मंगलवार, 24 जुलाई 2012

श्री प्रणव मुखर्जी दुनिया के श्रेष्ठतम राष्ट्र-अध्यक्ष.

 भारत के 13 वें महामहिम राष्ट्रपति चुने जाने से भारत में  अधिकांस नर-नारी [जो राजनीती से सरोकार रखते हैं] खुश हैं। में भी खुश हूँ। इससे पहले कि  अपनी ख़ुशी का राज खोलूं उन लोगों के प्रति आभार व्यक्त करना चाहूँगा जिन्होंने यह सुखद अवसर प्रदान किया।
                                      सर्वप्रथम में भारतीय संविधान का आभारी हूँ जिसमें ऐसी व्यवस्था है कि  सही आदमी सही जगह पर पहुँचने में जरुर कामयाब होता है।सही से मेरा अभिप्राय उस 'सही' से है जो भारत के बहुमत जन-समुदाय की आम समझ के दायरे में हो। हालाँकि इस 'सही' से मेरे वैयक्तिक' सही' का सामंजस्य नहीं बैठता।वास्तव में मेरा सही तो ये है कि  कामरेड प्रकाश करात ,कामरेड वर्धन,कामरेड गुरुदास दासगुप्त,कामरेड सीताराम येचुरी ,कामरेड बुद्धदेव भटाचार्य  में से या वामपंथ की अगली कतार में से कोई इन्ही कामरेडों के सदृश्य अनुभवी व्यक्ति राष्ट्राध्यक्ष चुना जाता। लेकिन ये भारत की जनता को अभी इस पूंजीवादी बाजारीकरण के दौर में कदापि मंजूर नहीं। भारत की जनता को ये भी मंजूर नहीं कि  घोर दक्षिण पंथी -साम्प्रदायिक व्यक्ति या उनके द्वारा समर्थित' हलकट' व्यक्ति भारत के संवैधानिक सत्ताप्र्मुख की जगह ले। भारत की जनता को जो मंजूर होता है वही इस देश में होता है। भले ही वो मुझे रुचकर लगे या न लगे।भले ही वो उन लाखों स्वनामधन्य हिंदुवादियों,राष्ट्रवादियों और सामंतवादियों को भी रुचिकर न लगे। ये हकीकत है कि  इस देश की जनता का बहुमत जिन्हें चाहता है उन्हें सत्ता में पदस्थ कर देता है।यह भारतीय संविधान के महानतम निर्माताओं और स्वतंत्रता के महायज्ञं  में शहीद हुए 'धर्मनिरपेक्ष-समाजवादी-प्रजातांत्रिक' विचारों के प्रणेताओं की महती अनुकम्पा का परिणाम है। में इन सबका आभारी हौं।
          में आभारी हूँ उन लोगों का जिन्होंने  यूपीए ,एनडीए ,वाम मोर्चा और तीसरे मोर्चे के दायरे से बाहर आकर राष्ट्र हित में श्री प्रणव मुखर्जी को  भारत का 'राष्ट्रपति चुनने में अपना अमूल्य वोट दिया। में आभारी हूँ भाजपा   के उन महानुभावों का जिन्होंने 'नरेंद्र  मोदी' को एनडीए का भावी नेता और भारत का प्रधान मंत्री बनाए जाने  का प्रोपेगंडा चलाया,जिसकी वजह से एनडीए के खास पार्टनर [धर्मनिरपेक्ष] जदयू को खुलकर श्री मुखर्जी के पक्ष में आना पडा।में आभारी हूँ शिवानन्द तिवारी जी ,नीतीशजी ,बाल ठाकरेजी,मुलायम जी,वृंदा करात जी,प्रकाश करातजी,सीताराम येचुरीजी,विमान वसुजी,बुद्धदेव भट्टाचार्य जी,मायावती जी,येदुराप्पजी और ज्ञात-अज्ञात उन सभी राजनीतिक दलों,व्यक्तियों ,मीडिया कर्मियों और नीति निर्माण की शक्तियों का जिन्होंने कांग्रेस को,श्रीमती सोनिया गाँधी को प्रेरित किया कि  देश के 13 वें राष्ट्रपति के चुनाव हेतु प्रणव मुखर्जी को उम्मीदवार घोषित  करें ताकि 'सकारण' किसी अन्य 'गैर जिम्मेदार ' व्यक्ति को  इस पद पर आने से रोका जा सके।
                          में आभारी हूँ सर्वश्री अन्ना हज़ारेजी,केजरीवाल जी,रामदेवजी ,सुब्रमन्यम स्वामी जी,रामजेठमलानी  जी नवीन पटनायक जी,जय लालिथाजी,जिहोने एनडीए के साथ मिलकर एक बेहद कमजोर और लिजलिजे  व्यक्ति को उम्मेदवार बनाया ताकि 'नाम' का विरोध जाहिर हो जाए और 'पसंद' का व्यक्ति याने 'प्रणव दा ' ही महामहिम चुने जाएँ। संगमा को जब लगा कि  ईसाई होने में फायदा है तो ईसाई हो गए।जब लगा की कांग्रेसी होने में  फायदा है तो कांग्रेसी हो गए।जब लगा कि  राकपा में फायदा है तो उसके साथ हो लिए।
