रविवार, 30 दिसंबर 2012
गुरुवार, 27 दिसंबर 2012
गेंगरेप, हत्या, बलात्कार के लिए पूरा देश जिम्मेदार है।
मीडिया की ख़बरों के केंद्र में आजकल केवल बलात्कार है ।
दुनिया भर में "मेरा -भारत-महान " हो रहा शर्मशार है ।।
जनता 'सत्ता' को 'सत्ता' जनता को बताती कसूरवार है ।
चंद लोगों की भोग लिप्सा देख- देख कर आवाम बेक़रार है
नारी अंग प्रदर्शन बिना आज कोई विज्ञापन टिकता नहीं।
प्रतिस्पर्धा के बाज़ार में इसके बिना कोई माल बिकता नहीं।।
सूचना तंत्र की क्रांति, फिर भी वैचारिक भ्रान्ति- बरकरार है।
नैतिक मूल्यों का पतन इन सबके लिए 'व्यवस्था' जिम्मेदार है।।
श्रीराम तिवारी
दुनिया भर में "मेरा -भारत-महान " हो रहा शर्मशार है ।।
जनता 'सत्ता' को 'सत्ता' जनता को बताती कसूरवार है ।
चंद लोगों की भोग लिप्सा देख- देख कर आवाम बेक़रार है
नारी अंग प्रदर्शन बिना आज कोई विज्ञापन टिकता नहीं।
प्रतिस्पर्धा के बाज़ार में इसके बिना कोई माल बिकता नहीं।।
सूचना तंत्र की क्रांति, फिर भी वैचारिक भ्रान्ति- बरकरार है।
नैतिक मूल्यों का पतन इन सबके लिए 'व्यवस्था' जिम्मेदार है।।
श्रीराम तिवारी
मंगलवार, 25 दिसंबर 2012
श्रीराम तिवारी -षष्ठिपूर्ति एवं कविता संकलन '60 पन्ने ' का विमोचन समारोह
इंदौर दिनांक 22/12/2012
मंच पर {बाएं से दायें } श्रीराम तिवारी ,श्री कैलाश विजयवर्गीय [उद्योग टेक्नालोजी मंत्री,मध्यप्रदेश सरकार] श्री श्रीवर्धन त्रिवेदी[सनसनी स्टार],प्रो मानसिंह परमार [विभागाध्यक्ष -जर्नलिज्म एंड मॉस कम्युनिकेशन ,देवी अहिल्या विश्वविद्द्यालय,इंदौर]
' इंदौर प्रेस क्लब' सभागार में देश के ,प्रदेश के और इंदौर शहर के गणमान्य नागरिकों,बुद्धिजीवियों ,कवियों,साहित्यकारों,ट्रेड यूनियन नेताओं,तथा वरिष्ठजनों के सानिध्य में कॉमरेड श्रीराम तिवारी का "षष्टिपूर्ति सम्मान समारोह" कार्यक्रम अभूतपूर्व गरिमा और उच्च सांस्कृतिक शालीनता के साथ मनाया गया।उनके 60 वें जन्मोत्तसव के अवसर पर इंदौर प्रेस क्लब में मीडिया के युवा -हस्ताक्षरों ने विशेष रूप से साहित्य,कला,संगीत तथा सामाजिक सेवा क्षेत्र की खास हस्तियों को आमंत्रित किया था। सर्व श्री कल्याण जैन - पूर्व सांसद एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष ,अनुशाशन समिति- सपा ,कामरेड कैलाश लिम्बोदिया -जिला सचिव सीपीएम ,श्री अनिल त्रिवेदी प्रख्यात समाजसेवी एवं अधिवक्ता, श्री प्रभु जोशी कवि -चित्रकार-कथाकार,स्माइल लहरी कार्टूनिस्ट,प्रदीप नवीन- कवि एवं व्यंगकार,श्री हरेराम वाजपेई कवि -बहुबिध संस्कृतिकर्मी,सदाशिव कौतुक-कवि एवं साहित्यकार, श्याम सुन्दर यादव -राष्ट्रीय महासचिव -इंटक ,कामरेड गौरी शंकर शर्मा -महासचिव -सीटू जिला इंदौर, कामरेड सुधाकर उर्ध्वारेषे -राष्ट्रीय उपाध्यक्ष -वीमा कर्मचारी महा संघ ,कामरेड अजीत केतकर -महासचिव-aiiea ,कामरेड आरबी बांके,-राष्ट्रीय पदाधिकारी-aibsnlea ,कामरेड सुन्दरलाल जी,कामरेड सीके जोशी - राष्ट्रीय संगठन सचिव-nftebsnl ,कामरेड कमल टटवाड़े -उपाध्यक्ष -इंदौर मंडल डाक-तार सोसायटी [मर्यादित]इंदौर, कामरेड योगेन्द्र चौहान -जिला सचिव aibsnlea ,कामरेड एस के जोशी-जिला सचिव -snea ,इत्यादि क्रन्तिकारी साथियों के आलावा शहर की तमाम ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधि खास तौर से वीमा,बैंक ,शिक्षा,पोस्टल तथा मीडिया क्षेत्र के वे साथी इस अवसर पर सेकड़ों की तादाद में उपस्थित रहे जो श्रीराम तिवारी की काव्यात्मक और क्रांतिकारी वैचारिक प्रतिबद्धता से गौरवान्वित हुआ करते हैं।नगर के अनेक साहित्यकार ,ट्रेड यूनियन लीडर और मीडिया के युवा हस्ताक्षर इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में शामिल होकर अभिभूत हो गए।
