हमारे देश के ११ केन्द्रीय श्रमिक संगठनों एवं स्वतंत्र फेडरेशनों के संयुक आह्वान पर दिनांक २८ फरवरी-२०१२ को राष्ट्र्वापी जंगी औद्दोय्गिक हड़ताल होने जा रही है.अखिल भारतीय संयुक अभियान समिति का ऐलान -ऐ-जुंग होगा:-
'जब दरिया झूम के उठ्ठेंगे ....तिनकों से न टेल जायेंगे.....
२८ फरवरी को विश्व व्यापी कार्पोरेट पूँजी की अमानवीय विभीषिका के खिलाफ भारत के १० करोड़ मेहनतकशों का मोर्चा खुल चूका होगा.सर्व विदित है कि यु पी ऐ द्वतीय सरकार न केवल राष्ट्र की सुरक्षा करनेमें विफल रही , बल्कि देश कि ४६ करोड़ मेहनतकश जनता के हितों की रक्षा करने में असफल रही है. निम्नांकित मुद्दों पर देश की सत्तासीन सभी राजनैतिक पार्टियों और केंद्र तथा राज्य सरकारों का रुख पूंजीपतियों के पक्ष में तथा आम जनता के खिलाफ रहा है.
१-भविष्य निधि पेंशन की न्यूनतम राशि गुजारे लायक[कम से कम-३००० रूपये] हो तथा भुगतान की गारंटी हो.
२-ठेका मजदूरी प्रथा समाप्त हो ,सभी अस्थायी मजदूरों को स्थाई किया जावे.
३-बढ़ती हुई महंगाई पर रोक लगाओ,सार्वजनिक वितरण व्यवस्था विश्वसनीय और सुध्रुण करो.
४-न्यूनतम मजदूरी कानून में संशोधन करो,न्यूनतम मजदूरी कम से कम १००००/ रुपया महिना हो.
५-बोनस,प्रोवीडेंट फंडतथा ग्रेचुटी की न्यूनतम पावंदी हटाई जाए,ग्रेचुटी बढाई जाए.
६-ट्रेड यूनियन अधिकारों पर मालिकों और सरकार के हमले नहीं चलेंगे.
७-श्रम कानूनों का पालन कराया जाये,उद्द्योगपतियों और प्रशाशनिक मशीनरी के दोहरे शोषण को समाप्त करो.
८-देश के सार्वजनिक उपक्रमों-बैंक,बीमा ,बी एस एन एल और लाभ के अन्य सरकारी उद्द्य्मों को देशी -विदेशी पूंजीपतियों के हाथों न बेचा जाये.
९-आउट सोर्सिंग बंद करो ,स्थायी प्रुव्र्त्ति के कार्यों को स्थायी श्रमिक से कराया जाए.
१०-पूंजीपतियों के दवाव में आमआदमी -किसान ,मजदूर के खिलाफ बेजा क़ानून बनाने का दुस्साहस मत करो.
इस हड़ताल की घोषणा से पूर्व सभी प्रमुख श्रम संगठनों और स्वतंत्र फेडरेशनों ने देश की राजधानी दिल्ली में और उसके बाद सभी प्रादेशिक राजधानियों में संयुक कन्वेंशन आयोजित किये हैं.स्वतंत्र भारत के ६४ साल के इतिहास में पहली बार सभी केन्द्रीय श्रम संगठनों ने भारत सरकार और अन्य प्रादेशिक सरकारों की गलत आर्थिक एवं श्रमिक नीतियों के खिलाफ संघर्ष के लिए व्यापक एकता के लिए हाथ मिलाया है.जिन केन्द्रीय श्रम संगठनो ने २८ फरवरी २०१२ का आह्वान किया है उनमें -भारतीय मजदूर संघ,इन्टक,एटक,सीटू एवं एह एम् एस इत्यादी प्रमुख हैं. माना जा रहा कि दुनिया के ट्रेड यूनियन आन्दोलन के इतिहास में यह सबसे बड़ी ट्रेड यूनियन कार्यवाही होगी.
हड़ताल का आह्वान करने वाले सभी प्रमुख संगठनों कि आम राय है कि वर्तमान आर्थिक नीतियाँ न तो देश के हित में हैं और न ही श्रमिक और किसानों कि हित-पोषक हैं.सरकार के नीति निर्धारकों को आये दिन न्यायलय कि दुत्कार के वावजूद मेहनतकश जनता और समाज के कमजोर तबकों कि कोई चिंता नहीं है.बेतहासा महंगाई की वास्तविकता को नजर अंदाज कर थोक मूल्य सूचकांक के आभाशी आंकड़ों में जनता को भरमाया जा रहा है.आर्थिक मंदी की आड़ में अय्याश पूंजीपतियों को अरवों की मदद दी जा रही है.कार्पोरेट दिग्गजों को रियाय्य्तें दीं जा रहीं हैं. कामगार ,किसानों और श्रमिक सर्वहारा वर्ग पर संकट धकेला जा रहा है. देश की जनता की अमानत के जीवंत-प्रमाण केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में सौंप ने की भरसक कोशिशें जारी हैं.देश की नई नौजवान पीढी का एक बहुत बड़ा और सुशिक्षित वर्ग, असंगठित और अस्थायी किस्म की जिन्दगी का हिस्सा बन चुका है.
प्रस्तुत हड़ताल केवल वेतन,भत्ते या पूँजी और श्रम के बीच की रस्साकसी मात्र नहीं है, बल्कि वित्तीय पूँजी को उसकी अमानवीयता के लिए कठघरे में खड़ा करने का ऐलान करती हुई मजदूर वर्ग के संघर्षों में एक और शानदार मील का पत्थर तराशने में कामयाब होगी.
