यह एक क्रमिक एवं स्वाभाविक युति है कि जिन कवियों की मातृभाषा हिंदी या कोई अन्य आंचलिक भाषा होती है,और यदि वे जनवाद या क्रांति जैसे विचारों से प्रेरित है तो वे प्रगतिशीलता के तत्वों को उर्दू शब्दों के सहारे ही थामने में सफल हुए हैं.इस विधा में गैर उर्दू भाषियों में जब भी कविता या शायरी की चर्चा होगी गजानन माधव मुक्तिबोध और दुष्यंत के बाद 'अदम गौंडवी'उर्फ़ रामनाथसिंह सदैव याद किये जाते रहेंगे.
राम नाथसिंह ने शायरी लिखने के शुरुआती दौर में ही न केवल अपना नाम बदल डाला बल्कि परम्परागत उत्तर आधुनिक कविता को शायरी का नया लिबास भी पहनाया.दुष्यंत ने जिस हिन्दी शायरी में आम आदमी का दर्द उकेरा था ,अदम गौंडवी ने जनता की आवाज बनाकर उसे अमरत्व प्रदान किया है.उनकी कई गजलों में व्यवस्था कि लानत-मलानत की गई है. जन- गीतों के तो मानो वे सरताज थे.पूंजीवादी,साम्प्रदायिक और निहित स्वार्थियों की जकड़न में कसमसाती आवाम को 'अदम 'के शेर संबल प्रदान करते है-
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेडिये!
अपनी कुर्सी के लिए ज़ज्वात को मत छेडिये!!
हैं कहाँ हिटलर हलाकू जार या चंगेज खाँ!
मिट गए सब कौम की औकात को मत छेडिये!!
छेडिये इक जंग मिल जुलकर गरीबी के खिलाफ!
दोस्त !मेरे मजहबी नगमात को मत छेडिये!!
एक और वानगी पेश है-
काजू भुने प्लेट में,व्हस्की गिलास में,
उतरा है रामराज ,विधायक निवास में!
पक्के समाजवादी है,तस्कर हों या डकैत,
इतना असर है खादी के लिबास में!
आजादी का जश्न वो मनाएं किस तरह,
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में!
......................................
........एक ही चारा है वगावत ....
यह बात कह रहा हूँ में होशो-हवाश में!
२२ अक्तूबर १९४७ को जन्में अदम गौंडवी के दुखद निधन से भारतीय उपमहादीप के प्रगतिशील साहित्य जगत में भले ही शोक का तमस छा गया हो किन्तु उनकी सृजनशीलता के धूमकेतु निरंतर उन सभी श्रेष्ठतम मानवों का पथ प्रशस्त करते रहेंगे ,जो मानवीय मूल्यों की हिफाज़त करते हुए , शोषण के अन्धकार को समूल नष्ट करते हुए मानव मात्र को शान्ति-मैत्री-बंधुत्व और समता से परिपूर्ण देखने की तमन्ना रखते हैं....
जनकवि रामनाथसिंह अर्थात 'अदम गौंडवी'ने आजीवन दलित,शोषित,पिछड़ों और गरीबों के संघर्षों में न केवल परोक्ष सहयोग किया बल्कि अपनी सशक्त लेखनी से इन वंचित वर्गों को उपकृत भी किया है.वे दुष्यंत पुरस्कार से सम्मानित किये जा चुके थे.भले ही उन्होंने मात्र दो काव्य संग्रह 'धरती की सतह पर'और 'समय से मुठभेड़'सृजित किये हों किन्तु 'संछिप्त्ता सौन्दर्य की जननी है' अतः अदम गौंडवी का सृजन,उनका व्यक्तित्व और संघर्षों में अवदान अप्रतिम है,पर्याप्त है,जीवन है...
श्रीराम तिवारी
राम नाथसिंह ने शायरी लिखने के शुरुआती दौर में ही न केवल अपना नाम बदल डाला बल्कि परम्परागत उत्तर आधुनिक कविता को शायरी का नया लिबास भी पहनाया.दुष्यंत ने जिस हिन्दी शायरी में आम आदमी का दर्द उकेरा था ,अदम गौंडवी ने जनता की आवाज बनाकर उसे अमरत्व प्रदान किया है.उनकी कई गजलों में व्यवस्था कि लानत-मलानत की गई है. जन- गीतों के तो मानो वे सरताज थे.पूंजीवादी,साम्प्रदायिक और निहित स्वार्थियों की जकड़न में कसमसाती आवाम को 'अदम 'के शेर संबल प्रदान करते है-
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेडिये!
अपनी कुर्सी के लिए ज़ज्वात को मत छेडिये!!
हैं कहाँ हिटलर हलाकू जार या चंगेज खाँ!
मिट गए सब कौम की औकात को मत छेडिये!!
छेडिये इक जंग मिल जुलकर गरीबी के खिलाफ!
दोस्त !मेरे मजहबी नगमात को मत छेडिये!!
एक और वानगी पेश है-
काजू भुने प्लेट में,व्हस्की गिलास में,
उतरा है रामराज ,विधायक निवास में!
पक्के समाजवादी है,तस्कर हों या डकैत,
इतना असर है खादी के लिबास में!
आजादी का जश्न वो मनाएं किस तरह,
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में!
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........एक ही चारा है वगावत ....
यह बात कह रहा हूँ में होशो-हवाश में!
२२ अक्तूबर १९४७ को जन्में अदम गौंडवी के दुखद निधन से भारतीय उपमहादीप के प्रगतिशील साहित्य जगत में भले ही शोक का तमस छा गया हो किन्तु उनकी सृजनशीलता के धूमकेतु निरंतर उन सभी श्रेष्ठतम मानवों का पथ प्रशस्त करते रहेंगे ,जो मानवीय मूल्यों की हिफाज़त करते हुए , शोषण के अन्धकार को समूल नष्ट करते हुए मानव मात्र को शान्ति-मैत्री-बंधुत्व और समता से परिपूर्ण देखने की तमन्ना रखते हैं....
जनकवि रामनाथसिंह अर्थात 'अदम गौंडवी'ने आजीवन दलित,शोषित,पिछड़ों और गरीबों के संघर्षों में न केवल परोक्ष सहयोग किया बल्कि अपनी सशक्त लेखनी से इन वंचित वर्गों को उपकृत भी किया है.वे दुष्यंत पुरस्कार से सम्मानित किये जा चुके थे.भले ही उन्होंने मात्र दो काव्य संग्रह 'धरती की सतह पर'और 'समय से मुठभेड़'सृजित किये हों किन्तु 'संछिप्त्ता सौन्दर्य की जननी है' अतः अदम गौंडवी का सृजन,उनका व्यक्तित्व और संघर्षों में अवदान अप्रतिम है,पर्याप्त है,जीवन है...
श्रीराम तिवारी
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