इस अवसर पर श्रीराम तिवारी के नए काव्य -संग्रह " साठ पन्ने" का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि माननीय कैलाश विजयवर्गीय-उद्द्योग एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ,मध्प्रदेश थे।कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि थे - श्री श्रीवर्धन जी त्रिवेदी-प्रख्यात मीडिया पर्सोनालिटी एवं सनसनी -सूत्रधार । इस भव्य एवं अनुपम कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफ़ेसर मानसिंह परमार ने की। श्री गणेश चन्द्र पाण्डेय -वरिष्ठ महाप्रबंधक -भारत संचार निगम लिमिटेड इंदौर इस गरिमामय साहित्यिक-सांस्कृतिक युति के विशेष अतिथि थे।
इस कार्यक्रम के कई उल्लेखनीय और दिलचस्प पहलु थे :-
[एक]- पुस्तक के विमोचन पर ही पुस्तक के रचयिता को ज्ञात हुआ कि यह उसीकी रचनाओं का संग्रह है जो वो वर्षों से अपने ब्लॉग पर लिखता आया है। चिरंजीव प्रवीण ,चिरंजीव पुष्पेन्द्र, चिरंजीव भरत , चिरंजीव श्रीवर्धन त्रिवेदी और सुश्री अर्चना तिवारी [एंकर-जी न्यूज़] ने 'पापा'[श्रीराम तिवारी] को उनके 60 वें जन्म दिन पर सरप्राइज देने के उद्देश्य से यह शानदार तोहफा तैयार किया जिसमें सुदेश तिवारी का सहयोग सराहनीय रहा .
[दो] मंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय जी 6 बजे ग्वालियर में थे और साढ़े सात बजे 'इंदौर प्रेस क्लब' में आ पहुंचे।
[तीन]श्री श्रीराम तिवारी को मंच से एक शब्द नहीं बोलने दिया गया , जबकि सारा कार्यक्रम उनके लिए ही था ,उन्ही की पुस्तक का विमोचन था ,उन्ही का 'षष्टिपूर्ति सम्मान समारोह' था और सूत्रधार भी उन्ही के सुपुत्र डॉ प्रवीण तिवारी थे। श्री तिवारी जी को अपनी बात कहने या काव्य-पाठ करने का अवसर नहीं मिल पाने के वावजूद कार्यक्रम की सभी ने मुक्त कंठ से सराहना की।
[ चार ] कार्यक्रम में इतनी भीड़ हो गई कि 200 कुर्सियों का हाल खचाखच भरा था और सेकड़ों लोग बाहर-भीतर खड़े थे।हल्की -हल्की ठण्ड के वावजूद लोग कार्यक्रम की भव्यता और गरिमा देख दो घंटे तक खड़े रहे।
[पांच] श्रीराम तिवारी' षष्टिपूर्ति समारोह ' और ' साठ पन्ने' के विमोचन कार्यक्रम को उपस्थित सम्माननीय साहित्यकारों और वुद्धिजीवियों ने समवेत स्वर में कहा "भूतो न भविष्यति"
कार्यक्रम के अंतिम चरण में केक काटकर 60 वां जन्म दिन मनाते हुए कविवर और साहित्य मनीषी श्रीराम तिवारी ने सर्व श्री-कल्याण जैन,अनिल त्रिवेदी,सुधाकर उर्ध्व्रेशे,अजीत केतकर,गौरी शंकर शर्मा,परेश टोकेकर,श्यामसुंदर यादव ,सुदेश तिवारी,नरेन्द्र चौवे, अनुज बधू किरण , भाई राजेन्द्र,रवीन्द्र अवश्थी जी हाडा जी,धर्मपत्नी उर्मिला तिवारी, पुत्री अनामिका अंजना तिवारी पंडित माधव उपाध्याय, पंडित मिलन तिवारी पंडित श्री कीर्तिवाल्लभ खर्कवाल, श्रीमती पुष्पा खर्कवाल, अग्रज पंडित राम सहाय तिवारी पंडित ,नाथूराम चतुर्वेदी,अनुज परशुराम ,अनुज वधु मनोरमा , चिरंजीव -सिद्धार्थ,लवलीन कार्तिक रोहित ,हिमांशु,रूपेश,निषध, रुपेंद्र्सिंह , शुभम, संजय, श्रीमती रश्मि चौबे,श्रीमती रेखा -मुकेश गंगेले,बहिन फूला, पंडित हरिनारायण शुक्ल जी,पंडित लक्ष्मी कान्त चतुर्वेदी ,राजेंद् तिवारी ,राजेश तिवारी ,मिलन तिवारी,बंटी,अक्षत,और चेतन्य तिवारी इत्यादि का आभार माना।
इस महत और नितांत साहित्यिक /सांस्कृतिक कार्यक्रम की विशेषता यह थी की सुदूर भारत से हजारों मील दूर अमेरिका से चिरंजीव आसुतोष ,आस्ट्रलिया से सुधीर,सिगापुर से शेलेश और देश के कोने -कोने से सेकड़ों लोगों ने खाश तौर से भारत संचार निगम लिमिटेड के कर्मचारियों/अधिकारीयों और ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं / नेताओं ने अपने प्रिय कामरेड श्रीराम तिवारी को उनके " षष्टिपूर्ति -सम्मान समरोह " और काव्य संग्रह विमोचान पर क्रांतिकारी सन्देश प्रेषित किये।
संकलन: डॉ ;प्रवीण श्रीराम तिवारी
लाइव -इंडिया
1- मंदिर मार्ग ,न यी दिल्ली।
रविवार, 2 दिसंबर 2012
वी वॉंट मोर योर हानर:
