शनिवार, 10 दिसंबर 2011

'द सीक्रेट'में भारतीयों के लिए कुछ भी 'रहस्य'नहीं.

    प्रख्यात लेखिका 'रोन्दा वार्न'ने अपनी पुस्तक ' द सीक्रेट' में  बहुत उपयोगी और मानवोचित सिद्धांतों की नए सिरे से मीमांसा  की है.उच्च शक्ति की विचार तरंगों,उद्दाम आकांक्षाओं,पृकृति प्रदत्त अवदानों की सहज प्राप्ति इत्यादि विषयक वैज्ञानिक विश्लेषणों के साथ इस पुस्तक में वह सब कुछ है जो एक खुशहाल और जिंदादिल व्यक्ति,समाज और राष्ट्र के लिए अनुकरणीय है.'रोन्दा वार्न' ने इस पुस्तक के समानांतर  एक लघु फिल्म भी इसी विषय को लेकर बनाई है.डा जान ग्रे ,डा जान डेमार्तिनी ,डा जेम्स रे इत्यादी दर्जनों उद्भट विद्वान् दार्शनिकों ,मनोवैज्ञानिकों ,लेखकों और समाजशास्त्रियों को इस पुस्तक में उल्लेखित किया गया है.
      पुस्तक में लेखिका ने अप्राप्त की प्राप्ति,इच्छा  शक्ति की असीम प्रबलता,प्रकृति-पदार्थ और मनोभावों के आपस में अवगुंठित ताने -वाने को सप्रमाण और जीवंत रेखांकित किया है.चेतन-अचेतन,व्यक्ति-समूह,ब्रम्हांड-पिंड और उर्जा-पदार्थ के आपसी रिश्तों में मानवीय जीवन को आनंदमय ,निरापद और सफलतम बनाने के जो सूत्र इस पुस्तक में उपलब्ध हैं वे सभी कभी न कभी कहीं-न-कहीं यत्र-तत्र-सर्वत्र इस धरती पर या तो आजमाए जा चुके हैं या आजमाए जा रहे है.
       न केवल    इस पुस्तक की लेखिका अपितु इस पुस्तक में उल्लेखित  अन्यान्न विद्वत जनों में अधिकांश या तो बाइबिल प्रेरित है याआधुनिक पाश्चात्य दर्शन से प्रभावित है. भारतीय प्राच्य वांग्मय से वे नितांत  अनभिग्य से लगते है.
 .मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं की इस पुस्तक का सार  गीता के किसी एक श्लोक के चतुर्थांश के बराबर भी नहीं है.यह पुस्तक निसंदेह किसी निराश इंसान को "सकल पदार्थ हैं जग माहीं!कर्महीन नर पावत नाहीं!!से आगे नहीं ले जा सकती ;किन्तु गीता तो व्यक्तिगत  लौकिक या  पारलौकिक उपलब्धियों  से भी आगे न केवल जीवन संग्राम में अपितु मानसिक संवेदनाओं के हाहाकार में भी जीवन को उजास प्रदान करने में समर्थ है.,
   प्रस्तुत पुस्तक में 'कृतज्ञता'का महत्व  कुछ इस तरह प्रतिपादित किया गया है कि भारतीय परम्पराओं और लोकाचार को यदि लिपिबद्ध कर उसे किसी खास  पुस्तक की शक्ल में प्रकाशित किया जाए तो अमेरिकी बौद्धिक संपदा के रहनुमा उसे रातों रात अपने नाम से पेटेंट कराने से नहीं चूकेंगे!

    "कृतज्ञता का अभ्यास मेरे  लिए  बहुत ज़बरदस्त सावित हुआ है.हर सुबह में जल्दी उठकर सबसे पहले जब फर्श पर पैर रखता हूँ तो 'धन्यवाद'[धरती को ]कहता हूँ/................................उन चीजों को याद करता हूँ ,जिनके लिए में कृतज्ञ हूँ......................में इसे ब्रह्मांड की ओर भेज रहा हूँ.........कृतज्ञता की भावनाएं महसूस कर रहा हूँ....."
               डा जेम्स रे ' को इसी पुस्तक के पृष्ठ ७५ [हिंदी अनुवाद] पर उक्त कोटेशन के साथ उद्धृत किया गया है.
    भारत में ५ हज़ार वर्ष पूर्व रचित आर्ष ग्रुन्थों और गुरुकुल परम्पराओं में सहस्रों उदहारण मौजूद हैं.जहां गुरु शिष्य ,के उदाहरण में आरुणि-विरोचन,रघु-वशिष्ठ,चन्द्रगुप्त-चाणक्य,शिवाजी-समर्थ रामदास और गाँधी-गोखले के उदाहरन मौजूद हैं. माता-पिता के प्रति राम और श्रवणकुमार के  बलिदान जग जाहिर हैं.
  सुन जननी सोई सूत बडभागी !जो पितु -मात चरण अनुरागी!!
  तनय मातु-पितु तोषनिहारा! दुर्लभ जननिं सकल संसार!!
         इस तरह के असंख्य उदहारण भारतीय वांग्मय में उपलब्ध हैं,किन्तु बिडम्बना यह है कि जहां प्रस्तुत पुस्तक द सीक्रेट'सीधे -सीधे सरल लफ्जों में बिना किसी विराट महाकाव्यात्मक आख्यान के ही मानवीय ज्ञानामृत का रसास्वादन करती है ;वहीं भारतीय और प्राच्य ज्ञान रूपी मणि-माणिक्यों को कुछ इस तरह पेश करने की परम्परा सी रही है कि जब तक एक ट्रक भूसा नहीं छानोगे तब तक सुई नहीं मिलेगी. इतना ही नहीं आगम -निगम ,पुराणों में तो जिस तरह की अलिफ़ लेलाई किस्म की कथात्मकता में ज्ञानामृत छिपाया गया हैउसके नकारात्मक पहलु न केवल दीर्घसूत्रता में आये हैं अपितु समाज के श्रमिक,सर्वहारा और कामगार  नर-नारियों को उससे महरूम रखने के क्षेपक  भी घुसेड़े गए हैं.भाषाई जटिलता और आम जनता की निरक्षरता से न केवल भारतीय उप्म्हद्वीप अपितु दुनिया के तथकथित सभ्य और शुशिक्षित समाजों तक वो ज्ञान नहीं पहुँच पाया जो 'रोन्दा वार्न 'के लिए रहस्य है और जिसको उन्होंने कुछ इस अंदाज़ में पेश किया है कि उन्हें दुनिया में किसी खास नए रहस्य का पता चला है सो उन्होंने 'द सीक्रेट ' में दुनिया के सामने ओपन किया है?
        श्रीराम तिवारी

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