शनिवार, 24 जून 2017

मीराकुमार के राष्ट्रपति बनने से एनडीए को भी लाभ होगा।


 भारत में राष्ट्रपति का पद कहने को तो 'ब्रिटिश क्राउन' जैसा है। किन्तु व्यवहार में आम तौर पर वह रबर स्टाम्प ही है। चूँकि संविधान अनुसार सत्ता संचालन के सारे सूत्र कार्यपालिका और विधायिका में सन्निहित हैं।इसीलिये कार्यपालिका प्रमुख की हैसियत से प्रधानमंत्री ही कार्यकारी प्रमुख होता है। देश में पीएम से ताकतवर केवल संसद होती है।संसद भी कहने को सर्वोच है,लेकिन उसकी असल ताकत बहुमत के पास सुरक्षित है। बहुमत दल का नेता याने प्रधानमंत्री ही भारत राष्ट्र में सर्वशक्तिमान होता है।भारत में राष्ट्रपति की जो हैसियत संविधान में है,चुनाव भी उतने ही ढुलमुल और अनगढ़ हैं। जो लोग राज्यों की विधान सभाओं या लोकसभा अथवा राजयसभा में पहले से ही निर्वाचित हैं ,वे ही इस पद के लिए मतदान के पात्र हैं। अर्थात भारत की जनता को अपना राष्ट्र्पति चुनने का कोई अधिकाऱ नहीं है। यदि वर्तमान सत्तारूढ़ सरकार तीन साल में कुछ नहीं कर सकी और हर मोर्चे पर फ़ैल है तो जनता उसे ढोने को अभिसप्त है। और इस अनर्थकारी बहुमत द्वारा चुना गया व्यक्ति ,राष्ट्रपति के रूप में  राष्ट्र की जनता का असल प्रतिनिधित्व नहीं करता। चूँकि वर्तमान सत्तारूढ़ गठबंधन पूर्ण बहुमत में है,इसीलिये स्वाभाविक है कि जीत उनके ही प्रत्याशी की होगी।

एनडीए और भाजपा की और से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी श्री रामनाथ कोविंद जी की कुल दो अहर्तायें है !एक यह कि वे संघ पृष्ठभूमि से हैं।दूसरी यह कि वे दलित जाति से हैं। इसके अलावा उनकी और कोई अहर्ता नहीं है। इन्ही दो अहर्ताओं की वजह से वे विहार के राजयपाल बने और इन्ही दो अहर्ताओं की वजह से वे एनडीए और संघ परिवार की ओर से राष्ट्र्पति पद के उम्मीदवार बनाये गए हैं।जिस व्यक्ति ने अपने भाई की सम्पति भी हड़प ली हो ,जिस  शख्स ने अपनी पत्नी की मौत के सिर्फ 6 महीने बाद ही अपनी शिष्या बनाम प्रेयसी से शादी कर ली हो,जो शख्स तीन -तीन बार चुनाव लड़ने के बावजूद लोक सभा का चुनाव ना जीत पाया हो, क्या ऐसे व्यक्ति को देश का राष्ट्रपति बनाया जाना उचित है ? उन्होंने लोकसभा के तीन चुनाव लड़े ,तीनो हारे। वे राज्य सभा में सिलेक्ट किये गए ,केवल संघ का अनुयाई होने और दलित वर्ग की पात्रता की वजह से। यदि वे अनायास जीत ही गए तो देश में पूँजीवाद और साम्प्रदायिकता के जलजले होंगे। और हर शहर में गाँव -गाँव में  दंगे और बलबे होंगे। क्योंकि राष्ट्र्पति का विवेक सत्ता की जेब में होगा।

