गुरुवार, 9 मई 2019

यह पुरषार्थ भी कुछ कम तो नहीं ?

हवाओं का रुख बदलने लगा है...
मैने जो भी चाहा नहीं मिला,
लेकिन इसका कोई गम तो नहीं ।
बिना वैशाखी के ही चल सका,
यह जज्बा भी कुछ कम तो नहीं।।
कदम जब भी आगे बढे हैं मेरे,
अनजानी राहों पर तन्हा बढ़े !
ठोकरें खाईं कई बार नींद में,
फिर जागे ये कुछ कम तो नहीं ।
संकल्पों की ऊँची उड़ानों पर,
हुआ बज्रपात नियति का बार-बार,
हौसले बुलंद रख्खे हार नहीं मानी,
यह पुरषार्थ भी कुछ कम तो नहीं !!
बक्त ने जब चाहा नचाया मुझे
और कहर बरपाया जमाने ने खूब!
एक क्षण भी किंचित नहीं भूला मैं,
इंसानियत यह कुछ कम तो नहीं !!
जब से हवाओं ने रुख बदला है,
मन मेरा कुछ घबराने सा लगा है!
हरवक्त चौकन्ना हूँ कि आस्तीन में,
कहीं कोई छुपा हुआ साँप तो नहीं!!
श्रीराम तिवारी

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