आज अगर कोई एक ऐसा शब्द है जिसके मायने अपने मूल अर्थ से एकदम ही उलट गए हों तो वो है - धर्म। इस शब्द का जो अर्थ था, जो भाव था, जो प्रयोजन था,
आज उससे एकदम ही विपरीत है। जैसे कि किसी को 180 डिग्री पर पलटा दें।
धर्म धारणाओं, पूर्वाग्रहों से मुक्त करता है जबकि संगठित धर्म आपको धारणाओं पर, पूर्वाग्रहों पर, पहले से लिखी सुनी बातों पर, किताबों पर चलना सिखाते हैं चाहे वो अप्रासंगिक और व्यक्ति, समय या क्षेत्र अनुसार हों या ना हों। संगठित धर्म आपको भेड़ बनाते हैं, और धर्म आपको इंसान।
तो धर्म क्या है? धर्म एक भारतीय शब्द है जिसका शब्दार्थ है - धारण करना जो बहुतों को पता भी है।
कहाँ धारण करना? व्यवहार में धारण करना।
क्या धारण करना? जो सही है।
क्या सही है? जो हितकर है।
किसके लिए हितकर है? खुद के लिए, परिवार के लिए, समाज के लिए, देश के लिए, अस्तित्व के अधिक से अधिक हिस्से के लिए।
क्या हितकर है ये कौन बताएगा? ये विवेक बताएगा, चेतना बताएगी, कॉमन सेंस बताएगी।
कैसे बताएगी? एक उदाहरण लीजिए कि सभी देशों के कानून में किसी की जान लेने को गलत माना गया है और इसपर दंड का प्रावधान है। पर ये कानून तो मानव जाति के अस्तित्व में आने के सैकड़ों लाखों सालों के बाद अस्तित्व में आये।
फिर कानून को किसने बताया कि किसी की जान लेना गलत है? क्या किसी किताब ने? चलिए मान लिया कि किसी किताब ने बताया। पर फिर उस किताब को किसने बताया? जिसने वो किताब लिखी। पर फिर जिसने लिखी उसको किसने बताया कि किसी की जान लेना गलत है?
उसको उसके विवेक, उसकी चेतना और उसकी कॉमन सेंस ने बताया कि किसी की जान लेना गलत है। पर क्यों गलत है? क्योंकि किसी की जान लेने को स्वीकार्य करना मतलब पूरी मानव जाति के अस्तित्व को खतरे में डालना। और सब कुछ इस अस्तित्व को बचाने और उसे इवॉल्व करने का ही संघर्ष है।
पर ये कॉमन सेंस क्या है? ये चेतना का वो हिस्सा है जो मानव जाति के लाखों करोड़ों साल की जीवन यात्रा का अनुभव है। उसके किन कर्मों पर उसे ठोकरें मिलीं, दुख मिला, किन कर्मों पर उसे आनंद मिला, सब कुछ उसकी चेतना में निहित है, एकदम संचित निचोड़ जैसा। ये बिल्कुल परफेक्ट कार्य करती है। और यही उसके डीएनए के माध्यम से आने वाली जनरेशन्स में ट्रांसफर होती रहती है।
एक बात बहुत बार आपने सुनी होगी कि यदि 24 घंटे के लिए कानून हटा दिए जाएं तो लोग इतनी नफरत से भरे हुए हैं कि एक दूसरे की जान ले लेंगे। कानून के डर ने ही इन्हें रोका हुआ है। पर ये बिल्कुल गलत और अज्ञानता भरी बात है। कानून तो बाद में आये, इंसान पहले आया। और ऐसा होता तो इंसान पहले ही एक दूसरे को खत्म कर चुका होता। पर ऐसा हुआ नहीं। क्योंकि इंसान कानून से भी पहले अपनी कॉमन सेंस पर चलता रहा है, सहअस्तित्व के नियमों पर चलता रहा है।
इसी कॉमन सेंस को भारत में पुरातन काल में धर्म बोला जाता था। आपने कई जगह ये विवरण या वाक्य भी सुने होंगें कि ये धर्म है, ये अधर्म है।
मतलब सार यही है कि जो सही है, हितकर है, विवेकानुसार है वो धर्म है और जो गलत है, अहितकर है और विवेकविरुद्ध है वो अधर्म।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें