जिनका मकसद सिर्फ हंगांमा खड़ा करना और मीडिया के मार्फ़त जन-समर्थन बढ़ाने या बहरहाल जो है;जितना है;जहां है;उसे बरकरार रखने की प्रत्याशा हुआ करती है, वे पूंजीवादी राजनैतिक दल या व्यक्ति वही करते हैं जो उन्होंने कल भारत की संसद में किया.संसद के मानसून सत्र की शुरुआत में तो "दो बांके"[यु पी ऐ और एन डी ऐ ]अपने -अपने पाले में एक दूसरे को कच्चा चबा जाने की मुद्रामें सबको नज़र आ रहे थे.महंगाई के मुद्दे पर चली दो दिनी बहस का परिणाम सबके सामने है.कोरी शाब्दिक
लफ्फाजी से जनता को लुभाने में एक -दूजे से बढ़-चढ़ कर भाषण बाज़ी कर रहे थे.चाहे कांग्रेस हो या भाजपा कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता.लेकिन जब मत विभाजन का अवसर आया तो केंद्र की मन मोहनी सरकार के खिलाफ मात्र ५१ वोट पड़े.सरकार के पक्ष में सिर्फ ३२० ही नहीं बल्कि वे सांसद भी गिने जावेंगे जो इस अवसर पर अनुपस्थित रहे.
५५० लोकसभा सांसदों में से सिर्फ ५१ वामपंथी -जनवादी सांसदों ने ही सही मायने में भयानक महंगाई से पीड़ित देश की आवाम को अभिव्यक्त किया. बाकी के मान्यवरों ने क्या सिर्फ गाल बजाने,नोट के बदले वोट जुटाने,पूंजीवादी लुटेरों के सामने शीश झुकाने,निर्वल-निरीह आवाम को वेवकूफ बनाने और भृष्टाचार में आकंठ डूबी सरकर को बचाने के लिए जनादेश हासिल किया था?
आम तौर पर कहा जाता है कि 'इंडिया'की सेहत तो ठीक ठाक है किन्तु 'भारत'फटेहाल है.देश में
जिनकी आमदनी पिछले ४-५ वर्षों में रत्ती भर भी नहीं बढ़ी,जिन्हें पूर्णकालिक रोजगार प्राप्त नहीं है,जिनकी आय स्थिर नहीं है उन्हें महंगाई ने बुरी तरह दबोच लिया है.महंगाई की सर्वाधिक मार खेतिहर मजदूरों और सीमान्त -छोटी जोत के किसानों पर ज्यादा पड़ रही है.मझोल किसान भी महंगे खाद-बीज,खरपतवार नाशक,कीटनाशक दवाओं और आधुनिक महंगे काश्तकारी उपकरणों के कारण बढ़ी हुई लागत के सापेक्ष महंगे खाद्यान्न बेचने पर मजबूर होता जा रहा है.डीजल और बिजली की महंगाई ने गाँव की अर्थ व्यवस्था को चौपट कर दिया है.
आम जनता पूंछ रही है कि जब देश की सकल राष्ट्रीय आय और आधारभूत संरचनात्मक प्रगति उल्लेखनीय है- जैसा कि स्वयं देश की सरकार , विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष फरमा रहा है- तो फिर जीवन उपयोगी वस्तुओं और नितांत जरुरी खाद्यान्नों के दाम आसमान छूने को उतावले क्यों हैं?माना कि आज क़र्ज़ के शिकंजे में यूरोपीय संघ ,अमेरिका और अन्य विकसित देश भी आ चुके हैं,ये भी सच है कि डालर कमजोर होता जा रहा है,अमेरिका की साख दाव पर है
देशी -विदेशी बहुराष्ट्रीय निगमों के पूंजीवादी अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क ने जब यह अनुभव किया कि जन बैचेनी बिस्फोटक हो सकती है,तो उसने एक तीर से दो शिकार करने की योजना का क्रियान्वन किया.पूंजीवाद की रक्षा के लिए और समाजवादी क्रांति की संभावनाएं ख़त्म करने के लिए एक तरफ तो 'दो दलीय' शाशन प्रणाली का पुरजोर प्रचार किया.दूसरी ओर पूंजीवादी साम्प्रदायिक नेटवर्क की मिलकियत वाले मीडिया [टेलीविजन चेनल्स और बड़े अखवार]को नियंत्रित करते हुए महंगाई से इतर गैर जरुरी सवालों पर -सास बहु के झगड़ों पर,मंदिर-मस्जिद पर ,२-जी स्पेक्ट्रम पर,और आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर आवाम को उलझा दिया.