इन दिनों जबकि सत्तासीन राजनीतिक गठबंधन और विपक्ष के सभी दल देश की जनता के कष्ट दूर करने के बजाय उसके बहाने एक- दूसरे पर कीचड उछालने में लगे हों , शाम-दाम -दंड-भेद से आगामी चुनाव जीतकर सत्ता में पहुँचने को बेकरार हों , लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तम्भ लगभग लकवाग्रस्त हो चुके हों, सिद्धान्तहीनता और मूल्यहीनता चरम पर हो ,राष्ट्र असुरक्षित हो तब लोकतंत्र के एक मज़बूत स्तम्भ के रूप में -न्यायपालिका का अवतरण कुछ इस तरह प्रतीत होता है जैसे धर्म् भीरुओं को श्रीमद भगवद गीता के इस श्लोक में प्रतीत होता है:-
' यदा -यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत!
अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम !!
तो हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि शायद स्थितियां उतनी बुरी नहीं हैं जितनी कल्कि अवतार के लिए जरुरी हैं शायद पापियों के पापों का घड़ा अभी पूरा नहीं भरा। या नए दौर में इश्वर भी कोई नए रूप मे शोषित,दमित,छुधित,तृषित जनता -जनार्दन का उद्धार करेगा! शायद भारतीय न्याय पालिका के किसी कोने से 'सत्य स्वरूप -मानव कल्याण स्वरूप' कोई तेज़ पुंज शक्ति अवतरित हो और इस वर्तमान दौर के कुहांसे को दूर कर दे।
यदि वास्तव में स्थितियां इतनी बदतर हैं जितनी की विपक्षी पार्टियां ,स्वनामधन्य स्वयम्भू समाज सुधारक या मीडिया का एक हिस्सा पेश कर रहा है, तो फिर 'भये प्रगट कृपाला ,दीनदयाला ......".का महाशंख्नाद तो कब का हो जाना चाहिए था और प्रभु कल्कि रूप में अब तक महा पापियों को यम पुर भेज चुके होते।दरसल में समसामयिक राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय चुनौतियों का आकलन अपने-अपने वर्गीय चरित्र
और सोच पर आधारित है।अमीर और कार्पोरेट वर्ग की चिंता हुआ करती है की सरकारें हमेशा ऐंसी हों जो उनकी चाकरी करें और उनके मुनाफाखोरी वाले सिस्टम में दखल न दे। मध्यम और बुर्जुआ वर्ग की चिंता रहती है कि रूसो ,वाल्टेयर उनका हुक्का भरें याने देश के करोड़ों नंगे भूंखे ,बेघर ठण्ड में ठिठुरकर मरते रहें किन्तु उन्हें तो बस बोलने की ,लिखने की,हंसने की,रोने की आज़ादी चाहिए। याने उनकी कोई आर्थिक समस्याएं नहीं , सामाजिक राजनैतिक समस्या नहीं,अगर होगी तो वे स्वयम सुलझा लेंगे याने सरमायेदारों से उनका कोई स्थाई अंतर्विरोध नहीं वे तो सिर्फ अपने अभिजात्य मूल्यों की परवाह करते हैं और उसके लिए अपने ही वर्ग बंधुओं को जेल भिजवाने को भी तैयार हैं।बात जब राष्ट्र के मूल्यों की ,क़ानून के राज्य की,सर्वसमावेशी जन-कल्याणकारी निजाम की आती है तो वे अपने वर्गीय अंतर्विरोध भुलाकर तमाम झंझटों का ठीकरा देश की अवाम के सर फोड़ने के लिए भी एकजुट हो जाते हैं। दुनिया के तमाम राष्ट्रों में प्रकारांतर से वर्गीय द्वंदात्मकता का यही सिलसिला जारी है।लेकिन उन राष्ट्रों के बारे में कुछनहींकहा जा सकता जिन्होंने पूँजीवादी निजाम को सिरे से नकार दिया है और सामंतवाद को कुचल दिया है। ,लेकिन यह जरुर उल्लेखित किया जा सकता है कि वहां के समाजों का मानवीयकरण संतोषप्रद स्थिति में आ चूका है।इसके बरक्स पूंजीवादी ,अर्धसामंती, अर्धपूंजीवादी और अमेरिका के पिछलगू राष्ट्रों में
सभी जगह वेरोजगार,भूमिहीन मजदूर-किसान पर संकट आन पड़ा है। भारत में नई आर्थिक व्यवस्था ने बस इतना ही कमाल किया है कि पहले 49 अरबपति थे अब शायद 70 हो गए है और गाँव में गरीब यदि 20 रुपया रोज कमाने वाला और शहर का गरीब 32 रुपया रोज कमाने वाला माना जाए, जैसा कि सरकारी सर्वे की रिपोर्ट बताती हैं तो उनकी तादाद देश में 50 करोड़ से अधिक ही है।इन 50 करोड़ नर-नारियों को ज़िंदा रहने के लिए रोटी कपड़ा मकान की जरुरत है। उन्हें किसी का कार्टून बनाने की या किसी और तरह की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए न तो समय है और न समझ है। इस देश में खंडित राजनैतिक जनादेश की तरह खंडित अभिरुचियाँ , खंडित मानसिकता और खंडित आस्थाएं होने से परिणाम भी खंड-खंड मिल रहे हैं। यही वजह है कि न केवल क्रान्तिकारी विचार छिन्न-भिन्न होते जा रहे हैं अपितु नैतिक मूल्य भी विखंडित होते जा रहे हैं। चरमराती व्यवस्था में पैबंद जरुर लग रहे हैं और इन पैबंद लगाने वालों का सम्मान किया जाना चाहिए।
