रविवार, 22 सितंबर 2019

वर्ग संघर्ष का सिद्धांत


दास स्वामी आर्थिक सामाजिक प्रणाली के पतन और सामंती प्रणाली की स्थापना के बाद सामंती राज्य ने सामंतों और किसानों के बीच आने वाले सभी आर्थिक संबंधों को निश्चित कर दिया।
सामंत सम्पूर्ण जमीन का स्वामी माना गया।किसान,कारीगर को भी जमीन का सीमित स्वामित्व प्राप्त हुआ।साथ ही किसान ,कारीगर पर भी सामंत को सीमित स्वामित्व प्राप्त हुआ।
किसान सामंत के लिए प्रत्यक्ष रूप से बेगार करने के बाद अपने खेतों पर अधिक श्रम करने लगे।
सामंत को लगान देने के बाद जमीन पर अपने स्वामित्व के कारण किसान और कारीगर की अपने खेत ,हल , बैल,चरखे करघे आदि उपकरणों को सुधारने में दिलचस्पी बढ़ी।
फसलों और वस्तुओं के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।इससे सामंतों की आय में भी वृद्धि हुई।
किसानों के जीवन स्तर और सामंतों की समृद्धि में विकास होने के कारण ज्ञान,विज्ञान,साहित्य,कला,संगीत,स्थापत्य,किलों,सिंचाई के साधनों,तालाबों आदि का निर्माण और विकास हुआ।
इसके साथ ही राज्यों के बीच लड़ाइयों और युद्धों की भी वृद्धि हुई।
किन्तु इस समृद्धि और विकास का सारा भार किसान वर्ग को ही वहन करना पड़ता था।
युद्ध कल में किसानों का शोषण और दमन और अधिक बढ़ जाता था।
सामंतों की समृद्धि ने उनको अकर्मण्य ,लुटेरा और लंपट बना डाला।
किसानों और सामंतों के बीच का संबंध शोशी और शोषक का था।किसानों के निवेदन भी सामंती राज्य कि नजर में मालिक के आदेश की अवज्ञा माने जाते थे।
अतः किसानों का असंतोष सामंतों के विरुद्ध संघर्ष के अनेक रूपों में प्रकट हुआ !वर्ग संघर्ष का सिद्धांत 

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