एक *बैंक लूट* के दौरान लुटेरों के मुखिया ने बैंककर्मियों को चेतावनी देते हुए कहा-
इंकलाब ज़िंदाबाद !
progressive Articles ,Poems & Socio-political -economical Critque !
सोमवार, 30 दिसंबर 2024
इसे कहते हैं - अपॉर्चन्यूटी)
भारतीय नव बर्ष चैत्र माह से प्रारंभ होता।
अंग्रेज आये सिगरेट पी ओर आधी पीकर फेँक दी, उस फेँकी हुई झूठी सिगरेट को किसी घोंचू टाइप इंडियन लङके ने उठाया ओर एक कश मारा और बहुत हल्कापन महसूस किया!और दो चार कश और मार लिये,और बङा गर्व करने लगा कि आज तो क्वालिटी वाली धूम्रपान का सेवन किया! ऐसे ऐसे वो घोचुँ ( कूल ड्युड ) 'अँधो मे काँणा राजा' हो गया !फिर उसने घोंचुओं की एक जमात इकट्ठी कर ली,जो ऐसे ही अँग्रेजो की झूठन चाटती फिरती रही!धीरे धीरे यह जमात समस्त भारत में फैल गई, अँग्रेजों की सिगरेट धङल्ले से भारत मे बिकने लगी।
सदियों लंबी गुलामी का इतिहास
जब कभी हम भारतीय उपमहाद्वीप के अर्थात 'अखण्ड भारत' के राजनैतिक सामाजिक,आर्थिक सरोकारों वाले इतिहास पर नजर डालते हैं तो हम तत्सम्बन्धी इतिहास के अधिकांस हिस्से में गजब की 'धर्मान्धता' और बर्बर-विदेशी आक्रांताओं की सदियों लंबी गुलामी का इतिहास अपने ललाट पर लिखा पाते हैं!
मेरी रग-रग में गंगा का पानी दौड़ रहा है,
डॉ.राही मासूम रज़ा ने नब्बे के दशक के क़रीब कुछ यूँ लिखा था और कहा था कि रामचरित मानस भक्तिकाल नहीं वीरगाथा काल का अंग है। तुलसीदास मुग़लिया दौर में रहे।मेरे ख़्याल से रावण मुसलमान बादशाह है,सीता हमारी आज़ादी,हमारी सभ्यता,हमारी आत्मा है,जिसे रावण हर ले गया है। परशुराम की कमान राम के हाथ में है,यानी ब्राह्मणों से धर्म की रक्षा नहीं हो सकती। मगर क्षत्रिय,सारे राजा-महाराजा तो मुग़ल दरबार में हैं। तुलसीदास ऊंची जाति के हिंदुओं से मायूस हैं,क्योंकि ऊंची जाति के हिंदू तो मुग़ल से मिल बैठे हैं। मगर वो किसी अछूत को नायक नहीं बना सकते थे,इसलिए उन्होंने एक देवता नायक बनाया। राम की सेना में लक्ष्मण के सिवा ऊंची जाति का एक भी आदमी नहीं है। इन दोनों भाईयों के सिवा राम की सेना में केवल बंदर हैं,नीची जाति के लोग। यानि कि ऊंची जाति के लोगों से मायूस होकर तुलसीदास ने अछूतों या नीची जाति के हिंदुओं को धर्म की रक्षा के लिए आवाज़ दी है। डॉ.राही मासूम रज़ा ने कहा है कि तुलसी के मानस में मुग़लिया दरबार की झलकियाँ हैं।शायर-लेखक राही ने लिखा कि वो तय नहीं कर पाए कि उनका घर ज़िला ग़ाज़ीपुर का गंगौली है या ज़िला आज़मगढ़ का ठेकमा बिजौली। वजह कि राही का जन्म तो गंगा किनारे के गंगौली में हुआ लेकिन उनके पूर्वज बिजौली से गंगौली में जाकर बसे थे। राही इस मामले में कन्फ़्यूज़ रहे। शायर मजरूह सुल्तानपुरी सवाल उठाते कि राही मेरा जन्म तो आज़मगढ़ के निज़ामाबाद में हुआ जबकि हमारे पूर्वज ज़िला सुल्तानपुर के थे और इसीलिए मेरे नाम के आगे सुल्तानपुरी लगा है। जबकि आप उस जगह का नाम अपने नाम के साथ लगाते हैं जहाँ आप जन्मे।तब कैफ़ी आज़मी दोनों के बीच सुलह करवाते और कहते कि आप दोनों आज़मी हैं,मतलब आज़मगढ़ के लोग।ख़ैर,राही का अंदाज़ ज़रा जुदा था। एक बार उनके पिता जो ग़ाज़ीपुर के बहुत जाने-माने वकील थे वो कांग्रेस के टिकट से ग़ाज़ीपुर से नगरपालिका का चुनाव लड़ गए। राही अपने पिता के ख़िलाफ़ हो गए और उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी से अपने ख़ास पब्बर राम को खड़ा किया। राही ने पब्बर के पक्ष में वो माहौल बनाया कि पब्बर राम चुनाव जीत गए और राही के पिता चुनाव हार गए। राही के लिखे की फ़ेहरिस्त लंबी है।जैसे कटरा बी आर्ज़ू,टोपी शुक्ला,आधा गाँव और तमाम। राही शायर भी थे।