कभी-कभी एक विशेष समयांतराल के उपरान्त इस पृथ्वी पर एक ऐसा मनुष्य जन्म लेता है ,जो किसी अन्य लोक से आया हुआ सा प्रतीत होता है.वह अपने व्यक्तित्व-कृतित्व से इस धरा पर महिमा,शक्ति और दीप्ति का जिस तरह अवदान विखेरता है ,उससे आभासित होता है कि यह कोई अवतारी आत्मा है.यह महान शख्सियत इस सुख-दुःख ,गुण-दोषमय संसार में आम आदमी की भांति विचरण करते हुए भी कुछ इस भांति छटा बिखेरता है कि लगता है मानो वह किसी अन्य दिव्य लोक का अतिथि है जो केवल एक रात के लिए किसी वियावान में ठहरता है और किसी तीर्थयात्री की तरह भोर की वेला में अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करता है.
ऐंसे सत्पुरुष अपने आपको सम्पूर्ण मानवजाति से सम्बद्ध रखते हुए भी उनके भयावह दुर्गुणों से अनुरक्त नहीं हुआ करते बल्कि उनके हर्ष-विषाद के हमसफर बन जाते हैं.ऐंसे ही सत्पुर्षों के लिए श्रीमद भागवत पुराण में कहा गया है;-
कुलं पवित्रं जननी कृतार्थः, वसुंधरा पुण्यवती च तेन;
अपार सम्वितु सुखसागरेअस्मिन्न लीनं परे ब्रह्मणि अस्य चेत;
सम्पूर्ण मानवीय संवेदनाओं,लौकिक-पारलौकिक स्थापनाओं,अध्यात्म की विवेचनाओं से सम्पन्न आदर्श अवतारी तो इस धरा पर बहुतेरे हुए है किन्तु सांसारिक सच्चाइयों,वैश्विक चुनौतियों,सर्वधर्म एकत्व के साक्षात् अवतार स्वामी विवेकानंद का अवतरण न केवल चिरस्मरणीय है अपितु मानव मात्र के लिए अनुकरणीय भी है.
स्वामी विवेकानंद वास्तव में आधुनिक मानव के आदर्श प्रतिनिधि हैं.विशेषकर भारतीय युवकों के लिएतो स्वामी विवेकानंद से बढ़कर दूसरा कोईआदर्श नेता नहीं हो सकता.
भारत के स्वाधीनता संग्राम में जिन देशवासियों ने अपने प्राण न्यौछावर किये या जेलों की यातनाये सहीं उन सभी के दिलों में मष्तिष्क में स्वामी विवेकानंद का सन्देश विद्यमान था. राष्ट्रीय गौरव,स्वाभिमान और निर्भयता के साथ-साथ धर्म निरपेक्षता के बीज भी स्वामी विवेकानंद के 'वैज्ञानिक अध्यात्मवाद' में समाये हुए थे. कालांतर में वे अपने पूर्ववर्ती महापुरषों से वे कई मायनों में भारत भाग्य-निर्माता सिद्ध हुए हैं.
वेदान्त का प्रतिपादन, हिंदु-धर्म का महिमा गान अथवा विश्वधर्म सम्मलेन के शिकागो अधिवेशन में अभिव्यक्त सांगोपांग भारतीय ज्ञान मञ्जूषा कि अविरल भागीरथी को भारत ,अमेरिका और यूरोप में ही नहीं बल्कि सारे सभ्य-संसार ने अनवरत प्रवाहमान देखा है. ये भी कोई अचरज की बात नहीं थी क्योंकि यह सब तो उनके पूर्ववर्तियों और उत्तर्वर्तियों ने कमोवेश किया ही है .स्वामी विवेकानंद अपने युग के समकालीन और अपने से पूर्ववर्ती अवतारों, महापुरषों और धर्म-ध्व्जों से इस मायने में श्रेष्ठ हैं कि उन्होंने सर्व प्रथम भारत राष्ट्र की परिकल्पना की थी. वे पाश्चात्य अधुनातन विज्ञान ,अर्थशास्त्र ,फिलोसफी और प्रजातांत्रिक समाजवादी राजनैतिक विज्ञान के प्रथम प्रखर भारतीय थे. इन सभी दृष्टिकोणों से स्वामी विवेकानंद का केवल भारत या अमेरिका ही नहीं वरन विश्व के धार्मिक,सांस्कृतिक,और आध्यात्मिक इतिहास में सर्वोच्च स्थान है. वे उस विचारधारा से न केवल अवगत थे बल्कि भारतीय पोषक भी थी जो उन्हें यूरोप और विशेषत;फ़्रांस की यात्रा के दौरान पढने,समझने और सुनने में आई थी.इस विचारधारा को उनको समकालीन चिन्तक कार्ल मार्क्स और एंजिल्स ने सम्पादित किया था.
अपने भारत भ्रमण के दौरान स्वामीजी ने अनेकों बार इस विचार और दर्शन की ओर इंगित किया था.उन्होंने दरिद्रनारायण के उत्थानके लिए और भारतीय युवाओं को स्वाभिमानी बनकर भारत राष्ट्र के प्राचीन गौरव के प्रति सचेत होने हेतु बारम्बार आह्वान किया था,
उनका नारा था ;-
उतिष्ठत जागृत प्राप्य वरन्य वोदहत.......
संयुक्त राष्ट्रसंघ के निर्णयानुसार जब १९८५ वर्ष को 'अंतर्राष्ट्रीय युवा वर्ष'घोषित किया गया तो इसके महत्त्व को अंगीकृत करते हए तत्कालीन भारत सरकार ने १२ जनवरी को स्वामी विवेकानंद के जन्म दिन को 'राष्ट्रीय युवा दिवस'के रूप में मनाने का अभिमत लिया.
स्वामीजी का दर्शन,उनकी जीविनी,उनके कार्य,उनकी शिक्षाएं और उनका आदर्श हर युग की युवा पीढी के लिए प्रेरणा स्त्रोत रहेगा.
श्रीराम तिवारी