जो शब्द रचना मानवीय संवेदनाओं का उन्नयन करे,जिस शब्द संयोजन से सरस निर्झरनी अनवरत सदानीरा सरिता की मानिंद बहती रहे,जो शब्द समुच्चय लोकानुषित्वा हो,जिस वाक् शक्ति से मन-प्राण-शरीर झंकृत हुआ करे,उसे ही छंद रचना अथवा कविता कहते हैं.जब इस प्रकार के शाब्दिक रूप आकार में रस-अलंकार-गेयध्व्नी का अर्क घोला जाए और राज्यसत्ता,लोकसत्ता,जनसत्ता के त्रिफला चूर्ण की जन-आकांक्षा का सत समाहित किया जाए; तो इस लोक-काव्यानुकृति से क्रांति गीतों को अमरत्व प्रदान किया जा सकता है.क्रांति गीत जिस कौम के पास नहीं वो गुलाम और असभ्य है.
श्रीराम तिवारी
श्रीराम तिवारी
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