फेसबुक पर टिप्पणी लिखने व उस टिप्पणी को पसंद करने के आरोप में मुंबई की दो लडकियों की गिरफ्तारी पर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी गहरी नाराजी व्यक्त की है।मौजूदा चीफ जस्टिस श्रीमान 'अल्तमस कबीर साहब की अगवाई में बड़ी बेंच ने अपनी कड़ी आपत्ति जाहिर की है कि किसी ने भी इस मामले में जनहित याचिका दायर क्यों नहीं की। हालांकि कोर्ट स्वयम संज्ञान लेने ही वाला था कि दिल्ली की श्रेया सिंघल ने 'अभिव्यक्ति की आज़ादी' के इस मसले को जन हित याचिका के रूप में पेश कर दिया और अब सभी दूर इस बात की चर्चा चल रही है की फेसबुक पर निरापद टिप्पणी के निहतार्थ अब सूचना प्रौद्दोगिकी एक्ट में तब्दीली की किस मंजिल तक जायेंगे? मुंबई में कुछ तत्वों ने कसम खा रखी है कि वे नहीं सुधरेंगे। उनके लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी, भारतीय संविधान,लोकतंत्र सब बकवाश है। मध्ययुगीन बर्बर डकेतों,हमलावरों और फासिस्टों का रक्त जिनकी शिराओं में बह रहा हो उनसे उम्मीद नहीं है की वे राष्ट्र की अस्मिता और क़ानून का सम्मान करेंगें। सुप्रीम कोर्ट के इस अप्रत्याशित निर्णय से देश में क़ानून का राज न्यूनाधिक ही सही कायम कायम तो हो सकेगा - जिन्होंने कल तक मुंबई को बंधक बना रखा था और पूरे देश को आँखे दिखा रहे थे अब वे देश और दुनिया के सामने हतप्रभ हैं। ये रुग्न मानसिकता वाले चाहे मुबई के नस्लवादी हों,चेन्नई के भाषावादी हों , उत्तरपूर्व के अलगाववादी हों या उगे वाम पंथी नक्सलवादी हों, सभी को काबू में करने का वक्त आ चूका है। यह सुअवसर सुप्रीम कोर्ट ने देश को अनेक बार उपलब्ध करवाया है ,देश की जनता को यह अवसर खोना नहीं चाहिए। भारतीय संविधान ,भारतीय मूल्य और देश के करोड़ों मेहनतकशों की श्रम शक्ति की अनदेखी करने वाले व्यक्ति,समूह या विचारधारा को निर्ममता से कुचल दिया जाना चाहिए। ताकि इस देश में भाषा,नस्ल,मज़हब और क्षेत्रीयता की बिना पर किसी शख्स का महिमा मंडन करने वाले नादान खुद अपने कृत्य पर पर शर्मिंदा हों।
पौराणिक मिथकों की अंध श्रद्धा ने कतिपय अकिंचनों को इस कदर अँधा कर दिया है कि प्रभु लीला हो रही है किन्तु प्रज्ञा चक्षुओं के अभाव में उसकी करनी को देख् नहीं पा रहे हैं। ,पापियों को तो बाकायदा यमपुर भेजा जा रहा है, कभी किसी साम्प्रदायिक अहमक पापी के मरने पर लाखों लोगों को दिखावे का शोक करते देखा जा सकता है। ईश्वर की महिमा पर आस्था पर और यकीन बढ़ता चला ही जा रहा है। निक्रष्ट परजीवी दिवंगत जब तक जिए फ़ोकट की खाते रहे, कभी भाषा के नाम पर,कभी क्षेत्रीयता के नाम पर,कभी क्रिकेट के नाम पर ,कभी फिल्म निर्माण में हस्तक्षेप के नाम पर कभी अपनी पारिवारिक दादागिरी के नाम पर आजीवन देश को ,सम्विधान को और डरपोंक जनता को ठगते रहे . इनकी करतूतों को जानते हुए भी लोग उनके चरणों में दंडवत करते रहे। जो व्यक्ति मरणोपरांत भी देश में झगडा- फसाद, रोड जाम ,शहर बंद कराने , अभिव्यक्ति पर पावंदी लगवाने को उद्द्यत हो, जो इतना स्वार्थी हो की अपने सगे भतीजे को भी गैर मानता हो वो पूरे मराठी समाज का शुभचिंतक और हितचिन्तक कैसे हो सकता है? निसंदेह उन्होंने अपने जीते जी कुछ देश भक्ति पूर्ण काम अवश्य किये होंगे। उनके अनुयाईयों की जिम्मेदारी है कि उनके तथाकथित महान कार्यों की सूची देश और दुनिया के सामने रखें ताकि वे लोग जो उनके अंत्येष्टि संस्कार के दरम्यान बेहद तकलीफ भोगते रहे,भयभीत होकर चुपचाप कष्ट उठाते रहे, वे भी महसूस करें कि उनकी तकलीफ उस महान पुरुष के लिए श्रद्धा सुमन थी। जो उन महात्मा के महान बलिदानों के सामने नगण्य थी। शहीद भगतसिंह ,शहीद चंद्रशेखर आज़ाद ,महात्मा गाँधी की तरह लोग उनके अमर बलिदानों को भी सदा याद रखेंगे।