पूंजीवाद का यह हथकंडा सर्व विदित है.जब उसकी नीतियों से उसके जन्मदाता अमेरिका में भी आर्थिक संकट आता है तो उस संकट को आम आदमी के कन्धों परही डाल दिया जाता है.जनाक्रोश से बचने के लिए जनतंत्र के नाम पर जनता को [दो दलीय]शाशन प्रणाली की घूटी पिलाई जाती है.ताकि यदि एक पार्टी बदनाम हो तो दूसरी [पूंजीवादी ]पार्टी को चुनने के लिए आवाम मजबूर रहे.एक खास रणनीति के तहत पूंजीपति और उसके दलाल भृष्ट सरकारी अफसर बड़ी चालाकी से [दो पार्टी]सिद्धांत की पेरवी के लिए मीडिया को कब्जे में रखते हैं.दो दलीय पोलिटिकल सिस्टम को मजबूत करने के उनके स्वार्थ सर्वविदित हैं.पूंजीवादी लूट-खसोट जारी रखने,जातिवाद-वर्णवाद जारी रखने,साम्यवाद-समाजवाद का रास्ता रोकने ,सामाजिक-आर्थिक विषमता जारी रखने के लिए विचारधारात्मक रूप से कमोवेश एक जैसी नीतियों वाले [दो दल] हीवित्तीय पयपान के हक़दार हो सकते हैं.विभिन्न मसलों और सवालों पर उपरी तौर पर ये दोनों[बड़े}दल आपस में शत्रुवत प्रतीत होते हैं किन्तु गुप्त रूप से वे एक दूसरे के संपूरक ही हैं.यही वजह है कि २८ जुलाई -२००८ हो या ६-जुलाई २०११ भारत की संसद में दोनों बार सत्तारूढ़ {अल्पमत}सरकार की चूल भी नहीं हिलती.२८-जुलाई २००८ को १-२-३ एटमी करार के मुद्दे पर और ६-जुलाई २०११ को नाकाबिल-ऐ-बर्दास्त महंगाई के मुद्द्ये पर यूपीए और एनडीए की अंतरंगता दर्स्शाती है कि इनके रूप रंग आकार और नाम भले ही अलग-अलग हों किन्तु सार रूप में भाजपा और कांग्रेस के गुण सूत्र वही हैं जो भूमंडलीकरण और उदारीकरण कि पूंजीवादी रासायनिक प्रक्रिया से उद्भूत हुए हैं.
वामपंथ के सभी २५ और अन्य दलों के जिन २६ सांसदों ने देश में व्याप्त महा महंगाई के मुद्दे पर देश की आवाम की आवाज को संसद में बुलंद किया ,उन सभी का क्रन्तिकारी अभिवादन!हालांकि विश्व अर्थव्यवस्था का असर भारत पर होना लाजमी है किन्तु नक़ल में भी अकल की जरुरत है कि नहीं?उधर प्रेसिडेंट ओबामा ने अपने बढ़ते हुए राजकोषीय घाटे से निपटने में रिपब्लिकनों और डेमोक्रटों की कथित एकता का आह्वान किया है ,इधर सत्ता पक्ष और प्रधानजी ने परसों फ़रमाया कि 'हमें विपक्षियों के सब राज मालूम हैं' तो कल इसीलिये जिनके राज प्रधानमंत्री जी को मालूम थे उन सभी ने बिना मांगे ,बिना चूँ-चपड के महंगाई के मुद्द्ये पर सिर्फ कोरी भाषण बाज़ी कर मामला निपटा दिया जब मतदान का वक्त आया तो सिर्फ ५१ सांसद{वामपंथी और समाजवादी}देश कि जनता के साथ थे.बाकि के सभी दो पंक्तियों {एनडीए और यूपीए} में बैठकर पूंजीवाद कि चरण वंदना कर रहे थे.
भले बुरे सब एक से ,जोऊ लों बोलत नाहिं!
जानि परत हैं काक-पिक ,ऋतू वसंत के माहिँ!!
श्रीराम तिवारी
कांग्रेस -भाजपा दोनों एक -दूसरे के काम्प्लीमेंटरी एण्ड सप्लीमेंटरी टू ईच अदर हैं।
जवाब देंहटाएंthank you com please read this article again.
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