यदि पर्यावरणविद और धरती के प्रति फिक्रमंद लोग ईमानदारी से सोचें तो वे पाएंगे कि पर्यावरण का सर्वाधिक सत्यानाश अंधाधुंध औद्योगिकीकरण और मशीनीकरण की वजह से हुआ है। चूँकि अमेरिका,यूरोप,चीन और जापान इत्यादि देशों ने बहुत पहले ही बहुत तेजी से, प्रतिस्पर्धात्मक और अँधाधुंध विकास कर लिया है, इसलिए उनके द्वारा धरती के पर्यावरण का सर्वाधिक सत्यानाश हुआ है। गनीमत है कि अफ्रीकी और भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षेस देश उतने ज्यादा 'एड्वान्स' नहीं हुए कि धरती को बर्बाद करने में इन तथाकथित उन्नत राष्टों की बराबरी कर सकें !
हालाँकि यह सौ फीसदी सच है कि दुनिया के हर मनुष्य ने, हर समाज ने, हर राष्ट्र ने धरती के अन्य प्राणियों की बनिस्पत बहुत अधिक कूड़ा-कचरा इस हरी भरी पृथ्वी पर पैदा किया है। कुछ पर्यावरणविद बुद्धिजीवियों ने तो यहाँ तक कहा है कि धरती पर'मनुष्य ही संसार का सबसे बड़ा कचरा उत्पादक प्राणी है !' हालाँकि इस पदबंध के और भी दूरगामी निहितार्थ हैं। जैसे कि मानव मस्तिष्क ने ही हिरोशिमा नागासाकी का बीभत्स नरसंहार किया था। मानव मष्तिष्क द्वारा धरती को बर्बाद करने का ही भयानक प्रमाण है यह है कि उसी की बदौलत बीसवीं शताब्दी में दुनिया के दो 'महायुद्ध' हो चुके हैं। और मानव मस्तिष्क से ही धरती के अन्य प्राणियों को एवं वन सम्पदा को खतरा है। मानव मष्तिष्क ने ही ओजोन परत में अनगिनत छेद किये हैं! धरतीपर आबादी बढ़ाने में मानव शरीर का जितना रोल रहा, उससे अधिक मानव मष्तिष्क का और मनुष्य जाति के खुरापाती मजहबी उसूलों का नकारात्मक रोल रहा है।
धरती पर मानव आबादी बढ़ाने में चीन भले ही नंबर वन है,किन्तु आबादी की सापेक्ष बृद्धि दर में तो भारत ही दुनिया में अव्वल है। भारत में जनसंख्या बृद्धि में ,वे व्यक्ति और समाज सबसे आगे हैं जो अपढ़ हैं ,पिछड़े हैं ,जाहिल हैं ,गंवार हैं !जो लोग एक से अधिक शादियां करते है ,जिनको वैज्ञानिक निरोध मंजूर नहीं!जिन्हें उनके पुरातन सड़े गले पुरुषसत्तातात्मक रीति रिवाजों से बड़ा लगाव है। जिन्हें देश की फ़िक्र नहीं ,जिन्हें अपने ही बच्चों की फ़िक्र नहीं,जिन्हे केवल अपने घटिया अंध विश्वाश और अपनी कूड़मगज मानसिकता पर नाज है,वे ही कृतघ्न व्यक्ति व समाज आबादी बढ़ाने के लिए गुनहगार हैं। आबादी के विस्तार में उनका भी खूब योगदान है जो अपने बच्चों को बेहतर मानव बनाना ही नहीं चाहते !बल्कि वे उन्हें जेहादी,फिदायीन,आतंकी-अपराधी बनाकर देश-समाज में मरने मारने को छोड़ देते हैं। जो धरती को और मानवता को खुदा भगवान् और अल्लाह के भरोसे छोड़ देते हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका को पैरिस संधि से अलग करने की धमकी दी है। ट्रम्प ने विश्वपर्यावरण संरक्षण संधि से अलग होने की वजह चीन और भारत की बढ़ती जनसंख्या को कारण बताया है। वेशक ट्रम्प और अमेरिकी नीतियां साम्राज्य्वादी हैं ,किन्तु उसका आरोप नितांत कड़वा सच है !जब यह सिद्धांत माने हो गया कि ''मनुष्य ही संसार का सबसे बड़ा कचरा उत्पादक प्राणी है" तो भारत और चीन की ज्यादा जबाबदेही बनती है कि जनसंख्या नियंत्रण पर अधिक ध्यान दें। चूँकि चीन के पास उसकी जनसंख्या के अनुपात में ज्यादा बड़ा भूभाग है,कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा पारित किसी भी प्रस्ताव के विरोध में वहां कोई पृथक तबका या असहमत वर्ग नहीं है। इसीलिये चीन में अपने राष्ट्र को जिन्दा रखने की अनंत सामर्थ्य है। इसलिए चीन को किसी की फ़िक्र नहीं है।