जिनके स्वर्गारोहण पर पूरा महानगर कई दिनों तक जडवत रहा उनकी असलियत क्या है? यह इसलिए नहीं की लोग उन पर जान छिड़कते थे बल्कि इसलिए की कहीं किसी फसाद के शिकार न हो जाएँ या दूकान न लुट जाए सो लोग डरे सहमे हुए थे। इस घटना को फेसबुक पर महज एक सार्थक टिप्पणी के रूप में एक लड़की पेश करती है ,दूसरी कोई सहेली उस टिप्पणी पर 'पसंद' क्लिक करती है और 'अख्खा मुंबई मय पुलिस गब्बरसिंह होवेला'''' न केवल मुंबई ,न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे भारत में 'सुई पटक सन्नाटा' धन्य हैं वे लोग जिन्होंने सहिष्णुता का ऐतिहासिक कीर्तीमान बना डाला।
किस के डर से ? इस घटना के बहाने संविधान ,राष्ट्र और उसकी अस्मिता में से कोई भी चीज साबुत नहीं छोड़ी गई। कांग्रेस और भाजपा अपने-अपने कर्मों से खुद ही असहज थे। कितु वामपंथ ने भी तो इस प्रकरण में सिवाय बयानबाजी के कुछ खास नहीं किया। धन्य हैं पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू-अध्यक्ष भारतीय प्रेस परिषद् . जिन्होंने खुलकर कहा कि बाल ठाकरे इस सम्मान के हकदार नहीं कि उनके शव को तिरंगे से विभूषित किया जाए या राजकीय सम्मान से नवाज़ा जाए। यदि यह सम्मान उन्हें दिया भी गया है तो उनके अनुयाईयों को हक़ नहीं की देश के क़ानून और नैतिक मूल्यों को ठेंगा दिखाएँ। अब भारत के महान सपूत सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस श्रीमान अल्तमस कबीर साहब ने भी दिल्ली की श्रेया सिंघल की याचिका को आधार मानकर 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्र ' के साथ साथ देश की अस्मिता की रक्षार्थ याने राजनैतिक गुंडागर्दी पर नकेल कसने का बीड़ा उठाया है। हमें उन पर और सुप्रीम कोर्ट पर गर्व है। उधर बंगाल में ममता बनर्जी द्वारा और पोंडीचेरी में चिदमरम पुत्र के बहाने वहां की पुलिस द्वारा अभिव्यक्ति का गला घोंटा जाने पर भी जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने सवालिया निशाँ लगाकर, पूरी सत्यनिष्ठा और राष्ट्र्धर्मिता के साथ इस जर्जर -दिग्भ्रमित-भेडचाल वाले जन-मानस को जगाने का शानदार शंखनाद किया है उनका साधुवाद।सुप्रीम कोर्ट का कोटिशः नमन। हमें विश्वाश है कि जिस तरह से अतीत में जस्टिस बी आर कृष्ण अय्यर समेत महान न्यायविदों ने न केवल भारत राष्ट्र के संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों की रक्षा के लिए,न केवल प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए, न केवल फासिस्ट और साम्प्रदायिक तत्वों पर अंकुश लगाने के लिए, बल्कि देश के अश्न्ख्य शोषित -पीड़ित,दमित जनों के पक्ष में अपनी मेघा शक्ति का इस्तेमाल किया था, न केवल उनके आदर्शों तक अपितु उनसे भी आगे जाकर वर्तमान दौर में देश पर लादी जा रही कार्पोरेट दादगिरी और पर राष्ट्र परालाम्बिता के खिलाफ अपने बुद्धि चातुर्य और नितांत उच्च नैतिक मूल्यवत्ता का प्रयोग करेंगे।
देश के अमर शहीदों से उत्प्रेरित होकर देश के सर्वहारा वर्ग,मजदूर वर्ग और शोषित पीड़ित मेहनतकश जनता के हित में भी अपनी आवाज बुलंद करेंगे। उन नीतियों पर भी प्रश्न चिन्ह लगाने की कृपा करेंगे जिनसे अमीर और ज्यादा अमीर तथा गरीब और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं। आप महानुभाव वैसी ही कृपा दृष्टी बनाए रखें जैसे की अभी 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ' पर सहज संज्ञान लेकर न केवल देश में बढ़ती असामाजिकता पर रोक लगाने का काम किया अपितु दुनिया के सामने भारत का और भारतीय न्याय व्यवस्था का मान बढाया।
श्रीराम तिवारी
' यदा -यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत!
अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम !!
तो हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि शायद स्थितियां उतनी बुरी नहीं हैं जितनी कल्कि अवतार के लिए जरुरी हैं शायद पापियों के पापों का घड़ा अभी पूरा नहीं भरा। या नए दौर में इश्वर भी कोई नए रूप मे शोषित,दमित,छुधित,तृषित जनता -जनार्दन का उद्धार करेगा! शायद भारतीय न्याय पालिका के किसी कोने से 'सत्य स्वरूप -मानव कल्याण स्वरूप' कोई तेज़ पुंज शक्ति अवतरित हो और इस वर्तमान दौर के कुहांसे को दूर कर दे।
यदि वास्तव में स्थितियां इतनी बदतर हैं जितनी की विपक्षी पार्टियां ,स्वनामधन्य स्वयम्भू समाज सुधारक या मीडिया का एक हिस्सा पेश कर रहा है, तो फिर 'भये प्रगट कृपाला ,दीनदयाला ......".का महाशंख्नाद तो कब का हो जाना चाहिए था और प्रभु कल्कि रूप में अब तक महा पापियों को यम पुर भेज चुके होते।दरसल में समसामयिक राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय चुनौतियों का आकलन अपने-अपने वर्गीय चरित्र
और सोच पर आधारित है।अमीर और कार्पोरेट वर्ग की चिंता हुआ करती है की सरकारें हमेशा ऐंसी हों जो उनकी चाकरी करें और उनके मुनाफाखोरी वाले सिस्टम में दखल न दे। मध्यम और बुर्जुआ वर्ग की चिंता रहती है कि रूसो ,वाल्टेयर उनका हुक्का भरें याने देश के करोड़ों नंगे भूंखे ,बेघर ठण्ड में ठिठुरकर मरते रहें किन्तु उन्हें तो बस बोलने की ,लिखने की,हंसने की,रोने की आज़ादी चाहिए। याने उनकी कोई आर्थिक समस्याएं नहीं , सामाजिक राजनैतिक समस्या नहीं,अगर होगी तो वे स्वयम सुलझा लेंगे याने सरमायेदारों से उनका कोई स्थाई अंतर्विरोध नहीं वे तो सिर्फ अपने अभिजात्य मूल्यों की परवाह करते हैं और उसके लिए अपने ही वर्ग बंधुओं को जेल भिजवाने को भी तैयार हैं।बात जब राष्ट्र के मूल्यों की ,क़ानून के राज्य की,सर्वसमावेशी जन-कल्याणकारी निजाम की आती है तो वे अपने वर्गीय अंतर्विरोध भुलाकर तमाम झंझटों का ठीकरा देश की अवाम के सर फोड़ने के लिए भी एकजुट हो जाते हैं। दुनिया के तमाम राष्ट्रों में प्रकारांतर से वर्गीय द्वंदात्मकता का यही सिलसिला जारी है।लेकिन उन राष्ट्रों के बारे में कुछनहींकहा जा सकता जिन्होंने पूँजीवादी निजाम को सिरे से नकार दिया है और सामंतवाद को कुचल दिया है। ,लेकिन यह जरुर उल्लेखित किया जा सकता है कि वहां के समाजों का मानवीयकरण संतोषप्रद स्थिति में आ चूका है।इसके बरक्स पूंजीवादी ,अर्धसामंती, अर्धपूंजीवादी और अमेरिका के पिछलगू राष्ट्रों में
सभी जगह वेरोजगार,भूमिहीन मजदूर-किसान पर संकट आन पड़ा है। भारत में नई आर्थिक व्यवस्था ने बस इतना ही कमाल किया है कि पहले 49 अरबपति थे अब शायद 70 हो गए है और गाँव में गरीब यदि 20 रुपया रोज कमाने वाला और शहर का गरीब 32 रुपया रोज कमाने वाला माना जाए, जैसा कि सरकारी सर्वे की रिपोर्ट बताती हैं तो उनकी तादाद देश में 50 करोड़ से अधिक ही है।इन 50 करोड़ नर-नारियों को ज़िंदा रहने के लिए रोटी कपड़ा मकान की जरुरत है। उन्हें किसी का कार्टून बनाने की या किसी और तरह की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए न तो समय है और न समझ है। इस देश में खंडित राजनैतिक जनादेश की तरह खंडित अभिरुचियाँ , खंडित मानसिकता और खंडित आस्थाएं होने से परिणाम भी खंड-खंड मिल रहे हैं। यही वजह है कि न केवल क्रान्तिकारी विचार छिन्न-भिन्न होते जा रहे हैं अपितु नैतिक मूल्य भी विखंडित होते जा रहे हैं। चरमराती व्यवस्था में पैबंद जरुर लग रहे हैं और इन पैबंद लगाने वालों का सम्मान किया जाना चाहिए।
