किसी रीतिकालीन विरही कवि के सूफियाना अंदाज़ को स्मरण करते हुए मैं अपने सभी प्रशंसकों,सुह्रुदयजनों,पाठकों,सपरिजनों एवं ब्लोगिंग की दुनिया के सहचरों को मोद्प्रिय,माधुर्य्मय
ऋतुराज वसंत के शुभागमन की शुभकामनायें निम्न चार पंक्तियों के माध्यम से प्रेषित करता हूँ.नहीं पावस एहिं देसरा,ना हेमंत वसंत!
ना कोयल ना पपीहरा ,जेहिं सुनी आवे कंत!!
आज के भूमंडलीकरण के अति उन्नत सूचना प्रोद्दौगिकी के दौर में हमाराआधुनिकतम मुक्तक पेश है;....
याद करना और याद आने में बड़ा फर्क होता है!
याद हम उसे करते हैं जो हमारे मस्तिष्क में होता है!!
याद हम उन्हें आते हैं जो हमारे दिल में होते हैं!
बड़ा खुशनसीब है वो जो किसी का कुछ तो होता है!
आजकल एस एम् एस ,फेस बुक के माध्यम से ,
वे मोसम भी पावस-हेमंत और वसंत होता है!!
जो प्यार -प्रेम के बीज बो देता है!!!
पद्माकर के शब्दों में ;-\
कूलन में केलि में कछारण में कुंजन में,
क्यारण में कलित कलीन किल्कांत है!
कहें पद्माकर, परागन में पौन में ,
पाकन में पिक में पलाशन पगंत है!!
द्वार में दिशान में दूनी देश -देशन में,
देखों दीप दीपन में दीपत दिगंत है!
बेलि में बितान ब्रज बेलन -नबेलन में ,
बनन में बागन में बगरो वसंत है!!
मेरी सद्द स्वरचित पंक्तियाँ....
पुरवा गाती रहे पछुआ गुन-गुन करे,
बीती जाए शिशिर की जवानी हो!
बीतें पतझड़ के दौर झूमें आमों में बौर,
कूंके कुंजन में कोयलिया कारी हो!!
यमुना कल-कल करे गंगा निर्मल बहे,
कभी रीते न रेवा का पानी हो!
फलें फूलें दिगंत गाता आये वसंत
हर सवेरा नया और संध्या सुहानी हो!१
श्रीराम तिवारी
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