                     जब लगा कि  एनडीए के साथ फायदा है तो उनके साथ हो लिए इतना ही नहीं जिस आदिवासी समाज को वे पीढ़ियों पहले छोड़ चुके थे   क्योंकि तब आदिवासी होने में शर्म आती थी।अब आदिवासी होने के फायदे दिखे तो  पुनह आदिवासी हो लिए। उनकी इस बन्दर कूदनी कसरत ने इस सर्वोच्च पद के चुनाव में विपक्ष की भूमिका अदा की सो वे भी धन्यवाद के पात्र हैं।देश उनका आभारी है।
    विगत 19 जुलाई को संपन्न राष्ट्र्पति  के चुनाव में श्री प्रणव मुखर्जी की   भारी  मतों से जीत- वास्तव में उन लोगों की करारी हार है जो उत्तरदायित्व विहीनता से आक्रान्त हैं।अन्ना हजारे,केजरीवाल ,रामदेव का मंतव्य सही हो सकता है लेकिन अपने पवित्र[?] साध्य के निमित्त साधनों की शुचिता को वे नहीं पकड सके और अपनी अधकचरी जानकारियों तथा सीमित विश्लेशनात्म्कता   के कारण  सत्ता पक्ष से अनावश्यक रार ठाणे बैठे हैं।उन्हें बहुत बड़ी गलत फहमी है क़ि  देश की  भाजपा और संघ परिवार तो हरिश्चंद्र है केवल कांग्रेसी  और सोनिया गाँधी ,दिग्विजय सिंह तथा राहुल गाँधी  ही नहीं चाहते क़ि  देश में ईमानदारी  से शाशन प्रशाशन चले। इन्ही कूप -मंदूक्ताओं  के कारण ये सिरफिरे लोग प्रणव मुखर्जी जैसे सर्वप्रिय राजनीतिग्य को भी लगातार  ज़लील करते रहे।श्री राम जेठमलानी और केजरीवाल को तो चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। उन्होंने मुखर्जी पर जो बेबुनियाद  आरोप लगाये हैं उससे भारत की और भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद की गरिमा को भारी  ठेस पहुंची है।
                                 श्री प्रणव मुखर्जी की जीत न तो अप्रत्याशित है और न ही इस जीत से  कोई चमत्कार हुआ है, पी ऐ संगमा भले ही अपने आपको कभी दलित  ,कभी ईसाई,कभी अल्पसंख्यक और कभी आदिवासी बताकर बार-बार ये सन्देश दे रहे थे कि  'अंतरात्मा की आवाज' पर लोग उन्हें ही वोट करेंगे और रायसीना हिल के राष्टपति भवन की शोभा वही बढ़ाएंगे।उन्हें किसी सिरफिरे ने जचा  दिया कि  नीलम संजीव रेड्डी को जिस तरह वी।वी गिरी के सामने हारना पड़ा था उसी तरह संगमा के सामने मुखर्जी की हार संभव है।और लगे रहो मुन्ना भाई की तरह संगमा जी भाजपा के सर्किट भी नहीं बन सके।प्रणव दा  के पक्ष में वोटों का गणित इतना साफ़ था कि  प्रमुख विपक्षी दल भाजपा और उसके अलायन्स पार्टनर्स इसी उहापोह में थे कि  काश कांग्रेस ने उनसे सीधे बात की होती।
                                              प्रणव दा  को कमजोर मानने वालों को आत्म-मंथन करना चाहिए कि  वे वैचारिक धरातल के मतभेदों  को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा कर चुके हैं जहां से भविष्य की राजनीती के  अश्वमेध  का घोडा गुजरेगा। बेशक कांग्रेस ,सोनिया जी और राहुल को इस मोड़ पर स्पष्ट बढ़त हासिल है और ये सिलसिला अब थमने वाला नहीं क्योंकि प्रणव दादा के हाथों जब विरोधियों का भला होता आया है तो उनका भला क्यों नहीं होगा  जिन्होंने उनमें आस्था प्रकट की और विश्वास  जताया .अब यदि 2014 के लोक सभा चुनाव में गठबंधन की राजनीती के सूत्र 'दादा ' के हाथों में होंगे तो  न केवल कांग्रेस न केवल राहुल बल्कि देश के उन तमाम लोगों को बेहतर प्रतिसाद   मिलेगा जिन्हें भारतीय लोकतंत्र ,समाजवाद,धर्मनिरपेक्षता और  श्री प्रणव मुखर्जी पर यकीन है।

