हरित वसुधरा हो गई,करत दिव्य श्रृंगार!
तृण संकुल वन प्रांतर,पावस की झंकार!!
सरिताएं उन्मत्त भईं,उमड़े पोखर-ताल!
दमक चमक सौदामिनी,गर्जत मेघ कराल!!
बून्दनिया बरसन लगीं,ज्यों अमृत रस धार!
धरा- गगन सावन निशा,गावें मेघ मल्हार!!
जलज-पयोनिधि फूट गए,टूटत सब तटबंध!
ताल सरोवर मचल रहे,भंजन को प्रतिबन्ध!!
नाचे उपवन मोरनी , दुति दमकत आकाश!
झर-झर निर्झरनि बहे,सखी पिया नहीं पास!!
श्रीराम तिवारी