हम यहाँ सबका ज़िक्र ना कर उनकी कृति 'नीम का पेड़' पर आते हैं। बुधईया चमार एक नीम का पेड़ लगा रहा है। ज़मींदार ज़ामिन मियाँ का लठैत बजरंगी अहीर आकर लाठी अड़ा देता है। कहता है मियाँ से पूछे रहे हो। बुधईया जवाब देता है कि ई तो नीम का पेड़ है। बजरंगी कहता है कि नीम होय या पाकड़। कल ई जमीन मियाँ केऊ का दै देहैं तो का करिहो। बुधईया ज़ामिन मियाँ के यहाँ भागता है। मियाँ अपने दुआरे बैठे हुक्का पी रहे हैं। बुधईया पूछता है कि मियाँ अपने दुआरे हम एक ठो नीम का पेड़ लगाय लेई। ज़ामिन मियाँ ठहाका मारकर हंसते हैं। कहते हैं कि साला लगाए भी चला तो नीम का पेड़,नीम के पेड़ का होईहै बे,निमकौली की दुकान खोलेगा। फिर कहते हैं कि अच्छा जा लगा ले। तभी चमरौटी से एक बच्चा आकर बताता है कि बुधई काका के घर लड़का भवा है। मियाँ बुधईया चमार को एक बोरा गेहूँ और कपड़े देते हैं। बुधईया चमार सिर पर गेहूँ का बोरा रखकर और कपड़े की गठरी लटकाए घर भागता है। नीम का पेड़ अपने इसी पैदा होने वाले लड़के के लिए बुधईया लगाता है। बाद में जब बुधईया का घर हक़-ए-दुख़्तरी में मियाँ मुस्लिम के इलाके में चला जाता है तो मियाँ मुस्लिम बुधईया से कहते हैं कि जहाँ-जहाँ तक नीम के पेड़ का साया जाए वो ज़मीन तेरी हुई। तू तो ज़मींदार हो गया बे बुधईया। ख़ुश हो बुधईया लोगों से कहता फिरता है कि हम्मैं बुधईया चमार का मियाँ मुस्लिम जमींदार बनाए दिहेन,भले पेड़ के साया के बराबर जमीन होए मुदा बुधई चमार भी अब जमींदार हो गए। बहुत शानदार धारावाहिक था नीम का पेड़। नब्बे के दशक की शुरूआत में दूरदर्शन पर आता था। हमारे पास वीडियो कैसेट में रिकार्ड था जो बाद में हमने ध्यान से देखा।धारावाहिक डा. राही मासूम रज़ा की कृति नीम का पेड़ पर आधारित था। राही ने धारावाहिक में मुसलमान ज़मींदारों और तत्कालीन समाज के हालात का पूरा ख़ाका खींचकर रख दिया था। क्योंकि राही ख़ुद मुसलमान ज़मींदार थे इसलिए बहुत डीपली हालात और कल्चर से वाकिफ़ थे। एक सीन में सरकारी अफ़सर तिवारी जी तीन बार ज़मींदार मो.ज़ामिन ख़ान को ख़ान साहब कहकर संबोधित करते हैं। ज़ामिन मियाँ को अपनी इंसल्ट लगती है,कई बार टोकते हैं और कहते हैं कि हम मियाँ कहे जात हैं।तिवारी जी चौथी बार जैसे ही ख़ान साहब कहते हैं तो ज़ामिन मियाँ कहते है कि बुधईया चमार तनी तिवारी को चाय बनाके पिला तो। ये सुनते ही तिवारी जी फ़ौरन मियाँ कहने लगते हैं। दरअसल मियाँ का मतलब होता है मालिक। किसी मुसलमान ज़मींदार को मियाँ कहने का रिवाज था। प्रजा हमेशा मुसलमान ज़मींदार को मियाँ कहती थी। इस धारावाहिक में बुधईया चमार का रोल किया है पंकज कपूर ने और ज़ामिन मियाँ बने हैं अरूण बाली। दोनों ने किरदार में जान डाल दी। जबकि दोनों पंजाबी थे और यूपी के पूरब की रवायतों से वाकिफ़ नहीं थे। ये राही साहब की कलम का कमाल था कि किरदार बोल उठे। राही का कहना था अयोध्या में विवादित स्थल पर राम-बाबरी पार्क बना दिया जाए। महाभारत की पटकथा भी राही ने लिखी। पिताश्री-मामाश्री समेत कई मज़ेदार शब्द राही के ही गढ़े हुए हैं जो महाभारत में इस्तेमाल हुए। राही एएमयू से नौकरी से निकाले गए और एक दिन उसी एएमयू में बतौर चीफ़ गेस्ट बुलाए गए। राही आजीवन सांप्रदायिकता के विरूद्ध रहे। हैरत ये आज सांप्रदायिक लोग भी राही को उतना ही याद करते हैं जितना गंगा-जमुनी तहज़ीब के पैरोकार याद करते हैं। कम्युनल बेवकूफ़ों को लगता है कि राही हमारा आदमी है,मुसलमानों के चौखट के भीतर की बात को चौराहे पर ला रहा है। इस तरह से राही हर घान पढ़ा गए। ये राही का कमाल था। राही ने एक नज़्म लिखा है कि
हक़ तहरीर कर
लिबास धर फरीद का