       अंत में अब में अपनी ख़ुशी का राज भी बता दूँ कि  मैंने  जिस केन्द्रीय पी एंड टी विभाग में 38 साल सेवायें दी हैं प्रणव दा  ने भी उसी विभाग में लिपिक की नौकरी की है।देश के मजदूर कर्मचारी और मेहनतकश लोग आशा करते हैं की उदारीकरण ,निजीकरण, और ठेकेकरण की मार से आम जनता की और देश की हिफाजत में महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी उनका उसी तरह सहयोग करेंगे जैसे की कोई बड़ा भाई अपने छोटे भाइयों की मदद करता है। श्री मुखर्जी का मूल्यांकन केवल राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतर-राष्ट्रीय  स्तर पर किया  जाना चाहिए। श्री मुखर्जी को चुना जाने पर न केवल कांग्रेस बल्कि विपक्ष को भी इसका श्रेय दिया जाना चाहिए।  वे राष्ट्रीयकरण के पोषक हैं। श्री मुखर्जी ने वित्त मंत्री रहते हुए सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश नहीं होने दिया इसलिये अमेरिकी-नीतियों के  भी कोप-भाजन  बनें। मजदूर-
कर्मचारी हितों की रक्षा करने वाले ऐसे राष्ट्रपति से हमें  काफी अपेक्षाएं  हैं।          श्रीराम तिवारी।                                               





                   
  

मंगलवार, 10 जुलाई 2012

is system men keval laabh-shubh kyo?

हमें मालुम है  कि  हम उस जल में रहते  हैं,
जिसमें मगरमच्छ  भी रहते  हैं।
लुटेरों को भाग्यवान और मज़दूर  को बदनसीब,
सिर्फ शोषण के समर्थक ही  कहते हैं।
बाज़ारों में गलाकाट प्रतिस्पर्धा की  मच रही  होड़,
 इस 'सिस्टम' में केवल   'लाभ-शुभ'चलते हैं।
राज्यसत्ता पर काबिज  भूस्वामी और पूंजीपति,
आपस में गठजोड़ बना  रखते हैं।
टेलीविजन पर खबरिया चेनलों का कुकरहाव,
 देख-देख'  ' प्रोलेटेरियत' सर धुनते रहते  हैं।
गोदामों में सड़ता रहता अन्न -गेंहूँ -चावल,
 फिर भी कुछ अभागे     भूँखों  मरते रहते हैं।
अन्याय और भृष्टाचार की इन्तहा हो चुकी,
   वे अहमक हैं जो भूंख पर नज्में लिखते हैं।

    श्रीराम तिवारी


रविवार, 8 जुलाई 2012

वर्तमान व्यवस्था में हनुमान जी को भी रिश्वत देना पड़ेगी.