फेसबुक पर टिप्पणी लिखने व उस टिप्पणी को पसंद करने के आरोप में मुंबई की दो लडकियों की गिरफ्तारी पर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी गहरी नाराजी व्यक्त की है।मौजूदा चीफ जस्टिस श्रीमान 'अल्तमस कबीर साहब की अगवाई में बड़ी बेंच ने अपनी कड़ी आपत्ति जाहिर की है कि किसी ने भी इस मामले में जनहित याचिका दायर क्यों नहीं की। हालांकि कोर्ट स्वयम संज्ञान लेने ही वाला था कि दिल्ली की श्रेया सिंघल ने 'अभिव्यक्ति की आज़ादी' के इस मसले को जन हित याचिका के रूप में पेश कर दिया और अब सभी दूर इस बात की चर्चा चल रही है की फेसबुक पर निरापद टिप्पणी के निहतार्थ अब सूचना प्रौद्दोगिकी एक्ट में तब्दीली की किस मंजिल तक जायेंगे? मुंबई में कुछ तत्वों ने कसम खा रखी है कि वे नहीं सुधरेंगे। उनके लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी, भारतीय संविधान,लोकतंत्र सब बकवाश है। मध्ययुगीन बर्बर डकेतों,हमलावरों और फासिस्टों का रक्त जिनकी शिराओं में बह रहा हो उनसे उम्मीद नहीं है की वे राष्ट्र की अस्मिता और क़ानून का सम्मान करेंगें। सुप्रीम कोर्ट के इस अप्रत्याशित निर्णय से देश में क़ानून का राज न्यूनाधिक ही सही कायम कायम तो हो सकेगा - जिन्होंने कल तक मुंबई को बंधक बना रखा था और पूरे देश को आँखे दिखा रहे थे अब वे देश और दुनिया के सामने हतप्रभ हैं। ये रुग्न मानसिकता वाले चाहे मुबई के नस्लवादी हों,चेन्नई के भाषावादी हों , उत्तरपूर्व के अलगाववादी हों या उगे वाम पंथी नक्सलवादी हों, सभी को काबू में करने का वक्त आ चूका है। यह सुअवसर सुप्रीम कोर्ट ने देश को अनेक बार उपलब्ध करवाया है ,देश की जनता को यह अवसर खोना नहीं चाहिए। भारतीय संविधान ,भारतीय मूल्य और देश के करोड़ों मेहनतकशों की श्रम शक्ति की अनदेखी करने वाले व्यक्ति,समूह या विचारधारा को निर्ममता से कुचल दिया जाना चाहिए। ताकि इस देश में भाषा,नस्ल,मज़हब और क्षेत्रीयता की बिना पर किसी शख्स का महिमा मंडन करने वाले नादान खुद अपने कृत्य पर पर शर्मिंदा हों।
पौराणिक मिथकों की अंध श्रद्धा ने कतिपय अकिंचनों को इस कदर अँधा कर दिया है कि प्रभु लीला हो रही है किन्तु प्रज्ञा चक्षुओं के अभाव में उसकी करनी को देख् नहीं पा रहे हैं। ,पापियों को तो बाकायदा यमपुर भेजा जा रहा है, कभी किसी साम्प्रदायिक अहमक पापी के मरने पर लाखों लोगों को दिखावे का शोक करते देखा जा सकता है। ईश्वर की महिमा पर आस्था पर और यकीन बढ़ता चला ही जा रहा है। निक्रष्ट परजीवी दिवंगत जब तक जिए फ़ोकट की खाते रहे, कभी भाषा के नाम पर,कभी क्षेत्रीयता के नाम पर,कभी क्रिकेट के नाम पर ,कभी फिल्म निर्माण में हस्तक्षेप के नाम पर कभी अपनी पारिवारिक दादागिरी के नाम पर आजीवन देश को ,सम्विधान को और डरपोंक जनता को ठगते रहे . इनकी करतूतों को जानते हुए भी लोग उनके चरणों में दंडवत करते रहे। जो व्यक्ति मरणोपरांत भी देश में झगडा- फसाद, रोड जाम ,शहर बंद कराने , अभिव्यक्ति पर पावंदी लगवाने को उद्द्यत हो, जो इतना स्वार्थी हो की अपने सगे भतीजे को भी गैर मानता हो वो पूरे मराठी समाज का शुभचिंतक और हितचिन्तक कैसे हो सकता है? निसंदेह उन्होंने अपने जीते जी कुछ देश भक्ति पूर्ण काम अवश्य किये होंगे। उनके अनुयाईयों की जिम्मेदारी है कि उनके तथाकथित महान कार्यों की सूची देश और दुनिया के सामने रखें ताकि वे लोग जो उनके अंत्येष्टि संस्कार के दरम्यान बेहद तकलीफ भोगते रहे,भयभीत होकर चुपचाप कष्ट उठाते रहे, वे भी महसूस करें कि उनकी तकलीफ उस महान पुरुष के लिए श्रद्धा सुमन थी। जो उन महात्मा के महान बलिदानों के सामने नगण्य थी। शहीद भगतसिंह ,शहीद चंद्रशेखर आज़ाद ,महात्मा गाँधी की तरह लोग उनके अमर बलिदानों को भी सदा याद रखेंगे।