महान दलित नेता बाबू जगजीवनराम की सुपुत्री -श्रीमती मीराकुमार पांच बार लोकसभा चुनाव जीतीं हैं । वे बहुत समय तक सफल केंद्रीय मंत्री भी रहीं हैं । लोकसभा स्पीकर के रूप में उनका कार्यकाल भारतीय संसद के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। वे एक बेदाग़ और गरिमामय व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं। वे धर्मनिपेक्षता की शानदार मिशाल हैं। वे सर्व जातीय,सर्व समाज ,सर्व धर्म समभाव की प्रतिमूर्ति हैं। वे लोकतंत्र और संविधान में बेइंतहा यकीन रखतीं हैं। निर्धारित  इलेक्ट्रोरल यदि मीराकुमार को राष्ट्रपति चुनता है,तो यह न केवल दलितों के लिए ,न केवल महिलाओं के लिए ,बल्कि लोकतंत्र के लिए तथा समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के लिए भी शुभ है । इससे राष्ट्रका कल्याण होगा। मीराकुमार के राष्ट्रपति बनने से एनडीए को भी लाभ होगा। श्रीराम तिवारी !

मंगलवार, 20 जून 2017

क्रिकेट का खेल और राष्ट्रवाद !

यदि अचानक कभी, आपका किसी दैवी शक्ति से अर्थात ब्रह्म तत्व से साक्षात्कार हो जाए,और वो परा शक्ति आपसे मन वांछित वरदान मॉंगने को कहे तो आप  क्या वरदान मांगेंगे ?
आपकी सुविधा के लिए मैं यहाँ कुछ अपनी च्वाइस बता देता हूँ !

पहला वर :-हे प्रभु ! यदि  बाकई पुनर्जन्म होता है,तो मेरा हर जन्म भारत भूमिपर ही हो और जिस घर में जन्म हो वहाँ भगतसिंह के आदर्शों का सम्मान हो !

दूसरा वर :-जो लोग भारत में पैदा हुए ,यहाँ की खाते हैं ,यही जिनकी मातृभूमि है ,वे सभी अपने धर्म मजहब से ऊपर भारत देश को ही अव्वल माने !प्रभु !

तीसरा वर :-जो दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी तत्व पूँजीपतियों की चरण वंदना करते हैं,मजदूरों,किसानों और वामपंथ को गाली देते हैं,उन्हें सद्बुद्धि दो प्रभु !

चौथा वर :-जो लोग भारत के मुसलमानों को भारत के खिलाफ भड़काते हैं ,भारत की बर्बादी के सपने देखते हैं ,उन दुष्टों का सत्यानाश हो प्रभु !

पाँचवाँ वर :-जो लोग स्वयंभू देशभक्त हैं ,वे भारत के सभी मुसलमानों पर संदेह न करें हैं,उन्हें आतंकी न समझें , हे ईश्वर उन्हें सही दॄष्टि प्रदान करो !