भारत में किसी भी सार्थक योजना पर और विकास के किसी भी प्रोग्राम पर महज दो राय ही नहीं बल्कि प्रतिरोध के भी अनेक स्वर हैं। दुनिया के अधिकांश मुल्कों में आमतौर पर एक सा खानपान,एक सा रहन सहन ,एक सा बोलना चालना और एक् सा राष्ट्रीय चरित्र है। किन्तु दुर्भाग्य से भारत में न केवल मजहबी या सांस्कृतिक वैविद्ध्य है ,अपितु जनसंख्या बृद्धि और परिवार नियोजन जैसी चीजों पर भी साम्प्रदायिकता का सामंतयुगीन रंग चढ़ा हुआ है। एक देश में ही अनेक जातियां ,अनेक मत पंथ सम्प्रदाय,अनेक भाषा और जीवन शैलियाँ तो हो सकते हैं, किन्तु संविधान और राष्ट्रीय चरित्रगत मूल्य जुदा जुदा हों तो राष्ट्र की एकता को खतरा है। शायद इसीलिये कश्मीर से और उत्तरपूर्व के अन्य राज्यों से धारा ३७० हटाने और समान नागरिक क़ानून की मांग बार बार उठते रहती है। मुगलकाल में अयोध्या ,काशी ,मथुरा जैसे हिन्दू तीर्थ स्थलों पर अल्पसंख्यकों का प्रभुत्व स्वाभाविक था ,क्योंकि वे विजेता थे। किन्तु २१ वीं शताब्दी के लोकतान्त्रिक गणतंत्र भारत में बहुसंख्यक वर्ग को ब्लेक मेल नहीं किया जा सकता। इसीलिए २० वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अयोध्या में रामलला मंदिर निर्माण और २१ वीं शताब्दी में उसकी प्रतिक्रिया 'उग्र राष्ट्रवाद' के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है। परिणामस्वरूप इन दिनों हिंदुत्व की आवाज कुछ ज्यादा ही बुलंद है। अंधराष्ट्रवादियों का सत्ता में आना भी एक ऐतिहासिक और आवश्यक प्राकृतिक घटना है। आइंदा यह सत्ता हस्तांतरण या परिवर्तन तब तक सम्भव नहीं जब तक कि अल्पसंख्यक वर्ग खुद राष्ट्रवादी नहीं हो जाता! जब तक वे खुद तीन तलॉक , चार शादी तथा परिवार नियोजन पर वैज्ञानिक दॄष्टि नहीं अपनाते तब तक भारत में बहुसंख्यक वर्ग को उदारवाद की ओर मोड़ पाना असम्भव है। जब तक अल्पसंख्यक वर्ग आतंकवाद का खुलकर विरोध नहीं करता ,जब तक वे अयोध्या ,काशी मथुरा का मोह नहीं छोड़ देते,तब तक भारत में 'संघ परिवार' ही सिरमौर रहेगा। किन्तु यदि अल्पसंख्यक वर्ग ने पुरातनपंथी कटटरता छोड़कर अयोध्या में रामलला मंदिर निर्माण को हरी झंडी दे दे और देश के संविधान को मजहब से ऊपर मान ले तो भारत में धर्मनिरपेक्षता समाजवाद का झंडा बुलंद होने से कोई नहीं रोक सकता। बिना रामलला मंदिर बने,बिना कश्मीर से आतंकवाद खत्म होने और शांति स्थापित हुए बिना भारत से कटटर हिन्दुत्ववाद को द्रवीभूत नहीं किया जा सकता। जब तक मुसलमान मुख्यधारा से खुद नहीं जुड़ते तब तक कटटरपंथियों को सत्ताच्युत कर पाना किसी के लिए भी सम्भव नहीं !
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