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"अमिय हलाहल मद भरे ,श्वेत स्याम रतनार।
जियत मरत झुकि-झुकि परत,जेहिं चितवत इक बार।।"
रीतिकालीन कवि:- रसलीन
"अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते !
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी !!"