   १८ जून २०१७ इंग्लैंड मे आई सी सी चैम्पियनशिप के फाइनल में पाकिस्तानी क्रिकेट टीम जीत गई और  भारतीय टीम हार गई। चूँकि हार जीत अधिकाँस खेलों का अहम हिस्सा है ,इसलिए जब दो टीमें आमने सामने हों तो कोई एक तो अव्वल होगी ही !और  फाइनल हारने वाली दूजे पायदान पर ही होगी। इसमें आश्चर्य और अनर्थ जैसा क्या है ? हालाँकि किसी अंतर्राष्ट्रीय मैच के फाइनल में पहुँचना भी कम गर्व की बात नहीं और हारना भी उतना बुरा नहीं !लेकिन जब मामला भारत  विरुद्ध पाकिस्तान का हो तो खेल भावना की ऐंसी-तैंसी हो जाती है। तब दोनों मुल्कों में छद्म राष्ट्रवाद उभरकर गंदे बदबूदार परनाले की तरह खदबदाने लगता है। वेशक किसी अति सम्मानित टीम का नाक आउट या सेमीफाइनल में हारकर घर लौटना अवश्य शर्मनाक है। किन्तु इतने सारे दिग्गजों को हराने के बाद किसी खास देश की टीम से आख़िरी में हार जाना किसी को गवारा नहीं। जबकि फाइनल हारने वाला खुद उस विजेता टीम को पहले ही राउंड में बुरी तरह निपटा चुके हो !सांत्वना एवं संतुष्टि सिद्धांत के अनुसार भारतीय टीम की हार को शर्मनाक हार कहना गलत है। बल्कि उसे काबिले तारीफ हार कहा जाना चाहिए !
भारत और पाकिस्तान के नादान क्रिकेट प्रेमियों ने 'पुरुष क्रिकेट' के खेल में अंधराष्ट्रवाद घुसेड़कर खेल को युद्ध बना डाला है। गनीमत है कि महिला क्रिकेट में उतना उद्दाम राष्ट्रवाद नहीं पनपा है ! जो लोग अंधराष्ट्रवादी हैं उनके लिए अपने देश की टीम का किसी गैर मुल्क की टीम से हार जाना नाक़ाबिले बर्दास्त होता है। हार जाने  पर ऐंसे लोगों का दुखी होना तो स्वाभाविक है। किन्तु जो लोग प्रतिद्व्न्दी या दुश्मन देश के खैरख्वाह हैं उन्हें अपने ही मुल्क की हार से आनंद मिलता है इसकी वजह क्या ? यह कौनसी खेल भावना है कि अपने खिलाड़ी  पिटे तो खुश और पड़ोसी के बाइचांस जीत गए तो मन में लड्डू फूटे?  

जब जब भारत- पाकिस्तान  फाइनल में पहुँचते हैं ,तब तब उनके क्रिकेट समर्थक अपनी -अपने टीमों की जीत के दावे करने लगते हैं । जहाँ पाकिस्तान के भूतपूर्व दिग्गज खिलाड़ी अपनी ही टीम को कमजोर बताते हैं ,अपने कप्तान को नौसीखिया बताते हैं और पाकिस्तानी मीडिया भी उनकी अपनी टीम की जीत के प्रति अधिक आशान्वित नहीं रहता ! वहीं भारत के तमाम क्रिकेट मैनेजर्स और समर्थक बड़ी हेकड़ी से भारतीय टीम को बाबुलंद,अपने खिलाडियों को शेर और पाकिस्तानी टीम को चूहा सिद्ध करने में जुटे जाते हैं। सट्टे वाले भी भारतीय टीम की जीत के पक्ष में ज्यादा दाँव लगते हैं। लेकिन भारतीय टीम तभी जीतती है जब पाकिस्तानी टीम  कमजोर और हताश हो जाती है। अन्यथा पूजा पाठ ,यज्ञ ,आहुति और 'मौका मौका ' के निर्र्र्थक नारे काम नहीं आते !

कबीरा गर्व न कीजिये ,कबहुँ न हँसिये कोय।
अबहुँ नाव मझधार में ,का जाने का होय।।



शनिवार, 3 जून 2017

भारत में  अलगाववाद बनाम उग्र राष्ट्रवाद !


यदि पर्यावरणविद और धरती के प्रति फिक्रमंद लोग ईमानदारी से सोचें तो वे पाएंगे कि पर्यावरण का सर्वाधिक सत्यानाश अंधाधुंध औद्योगिकीकरण और मशीनीकरण की वजह से हुआ है। चूँकि अमेरिका,यूरोप,चीन और जापान इत्यादि देशों ने बहुत पहले ही बहुत तेजी से, प्रतिस्पर्धात्मक और अँधाधुंध विकास कर लिया है, इसलिए उनके द्वारा धरती के पर्यावरण का सर्वाधिक सत्यानाश हुआ है। गनीमत है कि अफ्रीकी और भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षेस देश उतने ज्यादा 'एड्वान्स' नहीं हुए कि धरती को बर्बाद करने में इन तथाकथित उन्नत राष्टों की बराबरी कर सकें !

