बुधवार, 25 जनवरी 2012

गणतंत्र दिवस पर शक्ति प्रदर्शन का औचित्य क्या है?

   आजादी के  लगभग तीन साल बाद भारत राष्ट्र के तत्कालीन सुविग्य्जनों और कानूनविदों ने भारतीय संविधान को अंगीकृत करते हुए उसकी प्रस्तावना में कहा था "हम भारत के लोग एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रात्मक ,धर्मनिरपेक्ष,समाजवादी गणतंत्र स्थापित करने; आर्थिक,राजनैतिक,सामाजिक ,न्याय,विचार-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता औरअवसरों की  समानता स्थापित करने के निमित्त ........के लिए दिनांक २६ जनवरी .......को एतद द्वारा अंगीकृत  और आत्मार्पित करते हैं" यह देश के तत्कालीन करोड़ों निरक्षरों के लिए तब भी अबूझ था और आज़ादी के ६५ साल बाद देश की अधिसंख्य जनता{भले ही वे साक्षर ही  क्यों न हों} को आज भी  इसकी   कोई खास  अनुगूंज महसूस नहीं हो सकी है.तत्कालीन समीक्षकों ने तो यहाँ तक भविष्य वाणी कर डाली थी कि ये तो वकीलों के चोंचले हैं ;आम जनता के पल्ले कुछ नहीं पड़ने वाला.पवित्र संविधान के लागु होने को ६२ वर्ष हो चुके हैं किन्तु कोई भी किसी भी दिशा में संतुष्ट नहीं है.परिणाम स्वरूप  विप्लवी उथल-पुथल जारी है.
        ऐंसे कितने नर-नारी होंगे जो ये जानते हैं कि संविधान हमें क्या-क्या देता है और हमसे क्या-क्या माँगता है?हम भारत के जन-गणों ने संविधान की उक्त प्रस्तावना को अपनाया जिसमें वे तमाम सूत्र मौजूद हैं जो देश के विकाश हेतु कारगर हो सकते थे.हासिये पर खड़े प्रत्येक भारतीय को विकाश की मुख्य धारा का पयपान कराया जा सकता किन्तु शोषित जनों  की   वर्तमान बदरंग तस्वीर  को अनदेखा करकेहर  २६ जनवरी के उत्सवी माहौल में सचाई को छुपाया जाता रहा है.
                            सामंतयुग में    जब लोकतंत्र नहीं था तब शायद राजे-रजवाड़े  अश्त्र-शश्त्र  और रणकौशल का प्रदर्शन किया करते थे.यत्र-तत्र शक्ति प्रदर्शन और जुलुस इत्यादि के माध्यम से अपनी रियासत कि जनता को डराकर  रखते थे.आजादी  के बाद अब हम किसे डराना चाहते हैं?कि हर गणतंत्र  दिवस पर न केवल सुसज्जित  सैन्यबलों  की परेड बल्कि तमाम अश्त्र-शस्त्र का जुलुस निकालते हैं.हमारी ताकत और हथियारों की क्षमता को हम जो दुनिया को दिखाते हैं वो ऐंसा ही है जैसे घर फूंक कर तापना. हमारी सेनाओं के बारे में,हमारी अश्त्र-शस्त्र क्षमताओं के बारे मे सूचनाएँ  एकत्रित करने में  दुश्मन राष्ट्रों के जासूसों को कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ती क्योंकि हम तो खुद सब कुछ बता देने को उतावले हैं.जब दुनिया जानती है कि हम युद्ध कला में बेमिसाल हैं,हमने १९६५,१९७१ और कारगिल युद्ध में सावित कर दिया है कि भारत अजेय है.
           गणतंत्र के रोज शक्ति प्रदर्शन करने के बजाय हमें अपने गणतांत्रिक मूल्यों,तौर-तरीकों,संवैधानिक नीति निर्देशक सिद्धांतों की मीमांसा करनी चाहिए.सैन्य बलों,आयुध भंडारों को तो गुप्त ही रखना चाहिए ताकि शत्रुता रखने बाले देशों को तदनुरूप तैयारी का मौका नहीं मिले.हर साल करोड़ों रूपये खर्च कर  निरर्थक सैन्यपथ संचलन  प्रयोजन करने से संविधान प्रदत्त अधिकारों या तदनुरूप कर्तब्यों के प्रति जनता -जनार्दन की आस्था नहीं बढ़ेगी.मुल्क और आवाम की तरक्की के लिए कानून में आस्था ,कर्तव्य परायणता,राष्ट्र निष्ठां बहुत जरुरी है.इन मूल्यों की स्थापना के लिए सर्व साधारण को संविधान से जोड़ना लाजमी होगा.सिर्फ वकीलों ,पैसे वालों या रुत्वे वालों की  पहुँच में जब तक संविधान सीमित रहेगा तब तक आम जनता का बड़ा हिस्सा आजादी के लिए लालायित   रहेगा.
                                                            श्रीराम तिवारी

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