हमारे अधिकारी मित्र को  हनुमानजी ने सपने में दर्शन दिए। उसने हनुमानजी से यह इच्छा व्यक्त की

त्रेता में आपने जो  कारनामे किये थे उनमें से एक आध 'अब'' करके दिखाए। हनुमानजी  ने सपने में संजीविनी
 बूटी लाकर दिखा दी। अब भक्त ने इच्छा जाहिर की  कि  हनुमानजी आप  कलयुग वाला  कोई
काम और खासतौर  से 'लाल फीताशाही'' वाला कोई काम करके दिखाएँ तो हम आपको 'बुद्धिमतां वरिष्ठं''
 माने ? हनुमान जी ने पूछा- मसलन ? भक्त ने कहा--आप अपने हिमालयन टूर का टी.ऐ. प्राप्त करके दिखाएँ
      हनुमानजी ने  अपने हिमालयन टूर का टी.ए. सबमिट किया और कारण वाले कालम में  संजीविनी बूटी लाना दर्शाया.  टी.ए. सेक्सन के क्लर्क  ने तीन आब्जेक्शन  लगाकर फाइल ठन्डे बसते  में डाल  दी।
   आब्जेक्शन  [1] प्रार्थी  द्वारा   तत्कालीन  राजा  भरत  से यात्रा  की परमिशन   नहीं ली गई।
                     [2] हनुमान जी  को उड़ान [केवल पक्षियों के लिए आरक्षित]] की पात्रता नहीं थी।
                     [3] उन्हें सिर्फ संजीविनी लाने को कहा गया था जबकि वो पूरी की पूरी पहाडी[द्रोण गिरी] उठा कर
 आ गए।
 हनुमानजी  ने श्रीरामजी से  भी  प्रार्थना की  किन्तु वे भी   इस कलयुगी सिस्टम के आगे असहाय सिद्ध हुए।
तभी लक्ष्मण को एक उपाय सूझा। उन्होंने कुल टी.ऐ. बिल का 10% तत्संबंधी बाबू  को देने का वादा   किया  तो  मामला सेट हो गया। अब एल डी सी ने निम्नांकित टिप्पणी  के साथ बिल रिक्मंड  किया--
                      "मामले पर पुन:गौर किया गया और पाया गया कि  राम का आदेश ही पर्याप्त था"
और चूँकि इमरजेंसी थी अतएव हवाई मार्ग से जाना उचित था और  सही दवा की पहचान सुशेन वैद्य  की 
ड्यूटी में आता है यह हनुमान की जिम्मेदारी नहीं थी सो यह मलयगिरी से हिमालय तक की आपात्कालीन 
 यात्रा  का टी.ऐ. बिल पास करने योग्य है"
          कवन सो काज कठिन जग माही.

          जो नहीं होय तात [बाबू] तुम पाहीं।      
                                                                              श्रीराम तिवारी           
       

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

Thoughts of the Day.

Life would be perfect if : anger had a  mute button.Mistake had a brrke button .Hard time had fast forward buttonand good time had a pause button.........Naresh tandaon.....

There are 3c's of life
                             1-choice
                               2-chance
                                 3-changes
you must make a choice to take a chance to change your life.G.C.Pandey....

It is very easy to defeat some one but it is very hard to win some one.N.K.U.....


Believe in Karm,not in Raashi.Remember Ram and Ravn, Krishna and Kans, Gandhi and Godse ,Obama and Osama  they  had same Raarshi but their 'KARM' made them different. J.M.P.....

 Zindgee ke har mod pr sunahri yad rahne do.
Zuban pr hr wakt  mithas rahne do..
Yahi to andaz he jeene ka ,
N khud raho udas ,n kisi ko udas rahne do.. bunty.......

Best relations are like beautiful street lamps....They may not make the distance shorter but they light your path and make the journey easier. Mathpati........