श्रीराम तिवारी
'जब दरिया झूम के उठ्ठेंगे ....तिनकों से न टेल जायेंगे.....
२८ फरवरी को विश्व व्यापी कार्पोरेट पूँजी की अमानवीय विभीषिका के खिलाफ भारत के १० करोड़ मेहनतकशों का मोर्चा खुल चूका होगा.सर्व विदित है कि यु पी ऐ द्वतीय सरकार न केवल राष्ट्र की सुरक्षा करनेमें विफल रही , बल्कि देश कि ४६ करोड़ मेहनतकश जनता के हितों की रक्षा करने में असफल रही है. निम्नांकित मुद्दों पर देश की सत्तासीन सभी राजनैतिक पार्टियों और केंद्र तथा राज्य सरकारों का रुख पूंजीपतियों के पक्ष में तथा आम जनता के खिलाफ रहा है.
१-भविष्य निधि पेंशन की न्यूनतम राशि गुजारे लायक[कम से कम-३००० रूपये] हो तथा भुगतान की गारंटी हो.
२-ठेका मजदूरी प्रथा समाप्त हो ,सभी अस्थायी मजदूरों को स्थाई किया जावे.
३-बढ़ती हुई महंगाई पर रोक लगाओ,सार्वजनिक वितरण व्यवस्था विश्वसनीय और सुध्रुण करो.
४-न्यूनतम मजदूरी कानून में संशोधन करो,न्यूनतम मजदूरी कम से कम १००००/ रुपया महिना हो.
५-बोनस,प्रोवीडेंट फंडतथा ग्रेचुटी की न्यूनतम पावंदी हटाई जाए,ग्रेचुटी बढाई जाए.
६-ट्रेड यूनियन अधिकारों पर मालिकों और सरकार के हमले नहीं चलेंगे.
७-श्रम कानूनों का पालन कराया जाये,उद्द्योगपतियों और प्रशाशनिक मशीनरी के दोहरे शोषण को समाप्त करो.
८-देश के सार्वजनिक उपक्रमों-बैंक,बीमा ,बी एस एन एल और लाभ के अन्य सरकारी उद्द्य्मों को देशी -विदेशी पूंजीपतियों के हाथों न बेचा जाये.
९-आउट सोर्सिंग बंद करो ,स्थायी प्रुव्र्त्ति के कार्यों को स्थायी श्रमिक से कराया जाए.
१०-पूंजीपतियों के दवाव में आमआदमी -किसान ,मजदूर के खिलाफ बेजा क़ानून बनाने का दुस्साहस मत करो.
इस हड़ताल की घोषणा से पूर्व सभी प्रमुख श्रम संगठनों और स्वतंत्र फेडरेशनों ने देश की राजधानी दिल्ली में और उसके बाद सभी प्रादेशिक राजधानियों में संयुक कन्वेंशन आयोजित किये हैं.स्वतंत्र भारत के ६४ साल के इतिहास में पहली बार सभी केन्द्रीय श्रम संगठनों ने भारत सरकार और अन्य प्रादेशिक सरकारों की गलत आर्थिक एवं श्रमिक नीतियों के खिलाफ संघर्ष के लिए व्यापक एकता के लिए हाथ मिलाया है.जिन केन्द्रीय श्रम संगठनो ने २८ फरवरी २०१२ का आह्वान किया है उनमें -भारतीय मजदूर संघ,इन्टक,एटक,सीटू एवं एह एम् एस इत्यादी प्रमुख हैं. माना जा रहा कि दुनिया के ट्रेड यूनियन आन्दोलन के इतिहास में यह सबसे बड़ी ट्रेड यूनियन कार्यवाही होगी.
हड़ताल का आह्वान करने वाले सभी प्रमुख संगठनों कि आम राय है कि वर्तमान आर्थिक नीतियाँ न तो देश के हित में हैं और न ही श्रमिक और किसानों कि हित-पोषक हैं.सरकार के नीति निर्धारकों को आये दिन न्यायलय कि दुत्कार के वावजूद मेहनतकश जनता और समाज के कमजोर तबकों कि कोई चिंता नहीं है.बेतहासा महंगाई की वास्तविकता को नजर अंदाज कर थोक मूल्य सूचकांक के आभाशी आंकड़ों में जनता को भरमाया जा रहा है.आर्थिक मंदी की आड़ में अय्याश पूंजीपतियों को अरवों की मदद दी जा रही है.कार्पोरेट दिग्गजों को रियाय्य्तें दीं जा रहीं हैं. कामगार ,किसानों और श्रमिक सर्वहारा वर्ग पर संकट धकेला जा रहा है. देश की जनता की अमानत के जीवंत-प्रमाण केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में सौंप ने की भरसक कोशिशें जारी हैं.देश की नई नौजवान पीढी का एक बहुत बड़ा और सुशिक्षित वर्ग, असंगठित और अस्थायी किस्म की जिन्दगी का हिस्सा बन चुका है.
प्रस्तुत हड़ताल केवल वेतन,भत्ते या पूँजी और श्रम के बीच की रस्साकसी मात्र नहीं है, बल्कि वित्तीय पूँजी को उसकी अमानवीयता के लिए कठघरे में खड़ा करने का ऐलान करती हुई मजदूर वर्ग के संघर्षों में एक और शानदार मील का पत्थर तराशने में कामयाब होगी.
श्रीराम तिवारी
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