारी जी फ़ौरन मियाँ कहने लगते हैं। दरअसल मियाँ का मतलब होता है मालिक। किसी मुसलमान ज़मींदार को मियाँ कहने का रिवाज था। प्रजा हमेशा मुसलमान ज़मींदार को मियाँ कहती थी। इस धारावाहिक में बुधईया चमार का रोल किया है पंकज कपूर ने और ज़ामिन मियाँ बने हैं अरूण बाली। दोनों ने किरदार में जान डाल दी। जबकि दोनों पंजाबी थे और यूपी के पूरब की रवायतों से वाकिफ़ नहीं थे। ये राही साहब की कलम का कमाल था कि किरदार बोल उठे। राही का कहना था अयोध्या में विवादित स्थल पर राम-बाबरी पार्क बना दिया जाए। महाभारत की पटकथा भी राही ने लिखी। पिताश्री-मामाश्री समेत कई मज़ेदार शब्द राही के ही गढ़े हुए हैं जो महाभारत में इस्तेमाल हुए। राही एएमयू से नौकरी से निकाले गए और एक दिन उसी एएमयू में बतौर चीफ़ गेस्ट बुलाए गए। राही आजीवन सांप्रदायिकता के विरूद्ध रहे। हैरत ये आज सांप्रदायिक लोग भी राही को उतना ही याद करते हैं जितना गंगा-जमुनी तहज़ीब के पैरोकार याद करते हैं। कम्युनल बेवकूफ़ों को लगता है कि राही हमारा आदमी है,मुसलमानों के चौखट के भीतर की बात को चौराहे पर ला रहा है। इस तरह से राही हर घान पढ़ा गए। ये राही का कमाल था। राही ने एक नज़्म लिखा है कि

'मेरा नाम मुसलमानों जैसा है,
मेरा क़त्ल करो और
मेरे घर में आग लगा दो,
लेकिन मेरी रग-रग में गंगा का पानी दौड़ रहा है,
मेरे लहू से चुल्लू भर महादेव के मुँह पर फेंको,
और उस योगी से कह दो,
महादेव इस गंगा को वापस ले लो,
ये ज़लील तुर्कों के बदन में गाढ़ा गरम ख़ून बनकर दौड़ रही है'।
राही ने ये भी कहा था कि हिंदू मुझे अपना नहीं मानते,मुसलमान भी नहीं मानते,अगर मैं हिंदू-मुस्लिम दंगों में फँस जाऊँ तो दोनों तरफ़ से मारा जाऊँ।
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Rajesh Kumar Tiwari

हक़ तहरीर कर

लिबास धर फरीद का

मन कबीर कर,
नानक की बानी बोलके
हक़ तहरीर कर।
आखर पढ़े तो ढ़ाई पढ़
पौथी को रख परे
कागा न नैन खा सके
चल ये तदबीर कर ।
वारिस, रहीम, बुल्लेशा
अपने क़रीब रख
टूटे न धागा प्यार का
ऐसी नज़ीर कर ।
मीरा, ख़ुसरो, सूर या
रसखान ढ़ूंढ़ रे
हरि हाथ भी मिलेंगे
ज़रा देर धीर धर ।
,रैदास, दादू और भी
बहुतेरे संत हैं
उजाले हमें दिखेंगे
अँंधेरे को चीर कर ।

बुधवार, 25 दिसंबर 2024

 आज जिन मित्रों ने मेरे घर आकर धूम धाम से मेरा जन्मदिन मनाया, उन सभी का बहुत बहुत आभार। धन्यवाद

🙏💕। जय श्री महाकाल🙏🙏🙏
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