हालाँकि यह सौ फीसदी सच है कि दुनिया के हर मनुष्य ने, हर समाज ने, हर राष्ट्र ने धरती के अन्य प्राणियों की बनिस्पत बहुत अधिक कूड़ा-कचरा इस हरी भरी पृथ्वी पर पैदा किया है। कुछ पर्यावरणविद बुद्धिजीवियों ने तो यहाँ तक कहा है कि धरती पर'मनुष्य ही संसार का सबसे बड़ा कचरा उत्पादक प्राणी है !' हालाँकि इस पदबंध के और भी दूरगामी निहितार्थ हैं। जैसे कि मानव मस्तिष्क ने ही हिरोशिमा नागासाकी का बीभत्स नरसंहार किया था। मानव मष्तिष्क द्वारा धरती को बर्बाद करने का ही भयानक प्रमाण है यह है कि उसी की बदौलत बीसवीं शताब्दी में दुनिया के दो 'महायुद्ध' हो चुके हैं। और मानव मस्तिष्क से ही धरती के अन्य प्राणियों को एवं वन सम्पदा को खतरा है। मानव मष्तिष्क ने ही ओजोन परत में अनगिनत छेद किये हैं! धरतीपर आबादी बढ़ाने में मानव शरीर का जितना रोल रहा, उससे अधिक मानव मष्तिष्क का और मनुष्य जाति के खुरापाती मजहबी उसूलों का नकारात्मक रोल रहा है।

धरती पर मानव आबादी बढ़ाने में चीन भले ही नंबर वन है,किन्तु आबादी की सापेक्ष बृद्धि दर में तो भारत ही दुनिया में अव्वल है। भारत में जनसंख्या बृद्धि में ,वे व्यक्ति और समाज सबसे आगे हैं जो अपढ़ हैं ,पिछड़े हैं ,जाहिल हैं ,गंवार हैं !जो लोग एक से अधिक शादियां करते है ,जिनको वैज्ञानिक निरोध मंजूर नहीं!जिन्हें उनके पुरातन सड़े गले पुरुषसत्तातात्मक रीति रिवाजों से बड़ा लगाव है। जिन्हें देश की फ़िक्र नहीं ,जिन्हें अपने ही बच्चों की फ़िक्र नहीं,जिन्हे केवल अपने घटिया अंध विश्वाश और अपनी कूड़मगज मानसिकता पर नाज है,वे ही कृतघ्न व्यक्ति व समाज आबादी बढ़ाने के लिए गुनहगार हैं। आबादी के विस्तार में उनका भी खूब योगदान है जो अपने बच्चों को बेहतर मानव बनाना ही नहीं चाहते !बल्कि वे उन्हें जेहादी,फिदायीन,आतंकी-अपराधी बनाकर देश-समाज में मरने मारने को छोड़ देते हैं। जो धरती को और मानवता को खुदा भगवान् और अल्लाह के भरोसे छोड़ देते हैं।  

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका को पैरिस संधि से अलग करने की धमकी दी है। ट्रम्प ने विश्वपर्यावरण संरक्षण संधि से अलग होने की वजह चीन और भारत की बढ़ती जनसंख्या को कारण बताया है। वेशक ट्रम्प और अमेरिकी नीतियां साम्राज्य्वादी हैं ,किन्तु उसका आरोप नितांत कड़वा सच है !जब यह सिद्धांत माने हो गया कि ''मनुष्य ही संसार का सबसे बड़ा कचरा उत्पादक प्राणी है" तो भारत और चीन की ज्यादा जबाबदेही बनती है कि जनसंख्या नियंत्रण पर अधिक ध्यान दें। चूँकि चीन के पास उसकी जनसंख्या के अनुपात में ज्यादा बड़ा भूभाग है,कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा पारित किसी भी प्रस्ताव के विरोध में वहां कोई पृथक तबका या असहमत वर्ग नहीं है।  इसीलिये चीन में अपने राष्ट्र को जिन्दा रखने की अनंत सामर्थ्य है। इसलिए चीन को किसी की फ़िक्र नहीं है।

