सरसों के फूल सजी धरा बनी दुलहन ,
अलसी के फूल करें अगहन से बात है ।
उड़ि उड़ि झुण्ड गगन पखेरूवा अनगिन ,
मानस के हंसों की गति दिन रात है।।
बाजरा -ज्वार की गबोट खिली हरी भरी ,
रबी की फसल भी उगत चली आत है।
कहीं पै सिचाई होवै कहीं पै निराई होवै ,
साँझ ढले कहीं पै धौरी गैया रंभात है।।
अलसी के फूल करें अगहन से बात है ।
उड़ि उड़ि झुण्ड गगन पखेरूवा अनगिन ,
मानस के हंसों की गति दिन रात है।।
बाजरा -ज्वार की गबोट खिली हरी भरी ,
रबी की फसल भी उगत चली आत है।
कहीं पै सिचाई होवै कहीं पै निराई होवै ,
साँझ ढले कहीं पै धौरी गैया रंभात है।।
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