जिनके स्वर्गारोहण पर पूरा महानगर कई दिनों तक जडवत रहा उनकी असलियत क्या है? यह इसलिए नहीं की लोग उन पर जान छिड़कते थे बल्कि इसलिए की कहीं किसी फसाद के शिकार न हो जाएँ या दूकान न लुट जाए सो लोग डरे सहमे हुए थे। इस घटना को फेसबुक पर महज एक सार्थक टिप्पणी के रूप में एक लड़की पेश करती है ,दूसरी कोई सहेली उस टिप्पणी पर 'पसंद' क्लिक करती है और 'अख्खा मुंबई मय पुलिस गब्बरसिंह होवेला'''' न केवल मुंबई ,न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे भारत में 'सुई पटक सन्नाटा' धन्य हैं वे लोग जिन्होंने सहिष्णुता का ऐतिहासिक कीर्तीमान बना डाला।
किस के डर से ? इस घटना के बहाने संविधान ,राष्ट्र और उसकी अस्मिता में से कोई भी चीज साबुत नहीं छोड़ी गई। कांग्रेस और भाजपा अपने-अपने कर्मों से खुद ही असहज थे। कितु वामपंथ ने भी तो इस प्रकरण में सिवाय बयानबाजी के कुछ खास नहीं किया। धन्य हैं पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू-अध्यक्ष भारतीय प्रेस परिषद् . जिन्होंने खुलकर कहा कि बाल ठाकरे इस सम्मान के हकदार नहीं कि उनके शव को तिरंगे से विभूषित किया जाए या राजकीय सम्मान से नवाज़ा जाए। यदि यह सम्मान उन्हें दिया भी गया है तो उनके अनुयाईयों को हक़ नहीं की देश के क़ानून और नैतिक मूल्यों को ठेंगा दिखाएँ। अब भारत के महान सपूत सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस श्रीमान अल्तमस कबीर साहब ने भी दिल्ली की श्रेया सिंघल की याचिका को आधार मानकर 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्र ' के साथ साथ देश की अस्मिता की रक्षार्थ याने राजनैतिक गुंडागर्दी पर नकेल कसने का बीड़ा उठाया है। हमें उन पर और सुप्रीम कोर्ट पर गर्व है। उधर बंगाल में ममता बनर्जी द्वारा और पोंडीचेरी में चिदमरम पुत्र के बहाने वहां की पुलिस द्वारा अभिव्यक्ति का गला घोंटा जाने पर भी जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने सवालिया निशाँ लगाकर, पूरी सत्यनिष्ठा और राष्ट्र्धर्मिता के साथ इस जर्जर -दिग्भ्रमित-भेडचाल वाले जन-मानस को जगाने का शानदार शंखनाद किया है उनका साधुवाद।सुप्रीम कोर्ट का कोटिशः नमन। हमें विश्वाश है कि जिस तरह से अतीत में जस्टिस बी आर कृष्ण अय्यर समेत महान न्यायविदों ने न केवल भारत राष्ट्र के संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों की रक्षा के लिए,न केवल प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए, न केवल फासिस्ट और साम्प्रदायिक तत्वों पर अंकुश लगाने के लिए, बल्कि देश के अश्न्ख्य शोषित -पीड़ित,दमित जनों के पक्ष में अपनी मेघा शक्ति का इस्तेमाल किया था, न केवल उनके आदर्शों तक अपितु उनसे भी आगे जाकर वर्तमान दौर में देश पर लादी जा रही कार्पोरेट दादगिरी और पर राष्ट्र परालाम्बिता के खिलाफ अपने बुद्धि चातुर्य और नितांत उच्च नैतिक मूल्यवत्ता का प्रयोग करेंगे।
देश के अमर शहीदों से उत्प्रेरित होकर देश के सर्वहारा वर्ग,मजदूर वर्ग और शोषित पीड़ित मेहनतकश जनता के हित में भी अपनी आवाज बुलंद करेंगे। उन नीतियों पर भी प्रश्न चिन्ह लगाने की कृपा करेंगे जिनसे अमीर और ज्यादा अमीर तथा गरीब और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं। आप महानुभाव वैसी ही कृपा दृष्टी बनाए रखें जैसे की अभी 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ' पर सहज संज्ञान लेकर न केवल देश में बढ़ती असामाजिकता पर रोक लगाने का काम किया अपितु दुनिया के सामने भारत का और भारतीय न्याय व्यवस्था का मान बढाया।
श्रीराम तिवारी
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