भारत में किसी भी सार्थक योजना पर और विकास के किसी भी प्रोग्राम पर महज दो राय ही नहीं बल्कि प्रतिरोध के भी अनेक स्वर हैं। दुनिया के अधिकांश मुल्कों में आमतौर पर एक सा खानपान,एक सा रहन सहन ,एक सा बोलना चालना और एक् सा राष्ट्रीय चरित्र है। किन्तु दुर्भाग्य से भारत में न केवल मजहबी या सांस्कृतिक वैविद्ध्य है ,अपितु जनसंख्या बृद्धि और परिवार नियोजन जैसी चीजों पर भी साम्प्रदायिकता का सामंतयुगीन रंग चढ़ा हुआ है। एक देश में ही अनेक जातियां ,अनेक मत पंथ सम्प्रदाय,अनेक भाषा और जीवन शैलियाँ तो हो सकते हैं, किन्तु संविधान और राष्ट्रीय चरित्रगत मूल्य जुदा जुदा हों तो राष्ट्र की एकता को खतरा है। शायद इसीलिये कश्मीर से और उत्तरपूर्व के अन्य राज्यों से धारा ३७० हटाने और समान नागरिक क़ानून की मांग बार बार उठते रहती है। मुगलकाल में अयोध्या ,काशी ,मथुरा जैसे हिन्दू तीर्थ स्थलों पर अल्पसंख्यकों का प्रभुत्व स्वाभाविक था ,क्योंकि वे विजेता थे। किन्तु २१ वीं शताब्दी के लोकतान्त्रिक गणतंत्र भारत में बहुसंख्यक वर्ग को ब्लेक मेल नहीं किया जा सकता। इसीलिए २० वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अयोध्या में रामलला मंदिर निर्माण और २१ वीं शताब्दी में उसकी प्रतिक्रिया 'उग्र राष्ट्रवाद' के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है। परिणामस्वरूप इन दिनों हिंदुत्व की आवाज कुछ ज्यादा ही बुलंद है। अंधराष्ट्रवादियों का सत्ता में आना भी एक ऐतिहासिक और आवश्यक प्राकृतिक घटना है। आइंदा यह सत्ता हस्तांतरण या परिवर्तन तब तक सम्भव नहीं जब तक कि अल्पसंख्यक वर्ग खुद राष्ट्रवादी नहीं हो जाता! जब तक वे खुद तीन तलॉक , चार शादी तथा परिवार नियोजन पर वैज्ञानिक दॄष्टि नहीं अपनाते तब तक भारत में बहुसंख्यक वर्ग को उदारवाद की ओर मोड़ पाना असम्भव है। जब तक अल्पसंख्यक वर्ग आतंकवाद का खुलकर विरोध नहीं करता ,जब तक वे अयोध्या ,काशी मथुरा का मोह नहीं छोड़ देते,तब तक भारत में 'संघ परिवार' ही सिरमौर रहेगा। किन्तु यदि अल्पसंख्यक वर्ग ने पुरातनपंथी कटटरता छोड़कर अयोध्या में रामलला मंदिर निर्माण को हरी झंडी दे दे और देश के संविधान को मजहब से ऊपर मान ले तो  भारत में धर्मनिरपेक्षता समाजवाद का झंडा बुलंद होने से कोई नहीं रोक सकता। बिना रामलला मंदिर बने,बिना कश्मीर से आतंकवाद खत्म होने और  शांति स्थापित हुए बिना भारत से कटटर हिन्दुत्ववाद को द्रवीभूत नहीं किया जा सकता। जब तक मुसलमान मुख्यधारा से खुद नहीं जुड़ते तब तक कटटरपंथियों को सत्ताच्युत कर पाना किसी के लिए भी सम्भव नहीं !